MP में हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई 'फ्लॉप' सरकारी कॉलेज में एक भी स्टुड़ेंट नही 142 कॉलेजों में से सिर्फ 2 में 20 स्टूडेंट..

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मध्यप्रदेश में सरकार ने MBBS की पढ़ाई हिंदी में शुरू करने का ऐलान कर दिया है। इससे पहले हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की गई थी, लेकिन इस प्रोजेक्ट का हश्र बहुत बुरा हुआ है। भास्कर की पड़ताल से पता चला कि मात्र 3 कॉलेजों में बीटेक और कम्प्यूटर साइंस की पढ़ाई हिंदी में शुरू हो पाई है। इसमें सिर्फ 20 छात्रों ने एडमिशन लिया है, जबकि सीटें 200 से ज्यादा हैं।
मतलब यह है कि सरकार ने जितनी सीटें रिजर्व रखी थीं, उसकी 90% सीटें खाली रह गई हैं। यहां तक कि टीचर तक टेक्निकल सब्जेक्ट को लोकल तरीके से पढ़ाने को लेकर तनाव में हैं। मध्यप्रदेश में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE ) की मंजूरी के बाद पिछले साल (2021-22) में इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में शुरू हुई थी। उस साल 10 से कम छात्रों ने हिंदी में पढ़ाई का ऑप्शन चुना था।

3 इंस्टीट्यूट में ही हिंदी का ऑप्शन..

राज्य सरकार ने 6 जून 2022 को प्रदेश के 6 इंजीनियरिंग कॉलेजों की अलग-अलग ब्रांच में हिंदी में पढ़ाने का आदेश भी जारी किया था। इनमें एडमिशन के लिए तकनीकी शिक्षा विभाग के ऑनलाइन काउंसिलिंग के दौरान सिर्फ 3 इंस्टीट्यूट की ब्रांच में ही हिंदी (इंडियन/रीजनल लैंग्वेज) में पढ़ाई कराने का ऑप्शन दिया गया है। तीनों इंस्टीट्यूट इंदौर के हैं, जिसमें SGSITS भी शामिल है। इसमें से 2 इंस्टीट्यूट में 20 स्टूडेंट्स ने एडमिशन लिया है, जबकि एक में कोई एडमिशन नहीं हुआ है।
इन 20 में से 19 छात्रों ने कम्प्यूटर साइंस व एक छात्र ने बायो मेडिकल इंजीनियरिंग सब्जेक्ट में हिंदी में पढ़ाई के लिए चुना है। बायो मेडिकल वाले छात्र अमन वर्मा ने भी हिंदी से हाथ जोड़ लिए और उसने अंग्रेजी माध्यम से लिए आवेदन कर दिया है। अमन का कहना है कि उसके समझ में कुछ नहीं आ रहा है। अंग्रेजी के सामान्य शब्दों को बेहद कठिन हिंदी में दिया गया है। इसे लेकर मुझे अपने भविष्य की चिंता सता रही है कि आगे मुझे इस डिग्री के साथ जॉब मिलेगा या नहीं।

MP में इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थिति..

कॉलेज

142

कुल सीट

69542

हिंदी में पढ़ाई वाले कॉलेज

11

हिन्दी की कुल सीटें

200

हिन्दी में एडमिशन

20

सरकारी कॉलेज में एक भी एडमिशन नहीं..

सरकार हिंदी में इंजीनियरिंग पढ़ाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। इसके बावजूद किसी भी स्टूडेंट ने किसी सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज पढ़ाई के लिए हिंदी माध्यम नहीं चुना है। भोपाल के राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) के यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (यूआईटी) व आरजीपीवी के ही एसआईटी शिवपुरी की 5 ब्रांच (सिविल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्राॅनिक्स एंड टेलीकम्युनिकेशन, कम्प्यूटर साइंस) में भी हिंदी में पढ़ाने का निर्णय लिया था, लेकिन एडमिशन के लिए तकनीकी शिक्षा विभाग (डीटीई) की कराई ऑनलाइन काउंसिलिंग प्रक्रिया के दौरान छात्रों को इन इंस्टीट्यूट का ऑप्शन ही नहीं दिया गया।
तकनीकी शिक्षा विभाग के एक अधिकारी के अुनसार डीटीई द्वारा AICTE से एप्रूव्ड ब्रांच में एडमिशन के लिए काउंसिलिंग कराई जाती है। इंदौर के इंस्टीट्यूट को छोड़कर अन्य किसी इंस्टीट्यूट को रीजनल लैंग्वेज पढ़ाने का एप्रूवल नहीं मिला है, इसलिए RGPV समेत अन्य शासकीय इंस्टीट्यूट में भी हिंदी में पढ़ाई होगी। इसकी जानकारी डीटीई द्वारा नहीं दी जा रही है।

फैकल्टी की समस्या- हिंदी में कैसे पढ़ाएंगे?

अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE ) ने इंजीनियरिंग की बुक्स हिंदी में तैयार करने की जिम्मेदारी आरजीपीवी को दी है। फर्स्ट ईयर के लिए 20 इंजीनियरिंग किताबों का हिंदी में अनुवाद किया गया है, जिसमें यूजी कक्षाओं के लिए 9 और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए 11 शामिल हैं। इन ब्रांच में हिंदी विषय में पुस्तक भी उपलब्ध है, लेकिन एक्सपर्ट कहते हैं कि अंग्रेजी इंजीनियरिंग की किताबों का हिंदी में अनुवाद करते समय सबसे बड़ी गलती की है कि तकनीकी शब्दों का भी अनुवाद किया है, जो छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए परेशानी पैदा करेगा।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि बल और गुरुत्वाकर्षण बल जैसे तकनीकी शब्दों का अनुवाद करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इन शब्दों को हर कोई समझता है। दुर्भाग्य से इन पुस्तकों में तकनीकी शब्दों का शास्त्रीय हिंदी में अनुवाद किया गया है और यह पढ़ाई को प्रभावित करेगा। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को पढ़ाने के लिए पहले हिंदी तकनीकी शब्दों को सीखना होगा।
मप्र एसोसिएशन ऑफ टेक्निकल प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष प्रो. केसी जैन ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई का सीधे तौर पर विरोध नहीं किया। उन्होंने कहा- इंजीनियरिंग की पढ़ाई के तरीके को लेकर असमंजस है। वर्तमान में पढ़ाई मिक्स है। क्लास रूम में हिंदी ही बोली जाती है, ताकि दोनों मीडियम के स्टूडेंट को आसानी से विषय समझ में आ जाए।

तो फिर हमें चीन जैसे नौकरी देना होगी..

राष्ट्रीय संस्थान में 30 साल तक मैकेनिकल इंजीनियरिंग पढ़ाने और कई सरकारी कमेटियों का हिस्सा रहे रिटायर्ड प्रोफेसर आरके मंडलोई हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के विकल्प पर सवाल उठा रहे हैं।
मंडलोई कहते हैं- देखिए, हिंदी में डिग्री लेकर प्रदेश या देश के आंतरिक विकास के कामों में जॉब पाया जा सकता है। फिर सरकार को हिंदी के डिग्रीधारकों के लिए नौकरी के अवसर देना होंगे, जैसा कुछ साल पहले तक चीन करता रहा। उस देश में चाइनीज भाषा में ही इंजीनियरिंग समेत अन्य ब्रांचों में पढ़ाई होती थी। इससे चीन ने अपना आंतरिक विकास किया।
इंजीनियरिंग हिंदी में पढ़ाने पर फैकल्टी को क्या परेशानी आएगी? इस पर मंडलोई कहते हैं कि यदि टेक्निकल शब्दों का हिंदी में अनुवाद करेंगे तो स्वाभाविक है दिक्कत आएगी। सबसे ज्यादा परेशानी स्टूडेंट को होगी। इसकी वजह यह है कि अंग्रेजी के कई शब्द हिंदी की बोलचाल में इस्तेमाल होते हैं। उनका अनुवाद करना किसी भी तरीके से फैकल्टी और स्टूडेंट दोनों के लिए परेशानी पैदा करेगा। इंजीनियरिंग की बुक्स का हिंदी में अनुवाद करने का फायदा नहीं है।

अटल बिहारी हिंदी विश्विविद्यालय में इंजीनियरिंग की पढ़ाई बंद..

2016 में हिंदी में शुरू किया गया इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) की मंजूरी के अभाव में रोक दिया गया था। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पर सवाल उठाए। एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में शुरू करने के लिए 16 अक्टूबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बुक्स का विमोचन किया था, तब कमलनाथ ने कहा था- भोपाल स्थित अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय में 2016 में हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की शुरुआत की गई थी।
उसे लेकर भी बढ़-चढ़कर दावे किए गए थे, बाद में उस पाठ्यक्रम को बंद क्यों करना पड़ा? सरकार यह भी बताए कि क्यों इस विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में करने की जो शुरुआत की गई थी, उसे बीच में ही बंद करना पड़ा? उन्होंने यह भी कहा ने कहा- हिंदी हमारी मातृभाषा है। इसका सभी सम्मान करते हैं। हिंदी में पढ़ाई हो, इसे लेकर किसी का कभी कोई विरोध नहीं है।
मध्यप्रदेश में मेडिकल के क्षेत्र में नया अध्याय जुड़ गया है। देश में पहली बार डॉक्टरी की पढ़ाई हिंदी में होगी। रविवार को भोपाल में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने MBBS फर्स्ट ईयर की तीन किताबों का विमोचन किया। हालांकि इसे लेकर डॉक्टरों और स्टूडेंट्स के मन में कई तरह के सवाल हैं। बता दें कि इन किताबों को 16 देशों की मेडिकल बुक्स के पब्लिशर ने बनाया है।
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