माता राज राजेश्वरी मन्दिर.. के संबंध में मान्यता है की गोंड राजाओं की कुलदेवी माता राज-राजेश्वरी ने गोंड राजा निजाम शाह को सपने में दर्शन देकर इस स्थान पर स्थापित करने का आदेश दिया तत्पश्चात राजा निजाम शाह ने बिलासपुर के निकट रंगधर की पहाड़ी जिसे राजाधर की पहाड़ी भी कहा जाता है वहां से अपने वंश की कुलदेवी को लाकर इस स्थान पर स्थापित किया तभी से गोंड राजवंश की कुल देवी के रूप में माता राजराजेशवरी की स्थापना समाज के सभी वर्गों के लोग बड़े श्रध्दा भाव से करते हैं, मंदिर का निर्माण 1749 से 1779 के मध्य हुआ था. कहा जाता है की माता युद्ध का परिणाम युद्ध के पहले ही बतला देती थीं.
किवदंतियों के अनुसार राजा युद्ध में जाने के पहले माता के दरवार में पूजन करते थे और अपनी तलवार माता के चरणों में रखते थे यदि तलवार खुद उठकर राजा के हांथों में आ जाती थी. तो राजा की विजय निश्चित मानी जाती थी और यदि तलवार राजा के हाँथ में नहीं आती थी तो राजा की हार हो जाती थी, माता राज राजेश्वरी मन्दिर तंत्र क्रियाओं के लिये भी सर्व-श्रेठ माना गया है.
राज-राजेश्वरी मंदिर मंडला | Raj Rajeshwari Temple Mandla..
माता राजराजेश्वरी का मन्दिर मंडला के प्राचीनतम और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, यह मंदिर मंडला शहर के खंडहर किले के मध्य में स्थित है, माता राज राजेश्वरी का मन्दिर गोंड राजाओं की कुल देवी का मन्दिर है, मन्दिर का निर्माण गोंड राजा निजाम शाह ने 1749 से 1779 के मध्य करवाया था, 1832 में माता राज-राजेश्वरी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था, मंदिर के गर्भ गृह में माता राज-राजेश्वरी की प्रचीन प्रतिमा स्थापित है, गर्भ गृह के बाहर के ओर भी कई प्राचीन प्रतिमायें स्थापित है, मंदिर में भक्तों द्वारा मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है, यह मंदिर तंत्र क्रियाओं के लिये भी सर्व-श्रेठ माना गया है, साल भर मंदिर में धार्मिक कार्यक्रम होते रहते हैं, विभिन्न धार्मिक त्योहारों और नवरात्री में यहाँ भक्तों की अपार भीड़ रहती है.
राजराजेश्वरी मन्दिर की वास्तुकला | Architecture of Rajarajeshwari Temple..
माता राज राजेश्वरी का मन्दिर एक विशाल चबूतरे पर निर्मित है और मंदिर का शिखर गुम्बदाकार है, मन्दिर के सामने की ओर आर्चयुक्त झरोखे हैं और छत कंगूरे वाली है राज राजेश्वरी, मंदिर के मुख्य द्वार के सामने एक छोटे मंदिर में शिवलिंग स्थापित है, मन्दिर के गर्भ गृह में तीन छोटी-छोटी मढिया बनी हुई हैं.
जिनमें माता राज-राजेश्वरी विराजमान, माता महादुर्गा और माता महालक्ष्मीविराजमान हैं, मन्दिर के गर्भ के बाहर द्वार के एक ओर दीवार से लगी पुण्यसलिला माता नर्मदा की प्रतिमा और दूसरी ओर शहस्त्र बहु की प्रतिमा स्थापित है, गर्भ गृह के बाहर परिक्रमा पथ स्थापित है, परिक्रमा पथ के दोनों तरफ दीवार पर कई देवी देवताओं की प्राचीन प्रतिमायें हैं ये प्रतिमायें गोंड राजवंशीय कालीन हैं,
इनमें से अधिकांश प्रतिमायें अपने पूर्ण स्वरुप में विराजित हैं जिनका कोई भी अंग खंडित नहीं होने से धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से अनमोल धरोहर हैं, परिक्रमा पथ के अन्दर माता नर्मदा, सहस्त्र बाहू, ब्रम्हाजी, शिव पार्वती, गणेश जी, राम-जानकी, विष्णु जी, विराट रूप, दूल्हा देव, सूर्य देव और हनुमान जी की प्रतिमायें मुख्य हैं,
माता राज राजेश्वरी मन्दिर (Raj Rajeshwari Mandir Mandla) माता राज राजेश्वरी मन्दिर के सामने की तरफ व्यास नारायण मंदिर है माना जाता है की इस स्थान पर महर्षि व्यास ने तप किया था, मंदिर के पीछे देवी-देवताओं के चबूतरे, माता की चरण पादुकायें, शीतला माता मन्दिर है, मंदिर के पास कुछ प्राचीन मंदिर और किले के खंडहर स्थित हैं, मंदिर के पास ही राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह की जन्मस्थली के खण्डहर हैं और पास में ही किले का मुख्य बुर्ज भी है.
गोंड राजवंश की कुल देवी के रूप में माता राजराजेशवरी की पूजा समाज के सभी वर्गों के लोग बड़े श्रध्दा भाव से करते हैं, मंदिर का निर्माण 1749 से 1779 के मध्य हुआ था.
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