नागवंशीय गोंड महाराजे महिपतसिंह उइके उर्फ़ बख्त बुलंदशाह जी (शासन: 1668 -1706)

नागवंशीय गोंड महाराजे महिपतसिंह उइके उर्फ़ बख्त बुलंदशाह जी (शासन: 1668 -1706)

अईन- ए -अकबरी के मुताबिक देवगढ़ महाराजा जाटवा के पास 1500 घुड़सवार, 50,000 पैदल सेना और 1000 हाथी दल था। (महाराजा जाटवा के शासन काल) उस समय उनके राज्य का दाम 1,001,000 था। (1580 से 1620)

बख्त बुलंद शाह एक दूरदर्शी शासक थे। जिन्होंने अपना राज्य बचाने औरंगजेब का साथ लेकर इस्लाम स्वीकार कर के भी रोटी बेटी का रिश्ता न स्वीकार करते हुए, मुगलों की अधीनता न स्वीकारते हुए, अपना राज्य स्वतंत्र रखा नागपुर नगरी की रचना श्रेय महाराजा बख्त बुलंद शाह को जाता है.
कहा जाता है कि राजा बख्त बुलंद शाह उइका ने नागपुर शहर का नाम यहाँ पर बहने वाली नाग नदी के कारण इस शहर का नाम रखा और ये भी कहा जाता है कि यहाँ पर नाग साँप बहुत पाये जाते थे इस कारण से नागपुर शहर का नाम नागपुर रखा गया। लेकिन बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने नागपुर में धम्म दीक्षा देते वक्त बताया था कि नागपुर शहर में नागवंशीय गोंड राजाओं का प्रचीन काल से इतिहास था इसलिए गोंड राजा बख्त बुलंद शाह उइका ने इस शहर का नाम नागपुर रखा। आइये जानते हैं बख्त बुलंद शाह के बारे में- आज से लगभग 319 साल पूर्व याने 1702 ईस्वी में नागपुर नगरी की स्थापना गोंड राजा बख्त बुलंद शाह ने की थी।
गोंड राजा बख्त बुलंद शाह नागपुर शहर बसाने से पहले देवगढ़ के राजा थे। देवगढ़ का किला छिंदवाड़ा से करीब 50 किलोमीटर दूर मोहखेड़ा गाँव के पास स्थित है। बख्त बुलंद शाह के पूर्वजों की कहानी थोड़ी लंबी है और बख्त बुलंद शाह की भी l राजा बख्त बुलंद शाह देवगढ़ के महान गोंड सम्राट राजा जाटवा के वंशज हैं। और बख्त बुलंद शाह का असली नाम महीपत शाह था, 

क्षत्रिय नागवंशी गोंड देवगढ़ सम्राजया के राजा मुगलो और राजपूतो के एक साथ मिलकर युद्ध करने से नष्ट हुआ..

राजपूत राजा जयसिंह तो दिल्ली सल्तनत के लिए कार्य कर रहे थे अतः औरंगजेब ने जब उन्हें दक्षिण विजय का कार्य सौंपा तो मिर्जाराजा ने छत्रसाल को दिलेरखान को सौंपा था। देवगढ़ के गोंड राजाओं के खिलाफ लड़ते हुए, उनके पास भूत या भविष्य की शक्तियां इस हद तक नहीं थीं कि छत्रसाल के बिना, देवगढ़ मुगलों पर कभी विजय प्राप्त नहीं की जा सकती थी।
छत्रसाल को इसी युद्ध में अपनी बहादुरी दिखाने का पहला अवसर मिला। सन १६६५ में बीजापुर युद्ध में असाधारण वीरता छत्रसाल ने दिखायी और देवगढ़ (छिंदवाड़ा) के गोंड राजा को पराजित करने में तो छत्रसाल ने जी-जान लगा दिया। गोंड राजा कोकशाह की मृत्यु 1640 ईसवी में हुई और उसके बाद उनके बेटे केशरीशाह सत्तासीन हुए सन 1648 ईसवी में मुग़ल बादशाह शाहनवाज़ खान द्वारा देवगढ़ (छिंदवाड़ा) आक्रमण किया गया फिर औरंगज़ेब के समय 1658 ईसवी में मुग़ल सेनापति मिर्ज़ा खान ने आक्रमण किया। इस तरह 1660 ईसवी तक गोंड राजा केशरीशाह मुग़लों से समझौता करके किसी तरह शासन पर बने रहे और मुग़लों को भारी लगान चुकाते रहे (रसेल, 1908)। इस सीमा तक कि यदि क्षत्रसाल बुन्देला का घोड़ा, जिसे बाद में ‘भलेभाई’ के नाम से विभूषित किया गया उनकी जान नही बचाता तो क्षत्रसाल वही पर मारे जाते..इसके बाद फिर मुगल और क्षत्रसाल ने मिलकर युद्ध किया ज़िसमें गोंड राजे केशरी शाह को मारा और उनके राज्य को लूटकर अपार धन अर्जित किया इसके बाद देवगढ़ पुरी तरह बर्बाद हो गया था इसके बाद बख्त बुलंद शाह देवगढ़ के राजा बनाने के लिए इस्लाम धर्म कबूल करवाया था, जिन्होंने अपना राज्य बचाने औरंगजेब का साथ लेकर इस्लाम स्वीकार कर के भी रोटी बेटी का रिश्ता न स्वीकार करते हुए, मुगलों की अधीनता न स्वीकारते हुए ,अपना राज्य स्वतंत्र रखा नागपुर नगरी की रचना श्रेय महाराजा बख्त बुलंद शाह को जाता है.
और वे सन 1686 ईस्वी में देवगढ़ के राजा बने और उसके बाद औरंगजेब ने महीपत शाह को नया नाम दिया बख्त बुलंद शाह। बख्त बुलंद शाह देवगढ़ पर कुछ साल तक शासन किये लेकिन वे मुस्लिम धर्म स्वीकार करने के बाद भी, अपना धर्म अपनाया रहा और गोंडों के प्रति अपना स्नेह प्यार त्याग नहीं पाये और मुगलों (मुसलमानों) के खिलाफ बगावत कर दिये। 
बख्त बुलंद शाह देवगढ़ छोड़ कर देवगढ़ के दक्षिण में नागपुर शहर बसाया जिसकी स्थापना उन्होंने 1702 ईस्वी में की थी और वहीं अपना राज-पाट करने लगे। बख्त बुलंद शाह ने 12 गांवों को मिलाकर नागपुर नगरी की स्थापना की। इन 12 गांवों मे राजापुर, रायपुर, हिवरी, हरिपुर, वानडे, सक्करदरा, आकरी, लेंडरा, फुटाला, गाडगे, भानखेडा, सीताबर्डी शामिल थे। समय के साथ इनमें से कुछ के नाम बदल गए है। उन्होंने गांवों को मुख्य मार्गों से जोडा, आवश्यकता के अनुसार बाजार बनवाए। इस तरह नागपुर का धीरे-धीरे विकास होता रहा। कहा जाता है कि देवगढ़ में जो शासन औरंगजेब ने नेकनाम खान (कान सिंह) को सौंपा था उसका शासन ज्यादा दिन तक चल नहीं पाया, औरंगजेब की मृत्यु (1707) के बाद राजा बख्त बुलंद शाह ने नेकनाम खान को हराकर देवगढ़ को फिर अपने कब्जे में ले लिया था और अपने बेटे चांद सुल्तान को 1709-11 ईस्वी के मध्य देवगढ़ की गद्दी पर बैठा दिया और देवगढ़ और नागपुर में खूब खुशहाली और संपन्नता के साथ शासन करने लगे। गोंडवाना राज्य हुकूमत के बाद नागपुर में भोंसले और पेशवा मराठों का शासन था जिन्होंने गोंडवाना का इतिहास मिटा दिया और उसके बाद अंग्रेजों का शासन हुआ। जिन दिनों बख्त बुलंद शाह का राज परिवार का साम्राज्य था, तब गोंड राजा के अपने सिक्के हुआ करते थे। आज उनके वंशजो के पास एक भी सिक्का नहीं होगा। वैसे बख्त बुलंद शाह के बनवाये सोने के सिक्के मेरे पास भी नहीं है न उनके बनवाये सिक्के देखा l नागपुर में हिंदी भाषा लाने का श्रेय भी राजा बख्त बुलंद शाह को ही माना जाता है। क्योंकि उस समय गोंडी भाषा बोलते थे। शहर की स्थापना के बाद उन्होंने जो सिक्के बनाए, वे हिंदी में थे। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि नागपुर में हिंदी भाषा का आगमन देवगढ़ से ही हुआ है। राजा बख्त बुलंद शाह उइका की मृत्यु का कोई प्रमाण नहीं है लेकिन उनकी मृत्यु अपने बेटे को देवगढ़ में राजा बनाने के बाद ही हुई है।

सन 1709-12 के आसपास राजा बख्त बुलंद शाह की मुत्यु हो गई। मुत्यु की निश्चित तारीख को लेकर इतिहासकारों मतभेद है। बख्त बुलंद शाह के बाद राजा चांद सुल्तान ने नागपुर और देवगढ़ दोनों जगह पर गद्दी संभाली। चांद सुल्तान ने शहर में आवश्यकता नुसार अनेक वस्तुओं का निर्माण कराया। उन्होंने नगर में पांच महाद्वार बनाये। वर्तमान गांधीसागर बनाम जुम्मा तालाब और महल का प्रसिद्ध गांधी द्वार उन्हीं की देन है। उस समय गांधीसागर तालाब के पानी की आपूर्ति 12 गावों (नागपुर) को की जाती थी। आज तालाब का 25 प्रतिशत हिस्सा ही शेष रह गया है। 
जिन्होंने नागपुर को राजधानी बना कर सन् 1697 के पश्चात से सदा औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह में कार्यरत रहे तथा नागपुर को स्वतंत्र रियासत घोषित कर इस्लाम त्याग कर धर्म में लौट गोंडवाना के वजूद को जिंदा रखा। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ