Gondwana: रामगढ़ राज्य की स्थापना और सती रानी सिंगारो देवी (सिंगारसत्ती,बजाग)..

Gondwana: Establishment of Ramgarh state and Sati Rani Singaro Devi (Singarasatti, Bajag)..

सती रानी सिंगारो देवी (सिंगारसत्ती,बजाग)

बात गोंडवाना साम्राज्य के अवसान के समय की है। मराठों का उदय हो रहा था। भोंसला शासक सेना सुबा साहेब ने गढ़ा के महाराजा निजामसाहि के सिपाही रहे मोहनसिंह लोधी के वंशज गज्जीसिंह लोधी को रामगढ के 92 गांवों का लगान वसूलने का अधिकार दिया था।
उस समय रामगढ़ में गोंडवाना साम्राज्य का पताका फहर रहा था। एक लोधी को अधिकार दिये जाने से वहां का जमींदार राजा चांदवा मरकाम नाराज हो गया था। उसके पूर्वज रामसाय ने रामगढ़ का और मानसाय ने मानगढ़ की स्थापना की थी।
चांदवा मरकाम संकीर्णकाल में रामगढ़ का राजा बना था। उसने भी अपने नाम से रामगढ़ किला के उत्तर में चाँदपुर नामक गाँव बसाया था। राजा चांदवा का छोटा भाई कान्दवा मरकाम था जो कभी रामगढ़ में, कभी मुकुटपुर (मानगढ़) में रहता था। राजा कान्दवा निःसंतान था।
रामगढ़ के राजा चांदवा की जेठी रानी निःसंतान थी। लोहरी रानी पेट से थी। दोनों रानियाँ सगी बहनें थी, और कोरबा राजपरिवार से थी।
जबसे गज्जीसिंह लोधी को जागीर सौंपी गई थी, तभी से मरकामों और लोधियों के बीच मनमुटाव आरम्भ हो गया था। गज्जीसिंह किले के पास ही बखरी बनाकर रहने लगा था और वह छिंगरी पकड़कर पहुँचा पकड़ने का प्रयास करने लगा था।
लोधियों ने समझौते के बहाने राजा चांदवा मरकाम को बुलवाया था। काफी ना नुकुर के बाद भी समझौता हो गया था। समझौते में राजा चांदवा को मुकुटपुर(मानगढ़) का राजा और उसी कुल से रामगढ़ का दीवान होना तय हुआ था।
इस समझौते में राजा चांदवा मरकाम आधा राज्य खोकर अपने मन को समझा लिया था। वहीं गज्जीसिंह की भूख बढ़ती जा रही थी। उसी दिन से गज्जीसिंह अपने मन में खिचड़ी पकाने लगा था। बाहर से सब कुछ ठीकठाक दिखाई दे रहा था।
गज्जीसिंह ने षड़यंत्र रचा और भोज का आयोजन किया था। मुकुटपुर राजघराने के सारे पुरुष भोज में सम्मलित हुए थे। लोधियों ने मरकामों को अपनी बखरी में बंदकर,खुद बाहर निकल आये थे और खुद की बखरी में आग लगा दिये थे। भोज के लिए आये मरकाम छलबल के शिकार हो गए थे। भोज में शामिल कोई भी पुरुष नहीं बचा था। भीषण नरसंहार से पूरी रियासत शोक में डूब गयी थी। सत्ता परायी हाथ में जा चुकी थी। धरपकड़ मची थी। बिना राजा के प्रजा अनाथ सी हो गयी थी। जो पुरुष बचे थे वे निस्तेज अवस्था दिखाई दे रहे थे।
मुकुटपुर राज परिवार में केवल स्त्रियाँ ही बची थीं उनमें राजा चांदवा की जेठी पत्नी (रानी सिंगारो देवी) और लोहरी पत्नी (रानी तिलको)भी थी, जो गर्भवती थी।
राजा चांदवा की अंत्येष्ठी में और भी अनहोनी की आशंका थी। रानी सिंगारो देवी और खूनखराबा नहीं चाहती थी। उसने मरकाम कुल को बचाने के लिए अपने पीहर में ले जाकर पति का अंत्येष्ठी करवाने का निश्चय किया था। राजा की दोनों पत्नियाँ उनके मृतदेह को अपने पीहर कोरबा ले जा रहीं थी।
लगभग 40 किलोमीटर पूर्व में चलकर राजा चांदवा के मृतदेह को एक नाले के किनारे एक पीपल की छाँव में रखा गया था। राजा का शरीर ख़राब हो रहा था। तब आधे रास्ते पर ही रानियों ने सती होने का निश्चय किया था। लोहरी रानी तिलको पेट से थी। जिसे देखते हुए जेठी रानी ने उसे सती होने से रोक दिया था। रानी सिंगारो देवी जिस जगह पर सती हुई थी,वह स्थान सिंगारसत्ती कहलाता है।
श्री रामभरोस अग्रवाल ने लिखा है “सिंगारसत्ती बजाग से 6 मील उत्तर। राजा चांदवा मरकाम की पत्नी रानी सिंगारो देवी यहाँ सती हुई थी। इसलिए इस गाँव का नाम सिंगार सत्ती पड़ा, चांदवा ने मुकुटपुर में लोधियों से युद्ध करते समय वीरगति प्राप्त की थी। रानी सिंगारो देवी अपने पति के शरीर को लेकर अपने मायके कोरबा(जिला बिलासपुर) जा रही थी। मुकुटपुर से सिंगार सत्ती पहुँचने पे शरीर के ख़राब होने के लक्षण दिखे होंगे और आगे ले जाना ठीक न समझकर सिंगारसत्ती में ही सती होना तय किया होगा। रानी सिंगारो देवी ने अपनी लुहरी सौत को गर्भवती होने के कारण सती होने की आज्ञा नहीं दी। लुहरी रानी के गर्भ से जो पुत्र उत्पन्न हुआ वह पुत्र इमलई का राजा हुआ |”1   
महेशचंद्र चौबे ने महाराज निजामसाहि द्वारा जागीर देने की बात लिखी है, “महाराज निजामशाह ने उसके परिवार को पारितोषिक देने का विचार किया, और रामगढ़ की जमीदारी मोहनसिंह के पुत्र गज्जीसिंह को सौंप दी। एक लोधी को इस प्रकार जमीदारी सौंप दी गई, इससे गोंड अधिकारी और सामंत अप्रसन्न हो गये। तब गज्जीसिंह ने षडयंत्र रचा, उसने सभी गोंडों को रात्रि भोज में बुलाया और जिस भवन में वे भोजन कर रहे थे उसमें आग लगा दी, केवल एक गर्भवती महिला इस भोज में शामिल नहीं हुई थी। बाद में उसका ही पुत्र कालांतर में इमलई जागीर का राजा बना |”2  
उधर मुकुटपुर भी लोधियों का हो गया था, फिर भी इलाके के मरकामों से अनबन बनी ही रही, मरकाम लोग समय-समय पर अपनी तलवार चमकाते रहते थे।
बस्ती का नाम सिंगारसत्ती पड़ गया है | पहाड़ का सामने का भाग सतीकोंना और नाला सतीनाला कहलाता है| सतीचौरे की जगह छोटा सा मंदिर बना दिया गया है|
सतीमैया की सेवा गाँव के ही तिरु.मनीराम आत्मज भंजन कर रहे हैं | परिसर में आम के पौधे रोप गए हैं| जिस पीपल के पेड़ के नीचे राजा चांदवा का मृतदेह रखा गया था उसका अब सूखा ठूंठ बचा है उसके आँचल में पाकर का पेड़ ऊग आया है |
सन्दर्भ -1 गोंड जाति का सामाजिक अध्ययन – ले. रामभरोस अग्रवाल पृष्ठ 581|
2.जबलपुर अतीत दर्शन – ले.महेशचंद्र चौबे पृष्ठ 40 |
News credit- dr.br barkade
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