क्या भारत ऐसे बनेगा विश्व गुरु? जबकि रूपया कमज़ोर बेरोजगारी, महंगाई चर्म पर है..

Will India become like this world guru?  While the rupee is weak, unemployment is at its peak.

पहले कोरोना आया, इसके बाद यूक्रेन पर रूस ने हमला  कर दिया। इस वजह् से अब दुनिया में भीषण मंदी की भविष्यवाणी  अर्थशास्त्री करने लगे हैं। भारत भी इससे मन्दी से नही बच सकता। महंगाई ,बेरोजगारी की सबसे बदहाल हालत आप सभी देख ही रहे हैं। क्या है देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था का हाल, और हम कैसे निपट सकते हैं आने वाली चुनौतियों से। इस पर जाने-माने अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार से बात की नाइश हसन ने। पेश हैं मुख्य अंश दुनिया भर के अर्थशास्त्री मंदी आने की बात कर रहे हैं। क्या हम वापस 1930 की भीषण मंदी की ओर जा रहे हैं? credit- navbharat times
इसमें कोई अलग बात नहीं है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था नीचे गिर रही है। मंदी का मतलब होता है कि हर तिमाही में गिरावट दर्ज हो, जो कि हो रही है। यह कहना तो अभी मुश्किल है कि यह सब कहां तक जाएगा। लेकिन एक अंतर है कि 1930 में हमें पता नहीं था कि हम मंदी से कैसे निकलें, आज पता है। हम चाहें तो इसे रोक सकते हैं।

रूस-यूक्रेन युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कितना प्रभाव पड़ा है? भविष्य में इसका क्या असर दिखेगा?

युद्ध का असर भारत पर भी हुआ है। हमारी अर्थव्यवस्था महामारी में बदहाल गई थी। 2019 में ही हमारा जीडीपी का जो लक्ष्य था, वह नहीं मिला। हमारा असंगठित क्षेत्र बुरी तरह गिर गया महामारी में। उसके पहले वह नोटबंदी और जीएसटी के कारण भी गिर चुका था। जीडीपी के ऑफिशल आंकड़े में हम असंगठित क्षेत्र के आंकड़े अलग से लेते ही नहीं। महंगाई के साथ बढ़ी बेरोजगारी और असर डाल सकती है।

एक तरफ हम 5 ट्रिलियन इकॉनमी की बात कर रहे हैं, दूसरी तरफ डॉलर के मुकाबले रुपया गिरता जा रहा है...

प्रधानमंत्री ने 2024-25 तक पाँच ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवश्ता का लक्ष्य रखा है। वृद्धि दर अच्छी होगी तो यह लक्ष्य प्राप्त हो सकता था, लेकिन अभी ऐसा नहीं हो रहा। डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होने का सबसे बड़ा कारण है कि डॉलर एक तरह से रिजर्व करेंसी है वर्ल्ड की। जब भी परेशानी आती है तो लोग डॉलर होल्ड करते हैं, जिससे वे अपने-आप को बचा सकें। दूसरी ओर हमारा घाटा भी तेजी से बढ़ रहा है। पाँच बिलियन डॉलर पूंजी हर महीने रिटर्न रही है। विदेशी निवेश घट गया। एनआरआई भी पैसा नहीं ला रहे। इस वजह से भी रुपया कमजोर हो गया है।

महामारी के बाद देश में बेरोजगारी कम नहीं हो रही है। आत्मनिर्भर भारत आखिर कैसे बनेगा?

महामारी के पहले ही ग्रोथ रेट 8% से घट कर 3.1% हो गई थी। खासकर हमारा असंगठित क्षेत्र जहां 94 प्रतिशत लोग काम करते हैं- पिछड़ गया। सर्विस सेक्टर बंद हो गए। परेशान लोग गांव जाकर मनरेगा में काम तलाशने लगे। लोन देने से भी स्थिति सुधरने वाली नहीं है, क्योंकि मांग में भी कमी आ चुकी है। आत्मनिर्भरता के लिए हमें अपनी तकनीक का विकास करना होगा। पिछले 10 साल से गणेश की मूर्ति, पतंग-मांझा सब चीन से आ रहा है। उनके सस्ते माल से हमारा असंगठित क्षेत्र पिट गया। चीन दुश्मन भी है, पर उससे आयात भी बढ़ता जा रहा है। इससे हमारी इंडस्ट्री पर असर हुआ है। 2003 तक तो दवाएं बनाने के लिए एपीआई हम खुद बनाते थे, उसके बाद हम दूसरे देशों पर निर्भर हो गए। तो हमारी आत्मनिर्भरता कहां है?
आरबीआई की करेंसी और फाइनैंस पर जारी ताजा रिपोर्ट अनुमान बताती है कि भारत को उत्पादन में 50 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है और इससे उबरने में 15 साल लगेंगे। आप इस पर क्या कहेंगे?
हमारी अर्थव्यवस्था 15-20 प्रतिशत गिर गई, जबकि उसे कम से कम 4 प्रतिशत बढ़ना चाहिए था। अगर हमारी वृद्धि दर अच्छी हुई तो हम रिकवर भी कर सकते हैं। आरबीआई जो आंकड़े देता है, उसमें असंगठित क्षेत्र के आंकड़े नहीं आते, इसलिए वे वास्तविक आंकड़े नहीं होते। अभी तो असंगठित क्षेत्र में गिरावट लगातार जारी है, इसलिए 15 साल से ज्यादा भी वक्त लग सकता है।

आरबीआई के ही अनुसार 2022 में घाटा 17.1 लाख करोड़ रुपये रह सकता है। ऐसे में हमारी विश्वगुरु की भूमिका को आप कैसे देखते हैं?

हम तो एक गरीब देश हैं। तकनीक में भी पिछड़े हैं। विश्वगुरु का तमगा ओढ़ कर हम या तो बहुत आक्रामक हो जाते हैं, या बहुत जटिल। अभी आप ने देखा कि प्रधानमंत्री ने कहा कि हम दुनिया भर को अनाज देंगे। 4 देशों में खेप गई, पर फौरन बंद करनी पड़ी। जनवरी 2021 में वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम में भारत ने कहा कि उसने महामारी पर बहुत अच्छा नियंत्रण किया। लेकिन दूसरी लहर में हमारे हाथ-पैर फूल गए। यह हमारी अहसास-ए-कमतरी है कि खुद को विश्व गुरु कहते हैं। अमेरिका तो कभी नहीं कहता कि वह विश्व गुरु है।
पाकिस्तान में बहुत अस्थिरता है। आए दिन सरकारें बदलती रहती हैं। इससे निवेश नहीं बढ़ता। वृद्धि दर और भुगतान संतुलन खराब है। वहां आम जीवन की अपेक्षा सेना पर खर्च का ज्यादा जोर है। इससे वहां गरीबी बनी रहती है। आज वह आईएमएफ और सऊदी अरब से मदद मांग रहा है।

श्रीलंका की खराब अर्थव्यवस्था का मूल कारण क्या है और उसका हम पर क्या असर होने वाला है?

महामारी से वहां टूरिज्म अचानक खत्म हो गया और विदेशी मुद्रा आनी बंद हो गई। श्रीलंकाई रुपया कमजोर होने लगा। अचानक सरकार ने फैसला लिया ऑर्गेनिक खेती की तरफ मुड़ना जो कि अच्छा फैसला नहीं था। भुखमरी तक की नौबत आ गई। इसके अलावा श्रीलंका के चुनाव में ईसाई, मुस्लिम, तमिल आदि ध्रुवीकरण बहुत हुआ। महिंदा राजपक्षे बहुमत में आएं, इसके लिए चुनाव में भ्रष्टाचार भी खूब हुआ।

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