छिंदवाड़ा जिले में निवासरत गोंड लोकगीतों तथा प्राचीन गाथाओं में छिंदवाड़ा जिले के 3 गढो़ (किलों) का उल्लेख मिलता है - देवगढ़ किला (DevGarh Fort), हरियागढ़ किला (HariyaGarh Fort) और पाचालगढ़ किला (PanchalGarh Fort)।
इन तीनों किलों में पाचालगढ़ किले का अस्तित्व खोज का विषय है। परंतु देवगढ़ किला और हरियागढ़ किला आज भी अस्तित्व में है। हालांकि अब हरियागढ़ किले का अस्तित्व भी समाप्ति की ओर है। देवगढ़ किले (DevGarh Fort) का लगभग 450 वर्षों का समृद्ध इतिहास ऐतिहासिक दस्तावेजों में प्रामाणिकता से मिलता है।
इसी प्रकार लगभग 550 वर्ष पूर्व देवगढ़ की राजधानी रही हरियागढ़ का भी उल्लेख दस्तावेजों में मिलता है। भारत के बड़े-बड़े राज्यों एवं साम्राज्यों की दृष्टि हमेशा छिंदवाड़ा जिले के देवगढ़ - हरियागढ़ राज्य पर रही है।
इसका प्रमुख कारण था इस सघन वन क्षेत्र में प्रचुरता से पाए जाने वाले हाथी। जो तत्कालीन समय के युद्धों के लिए शासकों का प्रमुख सैन्य बल था। संभव है 600 वर्ष से पूर्व या उससे पहले हरियागढ़ को हथियागढ़ कहा जाता रहा होगा। जो कालांतर में हथियागढ़ से हरियागढ़ में, पश्चात वर्तमान में हिरदागढ़ हो गया।
इतिहासकार डॉ.सुरेश मिश्र द्वारा लिखित "देवगढ़ का गोंड राज्य" में वर्णित अलग-अलग विवरणों के आधार पर यह तथ्य उभरता है कि जाटवा शाह के पूर्व हरियागढ़ पर गौलियों का शासन लगभग 70 वर्ष रहा। इसके पूर्व वीरभान शाह गोंड शासक द्वारा तथा उसकी पांच पीढ़ियों पूर्व से हरियागढ़ पर शासन करते थे।
हरियागढ़ - (देवगढ़) के तुलोबा नामक शासक द्वारा सिद्धार्थ संवत्सर में संभवतः सन् 1518 ईस्वी में किन्हीं जोशी ब्राम्हण को अनुदान में गांव देने की सनद का भी उल्लेख किया गया है। तुलोबा संभवतः गौली वंश का था।
राजा जाटवा शाह ने सन् 1570 ईसवी के करीब हरियागढ़ के गौली शासक रनसूर घनसूर को अपदस्थ कर सत्ता हासिल की थी। उस वक्त हरियागढ़, देवगढ़ की राजधानी थी। 70 वर्ष पूर्व, याने 1505 ईसवी के करीब तुलोबा गौली शासक, हरियागढ़ में सत्तासीन हुआ। जिसने सन् 1518 ई. में ग्रामदान की सनद जारी की। संभव है रनसूर घनसूर उक्त तुलोबा गौली शासक के उत्तराधिकारी रहे हों।
तुलोबा ने सन् 1505 ई. में वीरभान शाह को अपदस्थ कर हरियागढ़ की सत्ता प्राप्त की होगी। गोंडी गाथा में यह भी उल्लेख मिलता है कि वीरभान शाह से पांच पीढ़ी पूर्व तक गौड़ों की सत्ता हरियागढ़ पर रही। अर्थात हरियागढ़ पर लगभग 150 वर्ष तक गौड़ों का राज्य रहा होगा।
अतः 1505 ई. से 150 वर्ष पूर्व सन् 1355 ई.से गौड़ों की सत्ता, हरियागढ़ पर रही होगी। सन् 1355 ई.के लगभग जिस गोंड राजा शरभशाह या सरबाशाह ने हरियागढ़ पर आक्रमण कर हरियागढ़ किले को जीता, वह निकटवर्ती पन्हालगढ़ अथवा पाचालगढ़ का शासक था तथा उसके पूर्व की पीढ़ियां वहां पन्हालगढ़/पाचालगढ़ पर निवास करती थी और आसपास क्षेत्र पर राज्य करती थी। जो गौंड़ी गाथाओं द्वारा प्रकट होती है। उपरोक्त निर्धारण का उद्देश्य यह है कि हरियागढ़ लगभग 800 वर्ष से अधिक पुराना प्राचीन गढ़ रहा है।
देवगिरी वर्तमान दौलताबाद (महाराष्ट्र) के यादव शासकों का सन् 1175 ई.से सन् 1318 ई. तक (बीच की कुछ अवधि छोड़कर) इस क्षेत्र पर राज्य रहा है। संभव है तब यादवों का कोई सामंत् हरियागढ़ में नियुक्त किया गया हो।
वर्तमान हिरदागढ़ पूर्व में हरियागढ़ क्षेत्र के आसपास गौलियों की बस्तियां निवासरत है। बैतूल जिले के खेरला राज्य में सन् 1365 ई. में राजा हरदेव का शासन था। इसके बाद बैतूल जिले के खेरला राज्य में सन् 1398 ई. से राजा नरसिंह राय का शासन सन् 1433 ईसवी तक रहा है। तब हरियागढ़ किला, खेरला राज्य द्वारा शासित 35 परगनों में से एक परगना था। लेकिन खेरला राज्य भी बहमनी राज्य के आधीन था।
हरियागढ़ किले के निचले हिस्सों में, खेतों में, किसानों द्वारा हल चलाते समय कभी-कभी कुछ सिक्के मिल जाते हैं, जो बहमनी राज्य के तांबे के सिक्के तथा तुकड़ी के रूप में चर्चित मालवा सुल्तान के तांबे के सिक्के मिलते हैं। सन् 1433 ईस्वी में मालवा सुल्तान ने खेरला राज्य पर आक्रमण कर राजा नरसिंह राय को मार डाला था और जीत कर विजयी हुआ। तब से खेरला राज्य के साथ ही हरियागढ़ किला भी मालवा राज्य के आधीन हो गया।
सन् 1480 ई. में गढ़ा मंडला के गोंड राजा संग्राम शाह द्वारा विजित 52 गढ़ और 57 परगनों में हरियागढ़ का उल्लेख मिलता है। तब देवगढ़, हरियागढ़ से संयुक्त था। राजा संग्राम शाह ने सन् 1480 ई. से सन् 1542 ईसवी तक, पश्चात उसके पुत्र राजा दलपत शाह ने 1548 ईस्वी तक, इसके पश्चात रानी दुर्गावती ने सन् 1564 ई. तक गढ़ा मंडला के शासक के रूप में राज्य किया।
इस प्रकार हरियागढ़ व देवगढ़ सन् 1480 ई. से सन् 1564 ईसवी तक मंडला के गोंड शासकों के आधीन रहा।
जाटवा शाह का शासन सन् 1570 ई. से सन् 1620 ईस्वी तक माना जाता है। सन् 1584 ईस्वी में राजा जाटवा शाह ने अकबर के एक अधिकारी मोहम्मद जामिन को आक्रमण कर मार डाला था। अतः यह तथ्य निर्विवाद रूप से माना जा सकता है कि जाटवा शाह सन् 1580 ई. के पूर्व से ही सेना संगठित करता रहा है। तभी अबुल फजल ने आईन-ए-अकबरी में उसके पास 2,000 घुड़सवार, 50,000 पैदल सेना तथा 100 से अधिक हाथी होने का उल्लेख किया है।
हरियागढ़ किले (HariyaGarh Fort) के मौजूदा अवशेष, दीवारों को अनगढ़ पत्थरों से, चूना गाद से जोड़कर बनाई गई हैं, जिनमें चूना गाद का प्लास्टर कहीं दिखता है और कहीं नहीं दिखता है। इनके निर्माण शैली से भी येे लगभग 1000 वर्ष प्राचीन प्रतीत होती हैं।
जाटबा शाह सन् 1570 ई. के आसपास हरियागढ़ से राजधानी देवगढ़ (DevGarh Fort) चले जाने के फल स्वरुप, कर्मचारी व सेना का भी स्थानांतरण हुआ होगा जिससे हरियागढ़ की जनसंख्या में भारी कमी आई। हरियागढ़ के पतन की रही सही कसर सन् 1584 ईस्वी में अकबर के एक अधिकारी मोहम्मद जामिन द्वारा हरियागढ़ पर आक्रमण कर, भयंकर मारकाट व लूटपाट करने से पूरी हो गई।
इस प्रकार 1000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन हरियागढ़ किला (HariyaGarh Fort) आज किस्से कहानी मेंं अपनी पहचान की बाट जोह रहा है। वर्तमान में हरियागढ किले की पहाड़ी पर चढ़ते समय कहीं-कहीं पत्थर की कुछ सीढ़ीदार संरचनाएं हैं।
कहीं-कहीं प्राचीन मोटी दीवार की टूटी हुई आंशिक संरचनाएं दिखती हैं। एक वृक्ष के नीचे देवी स्थान है, स्थानीय ग्रामीणों की मान्यता अनुसार वे काली मां व चंडी देवी की पूजा करते हैं।
किले के नीचे उतरने पर पहाड़ी के बीच में दो गुफाओं की संरचनाएं दिखती हैं, एक गुफा के सामने नंदी की खंडित पाषाण प्रतिमा है। जनश्रुति अनुसार इस गुफा का रास्ता देवगढ़ के किले (DevGarh Fort) को जाता है।
इतिहास के दस्तावेजों में उल्लेख ना होने के कारण हरियागढ़ किले (HariyaGarh Fort) का अतीत विस्मृत हो गया। परंतु हरियागढ़ (वर्तमान हिरदागढ़, जिला - छिंदवाड़ा) लगभग 1000 वर्ष से अधिक के गोंड राज्य का इतिहास अपने में समेटे हुए हैं।
देवगढ़ के गोंड राजवंश की शुरुआत महाभारतकालीन राजा विचित्रवीर्य से मानी गई है और 54 वीं पीढ़ी के जाटबाशाह आजानबाहु राजा हुए
source - unacademy mppsc mains exam 2023
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