गोंडो की विरासत महान भक्त धुर्व..विश्व का एक मात्र वंश ज़िनके नाम पर धुर्व तारा है..और धुर्व गोत्र बिलहेरी राजवंश मध्यप्रदेश में वर्तमान समय में मौजूद है..वेन शब्द गोंड़ी भाषा का शब्द है..जो कि धुर्व के वंश में हुए..
ध्रुव के वनगमन के पश्चात उनके पुत्र उत्कल को राज सिंहासन पर बैठाया गया लेकिन वह ज्ञानी एवं विरक्त पुरुष थे, अत: प्रजा ने उन्हें मूढ़ एवं पागल समझ कर राजगद्दी से हटा दिया और उनके छोटे भाई भ्रमिपुत्र वत्सर को राजगद्दी पर बिठाया। उन्होंने तथा उनके पुत्रों ने लम्बी अवधि तक शासन किया। उनके ही वंश में एक राजा हुए-अंग। उनके यहां वेन नाम का पुत्र हुआ।
वेन की निर्दयता से दुखी होकर राजा अंग वन को चले गए। वेन ने राजगद्दी संभाल ली। अत्यंत दुष्ट प्रकृति का होने के कारण अंत में ऋषियों ने उसे शाप देकर मार डाला। वेन की कोई संतान नहीं थी, अत: उसकी दाहिनी भुजा का मंथन किया गया। तब राजा पृथु का जन्म हुआ।
पृथु राजा वेन के पुत्र थे। भूमण्डल पर सर्वप्रथम सर्वांगीण रूप से राजशासन स्थापित करने के कारण उन्हें पृथ्वी का प्रथम राजा माना गया है।[1] साधुशीलवान् अंग के दुष्ट पुत्र वेन को तंग आकर ऋषियों ने हुंकार-ध्वनि से मार डाला था। तब अराजकता के निवारण हेतु निःसन्तान मरे वेन की भुजाओं का मन्थन किया गया जिससे स्त्री-पुरुष का एक जोड़ा प्रकट हुआ। पुरुष का नाम 'पृथु' रखा गया तथा स्त्री का नाम 'अर्चि'। वे दोनों पति-पत्नी हुए। पृथु को भगवान् विष्णु तथा अर्चि को लक्ष्मी का अंशावतार माना गया है।[2] महाराज पृथु ने ही पृथ्वी को समतल किया जिससे वह उपज के योग्य हो पायी। महाराज पृथु से पहले इस पृथ्वी पर पुर-ग्रामादि का विभाजन नहीं था; लोग अपनी सुविधा के अनुसार बेखटके जहाँ-तहाँ बस जाते थे।[3] महाराज पृथु अत्यन्त लोकहितकारी थे। उन्होंने 99 अश्वमेध यज्ञ किये थे। सौवें यज्ञ के समय इन्द्र ने अनेक वेश धारण कर अनेक बार घोड़ा चुराया, परन्तु महाराज पृथु के पुत्र इन्द्र को भगाकर घोड़ा ले आते थे। इन्द्र के बारंबार कुकृत्य से महाराज पृथु अत्यन्त क्रोधित होकर उन्हें मार ही डालना चाहते थे कि यज्ञ के ऋत्विजों ने उनकी यज्ञ-दीक्षा के कारण उन्हें रोका तथा मन्त्र-बल से इन्द्र को अग्नि में हवन कर देने की बात कही, परन्तु ब्रह्मा जी के समझाने से पृथु मान गये और यज्ञ को रोक दिया। सभी देवताओं के साथ स्वयं भगवान् विष्णु भी पृथु से परम प्रसन्न थे।[4]
बेबकूफ और वामपंथी गोंड इस पोस्ट से दूर रहे..
गोंडो का एक और गोत्र पुराणिक धुर्व से मिलता हुआ इससे..पहले कुबेर, कुशराम, पुलतस्य पर पोस्ट आ चुकी है..इसको तर्क लगाकर सोचे के गोंड के गोत्र ही प्राचीन युद्धाओ से क्यों मिल रहे है?
गोंडो के गोत्र पुराणिक ध्रुव से मिलते हुए.. गोंड ही प्राचीन वंश है..और आपस में एक दुसरे से लडते रहे..जिनको राक्षस और देव गोंड कहा गया.. हमको अलग विचारधारा में रखा है.. जिससे हम अपने गौरवशाली इतिहास को ना जान सकें..ये बात इतिहासकार जानते थे..और वो गोंडो के प्राचीन इतिहास से इतना डर गए के उन्होने हमारी किसी भी इतिहासिक कहानी को लोगो के सामने नही आने दिया..यहाँ तक के संग्राम शाह के इतिहास को भी इन्होने दबाया जो के मध्यकाल के सबसे शक्तिशाली राजा हुए..अभी भी वक्त है..अपने इतिहास को तर्क के अधार पर लिखना शुरू करो क्योंकि हमारे गौरवमय इतिहास को कोई नही लिखने वाला..और यदि लिखना ही था..तो हमारे इतिहास को दबाते ही क्यो?
एक और बात यदि अन्य लोगो क य़ा ज़ भी पुराण के योद्धा से मिल जाता है..तो अधिकतर इतिहासकार उस वंश से अपना प्रचार करने लगते है..जबकि गोंडो के गोत्र 100% पुराणिक नाम है..इसको इग्नोर करते है..
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