नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के पवित्र धर्मग्रंथ रामचरितमानस पर विवादित कमेंट कर बुरे फंस गए है। उनका देशभर में इस बयान को लेकर विरोध किया जा रहा है। रामचरितमानस पर बेतुका बयान देने के बाद से स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार सुर्खियों में बने हुए है। इसके अलावा स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ राजधानी लखनऊ में एफआईआर तक दर्ज की गई है। एक तरफ जहां रामचरितमानस पर विवादित टिप्पणी उनके लिए गले की फंस बन गया है। खुद सपा प्रमुख अखिलेश यादव समेत पार्टी के कई नेता ने उनके बयान से किनारा कर लिया है। वहीं दूसरी तरफ स्वामी प्रसाद मौर्य के सपोर्ट में अखिल भारतीय ओबीसी महासभा आ गया है। साथ ही अखिल भारतीय ओबीसी महासभा ने सपा के समर्थन में खड़े होकर विरोध प्रदर्शन किया।
दरअसल राजधानी लखनऊ के स्थित वृंदावन योजना में ओबीसी महासभा के लोगों ने पहले रामचरितमानस की प्रतियां को फाड़ा और फिर बीच सड़क में ग्रंथ को जला दिया। जिसका वीडियो भी सामने आया है। वीडियो में देखा जा सकता है कि अखिल भारतीय ओबीसी महासभा ने विरोध प्रदर्शन करते हुए कहा कि, रामचरितमानस में कुछ आपत्तिजनक चौपाई लिखी गई है। हम उसके खिलाफ है। इसमें नारी शक्ति और शूद्रओं के बारे में आपत्तिजनक बातें लिखी गई है। हम उसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए जला रहे है। ओबीसी महासभा ने सरकार से मांग की है कि रामचरितमानस से इन आपत्तिजनक चौपाई को हटाया जाए।
रामचरित मानस को लेकर विवाद अब सड़कों पर आ गया है. लखनऊ में कुछ लोगों ने मानस की प्रतियों को जलाकर विरोध जताया. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उन्होंने मानस के उन हिस्से की कॉपी को जलाया है जिसमें दलितों और ओबीसी वर्ग का अपमान किया गया है. यह प्रदर्शन अखिल भारतीय ओबीसी महासभा के बैनर लगाकर किया गया. प्रदर्शन में शामिल लोगों ने कहा कि वे समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान का समर्थन करते हैं..
Video watch click this Link-
https://twitter.com/jameenikhabar/status/1619569747041095683?ref_src=twsrc%5Etfw%7Ctwcamp%5Etweetembed%7Ctwterm%5E1619569747041095683%7Ctwgr%5Ec0a7a6873f108a1c72ee120d17597dd272aab581%7Ctwcon%5Es1_c10&ref_url=https%3A%2F%2Fd-7307552573468933085.ampproject.net%2F2301112346000%2Fframe.html
लखनऊ के वृंदावन इलाके में प्रदर्शनकारियों ने मानस की कॉपी जलाई. प्रदर्शन करने वाले लोगों ने कहा कि इसमें महिलाओं, दलितों और ओबीसी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की गई हैं. एक प्रदर्शनकारी ने कहा कि आज के वैज्ञानिक युग में दुनिया चांद पर जा रही है, दूसरे ग्रहों पर जा रही है तो देश का 15 फीसदी समाज 85 फीसदी समाज को बेवकूफ बनाकर पीछे ले जा रहा है.
प्रदर्शनकारी ने कहा..
"सदियों से हमें (85 फीसदी समाज) पीछे धकेला जा रहा है. उनकी साजिश के तहत हमारे समाज को गाली दी गई है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने जो कहा है उसका हम सभी समर्थन करते हैं. संविधान में जब संशोधन हो सकता है तो रामचरित मानस में क्यों नहीं हो सकता है. मानस में जो भी आपत्तिजनक बातें कही गई हैं उन सभी बातों को निकाला जाए."
जलाए गए अंश धार्मिक नहीं- मौर्य..
हाल में स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी रामचरित मानस पर सवाल उठाते हुए कहा था कि धर्म के नाम पर पिछड़ों और दलितों को गाली क्यों दी गई है. गाली धर्म हो ही नहीं सकता है. जिसमें मानवता आहत हो वो धर्म नहीं हो सकता है. लखनऊ में प्रतियां जलाने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि किसी धर्म ग्रंथ को नहीं जलाया जा रहा है. आपत्तिजनक पेज को कोई जला रहा है तो वो धार्मिक ग्रंथ नहीं है.
मौर्य ने 22 जनवरी को कहा था कि सरकार को इन आपत्तिजनक अंश को हटाना चाहिए या पूरी किताब को बैन कर देना चाहिए, जिससे दलितों, पिछड़ों की भावनाएं हो रही है. उन्होंने कहा कि वे इसे लेकर कई बार सार्वजनिक रूप से आपत्ति जता चुके हैं. किसी भी धर्म को किसी के बारे में गाली देने का अधिकार नहीं है.
इसके बाद बीजेपी ने समाजवादी पार्टी पर निशाना साधा था. बीजेपी के कई नेताओं ने सपा को “हिंदू विरोधी” बताया. उनके खिलाफ लखनऊ के हजरतगंज थाने में FIR भी दर्ज करवाई गई है.
सपा जातीय तनाव पैदा करना चाहती है- BJP..
समाजवादी पार्टी ने इस विवाद के बीच स्वामी प्रसाद मौर्य को महासचिव बनाया है. इस फैसले के बाद बीजेपी ने फिर पार्टी पर निशाना साधना शुरू कर दिया है. बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि स्वामी प्रसाद को रामचरितमानस के अपमान का पुरस्कार मिला है. उन्होंने कहा,
"सपा चाहती है कि उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़े. समाजवादी पार्टी यूपी में जातीय संघर्ष उत्पन्न करना चाहती है. लेकिन वो अपने मंसूबों में कामयाब नहीं होगी. इस फैसले से अखिलेश यादव का हिंदू विरोधी और जातिवादी चेहरा सामने आया है."
ये पहली बार नहीं है जब किसी धार्मिक ग्रंथ को इस तरह सार्वजनिक रूप से जलाया गया हो. डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भी आज से करीब 100 साल पहले पहली बार मनुस्मृति की प्रति को जलाया था. तारीख थी 25 दिसंबर 1927. दलित समुदाय इस घटना को वर्ण व्यवस्था के खिलाफ विरोध का एक मजबूत प्रतीक मानते हैं. तब से 25 दिसंबर को हर साल देश के कई इलाकों में मनुस्मृति दहन का कार्यक्रम होता है.
#suradailynews
0 टिप्पणियाँ