कोया पुनेम गोंडवाना इतिहासकार कई गोंड राजवंशों के राजाओं को राजगोंड कहते हैं, और वे यह भी दावा करते हैं कि राजगोंड गोंडो द्वारा दी गई एक उपाधि है। हिन्दी? गोंडी इतिहासकार डॉ सुरेश मिश्रा ने कहा है कि गोंड लोग उन्हें राजगोंड कहते थे, जो गोंड जनजातियों में एक प्रमुख या राजा हुआ करते थे। क्योंकि प्रमुख गोंडो के बीच शासन करता था, वही राजा या अभिजात वर्ग की कुलीन शाखा का ताज पहनाया जाता था। उन्हें राजगोंड भी कहा जाता था। बाद में उसी राजा के साथ अन्य राजाओं के संपर्क में आने के बाद, गोंड वंश के कई राजाओं ने शैव धर्म अपनाया l
स्टीफन_फुश " गोंड राजाओं को चार भागों में विभाजित करता है:
(1.) देवगोंड या सूर्यवंशी गोंड- वे विशुद्ध रूप से शाकाहारी हैं। वे सूर्य से अपनी उत्पत्ति मानते हैं और सबसे प्राचीन गोंड जनजाति हैं।वे पूरी तरह से हिंदू धर्म का पालन करते हैं और पुजारियों के लिए एक उच्च स्थान रखते हैं। वे बुद्धदेव और शिव के उपासक हैं लेकिन वे राम, विष्णु, दुर्गा आदि की भी पूजा करते हैं। सभी देवी-देवता हिंदू धर्म के हैं और सभी हिंदू त्योहार मनाते हैं। वे मांसाहारी भोजन और शराब के सेवन के सख्त खिलाफ हैं। देवगोंड विशुद्ध रूप से शाकाहारी हैं और खुद को सूर्यवंशी गोंड का वंशज मानते हैं और अपने जीवन के हिस्से के रूप में 16 संस्कारों का सख्ती से पालन करते हैं। रतनपुर, रायपुर, रायगढ़, धम्मगढ़ क्षेत्र में शासन करने वाले राजाओं को देवगोंड या सूर्यवंशी गोंड-कहा जाता था। -देवगोंड और सूर्यवंशी गोंड की उपाधी जुदेव, शाह, ठाकुर (ग्राम का रक्षक देव) दौआ, मुकद्दम, मालगुजर, सिंह आदि
2. राजगोंड - अलीदाबाद क्षेत्र के चंदागढ़ में शासन करने वाले राजाओं को राजगोंड कहा जाता था।
3. देवगढ़िया गोंड-सूर्यवंशी देवगढ़ी गोंड - ये भी सूर्यवंशी गोंड हैं लेकिन इनका उद्गम देवगढ़ से है। खेरला, देवगढ़, भोपाल क्षेत्र पर राजाओं का शासन था।
4. रावेनवंशी गोंड -गढ़ जबलपुर क्षेत्र के गढ़मंडला में शासन करने वाले राजाओं को कहा जाता था।ये गोंड मांस और शराब का सेवन करते हैं। रावेनवंशी गोंड की उपाधी जुदेव, शाह, ठाकुर (ग्राम का रक्षक देव) दौआ, मुकद्दम, मालगुजर, आदि
आमतौर पर गोंड लोग पहाड़ियों और पठारों में निवास करते l
गोंड की प्रमुख उपजातियाँ :
1. अगरिया - यह उपजाति मुख्य रूप से लोहे का काम करती है ।
2. कोयलाभुतिस - नाच गान करने वाले गोंड ।
3. प्रधान - मंदिर में पूजा पाठ तथा पुजारी का काम करने वाले गोंड
4. ओझा - गोंड जो पंडिताई और तांत्रिक क्रिया करते हैं
5. सोलाहस - बढई गिरी का काम करने वाले लोग।
6. गायकी- गाय बैल चराता है गांव के।
◆कोयलाभुतिस गोंड जनजाति के प्रमुख नृत्य
1.सैला
2.भड़ौनी
3.बिरछा
4.करमा
5.कहरवा
6.सजनी
7.दीवानी
8.सुआ
◆कोयलाभुतिस गोंड के प्रमुख पर्व -
1. बिदरी
2. करमा
3. छेरता
4. बक पन्थी
5. हरदिली
6. मड़ई
7. मेघनाद
1. देवगोंड या सूर्यवंशी गोंड-ये राम के अनन्य भक्त होते है और राम का सबसे बड़ा और प्रसिध त्योहार कवर्धा dassehra को भारत मैं सबसे ज्यादा दूम धाम से मानाते है यह dassera विस्वाप्रसिद्ध धास्सेरआ है ज़िसमे विदेशो से भी लोग आते है : शाही अंदाज में होता है रावण का दहन, लोगों को भेंट में मिलता है पान छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के कवर्धा (Kawardha) जिले में शाही दशहरा मनाने की सालों पुरानी परंपरा आज भी कायम है. यहां 17वीं शताब्दी से शाही दशहरा मनाया जा रहा है. इसी काल में कवर्धा स्टेट की स्थापना के साथ ही यहां राजपरिवार का दशहरा (Dussehra) में खास सहभागिता शुरू हुई, जो आज 400 वर्षों बाद भी कायम है. दशहरा के दिन कवर्धा रियासत के राजा योगेश्वर राज सिंह, उनके बेटे युवराज मैकलेश्वरराज सिंह महल से शाही रथ में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं. रास्ते में रावण के पुतले का दहन भी होता है. उसके बाद राजपरिवार लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते हैं. लोगों की मान्यता है कि दशहरा के दिन राजा के दर्शन करना शुभ होता है. इसलिए दूर-दूर से ग्रामीण दर्शन के लिए कवर्धा आते हैं. नगर भ्रमण के बाद कवर्धा के मोतीमहल में राज दरबार लगता है. जहां राजा से नागरिक भेंट मुलाकात करते हैं. राजा उन्हें पान भेंटकर अभिवादन करते हैं.
कवर्धा महल की भव्यता और सुंदरता आज भी कायम है, महल देखकर नहीं लगता है कि ये वर्षों पुराना महल है. कवर्धा में राजपरिवार का दबदबा रहा है. वर्तमान में यहां कवर्धा के राजा योगेश्वर राज सिंह हैं. राजपुरोहित पंडित सनत कुमार शर्मा बताते हैं कि दशहरा के दिन पूरा राजपरिवार नगर के प्रतिष्ठित मंदिरों में दर्शन करता है. देर शाम को राजा महल से रथ में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं.
"यहां होता है रावण दहन"
राजपुरोहित पंडित सनत कुमार शर्मा बताते हैं कि दशहरे के दिन कवर्धा के राजा योगेश्वर राज सिंह, युवराज मैकलेश्वर राज सिंह रथ में सवारा होकर महल से नगर भ्रमण पर निकलते हैं. बाजे-गाजे के साथ हजारों की संख्या में लोग राजा के साथ चलते हैं. नगर के सरदार पटेल मैदान में रावण दहन किया जाता है. उसके बाद राजा अपने रथ में पूरे नगर का भ्रमण करते हैं.
"सालों पुरानी है परंपरा"
इतिहासकार देविचंद रूसिया के मुताबिक कवर्धा में दशहरा मनाने की परम्परा 400 साल पुरानी बताई जा रही है. कवर्धा रियासत की स्थापना 17वीं शताब्दी में हुई थी. उसी समय से यहां शाही दशहरा मनाने की परम्परा की शुरूआत हुई, जो आज भी कायम है. पीढ़ी दर पीढ़ी राजपरिवार इस परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं.
(2) रावेनवंशी गोंड -भारत के कटि प्रदेश यानि गोंडवाना में गोंड कोइतूरों की सत्ता थी. गढ़ मंडला और गढ़ा कटंगा में मरावी वंश के शासकों का प्रभुत्व था जिसके सबसे ज्यादा प्रतापी राजा संग्राम शाह थे जिनके मातहत 52 गढ़ और 57 परगने आते थे. इतिहासकार बताते हैं कि गोंडवाना के मरावी वंश के गोण्डों ने मध्य भारत में 1400 वर्षों से अधिक समय तक राज्य किया था (अग्रवाल, 1990).
गढ़ मंडला के सभी राजा रावेन टोटेम धारी थे. आचार्य मोती रावण कंगाली ने अपनी पुस्तक “गोंडवाना का सांस्कृतिक इतिहास” में रावेन को नीलकंठ कहा है और बताया है कि गढ़ मंडला के राजाओं का गंडजीव चिन्ह (टोटेम) नीलकंठ या रावेन था. गोंडी में नीलकंठ पक्षी को पुलतासी या रावेन पिट्टे भी कहा जाता है
ऐसा कहा जाता है कि दशहरा के समय नीलकंठ पक्षी का दर्शन करना शुभ होता है (श्रीवास्तव, 2017). चूंकि नीलकंठ पक्षी को गोंडी भाषा में रावेन पिट्टे कहते हैं और यह कोइतूरों के एक जाति गोंड के मरावी वंश का टोटेम है. मात्र इसके रावेन नाम से इस देश के लोग इस पक्षी के रावण समझ कर इसकी जान के दुश्मन बन जाते हैं.
ऐसी मान्यता है कि नीलकंठ पक्षी भगवान् शिव का एक रूप है और धरती पर विचरण के लिए भगवान शिव इस नीलकंठ पक्षी का रूप लेकर घूमते है. दशहरे के दिन इस नीलकंठ पक्षी को देखने से इंसान को धन धान्य मिलता है और पाप मुक्त हो जाता है. यह भी माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति दशहरे के दिन नीलकंठ को देखता है और कोई इच्छा करता है, तो नीलकंठ पक्षी कैलाश पर्वत पर रहने वाले उसी तरह नीले-गले वाले भगवान शिव के पास उस व्यक्ति की इच्छा को पहुंचाता है और शिव उसकी मनोकामना पूरी करते हैं. इन अंधविश्वासों को पूरा करने के लिए, पक्षी पकड़ने वाले त्योहार से लगभग एक महीने पहले से ही इन नीलकंठ पक्षियों को फंसाना शुरू कर देते हैं. पक्षियों को बंदी बनाया जाता है, उनके पैरों को बांधा जाता है, उनके पंखों को छंटनी की जाती है और यहाँ तक कि उन्हें चिपकाया जाता है, ताकि वे उड़ न सकें. एक महीने तक पिजड़े में रहकर ये पक्षी बीमार और कमजोर हो जाते हैं और बाद में छोड़ने पर भी मर जाते हैं (मेनन, 2015).
तौर पर महान या शक्तिशाली आत्माएँ भी कहते हैं. जब किसी कुंवारे लड़के या लड़की की असमय मृत्यु हो जाती है तब उसे मेड़ों के बाहर (गाँव की सीमा के बाहर) गाड़ते हैं. इनको अपने मुख्य सज़ोर पेन ठाना में नही मिलाया जाता बल्कि इन्हें अलग से सम्मान दिया जाता है. मृत लड़के की आत्मा को राव और मृत लड़की की आत्मा को कैना कहते हैं जो अदृश्य वेन (मानव) रूप में गाँव की सुरक्षा करते हैं! चूँकि इन युवकों और युवतियों की मृत्यु जीवन पूर्ण होने पहले ही हो गयी होती है इसलिए इन्हें पेन (देवता) का दर्जा न देकर इन्हें वेन रूप में ही पूजते है और राव वेन के नाम से जानते हैं. मृत व्यक्तियों के दफ़नाने वाले स्थान, उम्र और सामाजिक स्थिति के आधार पर दस तरह के राव (रावेन) होते हैं:-
1. घाट राव 2. पाट राव 3. कोड़ा राव 4. हंद राव 5. डंड राव 6. बैहर राव 7. कापडा राव 8. कप्पे राव 9. बूढ़ा राव 10. राजा राव
इन्हें शक्ति स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त होती है. जंगलों और पहाड़ों से होते हुए जाने वाले रास्तों पर ऐसे घाट राव को बंजारी देव या बंजारी देवी स्थल के रूप में भी जाना जाता है.
सारोमान (अश्विन माह) के दशमी के दिन राव वेनों का गोंगो (पूजा आराधना) होती है जबकि रावण का दहन होता है. पूरे नार (गाँव) में दसराव पेनों की गोंगो द्वारा गाँव की सुख, शान्ति, समृद्धि और सुरक्षा के लिए की जाती है| दशमी के दिन होने वाली राव पूजा को रावेन गोंगो कहते हैं.
कई जन जातीय भाषाओं में गाँव के रास्तों को जिस पर बैलगाड़ी आती-जाती है या गाँव से बाहर जाने वाली पगडंडियों को भी रावेन कहते हैं जिसका मतलब रास्ता या मार्ग होता है.
चाहे कुछ भी हो लेकिन यह बिलकुल साफ है कि रावेन और रावण दो विभिन्न पात्र है और दोनों दो भिन्न संस्कृतियों का हिस्सा हैं. और इसे देखते-समझते हुए ये बात साफ हो जाती है कि किसी-न-किसी षड्यंत्र के तहत रावेन और रावण को मिश्रित किया जा रहा है और अब उस कलुषित षड्यंत्र का परिणाम भी सामने आने लगा है. अब लोग रावेन को भूलकर रावण पर केन्द्रित हो गए हैं और जय रावण, जय लंकेश, जय लंकापति इत्यादि संबोधनों का प्रयोग करने लगे हैं. पहले मध्य प्रदेश के मंडला, बालाघाट, सिवनी छिंदवाड़ा बेतुल इत्यादि जिलों के ग्रामीण इलाकों में ‘रावेन ता सेवा सेवा’ (रावेन देवता की जय) का उद्घोष होता था आज उन्ही स्थानों में जय-लंकेश, जय-लंका-पति का नारा गुंजायमान हो रहा है. इससे साफ है कि जय भीम की तरह जय रावण को भी जय श्रीराम वाले नारे के विरोध में लाया जा रहा है इससे हिंदुओं की धार्मिक भावनाएँ आहत हो रही हैं और एक टकराव की स्थिति बन रही है.
सर्व प्रथम एक यूरोपियन लेखक स्टीफन फुक्स ने वर्ष 1960 में अपनी पुस्तक “द गोंड एंड भूमिया आफ़ ईस्टर्न मंडला” में जनश्रुतियों के हवाले से लिखा कि कुछ गोंड वंश के लोग यह दावा करते हैं कि वे लंका के राक्षस राज रावन के वंशज हैं (फुक्स, 1960).
हिन्दी लेखकों में सबसे पहले लिखित प्रमाण के रूप में राम भरोसे अग्रवाल ने गोंडो की स्वतंत्र पहचान पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया और उन्हे हिन्दू धर्म का अंग माना. अपनी पुस्तक “गढ़ा मंडला के गोंड राजा” में राम भरोसे अग्रवाल लिखते हैं कि “मैंने ‘रावनवंसी’ शब्द पर से अनुमान लगाया है कि गोंड जाति से ब्राह्मण है और शैव है” (अग्रवाल, 1990).
इसी परंपरा को आगे बढ़ते हुए जाने माने इतिहासकार डॉ सुरेश मिश्रा ने 2007 में फुक्स का हवाले देते हुए एक कदम और आगे बढ़कर लिखा कि महाराजा संग्राम शाह के समय के सिक्कों में उन्हे पुलत्स्य वंशीय कहा गया है. डॉ सुरेश मिश्रा ये भी स्वीकार करते हैं कि संग्राम शाह को पुलत्स्य वंशी कहा जाना एक महत्वपूर्ण वक्तव्य है क्यूंकि पुलत्स्य ऋषि का पुत्र रावण था. साथ ही साथ डॉ मिश्रा ये भी जोड़ते हैं कि गोंड स्वयं को रावणवंशी भी कहते हैं.
इस किताब में डॉ. कंगाली ने लिखा है कि गोंड वंश के संस्थापक यदुराय मड़ावी का गंड चिन्ह रावेन (नीलकंठ) पक्षी था इसलिए उनके वंश को रावेण वंशीय कहा जाता है. आज भी गढ़ मंडला के गंडजीव स्वयं को रावेण वंशीय कहते हैं.
इसी दौरान वर्ष 2011 में वर्धा के एक मराठी गोंडी लेखक मरोती उईके ने इस भ्रम की स्थिति को और पुख्ता कर दिया. उन्होंने इस विषय पर मराठी में एक किताब लिखी जिसका
शीर्षक है “होय… लंकापती रावन(ण) गोंड राजाच होता”
गोंड समूह के गणों के सरनेम से पता चलते है रिश्ते नाते
पूज्यनीय पहान्दी पारी कुपार लिंगो का कहना था कि भाई बहन में विवाह होने पर शारीरिक या मानसिक रूप से विकृत संतान जन्म लेगी, इसलिए उन्होने रक्त प्रकार के आधार पर नियमों की कठोरता के साथ 750 गोत्रों को पारी व्यवस्था में व्यवस्थित किया है |जो आज भी गोंड समाज पूरी श्रद्धा से मानता है गोंड समूह के गणों के सरनेम से पता चलते है रिश्ते नाते, गोंड समूह में 1 से 12 (1,2,3,4,5,6,7,8,9,10,11,12) पेन (देव) होते है | हर सरनेम (गोत्र) के अलग अलग पेन (देव) होते है |
1 से 12 तक गिनती में 6 सम संख्या वालों और 6 विषम संख्या वाले गोत्र (सरनेम) होते है |
समदेव- 2 देव, 4 देव, 6 देव, 8 देव, 10 देव, 12 देव लोग के सम गोत्र के कहलाते है, आपस में भाई बहन लगते है इसलिए इनका आपस में कोई भी पति पत्नी का संबंध नही हो सकता |
विषम देव -1 देव, 3 देव, 5 देव, 7 देव, 9 देव, 11 देव सरनेम (गोत्र) के कहलाते है| यह विषम देव वाले भी आपस में भाई बहन लगते है इसलिए इनमें भी आपस में कोई भी पति पत्नी का संबंध नही हो सकता है |
अब तक हमने देखा कि 2 देव, 4 देव, 6 देव, 8 देव, 10 देव, 12 देव वाले लोग आपस में भाई बहन होते है तो और 1 देव, 3 देव, 5 देव, 7 देव, 9 देव, 11 देव वाले लोग भी आपस में भाई बहन होते है | तो आपके मन में एक सवाल तो जरूर आएगा कि सब भाई बहन है तो शादी किसके साथ करेंगे?
जवाब - 2,4,6,8,10,12 जैसे सम देव वाले लोग 1,3,5,7,9,11 जैसे विषम देव वाले लोगों के से शादी कर सकते है, क्योंकि सम देव वालों का विषम देव वालों से सोयरे (मेवना - मेवती) यानी समधी - समधन का नाता होता है | और विषम देव वालों का भी सम देव वालों से सोयरे का, मेवना - मेवती का नाता होता है |
इसलिए किसी भी गोंड का गोत्र सुनते ही पता चल जाता है कि वो कितने देव वाला होगा और वो आपका भाई लगेगा कि मेवना (सोयरा) | उसके देव से पता चलता है कि वो हमारी बहन लगेगी या मेवनी |
इसी वजह से राज्यों की सीमा होकर भी गोंड समूह पूरे देश में भाईचारे और रिश्तों नातों की डोर से बंधा हुआ और एक है | ऊपर की व्यवस्था पूरी तरह से कूदरती आधार से बनी हुई है | हम घर से बल्ब ऑन करने के लिए बटन दबातें है लेकिन वायर का प्लस (+), माइनस (-) एक दूसरे से ना जुड़े तो घर का बल्ब नही जल सकता | स्त्री - पुरुष का कूदरती मिलन ना हो तो बच्चा नही जन्म सकता | वैसे ही सम - विषम देव वालों में रिश्ता ना हो तो सक्षम - बालाढय और धष्टपुष्ट उत्पत्ति नही हो सकता | आज तो विज्ञान भी कहता है कि जीन (gene) बदलने चाहिए, लेकिन यही जीन (gene) बदलने की बात को अपने समाज में सम विषम देवों की सोयरीक कहते है और सदियों से चला आ रहा है | हमे तो अपने पद्धति पर गर्व होना चाहिए कि जो पद्धति हम सदियों से पालन कर रहे है उसे आज विज्ञान अपनी भाषा में सामने ला रहा है | मतलब हम तो सुपर वैज्ञानिक के वारिस है |
इसलिए अपने गोत्र (सरनेम) का और पेनो (देवों) का राज और महत्व समझें और सही कुदरत के राह पर चलें |
रूपोलंग पहांदी पारी कुपार लिंगो द्वारा कोया वंशीय गोंड समुदाय को कुल 12 सगा में विभाजित किया गया है , जिसमे प्रथम 1 पेन से 7 पेन शाखा में भूमका सौ ( 100 ) – सौ ( 100 ) और शेष - सगा शाखा 8 पेन से 12 पेन में दस ( 10 ) - दस ( 10 ) पेन शाखा गोत्र सगाओं के नाम हैं : पेन 1. उंदाम या उंदीवेन सगा ( एक पेन सगा ) के गोत्र नाम एक पेन का नाम- ताराल गोंगो , झंडा रंग- आसमानी अंगाम | उकाम | कन्वाती | तडोपा | येल्रांडी | विजाम | अक्काम | उक्राम | | कंगाम | ताईका । ||| येरीयाम | विहका | अंदराम | उर्याम | गुंदाम | Hindi न । अरावी | उर्वाटी |गोंदराम | नगसोरी | येरमाल | वेरकाल | अर्वात्न | उर्पिटाम | गीवांगा | नलीयाम | शयगुडा | वेलांडी |अलांडी | एराम | चट्टाम | पंडाम | रेहकाम | वेदराम | अल्रगाम | एन्दाम | चितकामी | पईका | ® X रेलापाती | वराती | अर्रीटी | एडकाल | चर्वाटा | पिलकाटा | लवाटी | वलामी | असैंडी | एक्राम |चुमगोदा | मुरपाती | लगाम | संगाम | अर्राम | एन्नाका | जुग्गाम | मर्राम | लचियाम | सड़ाम । 18:58 अर्रारा | ओयाम | झिल्लाम | देडाम | लिंगोटा | सरपाती | अयमा | ओर्वा | टंगाम | दर्रम | वंजाम | सोरती | इंगाम | ओराटी | टिरकाटा | दिर्माका | वर्दाम | सूर्मीकी | अडाम | ओर्साम | टोयका | दिगरम | वरीयाम | सुर्वेलाम | इजाम | कंगाम | तेजाम | येवनाता | वडकाल | सोगामी इरपुंगाम | ककराम | तरावी | येर्काल | वडाम | सुईका | इमाची | कुरनाका | तरकोला | काना I । 2. चिन्दाम या रंडवेन सगा ( दो पेन सगा ) के गोत्र नाम दो पेन का नाम- ( 1 ) ताराल गोंगो , ( 2 ) माराल गोंगो , झंडा रंग- सेंदरी अंगराम | एटाम | कहाका | गडाम | चुराटी | नट्टाम | डोलाम | दलांडी | पडगाम | पुंगाम | अक्राम | एहचाडा | कवटाम | गदुर्काया | चुटामी | टकाम | तिरावी | दरावी | पट्टाम | दुईका | आदराम | ओटाम | किक्राम | गोयका | चुकराम | टीराम | तुर्वाडा | दुर्लाम | पंचाम | पेन्नाका | इंगामी | ओनाका | कुलनाका | तरपती |चेलकाटा | टिंगलाम | तोराटी | दुराम | एगाम | बारनाका | इदाम | कडाम | कुरपाती | चंगाम | चेर्वाटा | टुकाम | तोलाम | दुरीयाम | पंडाम | मिलाम | इचाम | ककाम | कुराम | चिंदाम | चोडाम | टोडमाती | तेडगाम | दासेडाम | पिडगाम | रायताम | इडोपा | चेंदाम | केहाका | चिलाम | चोहका | डुचाम | तोर्गाम | दोराम | पिचाम | सोनवारी |जन्नाम | डरीयाम | भादिया | दोमोकसा | पिरावी | लंगाम | उलाम | कचाम | कोहपाडा | चुडाम | झीलम | डुईका | तोयाम | नागोताम | पिराटी | लायसेंगा | Vol 4G उचाम | कडाम | कोलया | चंदराम | टक्राम | डुकराम | तोहगाम नर्कीम | पिर्साम | कोर्वाम | 3. कोंदाम या मूंदवेन सगा ( तीन पेन सगा ) के गोत्र नाम तीन पेन का नाम- ( 1 ) जुगात्र गोंगो , ( 2 ) मुगात्र गोंगो , ( 3 ) सुकात्र गोंगो , झंडा रंग जामुनी अटाम | उडाम | कक्राम | गेचाम | चिताम | पुडाम | नवराती | पुर्चाम | मंदाम | सोरांडी |कडोपा | गोयाम | चिर्मोटा | तिर्याम | नलकाम | पुसीयाम | मिन्काटा | हुर्मेता | ओयाम उपती | कसेंडी | तिसाम | जुतराम | । । तुराम | नायका | पेन्दावी | येसराम | वराटी | ओयमा | उस्टाम | कींगराम | तुहाका | टोर्याम | तोतला | निर्पाती | पोंडाम | अइकाम | विक्रा । इक्राम | एसरा | किलाप | चलका | डंगराम इक्राम | एसरा | किलाप | चलका | डंगराम | तोर्यामी | निर्लाम पुयाम | रेलकाटा | सिलाम | इताम | चंदाम | कुन्दाम | चलांडी | डुर्वाल | दिननाकी | नुंजाम | पुडका | लोसका | सीर्वाटा | 2 4 LTE1 T इर्काया | चेलाम | कुंदराम | चीरोया | डेराम | । दावाम | रेंगाम | पराम | वेर्लांटी | सेरपाती | इसराम | ओताम | कोंदोम | चिर्चामी | तल्लाम | नर्काम बलपाती | पेसाम | सेलाम | सुडाम | इलाम | ओरावी | कोयकाटा | चिस्ताम | तईका | नतराम | नेलकाम | पोंगामी | पेडमा | एलगाम | इलनाका | कथराम | गुसराम | चिडोपा | नुतामे | नारोमी | परामी | पेनाम | सिरसाटा | ओसराम ।4. नालवेन सगा ( चार पेन सगा ) के गोत्र नाम चार पेन का नाम - ( 1 ) माल , ( 2 ) लाल , ( 3 ) काल ( 4 ) पाल गोंगो , झंडा रंग लालअडाम | इलांडी | एचाम | कट्राम | कीरकाटा | टेक का | चिनगाम | तुच्चाम | हिडाम | $ चीकराम | अंचाम | इलगाम | एरावी | कंद्राम | कुयमा | कोचरामी | चुलमाती | तुम्माम | हिलाम | वाल्काम | अतलाम | इरुकाम | एर्वाटी | कराई | कुचाम | कोरकाटी | चर्वाटा | नेताम | पुर्साम | चिलाम | अडगाम | उंदराम | एर्मेन्ता | केटाम | कुर्कामी | कोवा | चिलाम | परचाकी | मुर्काकी | सीताम | अडोपा | उराम | ओंगाम | कवाम | कुयाम | | कोवाची | टोर्पाकी | मंगाम | मरपाची | जालकाटा | अबाबा | उसराम | ओर्चाम | कलाटी | कुयका | कोवासे | टोप्पाम | सरमाकी | सीराम | कुसराम | ईटावी | कर्कामी | कर्वाटी | किजाम | कुडयाम | गटाम | तेकाम | सेडमाके | सरकाटी | नेयती । इंदरम | उर्षाम | कराम | कींदराम | कचीमुरा |। गेटाम | मुरका | सुर्पाडा | पोयाम | नटोपा | इडगाम | एडाम | कंदाम | कीन्वाती | कुर्राती | चडाम | तोहाकाटी | तलांजा | ताराटी | पस्ताकी | इर्काल | एगाढ़ा | कजाम | किडगाम | केडाम | चराटी | तिर्काम | तलांडी | सुंदराम | उलांडी | 4G 5.सैवेन सगा ( पांच पेन सगा ) के गोत्र नाम पांच पेन का नाम- ( 1 ) अहा , ( 2 ) महा , ( 3 ) रेका , ( 4 ) मेका , ( 5 ) गोयन्दा राहुद , झंडा रंग मिट्टू या पोपटी या तोता अडमे | अक्काल | कोगा | गुंजाम | चिन्हाका | मिंगाम | भोजाम | मिनगाम | सुर्काता | पुर्र | हाड़े | इस्टाम | कोडाम | गोलाम | चिर्वाल पुर्का | बुराम | मुंगाम | दुरवा | नयटी |अस्टाम | कोरोपा | कोटाम | गोदाम | चिलमेंता | पुगाम | मंगलाम | मुचामी | दुरांडी | सेडोपा | अलाम | कंगला | कोटामी | पावला | चितलोका | बल्लामी | मचाम | मिन्दाम | घुर्रे | सोराम | अरमाती | कर्लाम | कोंकाम | गारंगा | चुर्थाम | बग्गाम | मरापे | मुयामी | पेंडराम | सिट्राम | अट्टामी | कठोताम | कोकड़ा | कन्नाका | चोपाम | बार्पाती | मलकाना | मुरमेन्ता | पोचाम | सर्गाती | अक्कामी | गोचा | पदामी | चिगाम | चोलाम | बिकराम | मतलामी | मुरपुंगा | पोयका | नलीयाम | अर्टाम | कीटाम | गचाम | चिटराम | चोहकाम बुदाम | कौवड़ो | मुरापा | पोकाम | भोजाम | अर्पाती | कीसराम | गटराम | चिडगाम | पुर्काटी | बोसाम | मित्राम | मुरपाटा | पोटामी | नेलांजी | अर्काम | केलांडी | गतलामी | चितलाम | पुलकाम | बोर्साम | मितलाम | सुसामी | परस्ते | कींगराम | 6. सार्वेन सगा ( छः पेन सगा ) के गोत्र नाम छः पेन का नाम- ( 1 ) अहेओदाल , ( 2 ) महेओदाल , ( 3 ) अपाई ओदाल , ( 4 ) तिपाई ओदाल , ( 5 ) मंडे ओदाल , ( 6 ) कोईन्दो ओदाल , झंडा रंग हरा या हिरवा अडीयाम | उड़का | कुडोपा | कोहचाडा | जलपती | वरटी | नयताम | पोरेटी | रायमेन्ता | सरोतिया | असराम | उसेंडी | पुरयाम | गावडे | टेकाम | तिरावी | नगसोरी | पावला | रायसीराम | सींदराम | Vol ) 4G LTE1 4 आतराम | उरेती | कुसराम | गडाम | हर्कोला | तिलाम | नेताम | पोया | लेकामी | सीडाम | अहाका | उर्रे | कुलमेन्ता | नामूर्ता | डेगमती | तिलगाम | परतेती | बरकुटा | वेलादी | सिरसाम | ओयमा | उडाम | कुमरा | चीचाम | तुमडाम | तिमाची | पुराम | बगाम | बोदबायना | सोरी | अडामो | एलाम | केराम | चीरको | तोरे | तुसाम | जगत | बोगामी | वेडकाल | सीरसो | अरमो | तिडगाम | कोरचा | चिडाम | सोर्साम | तुर्रम | वेलाटी | मरकाम | वरकडा | हिचामी ।अकोम | कडीयाम | कोटनाका | चिलकाम | तोडाम | तुलाम | हुसेंडी | मरापा | वेडमा | हिडाम | ओलांडी | कातलाम | कोडोपा | चुलकामी | तोडासे | तुलावी | पेन्दाम | मलगाम | सल्लाम | कार्पेकोटा | ओट्टी | कीराम | कोराम | छदय्या | तिडाम | तिरपाती | पोरता | येलादी | सींगराम | पुसाम । 7.येवेंन सगा ( सात पेन सगा ) के गोत्र नाम सात पेन का नाम- ( 1 ) धनबाह , ( 2 ) धन्ठाई , ( 3 ) पिंडेजुगा , ( 4 ) राईमुद्दो , ( 5 ) चिकटराज , ( 6 ) भंडेसारा , ( 7 ) भूईंदागोटा , झंडा रंग पीला अडमाची | कटींगा | कोहमुंडा | जींगाम | तुग्गाम | वाडीवा | सय्याम | दरीयाम | कर्पेकोटा | बुर्दाम | अड़मे | कर्वेटाम | खंडाता | जुमनाती | तुरीयाम | बजूमूता | सराटी | धुर्वा | करेकारी | कोकाटा | आरमोर | कीरंगा | गोटा | जोडाम | तर्गाम | मडावी | सयाम | पेंद्रो | बोर्साम | मंडामी | Vol 4G LTE1 ++ अजुर्मूजा | कुंजाम | गोटामी | बोर्गाम | ताराम | मरई | सरूता | पंधराम | कींगराम | येरपाती I । इरपाती | कोडवाती | गोलांग | उर्पाती | नरोती | मंगराम | सर्टीया | पट्टावी | सहका | तुरीया | इनवाती | कोकोडीया | गोडगा | तलांडी | नेटी | मर्सकोला | छोट्टा | पुराटी | सरीयाम | दर्रो | कंगाला | डोडेरा | गड़ी | ताडाम | नट्टामी |" मरपाती | पुर्काम | पुंगाम | तिर्याम | मुराकी | कंगाला | कोरेटी | जुन्नाका | तुलावा | पद्दाम | मसराम | परीयाम | भूजाम | नंजाम | सीदोवोयना | कन्नाका | कोयतामी | जीकराम | सितराम | पटावी | वेट्टी | करपे | भलावी | पुर्काम | बोट्टी । Vol 4G LTE1 कवरती | कर्संगा | जडपाती | तिलनाका | सर्वेटा | वेरमा | करपाती | काशीयाम | मुर्कासी | वेरगा | 8.अर्वेन सगा ( आठ पेन सगा ) के गोत्र नाम भूमका नारायणसूर गोंगो अंगाम | कंगला | उंदास | कसेंडी | दुगासा | उकाम | तोराटी | इलाम | डुवील | दरावी |नर्वेन सगा ( नौ पेन सगा ) के गोत्र नाम भूमका कोलासूर गोंगो ...... Vol ) 4G LTE1 अडाम | तराटी | तुर्पाडा | नटोपा | चराटी | इलांडी | कुचाम | कोवा | परसो | डेगामी | 10. पदवेन सगा ( दस पेन सगा ) के गोत्र नाम भूमका हीराजोती गोंगो तुम्मा | मंडारी | बदाम | दुरवा | कडता | गोरंगा | पुरका | मुरापा | पुंडराम | कींगराम | 11. पार्वुदवेन सगा ( ग्यारह पेन सगा ) के गोत्र नाम- भूमका मानकोसुंगाल गोंगो कलंगा | गोटा | वेरमा | धुरुवा | पटावी | कटींगा | नेटी | मुरावी | खंडाता | पंडराम | ||| 12. पार्रडवेन सगा ( बारह पेन सगा ) के गोत्र नाम- भूमका तुरपोराय गोंगो उईका | वेदाली | कोरचा | सोरी | दडांजा | तोरा | कंगाम | सललाम | मरकाम | नेताम | Vol ) 4G LTE1 ++
कुछ क्षेत्रो में स्थानिया गोंडों की गोत्रावली मुख्य देवगढ़
तीन देव : - “ धमधागढ़ ”
चार देव : - “ लांजीगढ़ ”
पांच देव : - “ बैरागढ़ ”
छ : देव : - “ चांदागढ़ ”
सात देव : - “ मंडलागढ़ "
सुझाव : - यह गोत्र - प्रणाली दुर्ग , रायपुर , राजनांदगांव के समतल क्षेत्र में व्याप्त है ..
!! ध्रुव वंश गोत्रावली
तीन देव : - सोरी , मरकाम , खुसरो चार देव : नेताम , टेकाम , करियाम सिंदराम
पांच देव : नमृर्ता , पुराम , पडोती , पद्राम , नहका , किले
छ : देव : - कतलाम , कुमेटी , उइका , पावले , ओटी ,घावड़े , कोर्राम , तुमरेकी , जीर्रा , कोड़प्पा , कोमर्रा , कोहकटा , गावड़े , पट्टा , अरकरा , सलाम , पुसाम , ततराम , मातरा , दराजी
सात देव : - ताराम , पंद्रो , सेवता , श्याम , कुंजाम , खुरश्याम , मरई ( मंडावी ) ,
माठिया गोंड
बिलासपुर , रतनपुर और सुरगुजा के इलाको में इसका फैला हुआ है । :
तीन देव : - धमधागढ़ , शांडिल्य गोत्र बाघ बाना मरकाम , नेटी , खुसरो , सोरी , सिरसो , पोया
चार देव : - रायसिंघोरागढ़ , गोत्रगुरूप , बाना फुलेशर झिकराम , झुकरा , टेकाम , नेताम , करियाम , शिवराम , सिंगराम , मर्सकोला , तिलगाम , पुसाम , ओची , घुरायम , धुरवा , लेडाम , परपची , उडवाची , आयम , केराम ,
पांच देव : - हीराग , कांशी ,
गोत्र कटककेसर बाना ओटी , पोटी , सवाम , चिरको , डफाली
पांच देव : - बैरागढ़ , शेया गोत्र , परथ बाना परते , कमरो , कोरचो , ओलको , चेचाम
छ : देव : - देवगढ़ , पुहुप गोत्र , नाग बाना ओड़े , उइका , उर्रे , पोटा , अरमो , ओरकेरा , पोटा , ओडाली , कोर्राम , मरापो , पावले , नीरा
सात देव : - नाग बाना , गढ़ मंडला , आंडिल्य गोत्र मरावी , कोलिहा , मसराम , बदिहा , श्याम , सरूता , मलावी , मलगाम , भलावी , मर्सकोला , करपे , कंगाली , पंद्रो , घेराम , सोरटिया
पहरिया गोंड
इसमें पेन व्यवस्था नही होती केवल सम विषम होता है .. - प्रथम पक्ष- करियाम , गावड़े , होडोपी , नेताम , टेकाम , उइका , कोर्राम , हिडको , कोमर्रा , कुमेटी , मरकाम , केराम , करलाम , पोया , पद्दा , कुमेटी , पदोटी , तुमरेकी , परचापी , सलाम , कमरो , हिचामी , उसेंडी , सोरी , कोवाची , नुटी , तटा , वट्टी , तोपा , मतलामी , हिरामी , हर्रो , कोरचा , कमरो , पुडो , मर्रापी , होडोषी द्वितीय पक्ष - हुर्रा , कोला , मरई , कुंजाम , कोरोटी , दर्रो , कौड़ो , खुरश्याम , करंगा , बोगा , सेवता , गोटी , आचला , दुग्गा , पोया , पदागोटा , नुरोटी , नरेटी , नेरोटी , वरवेटी , कल्लो , तुलाई , तारम , पोटई , श्याम , ध्रुर्वा , इसमें केवल दो चरण होते हैं । सम विषम , पितृ पक्ष और मातृ पक्षा , यहां तक कि पितृ पक्ष 2,4,6,8,10,12 देव और विषम मातृ पक्ष 1,3,5,7,9 , देव शक्ति क्षेत्र की वंशावली बोरदा ।
गोंड सात वंश के हैं
1. सुर्यवंशी ( देवगढ़ चांदा ) गोत्र पारेश्वर 6 सगा जगत , 1. धुरवा , 2. पोखर , 3. पोटा , 4 . भोय , 5. गड़तिया , 6. धोवा बनवास मांझी
2. सोमवंशी . पोर्रे ( बैरागढ़ ) गोत्र अत्रि 5 भाई पोर्रे ( पोर्ते,पुलस्त ) , 1. नेताम , 2. कामेरा , 3 . मांझी , 4. राय , 5. भुलेटर
3. गंगवंशी नेताम ( लांजीगढ़ ) गोत्र_कश्यप , 4 सगा नेताम , टेकाम , मरपाची , केवाची
4.गाग्रमवंशी मरकाम ( धमधागढ़ ) शांडिल्य 5 सगा 1. टेढ़ी मरकाम , 2. डुडी मरकाम , 3 . सहाड़ मरकाम , 4. सेत मरकाम , 5 साल मरकाम
5. जदुवंशी ( सम्हरगढ़ ) गोत्र अन्डील 3 सगा नेटी 6.कदमवंशी ओटी ( आलंका भुवन मठ ) गोत्र पुलस्त 6 सगा ओटी 1. डोंगर गछा , 2. डाही डोरा , 3. भद्रा , 4. बिसोरिहा , 5. बहीगा , 6 . सील
7. रावेनवंशी ( मरावी ) गढ़ मंडला , गोत्र पुहुप 7 सगा 1. गुटाम , 2. कुंजाम , 3. पुसाम , 4. पुरकाम , 5. साय ( साही ) , 6. राय , 7 . कांदरो
संदर्भ
1. अग्रवाल,राम भरोस. (1990). गढ़ा मंडला के गोंड राजा (चतुर्थ संस्करण, Vols. 1–1). मंडला: गोंडी पब्लिक ट्रस्ट, मंडला , मध्य प्रदेश 481661.
. उईके,मरोती. (2012). होय …लंकापती रावन (ण) गोंड राजाच होता (प्रथम). वर्धा: संभाजी माधो कुमरे, ऊलगुलान प्रकाशन, वर्धा.
3. कंगाली,मोती रावण. (2011). पारी कुपार लिंगो गोंडी पुनेम दर्शन (चतुर्थ संस्करण). नागपुर: चन्द्रलेखा कंगाली जयतला रोड, नागपुर 440022.
4. डबस,हरवीर. (2017, October 1). “Neelkanth” Bird, That Proved Lucky For Lord Ram In Killing Ravana, Goes Missing On Dussehra. Retrieved October 7, 2019, from Indiatimes.com
5. फुक्स,स्टीफन. (1960). द गोंड एंड भूमिया आफ ईस्टर्न मंडला (द्वीतीय संस्कारण (पुनः मुद्रित), Vols. 1–1). न्यू दिल्ली: रिलाएंस पब्लिशिंग हाउस न्यू दिल्ली.
6. मिश्र,सुरेश. (2008). गढ़ा का गोंड राज्य (प्रथम संस्करण, Vol. 1). राजकमल प्रकाशन प्रा लि, नई दिल्ली.
7. मेनन,अपर्णा. (2015, October 21). A Dussehra Superstition Is Killing This Beautiful Bird. Here’s How We Can Save It. Retrieved October 7, 2019, from The Better India.
गोंड जनजाति - https://www.ipl.org/essay/Devgond-And-Non-Vegetarianism-PCJ36EUZTU
Devgond, rajgond, suryawanshi gond, ravanwanshi gond..
0 टिप्पणियाँ