प्राचिन समय मे संपूर्ण भारत में बड़े बड़े युद्ध हुवे है। इनमे रानी हिराई आत्राम का शोर्य अविश्वनीया है.। बहुत से युद्ध अपनी पराक्रम से जीते हैं। शत्रु पक्ष को अपने युद्ध कौशल्य और रणनिती से युद्ध मैदान में बताया है। चांदागड की रानी हिराई आत्राम इनहोने युद्ध में अपनी कौशल्य और रणनिती का असाधारण परीचय दिया है। ऐसी शुरवीर रानी हिराई आत्राम का अगर इतिहास के पन्नो पर नाम ना हो तो इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है।
चंदागड के राजा बिरशा आत्राम से रानी हिराई की शादी हुई थी। राजा बिरशाहा आत्राम चंदागड की पहली पत्नी रानी हिराई से कन्या हुई, उनका कोई बेटा नहीं था।
दक्षिण गोंडवाना साम्राज्य का विशाल साम्राज्य भूभाग ,वेनगंगा , कन्हान नदी , आभोर के संगम , पवनार - वर्धा के संगम ,पेनगंगा तथा गोदवरी - इंद्रावती पामल गौतमी परलकोट अंधरी मूल नदियों के संगम- झरपट - इराई नदी के संगम में बसा अनेक किल्लो का चांदागढ़ राज्य था। दक्षिण गोंडवाना में विशाल गोंडवाना साम्राज्य के राज्य चिन्ह किल्ले महल पेन / पेनठाना प्रचुर मात्र में मिलते है ये पुरातत्व के एक धरोहर है। चांदागढ़ वैसे अति प्राचीन काल का गढ़ समूह - कोईतुर सगा लोगो का परीछेत्र है। वह कोईतुर गढ़ जिवियो का श्रद्धा और पवित्र आस्ता के ऐतिहासिक स्थान है. कोयापुनेमी सगा पूर्वजो की दाई ( माँ ) " आदिशक्ति " कलीकंकाली(महाकाली) का जन्म स्थान चांदागढ़ के झरपट नदी के किनारे हुआ था। कोयापुनेम यादराहूड राजा की यह कन्या थी। राजा यादराहुड ,यादमालपुरी नगरी के राजा थे , इस यादमालपुरी नगरी को कोकपुर बाद में चांदा कहा जाने लगा " प्राचीन कोय पूनम " इन आदिशक्ति " कलीकंकाली " को महाकाली " आय की रोन " कहा कर सम्बोधित करते है। इसी राज्य की स्थापना कोईतुर योद्धा अत्रामड़ा (आत्राम)कालापटाधारी शेर , अरामपित्ते कुल चिन्ह धारी भीम बल्लाडसिंग ने गोदावरी और इंद्रावती नदी के संगम के पास सिरपुर नामक स्थान में आत्राम राजवंश के ई.सन ८४२ में नीव डाली। किला और सैनिक छावनी नगर बसाया था। इस स्थान से सिरोंचा जूनगांव तक अपना राज्य विस्तार किया। राज्य विस्तार में ई. सन ९९५ ई में आदिया बल्लाडसिंग की तीसरी पीढ़ी ने सिरपुर से राजधानी - वर्धा और पेनगंगा नदी के संगम पर बल्लारशाह नामक नगर बसाकर राजधानी बनाई थी। ..राजधानी बल्लारशाह नगर वर्धा नदी के किनारे जब ई.स.१२४२ में खडक्या बल्लाडशा रहा थे। राजा खडक्या बल्लाडशा ने ई.सन १२८२ में किला और महल बनवाने नीव डाला। यह किल्ला ८ पीढ़ी तक ४ सौ साल में बनकर ई. सन १६९५ में पूर्ण हुवा। चांदागढ़ का राज्य विस्तार खाडक्या बल्लाडशा के राजकाल में - गढ़ चांदुर , माणिक गढ़ , माहुर गड , केलापुर और बैरागढ़ ,तलवरगढ , टीपागढ़ ,भामरागढ़ , खोब्रागढ ,सुरजा गड , जुन गांव , जोड़ा घाट , उटा नूर , जैनुर गढ़ो का विस्तार कर दक्षिण गोंडवाना साम्राज्य को शाश्वत बना दिया था। .
राजा बिरशाह आत्राम राजा किसानसिंग के बाद चांदागढ़ के गद्दी पर बैठा था। उसका विवाह मदनपुर होसंगाबाद के ढिल्लनसिंग मडावी के पुत्री राजकुमारी हिरई से हुआ था। तब राजकुमार २० वर्ष का युवक था। युवराज बिरशाह की युवरानी अत्यन्त बुद्धिमान कुशल रानी थी। राजा बिरशह की १ मात्र कन्या मानकुंवर थी। राजा बिरसह पुत्र के आभाव में राज गद्दी के वारिस के लिए चिंतित था। तब रानी हीरई ने राजा को पुत्र प्राप्ति के लिया दूसरे विवाह के लिया तयार की। राजकुमारी मानकुंवर का विवाह देवगढ़ के दुर्गशाह खण्डता से कर दिया था। देवगढ़ में नेकनाम खान , बिरशाह का छोटा भाई था। वह इस्लाम धर्म कबुल कर देवगढ़ राज्य के राजा बक्त बुलन्दशाह के यहा फौजदार था। चांदागढ़ के राजा बिरशाह की दूसरी शादी ,पुत्र प्राप्ति के लिया औंदीगढ़ , बाजागढ के मडावि जमींदार के कन्या से विवाह तय था। रानी हीरई ही अपने राजा की शादी करा रही थी। विवाह के अवसर पर विवाह मंडप पर अंगरक्षक हिरामन नामक सिपाही ने राजा का सर कलम कर दिया। इस घटना से क्षुब्ध हो रानी हीरई ने अपने देवर गोविंडशाह जो चन्दनखेड़ा का जमींदार था उस की संतान रामशाह को गद्दी पर बैठा कर उसकी सरश्रीका बन कर राज्य की सत्ता अपने हात में ले ली राजा बिरशाह का छोटा भाई चन्दनखेडा का हिस्सेदार था उसका पुत्र रामशाह की चांदागढ़ का वारिस बन कर रानी स्वयं राज काज सँभालने लगी। राजा विरशाह आत्राम के हत्या के बाद रानी जरा भी विचलित नही हुयी। अपने दरबारियों सेनापति के सहयोग से राज्य व्यवास्ता की पकड़ को मजबुत कर लिया। चांदागढ़ के सभी किलेदार को सूरजगढ़ , तलवार गढ़ , भमरा गढ़ , पलस गढ़ , बाजा गड , पौनी गढ़ , गडचिरोली, पौनर गढ़ और गड चांदुर , माणिक गढ़ , माहुर गढ़ , केलापूर , कलंब , जून गांव , सिरपुर, बल्लारशाह ,के किलो की सुरक्षा किलेदार सेना तथा खजाना की व्यववस्था को सभी जगह रानी का भ्रमण कर पूर्ण किया। .....
रानी हिरई का सुधर कार्य..
रानी हिरई महान वीर महिलावो में से एक थी उसने राज्य में उठने वाले अनेक विद्रोहों को अपने बुद्धि कौशल से समाप्त किया दुष्मनो से तो विजय हासिल कर सकते है लेकिन घर के निकट के परिवार के दुष्मन बन जाने पर कैसा निपटा जाए। यह रानी हिरई के विवेक ज्ञान युद्धा विद्या के कौशलता थी।
0 टिप्पणियाँ