राजा रामजी गोंड जी का जन्म भारत का वर्तमान मे निर्मित राज्य पत्र के "आसिफाबाद" में हुआ था। यह शहर के कामराम भीम जिले में आता है.
और वर्तमान में आसिफाबाद शहर कामाराम भीम जिले का मुख्यालय भी है।
एक भूला हुआ महान इतिहास, 1857 की क्रांति में तेलंगाना राज्य के प्रथम शहीद स्वतंत्रता सेनानी – "राजा रामजी गोंड मर्सकोले" – 9 अप्रैल, 1860
बहुत से लोग नहीं जानते कि यह जलियांवाला बाग नरसंहार से सालों पहले यहां भी इससे बुरी घटना घटी थी। एक बरगद के पेड़ पर एक हजार से ज्यादा गोंदो को फाँसी दी गई थी। इससे पहले गोंडो द्वारा की गई वीरतापूर्ण लड़ाई को याद करने से आंखों में आंसू आ जाते हैं।
सिकंदराबाद के निजाम को दी गई थी सिकस्त..
राजा रामजी गोंड का यह किस्सा काफी दिलचस्प है। सिकंदराबाद के निजाम आसफ जहां पंचम को अपने राज्य का विस्तार करना था। अपने राज्य के विस्तार के लिए गोंड राज्य में निजाम की बुरी नजर थी। निजाम, राजा रामजी गोंड को युद्ध में हरा कर उनके राज्य को अपने राज्य में विलीन करना चाहते थे.. और इसके लिए वह अपनी सेना को तैयार करने लगे। लेकिन इस खबर से राजा रामजी गोंड निकल गए और उन्होंने भी बर्खास्तगी की आशंका को भांपकर अपनी सेना को सामने से तैयार करने लगे। राजा रामजी गोंड ने भी अपनी सेना को गोंद युद्ध नीति के विवरण दिए थे।
आखिरकार वह दिन आ ही गया। निजाम ने अपनी सेना के साथ पूरी सेना के साथ गोंड राज्य पर हमला कर दिया। जवाबी कार्रवाई में राजा रामजी गोंड ने भी पूरी ताकत के साथ निजाम की सेना पर हमला बोल दिया। इस युद्ध में राजा रामजी और उनकी सेना ने गोंद युद्ध नीति से निजाम को बुरी तरह से हराया।
अंग्रेजों को भी दी थी एक बार हार: 1857 तक देश के कई सारे राजाओ को अंग्रेजों ने छल कपट से अपने राज्य में विलीन कर लिया था। तो कई राजाओं का मांडलिक बना दिया था। 1857 तक भारत के सारे राजा केवल गद्दी के राजा बन कर रह गए थे। उनके राज्य के कारभार का पुरा नियंत्रण अंग्रेजों के पास मे था। ब्रिटिश गोंड राज्य के राजा रामजी गोंड को भी अपना मंडली बनाना चाहते थे। वे नहीं चाहते थे कि ब्रिटिश भारत में उनका एक स्वतंत्र राज्य रहे। लेकिन राजा रामजी गोंड एक स्वाभिमानी राजा थे। वे भारत अपना स्वतंत्र राज्य रखना चाहते थे। अंग्रेजों ने काफी कोशिश की। उन्हें अपनी ओर खींचे, उन्हें हिलाया। लेकिन गोंड राज्य के राजा रामजी गोंड नहीं झुके। जब अंग्रेज़ों को लगता है कि राजा ऐसे दिखने वालों में से नहीं है। वे धन और अधिक जांगर देने की बात की। लेकिन गोंड राज्य के राजा रामजी गोंड नहीं माने।
रामजी गोंड ने अपने गोंड राज्य को संरक्षित करने के लिए ब्रिटिश भारत सरकार के खिलाफ एक छापामार अभियान लड़ा। इस क्षेत्र के ब्रिटिश सामंत, गोंड साम्राज्य पर कब्जा करना चाहते थे। रामजी ने ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ हथियार उठा लिए। उनकी सेना गोंड सैनिकों ने ब्रिटिश सेना को हरा दिया।
जब ब्रिटिश को लगता है कि राजा ऐसा करने वालों में से नहीं है। तो अंग्रेजों ने अपनी सेना को गोंड राज्य पर आक्रमण करने को कहा। जिसके बाद अंग्रेजों की सेना और गोंड राज्य की सेना के बीच युद्ध होने लगा। राजा रामजी गोंड और उनकी सेना ने गोंद युद्ध नीति को बड़ी ही समझ कर इस झड़प में इस्तेमाल किया और ब्रिटिश सेना को बुरी तरह हरा दिया। लेकिन हार मिलने के बाद भी ब्रिटिश सरकार चुप नहीं बैठी। उनकी सेना को राजा रामजी गोंड की सेना ने जिस तरह हरा दिया था। तो अंग्रेजों ने सीधी लड़ाई के बजाय नए रास्ते अपनाए। क्यूकी अंशों को सब मिल गया था कि, वे गोंड राज्य से सीधे युद्ध नहीं जीत सकते।
इसके बाद अंग्रेजो ने अपने सैनिक, मजदूर, अपने सैनिकों को अवैध रूप से प्रवेश कर राज्य को हथियाने की साजिश रची। लेकिन अंग्रेजों की यह नाकामी हुई। राजा रामजी गोंड ने अंग्रेजों के उन सभी सैनिकों को पकड़ लिया जो राज्य में बिना लाइसेंस के घुसे थे। कहा जाता है कि जिन सैनिकों को राजा ने पकड़ा था जो राज्य में बिना लाइसेंस के घुसे थे। उन सभी राजा रामजी गोंड ने मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार अपने मनसूबों पर पानी के संकट को देखकर काफी हताश हुई। बाद में उन्होंने गोंड राज्य को हड़पने के लिए और राजा रामजी गोंड को अपने वश में करने के लिए एक नए अधिकारी की नियुक्ति की।
राजा रामजी गोंड मर्सकोले जी का जन्म कब हुआ इसकी कोई विशेष जानकारी मौजूद नहीं है। राजा रामजी गोंड जी का जन्म भारत का वर्तमान मे निर्मित राज्य प्रमाणीकरण के "आसिफाबाद के निर्मल तालुका" मे हुआ था। रामजी गोंड आदिलाबाद के गोंड शासक थे। प्रामाणिक साम्राज्य वर्तमान के अदिलाबाद, निर्मल, उटनूर, चेन्नुरु, असिफाबाद और बस्तर के कुछ क्षेत्रों तक उनका अधिकार था। भारत में 1860 तक संयुक्त आदिलाबाद जिला गोंडवाना क्षेत्र का एक हिस्सा था।
सिकंदर के निजाम आसिफ जाही और ब्रिटिश हुकुमत, गोंड साम्राज्य पर कब्जा करना चाहते थे। गोंड बहुत आक्रामक व स्वाभिमान होने के कारण ऐसा कोई मौका नहीं दिया। रामजी ने ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ हथियार उठा लिए। उनकी सेना, जिसमें गोंड, कोलम और रोहिल्ला सैनिक शामिल थे। विद्रोह का मुख्य रूप आसिफाबाद में हुआ था। हालाँकि, 1857 से आदिवासियों का संघर्ष स्वशासन की उनकी आकांक्षा, साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा शोषण के खिलाफ़ अपने अधिकारों की सुरक्षा, उनकी अवज्ञा के खिलाफ़ दासता, और उनकी संस्कृति, परंपराओं और उनकी पहचान की रक्षा के लिए अस्तित्व उनके गत कर्तव्य के बारे में था।
गोंडों का शासन समाप्त हो गया और अंग्रेजों और निजाम का शासन शुरू होने के बाद उस समय के शासकों ने गोंडो पर भी अत्याचार किया। रामजी गोंड इस क्षेत्र की ओर यह जानने के बाद आया कि निर्मल में स्थित ब्रिटिश कलेक्टर निज़ाम की सेना के साथ गोंडो पर अत्याचार कर रहा था। गोंड स्मारक स्वतंत्रता संग्राम के संबंधों में एक महत्वपूर्ण क्षेत्र था। 1857 की शुरुआत में, जब सिपाही विद्रोह हुआ, गोदावरी के उत्तर में गोंड के इलाके में सिकंदराबाद राज्य के शासक - निजाम और ब्रिटिश रेजिडेंट के खिलाफ रामजी गोंड के नेतृत्व में विद्रोही थे। रामजी गोंड ने 1860 में रोहिला सरदारों की मदद से आदिलाबाद जिले में निर्मल में ब्रिटिश सैनिकों पर हमला किया।
अंग्रेजों को भी दी थी एक बार शिकस्त..
1857 तक देश के कई सारे दृश्यों को अंग्रेजों ने छल कपट से अपने राज्य में विलीन कर लिया था। तो कई राजाओं का मांडलिक बना दिया था। 1857 तक भारत के सारे राजा केवल गद्दी के राजा बन कर रह गए थे। उनके राज्य के कारभार का पुरा नियंत्रण अंग्रेजों के पास मे था।
जब अंग्रेजों को लगा कि, राजा ऐसे अव्यवस्थाएं मे से नहीं है। तो अंग्रेज़ों ने अपनी सेना को गोंड राज्य पर आक्रमण करने को कहा। जिसके बाद अंग्रेजों की सेना और गोंड राज्य की सेना के बीच शीशे लगे। राजा रणजी गोंड और उनकी सेना ने गुरिल्ला युद्ध नीति को बड़ी ही समझ कर इस झड़प में ब्रिटिश सेना को बुरी तरह से हरा दिया।
लेकिन हार मिलने के बाद भी ब्रिटिश सरकार चुप नहीं बैठी। उनकी सेना को राजा रामजी गोंड की सेना ने जिस तरह हरा दिया था। उनके सब लेकर अंग्रेजों ने सीधे युद्ध के बजाय नए रास्ते अपनाए। क्योंकि सब कुछ मिल गया था कि, वे गोंड राज्य को सीधे युद्ध से जीत नहीं सकते।
इसके बाद मजदूरों ने अपने सैनिकों को अवैध रूप से गोंड राज्य बनाकर राज्य को हथियाने की साजिश रची। लेकिन अंग्रेजों की यह नाकामी हुई। राजा रामजी गोंड ने अंग्रेजों के उन सभी सैनिकों को पकड़ लिया जो राज्य में बिना लाइसेंस के घुसे थे। कहा जाता है कि जिन सैनिकों को राजा ने पकड़ लिया था, जो राज्य में बिना लाइसेंस के घुसे थे। उन सभी राजा रामजी गोंड ने मौत के घाट उतार दिया था।
रोहिल्ला के साथ..
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु के बाद, नानासाहेब पेशवा, तांत्या टोपे और रावसाहेब अपनी सेना के साथ अलग हो गए। रोहिल्ला के शिष्य जो तांट्या टोपे के अनुयायी थे, महाराष्ट्र के औरंगाबाद, बीदर, परबानी, लेखांकन के आदिलाबाद और निर्मल में चले गए। उन्होंने अजंता, बसमत, लकूर, महताल और निर्मल को अपने संघर्ष का केंद्र बनाया।
जिले में ऐसे कई स्थान थे जहां हिंसक ब्रिटिश विरोधी मौजूद थे। दंगों में से, आदिलाबाद जिले के लिए प्रासंगिक रोहिल्ला थे। यह विद्रोह उत्तर में होने वाली घटनाओं के साथ लगाया गया था। कई सैनिक, मुख्य रूप से रोहिल्ला, जो उत्तर में सैन्य सेवा से भंग कर दिए गए थे, दक्कन में घुसपैठ की। वे जल्द ही रामजी गोंड के नेतृत्व में जुड़ गए।
2 साल तक प्रभावी गुरिल्ला युद्ध..
प्रारंभ में, रामजी गोंड पश्चिम में निर्मल-नारायणखेड़ और दक्षिण में गोदावरी नदी की सीमा के पूर्व में चेन्नूर से बड़े वन क्षेत्रों में दो साल से अधिक समय तक अपनी छापामार युद्ध तकनीकों के साथ सफल रहे।
निर्मल क्षेत्र में रोहिल्लाओं के नेता सरदार हाजी से मिलने वाले रामजी ने अंग्रेजी और निजाम सेना पर हमला किया, जो हमारे दुश्मन थे। हालाँकि उसके पास उचित हथियार नहीं थे, निर्मल ने पास की सह्याद्रियों और आतंक को धमकी दी। निर्मल कलेक्टर के अयोग्य निजाम की सेना ने हमला किया और उन्हें हर समय कर दिया। यह मामला कलेक्टर के माध्यम से शासक अफजल उद्दौला, उनके सिकंदर राज्य में रहने वाले डेविडसन के संज्ञान में आया। दमन के लिए बेल्लारी बल पहली लड़ाई की घोषणा के रूप में, शासकों ने रामजी के केंद्र के रूप में निर्मल के नेतृत्व में ग्रेब्रिटो से संघर्ष शुरू किया।
इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार अपने मनसूबों पर पानी के संकट को देखकर काफी निराश हुई। विद्रोह को सीखने के लिए, बेल्लारी में 47वीं राष्ट्रीय इन्फैंट्री लेकर आया। बाद में उन्होंने गोंड राज्य को हड़पने के लिए और राजा रामजी गोंड को अपने वश में करने के लिए एक नए अधिकारी की नियुक्ति की। जिसका नाम "कर्नल रॉबर्ट" था। ब्रिटिश सरकार ने गोंड राज्य का विलोपन करने के लिए रॉबर्ट को एक प्रमुख कर्नल जिम्मेदार ठहराया। चिन्नूर के थानेदार फतेह अली खान को आदिलाबाद के थानेदार की सहायता के लिए प्रतिनियुक्त किया गया था। ब्रिटिश सेना से हारने वाले कर्नल रॉबर्ट भी अच्छे से पेश किए गए थे। 'हिंगोली' रॉबर्ट्स के गैर जिम्मेदार सहायक बल की एक जॉन को ठेका देने सहित स्थायी सैनिकों को मार्चिंग सहित उपाय किए गए। कर्नल रॉबर्ट की कमान में इस बल को रामजी की सेना ने हरा दिया क्योंकि यह यहां के अधिक क्षेत्रों पर कब्जा करने में सक्षम नहीं था। ये सभी आधुनिक देरी के साथ आए और राम जी गोंड सेना पर हमला किया लेकिन गोंड ठाकुर योद्धाओं ने उन्हें दो बार हरा दिया। लगभग तीन साल तक रामजी गोंड ने अपनी शानदार प्रतिभा और गुरिल्ला युद्ध नीति से, यानी 1860 ई. रोहिल्ला और गोंडों का यह विद्रोह जारी रहा।
निर्मल में अंतिम युद्ध..
सुबह 8 अप्रैल 1860 को कलेक्टर को सूचना मिली कि राम जी गोंड और उनके अनुयायी निर्मल के पास हैं। उन्होंने सड़क से 15 कुरोह (निर्मल से) और चार कुरोह की दूरी पर एक पहाड़ के पास शरण ली है। जिस स्थान पर दुश्मन ने डेरा डाला था, वह आसानी से सुलभ नहीं था। स्थिति यह थी कि दो व्यक्ति मुश्किल से एक साथ से गुजर सकते थे और यहां तक कि भोजन और पानी जैसी दैनिक आवश्यकताएं भी उपलब्ध नहीं थीं। निष्ठा की भावना के साथ, वह (कलेक्टर) आगे बढ़े। अनकही कठिनाइयों का सामना करते हुए वह आया जहां शत्रुतापूर्ण बलों को दोपहर के समय रखा गया था और उन पर हमला किया। पहले, कुछ समय के लिए गोलीबारी का किया गया, जिसके बाद तलवारबाजी हुई। मारे गए व्यक्तियों की संख्या दुश्मन के पक्ष का पता नहीं था। विद्रोहियों में लगभग 200 रोहिल्ला और 300 गोंड, कोलम शामिल थे। विद्रोही रोहिल्ला और अन्य के 30 शव मिले। उनके बल के कुछ जमादारों ने नारायणखेड़ से आए रोहिल्लाओं के एक प्रमुख मियां साहब खुर्द के शव की पहचान की। इस मुठभेड़ में गोंडों का एक सरखील, जिसका नाम पता नहीं था, भी मारा गया। बड़ी संख्या में विद्रोही घायल हुए थे।
जहां तक सरकार पक्ष के हताहतों का संबंध है, दूसरे जिलादार, वारंगल के बल से संबंधित एक सिख और निर्मल में निर्दिष्ट सैफ-उद-दौला के समूह से संबंधित एक अरब को गोंड और रोहिल्ला क्रांतिकारियों ने गोली मार दी थी। सिख सेना का एक दाफर, एक अरब, दो सिंधी जवान और एक अन्य सैनिक घायल हो गए। नौकरी पाने की उम्मीद में कलेक्टर के जत्थे के साथ नौकर अली खान नाम का एक सोवर भी पहुंचा। जत्थे को हाजी अली नुसरत का घोड़ा मिला, जो घाव के कारण घोड़े से गिरकर भाग निकला। हालांकि फिल्मीकार की यादों को यादों में सफल कर रहे हैं, लेकिन उनके सरदार राम जी बच गए।
इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार अपने मनसूबों पर पानी फिरता देखकर काफी हताश हो गई। 9 अप्रैल को पूरी तैयारी करके कर्नल रॉबर्ट ने निर्मल शहर पर आक्रमण कर दिया। रामजी गोंड अंग्रेजों का आक्रमण बिल्कुल बेखबर था कि, ब्रिटिश सेना उन पर हमला करने वाली है। हमलों से बेखबर राजा रामजी की गोंड सेना को ब्रिटिश सेना ने चारों तरफ से घिनौनी हरकतें कीं। अब उनके पास अंग्रेजों के सामने सरेंडर के अलावा कोई कर ही नहीं बचा था।
ब्रिटिश कर्नल रॉबर्ट को लगा कि अब राजा उनके सामने सरेंडर कर देंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रामजी गोंड चारों तरफ से झगड़ते हुए भी, ब्रिटिश सेना के खिलाफ हथियारों के दावों और स्वाभिमान के साथ ब्रिटिश सेना के खिलाफ लगभग एक हजार रणबांकुरों को लेकर रामजी गोंड कर्नल रॉबर्ट की सेना पर टूट पड़े। उन्होंने कर्नल राबर्ट के सिर छाया से अलग कर दिया। पोर्टल्स की गल्तियाँ शुरू होने लगीं। तब तक बेलारी की ब्रिटिश सेना के पास पहुंच गई, निजाम की भी अतिरिक्त पहुंच गई। ब्रिटिश सेना के सामने राजा रामजी गोंड ज्यादा देर तक टिक नहीं पाए और वे हार गए।
लेकिन सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यह था कि राजा रामजी गोंड और उनके 1,000 सैनिकों को अंग्रेजों ने पकड़ लिया। रामजी को ब्रिटिश जज के सामने भेजा गया जहां अंग्रेजों ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई। उन्हें फांसी की सजा बरगद के नीचे सुनाई गई।
उसी दिन निर्मल उपनगर में अलापल्ली रोड पर मौजूद एक बरगद के पेड़ पर सभी गांव के निवासियों के सामने घाटसीट ले जाया गया और रामजी मर्सकोले और उनके साथ 1,000 गोंड सैनिकों को फाँसी पर लटका दिया गया।
ऐसा कहा जाता है कि, गोंड राज्य को ब्रिटिश भारत में विलेन करने के लिए कर्नल रॉबर्ट ने सिकंदराबाद के निजाम की सहायता ली थी और तो और निजाम ने भी अपनी हार का बदला लेने के लिए कर्नल रॉबर्ट की सहायता की थी।
"वेयी पुर्रेला मारी" ('नौजों का बरगद')
जिस बरगद के पेड़ पर राजा रामजी गोंड और उनके 1,000 गोंड सैनिकों को फाँसी पर लटका दिया गया था इसलिए इस बरगद के पेड़ को "वेयी पुरेला (खोपड़ी) चेट्टू" या "वेयी पुररेला मारी" के नाम से जाना जाता है। इसे आज भी हज़ारों हर्जाने वाले बरगद के नाम से जाना जाता है।
इतिहास में गुमनाम रामजी गोंड और उनके 1 हजार सैनिक..
रामजी गोंड ने अंग्रेजों-निजाम के खिलाफ महीनों तक आम सेना के साथ संघर्ष किया। 80 साल बाद जल-जंगल-जमीन के लिए लड़ने वाले कोमुरम भीम के लिए वे प्रेरणा बने। हालांकि 1,000 गोंडों को फांसी जलियांवाला बाग नरसंहार से बड़ी क्रूरता और पहली घटना थी। पर गोंड ठाकुरो का यह बदलाव अचरित ही हो रहा है।
जिला केंद्र में एक छोटी मूर्ति के अलावा कोई स्मृति चिन्ह नहीं है। वीरों का शहादत वाला पेड़ 1995 में तूफान के कारण जमीन पर गिर गया। जहां 14 नवंबर, 2007 को वेय्यी उरूला मेरी के पास एक स्तूप और 14 नवंबर, 2008 को चिंगेट, निर्मल में रामजी गोंड की एक मूर्ति बनाई गई।
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