गोंड राज़परिवार का कुलदेव मंदिर: मकड़ाई में नेपाली पैटर्न पर सागौन की लकड़ियाें से बना है श्रीराम जानकी मंदिर..

जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर सिराली तहसील के मकड़ाई में 400 साल पहले मकड़ाई रियासत में बेशकीमती सागाैन से बना श्रीराम जानकी मंदिर आज भी आकर्षक है। तीन मंजिला मंदिर में लकड़ियाें पर नेपाल के मंदिराें की तर्ज पर नक्काशी की है।  मंदिर में राजस्थान प्रांत के जयपुर जाेधपुर में संगमरमर पर तराशी मूर्तियां विराजित हैं। हर रविवार काे आज भी यहां 200-300 लाेग मकड़ाई का पुराना किला व मंदिर तथा प्रकृति का नैसर्गिक साैंदर्य देखने आते हैं। पुराने साल की विदाई और नए साल की अगवानी के लिए भी हर साल यहां करीब दाे हजार सैलानी आते हैं। पुजारी पंडित आशीष जाेशी बताते हैं मकड़ाई काे 16वीं शताब्दी में राजा मकरंद शाह द्वारा बसाया गया था। यह मंदिर भी उसी का समकालीन है। मंदिर की खासियत यह है कि के निर्माण में अन्य भवनाें की तरह गारा, ईंट, सीमेंट का काेई उपयाेग नहीं किया गया। यह मंदिर केवल सागाैन की लकड़ी से निर्मित है। बीला, गाेंद, चूना, गुड़ का मसाला बनाकर जाेड़ा गया पुजारी जाेशी के अनुसार मंदिर दाे भागाें में बना है। पीछे कुछ भाग पक्का है, जिसकी जुड़ाई में तत्कालीन प्रचलन व व्यवस्था के अनुसार बीला, गाेंद, चूना, गुड़ का मसाला बनाकर जाेड़ा गया है। पुरातात्विक महत्व का यह तीन मंजिला इमारत वाला मंदिर आज भी उतना ही खूबसूरत व लुभावना है। वे बताते हैं लकड़ियाें के पिलर पर करीने से उकेरी कई नक्काशी नेपाल के मंदिराें से मिलती है। सयानी नदी से ऊंचाई पर है मकड़ाई किला और मंदिर किला, मंदिर आदि सयानी नदी से उंचाई पर स्थित है। चाराें तरफ जहां तक नजर जाती है केवल सागाैन के उंचे हरे भरे पेड,नदी में कल कल बहता पानी,प्राकृतिक साैंदर्य और वर्तमान में देखरेख के अभाव में बदहाल हाेते जा रहे किले की दीवाराें पर उगी घास दिखाई देती है। मकड़ाई आज भी पूरी तरह से प्रकृति की गाेद में काफी उंचाई पर टापू की शक्ल में बसा खूबसूरत क्षेत्र अलग ही दिखाई देता है। पहले यह थी कचहरी अब स्कूल मकड़ाई रियासत में पहले कचहरी भी थी,इस भवन की बनावट पुराने समय की ही है। अब इसमें प्राइमरी व मिडिल स्कूल लगने लगा है। दाे मंजिला तत्कालीन कचहरी भवन में उपर पूर्व में आदिवासी बच्चाें का छात्रावास था। अब छात्रावास राम मंदिर के पास बन गया है,यहां केवल स्कूल संचालित हाे रही है।

जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर सिराली तहसील के मकड़ाई में 400 साल पहले मकड़ाई रियासत में बेशकीमती सागाैन से बना श्रीराम जानकी मंदिर आज भी आकर्षक है। तीन मंजिला मंदिर में लकड़ियाें पर नेपाल के मंदिराें की तर्ज पर नक्काशी की है।
मंदिर में राजस्थान प्रांत के जयपुर जाेधपुर में संगमरमर पर तराशी मूर्तियां विराजित हैं। हर रविवार काे आज भी यहां 200-300 लाेग मकड़ाई का पुराना किला व मंदिर तथा प्रकृति का नैसर्गिक साैंदर्य देखने आते हैं। पुराने साल की विदाई और नए साल की अगवानी के लिए भी हर साल यहां करीब दाे हजार सैलानी आते हैं।
पुजारी पंडित आशीष जाेशी बताते हैं मकड़ाई काे 16वीं शताब्दी में राजा मकरंद शाह द्वारा बसाया गया था। यह मंदिर भी उसी का समकालीन है। मंदिर की खासियत यह है कि के निर्माण में अन्य भवनाें की तरह गारा, ईंट, सीमेंट का काेई उपयाेग नहीं किया गया। यह मंदिर केवल सागाैन की लकड़ी से निर्मित है।

जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर सिराली तहसील के मकड़ाई में 400 साल पहले मकड़ाई रियासत में बेशकीमती सागाैन से बना श्रीराम जानकी मंदिर आज भी आकर्षक है। तीन मंजिला मंदिर में लकड़ियाें पर नेपाल के मंदिराें की तर्ज पर नक्काशी की है।  मंदिर में राजस्थान प्रांत के जयपुर जाेधपुर में संगमरमर पर तराशी मूर्तियां विराजित हैं। हर रविवार काे आज भी यहां 200-300 लाेग मकड़ाई का पुराना किला व मंदिर तथा प्रकृति का नैसर्गिक साैंदर्य देखने आते हैं। पुराने साल की विदाई और नए साल की अगवानी के लिए भी हर साल यहां करीब दाे हजार सैलानी आते हैं। पुजारी पंडित आशीष जाेशी बताते हैं मकड़ाई काे 16वीं शताब्दी में राजा मकरंद शाह द्वारा बसाया गया था। यह मंदिर भी उसी का समकालीन है। मंदिर की खासियत यह है कि के निर्माण में अन्य भवनाें की तरह गारा, ईंट, सीमेंट का काेई उपयाेग नहीं किया गया। यह मंदिर केवल सागाैन की लकड़ी से निर्मित है। बीला, गाेंद, चूना, गुड़ का मसाला बनाकर जाेड़ा गया पुजारी जाेशी के अनुसार मंदिर दाे भागाें में बना है। पीछे कुछ भाग पक्का है, जिसकी जुड़ाई में तत्कालीन प्रचलन व व्यवस्था के अनुसार बीला, गाेंद, चूना, गुड़ का मसाला बनाकर जाेड़ा गया है। पुरातात्विक महत्व का यह तीन मंजिला इमारत वाला मंदिर आज भी उतना ही खूबसूरत व लुभावना है। वे बताते हैं लकड़ियाें के पिलर पर करीने से उकेरी कई नक्काशी नेपाल के मंदिराें से मिलती है। सयानी नदी से ऊंचाई पर है मकड़ाई किला और मंदिर किला, मंदिर आदि सयानी नदी से उंचाई पर स्थित है। चाराें तरफ जहां तक नजर जाती है केवल सागाैन के उंचे हरे भरे पेड,नदी में कल कल बहता पानी,प्राकृतिक साैंदर्य और वर्तमान में देखरेख के अभाव में बदहाल हाेते जा रहे किले की दीवाराें पर उगी घास दिखाई देती है। मकड़ाई आज भी पूरी तरह से प्रकृति की गाेद में काफी उंचाई पर टापू की शक्ल में बसा खूबसूरत क्षेत्र अलग ही दिखाई देता है। पहले यह थी कचहरी अब स्कूल मकड़ाई रियासत में पहले कचहरी भी थी,इस भवन की बनावट पुराने समय की ही है। अब इसमें प्राइमरी व मिडिल स्कूल लगने लगा है। दाे मंजिला तत्कालीन कचहरी भवन में उपर पूर्व में आदिवासी बच्चाें का छात्रावास था। अब छात्रावास राम मंदिर के पास बन गया है,यहां केवल स्कूल संचालित हाे रही है।

बीला, गाेंद, चूना, गुड़ का मसाला बनाकर जाेड़ा गया..

पुजारी जाेशी के अनुसार मंदिर दाे भागाें में बना है। पीछे कुछ भाग पक्का है, जिसकी जुड़ाई में तत्कालीन प्रचलन व व्यवस्था के अनुसार बीला, गाेंद, चूना, गुड़ का मसाला बनाकर जाेड़ा गया है। पुरातात्विक महत्व का यह तीन मंजिला इमारत वाला मंदिर आज भी उतना ही खूबसूरत व लुभावना है। वे बताते हैं लकड़ियाें के पिलर पर करीने से उकेरी कई नक्काशी नेपाल के मंदिराें से मिलती है।

सयानी नदी से ऊंचाई पर है मकड़ाई किला और मंदिर..

किला, मंदिर आदि सयानी नदी से उंचाई पर स्थित है। चाराें तरफ जहां तक नजर जाती है केवल सागाैन के उंचे हरे भरे पेड,नदी में कल कल बहता पानी,प्राकृतिक साैंदर्य और वर्तमान में देखरेख के अभाव में बदहाल हाेते जा रहे किले की दीवाराें पर उगी घास दिखाई देती है। मकड़ाई आज भी पूरी तरह से प्रकृति की गाेद में काफी उंचाई पर टापू की शक्ल में बसा खूबसूरत क्षेत्र अलग ही दिखाई देता है।

पहले यह थी कचहरी अब स्कूल..

मकड़ाई रियासत में पहले कचहरी भी थी,इस भवन की बनावट पुराने समय की ही है। अब इसमें प्राइमरी व मिडिल स्कूल लगने लगा है। दाे मंजिला तत्कालीन कचहरी भवन में उपर पूर्व में आदिवासी बच्चाें का छात्रावास था। अब छात्रावास राम मंदिर के पास बन गया है,यहां केवल स्कूल संचालित हाे रही है।
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