डोंगरगढ़ के गोंड राजाओ की कुलदेवी बम्लाई दाई (बंम्बलेश्वरी देवी) का सम्पूर्ण इतिहास

Complete history of Kuldevi Bamlai Dai (Bambleshwari Devi) of the Gond kings of Dongargarh

डोंगरगढ के गोंड़ राजा गोंड़वाना राज्य चिन्ह..

गोंड़वाना राज काल मे खैरागढ़ जमींदारी के अंतर्गत डोंगरगढ एक छोटा सा गांव था जो गोंड राजा के आधीन था डोंगरगढ़ नगर का पुराना नाम कामावतीपुर है 

इसे बसाने वाले राजा_वीरसेन_गोंड_थे

इसी डोंगरगढ़ में नर्तकी कमला वती और प्रसिद्ध तबला वादक लक्षन जती की प्रेम कहानी आज भी याद किए जाते हैं ! 

डोंगरगढ़ की बमलाई दाई गोंड वंश की बेटी है जिसके वंशज आज भी डोंगरगांव के पास सेवताटोला गांव में निवासरत है!

डोंगरगढ ज़मीदारी क्षेत्र में गोंड़ राजाओ का राज हुआ करता था जिसका प्रमाण आज भी डोंगरगढ के देव स्थलों को देख कर अंजादा लगाया जा सकता हैं की गोंड़वाना राज में गोंड़वाना कालीन कुआँ, तालाब, देव स्थल, आज भी सुरक्षित है !

 लेकिन शहर में बढ़ती आबादी के कारण आज हमारे पेन स्थल पर अतिक्रमण / संक्रमण के कगार पर है !

जिसे संरक्षित करने में टीम "गोंड़वाना युथ क्लब डोंगरगढ" जी जान लगाकर गोंड़वाना की विरासत धरोहर को बचाने का प्रयास कर रहे हैं ! 

टीप -: डोंगरगढ के मुख्य सेवा अर्जी करने अवश्य आये एवं गोंड़वाना की धरोहर को करीब से देखे!..

गोंड राजाओ की कुलदेवी बम्लाई दाई (बंम्बलेश्वरी देवी) का सम्पूर्ण इतिहास ..

डोंगर यह द्रविड़ पूर्व गोंडी भाषा (Gondi Language) का शब्द है. जिसका अर्थ पहाड़ों वाला जंगल होता हैं। डोंगरगढ़(Dongarhgarh) की बम्लाई दाई गिरोलागढ़(Bamblai dai Girolagarh) के सेवता मरकाम गोंड राजा की बेटी थी जो अपने सत्कर्मों से बम्लाई दाई के रूप में पूजी जाती हैं। बम्लाई दाई की ऐतिहासिक गाथा आज भी प्राचीन गिरोला गढ़ के पास गोंड समुदाय में पारम्परिक लोक गीतों और कथा सारो के माध्यम से प्रचलित हैं

प्रचलित गाथा के अनुसार किसी ने उसे मरकाम, किसी ने उईका गोत्र के बताए हैं। राजनांदगाँव से 26 किलोमीटर डोंगरगांव नामक एक गाँव हैं उसके पास सेवता टोला गाँव हैं जहाँ प्राचीन गिरोला गढ़ के पुरातत्व अवशेष आज भी विद्यमान हैं । प्रचलित ऐतिहासिक गाथा के अनुसार गिरोला गढ़ का प्राचीन नाम " बेन्दुला गढ़ ” था, जहाँ का राजा लोहंडीगुडा सेवता मरकाम था उसकी एक बड़ी बहन कोतमा थी,

जिसका विवाह बैहर के पास भीमलाट राज्य के मोहभाट्टा गढ़ में सईमाल मड़ावी नामक राजा के राजकुमार भूरापोय के साथ हुआ था। 

लोहंडीगुडा सेवता के दो जुड़वा बेटी थी एक का नाम बम्लाई और दूसरे का नाम सम्लाई था। दोनों बहनों के जवान हो जाने के कारण उनकी शादी की चिन्ता राजा को लग गई। राजा के केवल दो ही बेटियां थी। बेटा नहीं था। वह सोचने लगा कि बेटियों के लिए घर दामाद लाना उचित होगा। सोचते - सोचते ध्यान में आया कि किसी पराए युवक को घर दामाद लाने से उचित होगा किसी नाते - रिश्तेदार के ही योग्य लड़के का चयन किया जाएँ। रिश्तेदार के ध्यान आते से ही उसे अपनी बड़ी बहन कोतमा के ख्याल आया.

नोट- डोंगरगढ़ दक्षिण भारत में आता है..वहां प्रत्येक समाज में बहन की बेटी से शादी करना ऊचित माना जाता है..जबकि मध्य भारत के मेदानी क्षेत्र के सूर्यवंशी गोंड बहन की बेटी को भांजी मानते है..और वो उनके भाई के लिए ईश्वर से भी बढकर होती है..और मामा का लड़के के लिए सगी बहन से भी बढकर होती है..

जो बैहर राज्य के मोहभाट्टा गढ़ (Mohbhatta Fort) में ब्याही गई थी उसकी सात सुपुत्र (मर्री) और पाँच सुपुत्री थी। उसमें से कोई एक को बड़ी बेटी बम्लाई के लिए घर दामाद बनाकर लाने का राजा ने मन में सोचा और यह प्रस्ताव अपने बहन के सामने रखा तो भाई का प्रस्ताव सुनकर बहन खुशी से उछल पड़ी। शीघ्र ही उसने यह बात राजा को बताया तो राजा भूरापोय भी खुशी से नाच पड़े। उसने अपने बड़े बेटा भीमालपेन (maharastra) को बुलाया और उसके मामा जी की बड़ी बेटी बम्लाई के लिए घर दामाद जानें के लिए आज्ञा दिया। 

भिमालपेन(Bhimal pen) के सामने कठिन समस्या खड़ी हो गई थी उसने अपने मुठवापोय ( गुरूजी ) महारू भूमका को वचन दिया था कि वह आजीवन कुंवारा रहकर अपने समुदाय की सेवा करेगा. और अपने इस कार्य में वह जुट गया था किन्तु अपने माता - पिता ( दाई -दाऊ ) के आज्ञा की अवहेलना करना भी उचित नहीं था.

डोंगरगढ़ के गोंड राजाओ की कुलदेवी बम्लाई दाई (बंम्बलेश्वरी देवी) का सम्पूर्ण इतिहास

Photos- भीमालपेन Maharastra

अतः समय की पुकार सुनकर वह चुपचाप अपने माता - पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए अपने मामाजी के साथ गिरोला गढ़ चला गया वहां पहुँचने के बाद दूसरी समस्या खड़ी हो गई। अपने मामाजी के बड़ी बेटी बम्लाई के लिए घर दामाद बनकर आया था किन्तु वहां दोनों बहनें बम्लाई और सम्लाई भीमाल पेन से शादी करने तैयार हो गई। उन दोनों बहनों ने अपने प्रस्ताव पिता के पास रखा कि उनकी शादी भिमालपेन से किया जाए। राजा के सामने यह समस्या उत्पन्न हो गया कि वह भीमाल को कैसे मनाए। वह सोच विचार में खो गया।

भिमाल तंदरी जोग ( योग शक्ति-yog shakti ) विद्या में माहिर थें। वह दूसरे के दिलो - दिमाग में क्या चल रहा है सामने वाले की सूरत देखकर जान जाता था। राजा और उनकी दोनों बेटियों के मन में क्या - क्या उथल - पुथल चल रहा है वह जान चुका था। अतः अपने मामाजी के द्विधा भरे मनःस्थिति का निराकरण करने, सुलझाने के लिए अनुमति मांगी और मामा जी से अनुमति देकर कहा कि जो उचित हो करने के लिए कहा। एक दिन रात्रि में भोजन के बाद भिमाल दोनों बहनें बम्लाई और सम्लाई के साथ अपने गुरु को दिए वचन के बारे टहलते हुए बताया कि उसने अपने गुरु ( मुठवा / भूमका ) महारु भूमका(Maharu Bhumka) को वचन दिया हैं कि वह कुंवारा रहकर आजीवन अपने समुदाय की सेवा करेगा किन्तु वह अपने दाई दाऊ ( माता - पिता ) के आज्ञा का पालन करने लिए इस घर में दामाद (घर ज़माई) बनकर आया हुआ है। उसके सामने दो समस्या खड़ी हो गई है एक ओर उसे गुरु को दिया वचन पूरा करने है तो दूसरी ओर माता पिता के आज्ञा का पालन करना हैं। 

ऐसी विकट परिस्थिति में उसे अपनी विवेक से अपने जीवन मार्ग तय करने के लिए विवश होना पडेगा। एक दिन यानि 24 घंटे मे तीन पहर होते हैं। सुबह पहटिया मुर्गा की बाग देने के समय से लेकर मध्यान्ह तक और मध्याह्न से लेकर रात के भोजनांत तक इन दो पहरों को मैनें गुरु ( मुठवा-गोंडी शब्द ज़िसका हिन्दी शब्द गुरु होता है ) को और माता - पिता को देने की वचन दिया है और रात्रि के भोजनांत से लेकर सुबह मुर्गे की बांग देने के समय तक यह पति - पत्नी के सांसारिक जीवन बिताने की समय होता हैं जो कि अभी पति - पत्नी के सांसारिक जीवन बिताने की समय शुरू होता है वह अभी इसी वक्त बड़ादेव और अपने गुरु / मुठवा महारु भूमका का दर्शन करने के लिए डोंगरगढ़ और लांजीगढ़(Lanjigarh ), बैहर(behar) जा रहा है. तुम दोनों में से जो भी सुबह मुर्गे की बांग देने के समय तक उसके पीछे - पीछे आकर उससे जो मिल लेंगी वह उसी से शादी ( मड़मिग गोंडी शब्द ) करने तैयार हो जाएगा अन्यथा वह आजीवन कुंवारा ही रहेगा इतना कहकर वह उसी समय तेज़ गति से गिरोला गढ़ से डोंगरगढ़ की ओर निकल पड़े उसके पीछे पीछे वे दोनों बहनें बम्लाई और सम्लाई भी निकल पड़ी किन्तु भीमाल बहुत दूर निकल चुके थे। 

सर्वप्रथम भिमाल डोंगरगढ़ ठाना गये वहाँ के खोह में स्थित मड़ावी गोत्र के बड़ादेव का दर्शन कर आगे लांजी - बैहर की ओर मुठवा पोय महारू भूमका के दर्शन के लिए निकल गए। बड़े हिम्मत और साहस कर बम्लाई और सम्लाई डोंगरगढ़ पहुँची। वहां उन्होंने देव के दर्शन किया। बम्लाई दाई की हिम्मत जवाब दे गई और वह देव के पास कुछ दूरी पर खोह के पास बैठ गई किन्तु सम्लाई ( तिलकाई ) दाई भीमाल के पीछे पीछे आगे की ओर बढ़ती रही। बैहर मोहभाट्टा पहुँचकर भीमाल अपने माता - पिता के दर्शन किए और उसी समय उसके गुरु / मुठवा महारु भूमका संभू शेक मा - दाव(Mahadev) के दर्शन के लिए पेंच समदूर के पास गए थें इसलिए भिमाल को गुरु के दर्शन नहीं कर सकें। पेंच नदी के किनारे आलीकटटा कोट के संभू शेक मा दाव जहाँ गोंड समुदाय के पंचखण्ड धरती के महाराजा संभू शेक ( महादेव ) का ठाना हैं। वर्तमान में यह कर्माझीरी अभ्यारण्य के भीतर है। इसके बाद भिमालपेन आलीकटटा कोट जानें का निश्चय किया और वायु की गति से निकल गया कहा जाता है कि उनके गति वायु से भी अधिक तेज़ थी तंदरी जोग ( योग शक्ति ) के बल पर पल भर में कहीं से कहीं पहुंच जाया करते थे। 

लौगुर - बिगुर की पहाड़ियों को पार करते हुए वह रमरमा होते हुए गायमुख(गोंडी शब्द) वैनगंगा (उदगम स्थल वेनगंगा नदी) की जन्म स्थली आया और वहाँ से दाई अंबाराल के दर्शन लेने अंभोरा और बाद में भीमखोरी होते हुए कन्कनाड ( कन्हान ) नदी के किनारे किनारे पेंच नदी जाकर अपने मुठवापोय महारु भूमका का दर्शन किया। महारू भूमका के दर्शन करना इसलिए जरूरी था क्योंकि अपने माता - पिता के आज्ञा का पालन करते हुए उसे अपने मुठवापोय को दिए वचन से मुक्ति पाना था। 

उधर सम्लाई ( तिलकाई-tilkai dai ) दाई भी पीछे - पीछे चल रही थी वह रमरमा आनें के बाद रास्ता भटक गयी। वहां उसने रमरमा भूमका से उसने भीमाल के बारे में जानकारी प्राप्त की और तीव्र गति से अंबाराल दाई (Ambaral Dai) के पास पहुँची। अंबाड़ा से वह एक गाँव में पहुँची जहां उसे कोर्र आड़ी(गोंड़ी शब्द) ( मुर्गे की बांग ) सुनाईं दी। वह तुरंत समझ गयी कि भीमाल पेन से मिलने की समय समाप्त हो चुकी है। जिस भिमाल के माया - मोह जाल में वह अपने माता - पिता और राजपाठ, परिवार छोड़कर, त्यागकर उसके पीछे - पीछे चलीं आयीं थीं वह वायु की गति से दूसरे गाँव में जाकर सगा समाज की सेवा कर रहा हैं तो उससे प्रेरणा लेकर उसे भी समाज की सेवा क्यों नहीं करना चाहिए ? 

इसलिए सम्लाई दाई (samlai dai ) भी उसी गाँव में रहकर दीन - दुखियों की सेवा करना शुरू कर दी। मुर्गे की बांग ( कोर्र आड़ी ) सुनकर वह वही ठहर गई इसलिए गोंड समाज के लोगों ने उसे " कोराड़ी ” दाई के नाम से संबोधित किया। वैसे देखा जाए तो उसकी मुख्य नाम " तिलकाई ” था किन्तु बम्लाई(bamlai) की छोटी बहन सम्लाई के नाम से वह बचपन में जानी जाती थी। आज जिस गाँव में सम्लाई दाई की ठाना है वह गाँव कोराड़ी( koradi village Nagpur ) नाम से जाना जाता है वर्तमान में यह गाँव नागपुर - छिंदवाड़ा(chindwada) मार्ग पर वर्तमान में यह गाँव नागपुर - छिंदवाड़ा मार्ग पर नागपुर से 8 किलोमीटर की दूरी पर हैं । यहां नेशनल थर्मल पावर प्लांट(National Thermal Power Plant) हैं। 

Complete history of Kuldevi Bamlai Dai (Bambleshwari Devi) of the Gond kings of Dongargarh

आज भी लोग उसे गोंडो की देवी ( दाई ) कहते हैं। कुंवार और चैत्र माह के नवरात्र में यहाँ मेला प्रतिवर्ष लगता है। कुवारा भिवसेन ( गोंड देवस्थान ) उधर बम्लाई दाई थक हार कर डोंगरगढ़ में मड़ावी गोत्र के फड़ापेन पेनकड़ा के पास ही कुछ दूरी पर खोह के पास बैठ जातीं हैं जिस मड़ावी गोत्र के भिमालपेन हैं उसी गोत्र के फड़ापेन पेनकड़ा डोंगरगढ़ के पास स्थित है अतः उसी फड़ापेन ( बड़ापेन ) की छत्रछाया में बम्लाई ( बम्लेश्वरी ) दाई ने हमेशा - हमेशा के लिए शरण ले ली और सेवा करने की प्रतिज्ञा मन में ले ली। 

Complete history of Kuldevi Bamlai Dai (Bambleshwari Devi) of the Gond kings of Dongargarh

उसने मन ही मन में भीमाल को अपना पति ( मिद्दों ) मान ली थी इस तरह मड़ावी कुल की कुलवधु बन गयीं और प्रकृति शक्ति फड़ापेन से आशदान ( आशीर्वाद ) लेकर आजीवन गोंड समुदाय की सेवा में जुट गई। आज भी उसके ठाना डोंगरगढ़ में प्रतिवर्ष कुंवार और चैत्र माह के नवरात्र में यहाँ मेला लगता है। जिसमें लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

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