मां भगवती की 52 शक्तिपीठों में से प्रमुख गुप्त शक्तिपीठ शहर के भानतलैया स्थित बड़ी खेरमाई मंदिर का लिखित इतिहास लगभग 900 वर्ष पुराना है। लेकिन उसके पूर्व भी शाक्त मत के तांत्रिक और ऋषि मुनि दीर्घकाल से यहां शिला रूपी मातारानी की प्रतिमा की आराधना करते थे।शक्ति की तंत्रसाधना के लिए मन्दिर की ख्याति रही है। गोंड राजवंश से जुड़े होने के चलते यह मंदिर क्षेत्रीय आदिवासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, जो हर नवरात्र पर यहां जुटते हैं।
मां भगवती की 52 शक्तिपीठों में से प्रमुख गुप्त..
शक्तिपीठ शहर के भानतलैया स्थित बड़ी खेरमाई मंदिर का लिखित इतिहास गोंड काल का लगभग 900 वर्ष पुराना है। लेकिन उसके पूर्व भी शाक्त मत के तांत्रिक और ऋषि मुनि दीर्घकाल से यहां शिला रूपी मातारानी की प्रतिमा की आराधना करते थे। शक्ति की तंत्रसाधना के लिए मन्दिर की ख्याति रही है। गोंड राजवंश से जुड़े होने के चलते यह मंदिर क्षेत्रीय आदिवासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, जो हर नवरात्र पर यहां जुटते हैं। इस वर्ष भी माता के दर्शन व पूजन के लिए भक्तों व क्षेत्रीय आदिवासियों की भीड़ उमड़ रही है।
संग्रामशाह ने स्थापित की थी प्रतिमा..
मन्दिर ट्रस्ट के सदस्य अधिवक्ता आशीष त्रिवेदी ने बताया कि यह मन्दिर देवी के पुराणों में वर्णित 52 शक्तिपीठों में से एक गुप्त शक्तिपीठ है। मंदिर में पहले प्राचीन प्रतिमा शिला के रूप में थी जो वर्तमान प्रतिमा के नीचे के भाग में स्थापित है। उन्होंने बताया कि मान्यतानुसार एक बार गोंड राजा मदनशाह मुस्लिम सेनाओं से परास्त होकर यहां खेरमाई मां की शिला के पास बैठ गए, इनके शाशन के समय महमूद गजनवी के हमले मध्य भारत, गुजरात प्रदेशो समय होना शुरू हुए। पूजा के बाद उनमें नया शक्ति संचार हुआ और राजा ने मुगल सेना पर आक्रमण कर उन्हें परास्त किया। इसके बाद करीब 500 वर्ष पूर्व गोंड राजा संग्रामशाह ने राजा मदनशाह की उस विजय की स्मृति में यहां खेरमाई मढ़िया की स्थापना कराई थी।
गांव-खेड़ा की रक्षक है माता..
मन्दिर निर्माण के पहले के समय में गांव के पूरे क्षेत्र को खेड़ा कहा जाता था। प्रारंभिक समय मे गांव के क्षेत्र की देवी को खेड़ा माई कहा जाता था। खेड़ा से इसका नाम धीरे-धीरे खेरमाई प्रचलित हो गया। शहर अब महानगर हो गया है लेकिन आज भी मां खेरमाई का ग्राम देवी के रूप में पूजन किया जाता है।
सोमनाथ के कारीगरों ने बनाया मन्दिर..
मन्दिर प्रबंधन से मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान मंदिर पूर्व मंदिर की जगह प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर का निर्माण करने वाले शिल्पियों द्वारा निर्मित भव्य मंदिर है।
मंदिर में जवारा विसर्जन की परंपरा भी वर्ष 1652 की चैत्र नवरात्र में शुरू हुई थी। इस बार जवारा विसर्जन का 371 वां वर्ष है।
हाईटेक है मन्दिर की सुरक्षा..
सुरक्षा की दृष्टि से मंदिर में हाइटेक तकनीक अपनाई गई है। यहां 27 सीसीटीवी के द्वारा हर आने-जाने वाले पर नजर रखी जाती है। मंदिर में मुख्य पूजा वैदिक रूप से होती है। यहां दोनों नवरात्र की सप्तमी, अष्टमी और नवमी को रात में मातारानी की महाआरती की जाती है। जिसमें शामिल होने के लिए कई शहरों से लोग पहुंचते हैं। मंदिर के पुजारी के अनुसार नवरात्र के दिनों में यहां मां के नौ रुपों में श्रंगार किया जाता है। विसर्जन पर भव्य जवारा जुलूस भी निकाला जाता है।
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