Gondwana kingdom: गोंड राजा छोटेलाल शाह जी ने दिया था ब्राम्हण को चरणामृत..

Gondwana kingdom: गोंड राजा छोटेलाल शाह जी ने दिया था ब्राम्हण को चरणामृत..

ग्राम मदनपुर में सिंदूर नदी का पीपल घाट मेरे परदादा जी स्व राजा छोटेलाल शाह जी का स्नान घाट था इस घाट पर केवल राजा साहब स्नान करते थे  वे नदी के जल में उतरते नहीं थे। अपने सोने के कमण्डल से नदी के किनारे पर बैठकर स्नान करते थे। वे प्रतिदिन चार बजे स्नान करते थे और मदनपुर में स्वयं के द्वारा निर्मित कमलेश्वर शिव मंदिर में प्रतिदिन शिवरात्रि जैसा रुद्राभिषेक करते थे।

एक बार काशी के किसी विद्वान ब्राम्हण पं दीनदयाल चतुर्वेदी को कोढ़( कुष्ठ) रोग हो गया था । उस समय कोढी को भयानक पापी माना जाता था वह सभा के बीच नहीं बैठ सकता था। हरे मंडप के नीचे भी नहीं जा सकता था। इससे उस ब्राम्हण को बड़ा कष्ट होता वह मन ही मन बड़ा दुखी होता एक बार अपनी जीवन लीला समाप्त करने के उद्देश्य से वह गंगा जी के किनारे गया वहां पर किसी बड़े महात्मा संत का सत्संग प्रवचन चल रहा था।उस ब्राम्हण के मन में विचार हुआ कि क्यों न मृत्यु से पूर्व प्रवचन सुना जाय वह सत्संग में चला गया ।वहां प्रवचन सुनकर वह महात्मा जी से बड़ा प्रभावित हुआ।वह ब्राम्हण उन दिव्य तेजोमय महात्मा जी  के चरणों में गिर पड़ा और अपने उद्धार का उपाय पूछने लगा। उन महात्मन ने अपनी आँखे बंद की और भूत भावन भगवान काशीनाथ भोलेनाथ का ध्यान किया और फिर ब्राम्हण से वचन बोले कि हे कोढी और दुखी ब्राम्हण इस समय जो संसार में सबसे बड़ा शिवभक्त और प्रकृति शक्ति बड़ादेव के पुजारी हैं जाकर उनका चरणामृत ले ले इससे तेरा कल्याण हो जायेगा। इतना सुनकर वह ब्राम्हण  बोला भगवान इतने बड़े संसार में इस समय सबसे बड़ा शिवभक्त कौन है ?मैं नहीं जानता उनकी पहचान क्या है मैं कहाँ ढूंढूंगा? कृपा निधान मुझे उनका पता और नाम बताने की दया करें ।तब उन महात्मा ने फिर आँखे बंद कर भोलेनाथ का ध्यान किया और कहा - बेटा इस समय इस पृथ्वी पर मदनपुर ढिलवार रियासत के राजा छोटेलाल शाह जी भगवान भोलेनाथ के सबसे बड़े भक्त हैं। तब उस ब्राम्हण ने पूछा इस भारत देश में यह मदनपुर कहां है वे महात्मन बोले इस समय सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार प्रांत (वर्तमान मप्र) के होशंगाबाद जिले (वर्तमान नरसिंहपुर)में यह स्थान पड़ता है। फिर यह भी समझाया कि एक राजा से किस प्रकार याचना करनी चाहिये और संकल्प लेने पर ही दान मांगने को कहा।वह दुखी ब्राम्हण ऐसा प्रफुल्लित हुआ जैसे पानी से बाहर निकाली हुई मछली को पुनः जल में डाल दिया जाय।

वह काशी से चलकर राजा मदनपुर के राज्य में पहुंचा। राजा छोटेलाल शाह जी ब्राम्हणों और विद्वानों का आदर करते थे। सभी जाति के साधु संत उनसे सम्मान दान और आश्रय पाते थे।

राजा मदनपुर ढिलवार को तीन जिलों सागर , रायसेन और नरसिंहपुर की मेढ़ी (मुखिया) माना जाता है। यहां हर आठ दिन में दरबार लगता था जिसे कचहरी बोला जाता था। उसमें जनता अपनी समस्यें लेकर आती थी राजा साहब उनका निराकरण करते थे।उस समय कचहरी में एक घंटा टंगा रहता था अगर किसी व्यक्ति फरियाद करना हो तो वह घंटा बजा देता था।

जिस दिन वह ब्राम्हण मदनपुर पहुंचा उस दिन दरबार लग चुका था। उसने दरबान से कहा कि वह राजा साहब के दर्शन का इच्छुक है तब दरबान ने कहा कि राजा साहब कचहरी के वक्त अनिवार्य जनता की सुनते हैं आप आठ दिवस प्रतीक्षा करिये उसने ब्राम्हण के रुकने और भोजन का प्रबंध कराया।
आठ दिन उपरांत दरबार लगा राजा साहब ने सबकी फरियाद सुनी और मंत्री परिषद को निर्देशित करने के उपरांत उठने लगे उस समय लाला नन्हेंवीर खरे राज्य के मुख्त्यार थे राजा साहब प्यार से उन्हें वीर बुलाते थे। तब ब्राम्हण हाथ जोड़कर खड़ा हो गया उसने अभी तक अपना मंतव्य किसी के सामने प्रकट नहीं किया था 
उसने कहा कि वह काशी का पंडित है और आपके दरबार में कुछ मांगने की इच्छा से आया है। उन्होंने अपने मुख्त्यार से कहा कि वीर इन पंडित जी को इच्छानुसार दान दो। इतना कहकर वे दरबार से जाने लगे । तब वह ब्राम्हण राजा को साष्टांग प्रणाम कर बोला मैं बड़ा पापी कोढी और दुखियारा हूँ मेरा कष्ट हरो तो राजा साहब ने कहा कि मांगो किस प्रकार तुम्हें संतुष्ट करूं । तब उस ब्राम्हण ने कहा महाराज पहले संकल्प लीजिये कि जो मैं मांगूगा वो आप मुझे देंगे। इस पर राजा साहब को क्रोध आया वे बोले-" तुझे कुछ शंका है क्या आज तक राजा मदनपुर के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटा।" काशी के महात्मा ने कहा था जब तक राजा साहब संकल्प न लें तब तक मत मांगना सो उसने वैसा ही किया। तब उसके विनम्रतापूर्वक निवेदन करने पर राजा साहब ने संकल्प लिया कि ठीक है-" हे! ब्राम्हण जो तुम  मांगोगे मैं तुम्हें दूंगा राज्य अथवा प्राण भी मांगोगे तो तुम्हे दूंगा।" तब उस ब्राम्हण ने कहा महाराज मुझे कुछ नहीं आपके  चरणाें का चरणामृत चाहिये।जिससे मेरा कोढ़ ठीक हो जाय और मेरा उद्धार हो जाये ।

इतना सुनकर राजा साहब क्रोधित हुये कि -"तू मेरी परीक्षा लेने आया है या मेरी कीर्ति मेरा राज्य नष्ट करने आया है कौन है तू" तब ब्राम्हण ने काशी के महात्मा की सब बातें कह सुनायी तब राजा साहब का क्रोध शांत हुआ  उन्होंने ब्राम्हण से कहा कि वे आठ दिवस बाद अपना संकल्प पूरा करेंगे और ब्राम्हण को चरणामृत देंगे। राजा साहब के सामने प्रश्न यह था कि एक क्षत्रिय ब्राम्हण को चरणामृत कैसे दे ?फिर उस ब्राम्हण को विशेष अतिथि का दर्जा देकर आठ दिवस पश्चात मिलने को कहा।

राजा साहब ने भगवान शंकर से प्रार्थना की और इस समस्या का निदान पूछा भगवान शिव ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर ब्राम्हण के उद्धार का उपाय सुझाया।  फिर उन्होंने उस ब्राम्हण को आठ दिन पश्चात बुलाया  और कहा-" मैं प्रातः चार बजे पीपल घाट पर

राजा साहब ने भगवान शंकर से प्रार्थना की और इस समस्या का निदान पूछा भगवान शिव ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर ब्राम्हण के उद्धार का उपाय सुझाया।  फिर उन्होंने उस ब्राम्हण को आठ दिन पश्चात बुलाया  और कहा-" मैं प्रातः चार बजे पीपल घाट पर

स्नान के लिये जाता हूँ तुम मेरे पीछे आ जाना मुझसे बात नहीं करना मैं किनारे पर बैठकर कमण्डल से स्नान करता हूँ तुम नदी में खड़े हो जाना मैं स्नान करूंगा मेरे शरीर का बहता हुआ जल जब नदी के बहते हुये जल में मिल जाये उस संयुक्त जल का तीन बार आचमन कर डुबकी लगा लेना ऐसा करने से उसके सारे रोग दूर हो जावेंगे। इससे मेरे क्षत्रिय धर्म और तेरे ब्राम्हण धर्म दोंनों की मर्यादा बनी रहेगी और तेरा उद्धार हो जायेगा।"
इस घटना को देखने हजारों की संख्या में लोग नदी के किनारे पर एकत्र हो गये नियत समय पर राजा साहब ने ब्राम्हण को चरणामृत दिया ।चरणामृत पीकर जैसे ही ब्राम्हण ने नदी में डुबकी लगायी  वह कांतियुक्त नवयुवक बन गया उसका सारा कोढ़ और कष्ट दूर हो गया। यह दृश्य देखकर उपस्थित जनसमूह ने भगवान भोलेनाथ की भगवान प्रकृति शक्ति बड़ादेव और राजा साहब की जय जयकार की।

फिर उस ब्राम्हण को अन्न, धन, गौ, वस्त्र, सोना, चांदी देकर राजा छोटेलाल शाह जी ने विदा किया।

राजा साहब ज्येष्ठ की पूर्णिमा को सिंदूर (छींदोर) नदी के उद्गम स्थल ग्राम जोलनपुर जिला सागर मप्र जाया करते वहां सात कुंड की पूजन भंडारा ( गकरयाव) करते और नदी को बांध आते थे । उनके रहते कभी नदी में बाढ़ नहीं आती थी। 

राजा साहब ने जंगल में तपस्या की थी वह आज भी कुटी वाली टोरिया के नाम से जानी जाती है वहां पर कुटी और धूनी के अवशेष हैं।

राजा साहब जब खलिहान में जाते तो फसल से भूषा नहीं निकलता अनाज ही अनाज निकलता था। गौ शाला में जाते तो गाय भैंस दूध बहाने लगतीं। पानी न गिरने पर हल हांक देते थे तो बारिश हो जाती थी।

राजा साहब ने मदनपुर में विशाल रामजानकी लक्षमण जी मंदिर का निर्माण कराया। समीप ही उनके मुख्त्यार लाला नन्हेंवीर द्वारा गणेश मंदिर निर्मित है।

गोंड क्षत्रियो का राम जानकी मंदिर मदनपुर पुजारी

रामजानकी मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर समस्त मिठाई पकवान आदि घी में बनाये जाना थे परंतु कुछ घी कम पड़ गया तब राजा साहब ने कहारों को कनस्तर लेकर माँ नर्मदा जी के पास भेजा और भेंट भेजी और नर्मदा जल लाने को कहा वे सब कहार कनस्तर में नर्मदा जल ले आये आश्चर्यजनक रूप से नर्मदा जल कढ़ाई में डालते ही घी बन गया और उसमें सब पकवान बनाये गये। बाद में जब घी एकत्र हो गया तब राजा साहब ने उतने ही कनस्तर नर्मदा जी में वापिस छुड़वाया।

गोंड क्षत्रियो का राम जानकी मंदिर मदनपुर पुजारी

उसी समय एक और घटना घटी जब प्रथम पंगत बैठी तो आश्चर्यजनक रूप से मंदिर के प्रांगण का कुंए का सारा पानी सूख गया। तब राजा साहब ने सफेद कपड़ा मंगवाकर कुंये को ढंकवा दिया और एक पेैर  के अंगूठे पर खड़े होकर तपस्या की और फिर जब कुआँ खोला तो वह पानी से लबालब था।

राजा साहब ने अयोध्या में भी जगह और धन दानकर आश्रम का निर्माण किया जहां आज भी शिलालेख पर राजपरिवार का नाम अंकित है।

राजा साहब ने रामजानकी मंदिर निर्माण के पश्चात ब्राम्हण समुदाय को इलाहाबाद उप्र से बुलाकर मदनपुर बसाया और 250 एकड़ जमीन दान दी। रामजानकी मंदिर में 60 एकड़ और 20 एकड़ कमलेश्वर मंदिर के लिये दी ।मर्रावन में 50 एकड़ मय बाखर ब्राम्हण परिवार को दी एवं 18 एकड़ माता चंडी की पूजा के लिये गोंड जाति के पंडा को  दी। 50 एकड़ जैतपुर मौजा में ब्राम्हण को दी। 14 एकड़ कठोतिया मौजा में कबीरपंथ को दी और मंदिर बनवाया। 14 एकड़ करोंदी में दी। 5 एकड़ और बाखर ग्वारी मंदिर के लिये ब्राम्हण को दी। 5 एकड़ बीकोर मंदिर के लिये दी। 7.5 एकड़ इमझिरा के ब्राम्हण को ढिलवार मौजे की जमीन दी।

तेंदूखेड़ा में हाईस्कूल निर्माण के लिये जगह और निर्माणाधीन नये महल की सारी सामग्री और जंगल की सारी लकड़ी दो लाख रुपये दान दिये और चांदी की कन्नी से पहली आधार शिला रखी। बच्चों को पानी पीने के लिये बावली का निर्माण कराया।

नेपाल के महाराजा और पशुपतिनाथ के भक्त शाहदेव जी भी स्व राजा छोटेलाल शाह जी के सम्मान में खड़े हो जाते थे। देश भर के साधु संत और अखाड़ों की जमातें हमेंशा मदनपुर जमीं रहती थीं। अयोध्या के महान संत रामायणी लक्षमण दास जी व्यास भी उनका सत्संग करने आते थे।उन्होंने अपने जीवन काल में कई यज्ञ करवाये।

राजा छोटेलाल शाह जी के चमत्कार दानशीलता और मानव कल्याण के कई किस्से हैं। जिनके ऊपर पूरी पुस्तक लिखी जा सकती है। स्व राजा साहब 1842 के बुंदेला विद्रोह और1857 के महानायक अमर शहीद राजा डेलन शाह जी के छोटे भाई थे। आपका राजतिलक 5 दिसम्बर 1905 को हुआ।
आपने बिना किसी शर्त के अपनी स्टेट मदनपुर ढिलवार का विलय भारतीय संघ में किया जिससे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटैल ने उन्हें आजीवन राज्यसभा का सदस्य बनाने का वादा किया। परंतु यह संभव नहीं हुआ। ऐसे संत ऐसे कृपालु ऐसे धर्म ध्वज वाहक भगवान भोलेनाथ के साक्षात अवतार के चरणों में कोटि कोटि वंदन.

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