किसी भी इतिहासिक सम्राजया का एक राज्यचिन्ह होता था, उस राज्य चिन्ह को उसके अधीन आने वाली रिय़ासते अपनाती थी
जब कोई सम्राट बहुत सी रियास्तो पर विजय प्राप्त कर अपने सम्राज्य को बनाता है, और फिर अपनी एक पहचान के लिए एक राज़चिन्ह बनाता है, और उस राज्य के महलो, मंदिरो, तालाबो में वो राज्य चिन्ह ऊकेरा य़ा प्रिंट करवाया जाता है उस राजचिन्ह से उस सम्राजय़ा की पहचान होती है ज़िसे राज़ चिन्ह कहा जाता है, और भारतीय इतिहास में गोंडवाना ही मात्र एेसा राज्य है ज़िसका हाथी ऊपर सिंह राज़चिन्ह पाया जाता है, और गोंडो की 258 रियासतो के तालाबो, मंदिर, महल में ये राज्य चिन्ह पाया जाता है, ज़िससे हम उनके बेभव का अन्दाजा लगा सकते है, गोंडवाना का ये राज्य चिन्ह महाराष्ट्र, तिलंगाना, मध्यप्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगड़, तमिलनाड़ू, के मंदिरो और तालाबो में साफ, साफ देखा जा सकता है, बहुत से इतिहासकारों और गजेटियर में गोंडवाना राज्य चिन्ह का विस्तृत वर्णन है, प्रमुखता रामभरोसे अग्रवाल ने अधिक विस्तृत वर्णन किया इनके अनुसार इस राज्य चिन्ह को गोंड राज्य के संस्थापक य़ादव राय ने बनाया यादव का शाशन काल मेंथिल ब्राम्हण रुपनाथ ओझा के अनुसार 158 AD और स्लीमेन के अनुसार 382 AD बताया गया है.. इनका कार्यकाल दोनो इतिहासकारो ने 5 वर्ष माना है,
यादव राय टेकाम (158 AD) टेकाम गोत्र के पवित्र स्थल लाँझी गढ़(दक्षिण प्रदेश ) के जोधा सिंह पटेल के एक मात्र पुत्र..
गड़ा राज्य की स्थापना लाँझी के सेहल गांव निवासी जोध सिंह पटेल के पुत्र यादवराय ने 158 AD में एक किंवदंति के अनुसार मां नर्मदा ने यादव राय को स्वप्न देख कर सर्वे पाठक की सहायता से गढ़ा वंश की स्थापना हेतु आदेशित किया जिससे प्रेरणा लेकर उसने गढ़ा की राजकुमारी रत्नावली मरावी(नागवंशी) से विवाह किया। और 102 AD से लेकर 400 AD तक लगभग मातृसत्तात्मक युग था ज़िसमें माता के वंश पर ही वंश चलता था, उस समय का सतकरनी वंश इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. और उसी परंपरा के अनुसार यादव राय की आंगे की पीडी ने अपने माँ के कुल से मरावी राज्य को चलाना सही समझा..
तदुपरांत गढ़ा वंश की नींव डाली..
गढ़ा वंश के संस्थापक के रूप में यादव राय की पुष्टि 'रामनगर शिलालेख' और 'गढेशनॄपवर्णनम्' के उल्लेख से होती हैं इसी वंश के बाद में पुलस्त्य वंशी संग्राम शाह जैसे प्रतापी शासक हुए वहीं इसी साम्राज्य में वीरांगना दुर्गावती भी हुई। और पुलतासी मरावी गोत्र का गंडचिन्ह है..ज़िसे नीलकंठ कहा जाता है..
नोट - राज्य चिन्ह गोंड की गोत्र व्यवस्था से अलग होता है, गोंडी भाषा टेकाम शब्द को संस्कृत में कच्छवा बोला जाता है, और यादवराय की जानकारी गणेशनृपवर्णनम संस्कृत ग्रंथ से मिलती है, ज़िसमें कच्छवा क्षत्रिया नाम से संबोधित किया गया है ना कि राज़पूत, और लाँझी गढ़ के गोंड सूर्यवंशी पदवी धारक है
रामभरोसे अग्रवाल की गोंड जाति का सामाजिक अध्यन के अनुसार जब यादवराय जंगल में शिकार करने के लिए निकले उन्होने देखा के किस तरह एक सिंह अपनी बुद्धि का उपयोग कर एक हाथी के ऊपर सवार है और हाथी आकार में तीन गुना बड़ा होते हुए भी असमर्थ है, ईसी बात को ध्यान में रखते हुए, यादवराय ने अपने हाथी जैसे विशाल सम्राजय की पहचान के लिए हाथी ऊपर सिंह का राज्य चिन्ह बनाया गया ज़िसे (गजसोडूम) भी बोला जाता है, इस राज्य चिन्ह की उत्पत्ति का समय 158 AD मानना सही होगा क्योंकि मैथिल ब्राम्हण उनके राज़पुरोहित रहे है और इस राज्य चिन्ह की प्रमाणिकता का यह सबसे बड़ा कारण है. गोंडवाना राज्य से पहले सम्राट अशोक का राज्य चिन्ह मिलता है जो अब भारतीय मुद्रा में अंकित है, ब्रिटिशो का भी राज़ चिन्ह था, मगर अकबर और अन्य सम्राजयो के राज्य चिन्ह मंदिरो और मसज़िदो में क्यो नही मिलते एेसा क्यो🤔 #गोंडवाना#GondWana#gondkingdom
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