जयपाल सिंह मुंडा भारत के लिए जीता गोल्ड और आदिवासियों के लिए हक की लड़ाई

Jaipal Singh Munda won gold for India and fought for the rights of tribals

क्या आप जानते हैं कि 1928 के ओलंपिक में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय हॉकी टीम के कप्तान ने भारतीय संविधान को बनाने में अपना योगदान दिया था और आदिवासी अधिकारों के लिए भी लड़ते रहे थे?

जयपाल मुंडा तत्कालीन बिहार प्रांत के तकरा पहंतोली गांव में पले-बढ़े। ईसाई मिशनरियों के एक समूह ने बचपन में जयपाल की प्रतिभा, बुद्धिमत्ता और लीडरशिप क्वालिटीज़ को देखा और उन्हें रांची के सेंट पॉल कॉलेज में एडमिशन दिलाया, जहाँ टीचर्स ने उनके बेहतरीन हॉकी के हुनर को पहचाना।

#OxfordUniversity में पढ़ाई के दौरान उनका चयन यूनिवर्सिटी हॉकी टीम के लिए हो गया। जयपाल का जीवन हमेशा के लिए बदल गया जब उन्हें 1928 के एम्स्टर्डम #OlympicGames में भारतीय हॉकी टीम का नेतृत्व करने के लिए कप्तान चुना गया। भारतीय टीम ने उनकी कप्तानी में टूर्नामेंट में धूम मचा दी, लेकिन जयपाल ने खिलाड़ियों के बीच असंतोष के कारण फाइनल मैच नहीं खेलने का फ़ैसला किया। हालांकि, टीम ने यह मैच जीतकर ओलंपिक गोल्ड मेडल जीता।

1938 में उन्होंने स्वदेशी समुदायों के अधिकारों के लिए अपना व्यापक अभियान शुरू किया और बिहार से 'झारखंड' नाम के एक अलग आदिवासी राज्य की मांग उठाई। उन्हें सफलता मिली जब 1946 में वह बिहार के एक सामान्य निर्वाचन क्षेत्र से संविधान सभा के लिए चुने गए।

स्वतंत्रता के बाद भी वह आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ते रहे। 20 मार्च, 1973 का वो दुःखद दिन था जब जयपाल सिंह मुंडा का सेरेब्रल हैमरेज के कारण निधन हो गया। उसके बाद, बिहार से एक नया झारखंड प्रदेश बनाने के उनके सपने को साकार होने में 27 साल लगे।
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#UnsungHeroes #History

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