जोशीमठ में मंगलवार को खतरनाक स्थिति में पहुंच चुके होटलों और घरों को ढहाने के लिए बुलडोजर पहुंचे. लेकिन इमारतों को गिराने का काम नहीं हो पाया क्योंकि स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया. लोग अपने घरों को गिराने के खिलाफ गुस्सा जाहिर कर रहे थे. लोगों का कहना था कि उन्होंने 'खून-पसीने की कमाई से घर बनाए हैं.' धंसते जोशीमठ से लोगों को निकालने में सरकार जुटी है, लेकिन कई परिवार अब भी शहर छोड़कर जाने को तैयार नहीं हैं.
जोशीमठ तबाही के मुहाने पर खड़ा है. 732 इमारतें क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं. घरों और सड़कों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं. शहर धंस रहा है और लोग पलायन को मजबूर हैं. लेकिन संकट यहीं तक सीमित नहीं है. जोशीमठ से लगभग 80 किमी दूर कर्णप्रयाग में भी घरों में दरारें आने लगी हैं. रिपोर्ट्स के अनुसार, 50 से ज्यादा घरों में दरारें देखी गई हैं.
करीब 50 साल पहले केंद्र सरकार ने गढ़वाल के तत्कालीन कलेक्टर एमसी मिश्रा को यह पता लगाने के लिए नियुक्त किया था कि जोशीमठ क्यों डूब (Joshimath Sinking) रहा है? उनके नेतृत्व वाली 18 सदस्यीय समिति द्वारा इस बाबत एक रिपोर्ट पेश की गई. इसमें साफ तौर पर बताया गया कि उत्तराखंड (Uttarakhand) में जोशीमठ एक पुराने भूस्खलन क्षेत्र (Joshimath landslide) पर स्थित है और अगर विकास जारी रहा तो यह डूब सकता है. रिपोर्ट में सिफारिश की गईं कि जोशीमठ में निर्माण प्रतिबंधित किया जाए, वरना यह डूब जाएगा. रिपोर्ट इससे अधिक भविष्यसूचक नहीं हो सकती थी. अब जब जोशीमठ इस कगार पर आ खड़ा हुआ है तो हमें यह जानने की सख्त जरूरत है कि आखिर इस रिपोर्ट में ऐसा क्या-क्या कहा गया, जिस पर उस तरीके से विचार नहीं किया गया, जैसे कि होना चाहिए था… आइये जानते हैं,
रिपोर्ट की प्रमुख बातें …
moneycontrol के अनुसार, जैसा कि 1976 की मिश्रा समिति की रिपोर्ट ने बताया था… जोशीमठ एक प्राचीन भूस्खलन पर स्थित है, जो चट्टान नहीं बल्कि रेत और पत्थर के जमाव पर टिका है. अलकनंदा और धौली गंगा नदियां.. नदी के किनारों और पहाड़ के किनारों को मिटाकर भूस्खलन को ट्रिगर करने में अपनी भूमिका निभाती हैं. निर्माण गतिविधि में वृद्धि और बढ़ती आबादी क्षेत्र में लगातार भूस्खलन में योगदान देंगी.
रिपोर्ट में कहा गया कि “जोशीमठ रेत और पत्थर का जमाव है यह मुख्य चट्टान नहीं है – इसलिए यह एक बस्ती के लिए उपयुक्त नहीं था. ब्लास्टिंग, भारी यातायात आदि से उत्पन्न कंपन से प्राकृतिक कारकों में असंतुलन पैदा होगा…”
उचित जल निकासी सुविधाओं का अभाव भी भूस्खलन का कारण बनता है. सोख्ता गड्ढों का अस्तित्व, जो पानी को धीरे-धीरे जमीन में सोखने की अनुमति देता है, मिट्टी और शिलाखंडों के बीच गुहाओं के निर्माण के लिए जिम्मेदार है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे पानी का रिसाव और मिट्टी का क्षरण होता है.
रिपोर्ट में सुझाया गया सबसे महत्वपूर्ण निवारक उपाय भारी निर्माण पर प्रतिबंध लगाना था. मिट्टी की भार वहन क्षमता और स्थल की स्थिरता की जांच के बाद ही निर्माण की अनुमति दी जानी चाहिए और ढलानों की खुदाई पर भी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.
इसमें कहा गया कि सड़क की मरम्मत और अन्य निर्माण कार्य के लिए सलाह दी जाती है कि पहाड़ी की तरफ खोदकर या विस्फोट करके पत्थरों को न हटाया जाए. इसके अलावा, भूस्खलन क्षेत्रों में पत्थरों और शिलाखंडों को पहाड़ी के नीचे से नहीं हटाया जाना चाहिए, क्योंकि इससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जाएगी. ढलानों पर जो दरारें बन गई हैं उन्हें सील कर देना चाहिए.
भूस्खलन क्षेत्र में पेड़ों को काटने के खिलाफ भी सलाह दी गई और गया कहा कि मिट्टी और जल संसाधनों के संरक्षण के लिए विशेष रूप से मारवाड़ी और जोशीमठ के बीच क्षेत्र में व्यापक वृक्षारोपण कार्य किया जाना चाहिए.
इसमें कहा गया कि इमारती लकड़ी और जलाऊ लकड़ी के साथ बस्ती की आपूर्ति के लिए पेड़ों को काटने को कड़ाई से विनियमित किया जाना चाहिए और यह अनिवार्य था कि स्थानीय लोगों को ईंधन के वैकल्पिक स्रोत प्रदान किए जाएं.
ढलानों पर कृषि से बचना चाहिए. सड़कों को पक्का किया जाना चाहिए.
क्षेत्र में पानी का रिसाव बहुत अधिक है, इसलिए भविष्य में किसी और भूस्खलन को रोकने के लिए पक्की जल निकासी प्रणाली के निर्माण से खुले बारिश के पानी के रिसाव को रोका जाना चाहिए.
रिपोर्ट में कहा गया कि पानी को किसी भी गड्ढे में जमा नहीं होने देना चाहिए. इसे सुरक्षित क्षेत्रों में ले जाने के लिए नालियों का निर्माण किया जाना चाहिए.
नदी के किनारे के कटाव को रोकने के लिए सीमेंट ब्लॉक को किनारे पर कमजोर जगहों पर रखा जाना चाहिए.
तलहटी पर लटके हुए शिलाखंडों को उचित सहारा दिया जाना चाहिए और कटाव की रोकथाम के उपाय किए जाने चाहिए.
कुछ दिन पहले सरकार ने एक आठ सदस्यीय विशेषज्ञ पैनल का गठन किया, जिसने सिफारिश की है कि सबसे अधिक नुकसान वाले क्षेत्र में घरों को ध्वस्त कर दिया जाए, रहने योग्य क्षेत्रों की पहचान की जाए, और लोगों को प्राथमिकता के आधार पर स्थानांतरित किया जाए.
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