धर्मांतरण का सच बता रहे आदिवासी: बस्तर, सरगुजा में जनजातियों के घरों से हटवाई देवी-देवताओं की तस्वीरें, राम की जगह नाम शब्द से प्रचारित किया जा रहा स्थान..

Tribals telling the truth of conversion: In Bastar, Surguja, pictures of gods and goddesses were removed from the homes of tribals, the place being promoted with the name of Ram.

छत्तीसगढ़(chattishgarh) में धर्मांतरण(धर्म परिवर्तन एक बड़ा सियासी मुद्दा है। ये मुद्दा भले ही आज की तारीख में चर्चा में अधिक है। लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि बीते 10-15 साल से धीरे-धीरे ये मुद्दा न सिर्फ प्रदेश के जंगली इलाकों में फला-फूला बल्कि बहुत से हिस्सों में छा चुका है।

वो आदिवासी(TRIBE) जिनसे छत्तीसगढ़ को देश और दुनिया में पहचाना जाता है। अब उनकी मान्यताएं, परंपराएं बदल रही हैं। यही बदलाव बस्तर से सरगुजा तक टकराव का कारण बन रहा है। सियासी लोग और सामाजिक संस्थाएं कहती हैं, धर्मांतरण हो रहा है। जनता ने जिन्हें सत्ता की कमान सौंपी है वो इस बात से इनकार करते दिखते हैं।

क्या है छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण का सच...

रायपुर में रविवार को जनजाति सुरक्षा मंच के कार्यक्रम में बस्तर(Baster), अंबिकापुर(Ambikapur), जशपुर(Jashpur), रायगढ़(raigarh), कांकेर(kanker), नारायणपुर(Narayanpur) के आदिवासी पहुंचे थे। इनकी मांग है कि धर्म बदल चुके आदिवासियों को आरक्षण के फायदे से अलग किया जाए। इस प्रक्रिया को डी-लिस्टिंग कहा जाता है। 

Tribals telling the truth of conversion: In Bastar, Surguja, pictures of gods and goddesses were removed from the homes of tribals, the place being promoted with the name of Ram.

यहां आए प्रदेशभर के आदिवासियों ने इस सवाल का जवाब दिया कि क्या आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण होता है ?

देवी-देवताओं की तस्वीरें हटवाते हैं...

बस्तर जिले से रायपुर(Raipur) आई बालमति नागेश ने बस्तर जिले के दूर-दराज के गांवों का हाल बयां किया। उन्होंने बताया, पिछले साल मेरे परिचय के कुछ आदिवासी परिवार ईसाई मान्यताओं के साथ जीने लगे। इसी तरह कई गांवों में ये पिछले कुछ सालों में हुआ है। ईसाई धर्म का प्रचार करने वाले लोगों से मिलते हैं, गरीबी दूर करने, स्वास्थ्य लाभ देने (चंगाई सभा ले जाकर), शिक्षा की सुविधा दिलाने की बात कहकर प्रलोभन देकर ईसाई बनाया गया है।

वो कहते हैं कि यदि किसी घर का एक सदस्य ईसाई मान्यताओं के साथ जीना शुरू करता है तो उसके पूरे परिवार और रिश्तेदारों को ईसाई बनने को कहा जाता है। इसके बाद देवी देवताओं की तस्वीरों को हटवाया जाता है। तुलसी चौरा को ताेड़ने, तुलसी के पौधे को हटाने जला देने, राम शब्द से नफरत करना और राम शब्द के स्थान को नाम शब्द से उच्चारित करने को कहा जाता है। ऐसा बहुत से ग्रामीण कर भी रहे हैं।

मेरे चाचा ईसाई बन गए..

कांकेर जिले के अमाबेड़ा गांव से आए आदिवासी युवक ने बिंसु राम मंडावी ने बताया कि हमारे इलाके में ईसाई धर्म का प्रचार होता है। कई आदिवासी समुदाय के लोग चर्च में प्रार्थना करने जाते हैं। मैंने देखा है कि गांव में कुछ लोग उन्हें फिर से हिंदू मान्यताओं से जीने को कहते हैं तो विवाद होता है, मगर बात थाने तक नहीं जाती, वो लोग नहीं मानते और ईसाई परंपरा के अनुसार जी रहे हैं। मेरे छोटे चाचा को भी वो लोग ले जाकर ईसाई बना दिए।

अंबिकापुर से आईं श्याम कुमारी कुजूर ने कहा, उन्हें भी ईसाई बनाने का प्रयास कुछ लोगों ने किया। उनसे कहा कि आप भी चर्च आया करें, जीवन के कष्ट दूर होंगे। मगर इसके जवाब में श्याम कुमारी ने उनसे कह दिया कि हम अपने पुरखों को नहीं छोड़ेंगे, उनकी बताई जीवनशैली में ही जीना है और उसी में हम खुश हैं।

मान्यताएं बदली जाती हैं नाम नहीं, इसी पर विवाद हैं।

अब प्रदेश में इसी बात पर विवाद है। रविवार को इसी वजह से रायपुर में डी लिस्टिंग सभा की गई। जिसमें मांग की गई कि जो धर्म बदल चुके हैं उन्हें सरकार से आदिवासियों को मिलने वाली सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए। इसी वजह से प्रदेश के कई गांवों में टकराव और हिंसा के हालात बने हैं।

रिकॉर्ड में ईसाई नहीं,लेकिन गांवों में चर्च बने हैं...

जनजाति सुरक्षा मंच के प्रदेश संयोजक और भाजपा से पूर्व विधायक भोजराज नाग ने कहा, प्रदेश में अधिकांश जगहों पर रिकॉर्ड यानी की सरकारी तौर पर कोई भी आदिवासी ईसाई नहीं है। यानी की वो आदिवासी जो मान्यताओं को बदलकर ईसाई की तरह रहते हैं, सरकारी रिकॉर्ड में उन्होंने अपनी जाति नहीं बदलवाई वो आदिवासी ही हैं। उनके नाम वही है।

धर्मांतरण करने वाले भी कोई डॉक्यूमेंट पर किसी का धर्मांतरण कर रहे हों, प्रशासन को जानकारी दे या ले रहे हों ऐसा नहीं है। बस्तर, नारायणपुर, सुकमा, कांकेर, रायगढ़ जिले के अंदरूनी गांव ऐसे हैं जहां पिछले कुछ सालों में चर्च बने हैं। वहां स्थानीय आदिवासी ही प्रार्थना के लिए जाते हैं। अब ये परिस्थिति भी अजीब है कि सरकारी रिकॉर्ड में कोई धर्मांतरण नहीं और चर्च किसके लिए बन रहे।

कोई आंकड़ा नहीं...

प्रदेश में धर्म परिवर्तन करने का कोई ठोस आंकड़ा मौजूद नहीं है। समय-समय पर सरकार की तरफ से कहा जाता रहा है कि धर्मांतरण को लेकर आंकड़ों में कोई जानकारी नहीं है, न ही कहीं जबरन धर्म परिवर्तन की कोई FIR दर्ज हुई है। ऐसा इस वजह से भी है क्योंकि धर्म को बदलने वाले और दूसरा धर्म मानना शुरू कर चुके लोगों ने इसकी जानकारी प्रशासन को दी ही नहीं है। 

सब विश्वास के जरिए हो रहा है। दूसरी तरफ जशपुर, रायगढ़ जैसे हिस्सों में घर वापसी यानी की दूसरे धर्मों में आ चुके आदिवासियों को मूल धर्म में लाने का अभियान चलता है। इसका भी कोई प्रशासनिक आंकड़ा नहीं है।

क्या कानून धर्म बदलने की इजाजत देता है, नियम क्या है ?

धर्म को बदलने का एक एफिडेविट बनवाना होता है। इसमें अपना बदला हुआ नाम, पुराना धर्म, और एड्रेस लिखना होता है।

फिर किसी राष्ट्रीय दैनिक अखबार में अपने धर्म परिवर्तन की जानकारी क विज्ञापन प्रकाशित करना होता है।

सरकारी तौर पर इसे दर्ज करने के लिए गजट ऑफिस में आवेदन करना होता है, कलेक्टर को जानकारी दी जाती है।

कानूनी तरीके से कोई भी अपना धर्म आसानी से बदल सकता है.

कानून कहता है कि हर किसी को अपनी पसंद के धर्म का चयन करने के लिए स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए।

कानून कहता है कि कोई भी अपनी मर्जी से अपना धर्म बदल सकता है, ये उसका निजी अधिकार है।

कानून ये भी कहता है कि किसी को डरा-धमका या लालच देकर धर्म परिवर्तन नहीं करा सकते।

क्या 2018 के बाद से बढ़ा है धरायपुर में आए आदिवासी समाज के लोगों और बस्तर, जशपुर, सरगुजा के ग्रामीणों ने बताया कि, धर्म बदलने, या धर्म छोड़कर नए धर्म की मान्यताओं के साथ जीने का ये काम कुछ दो-चार सालों में नहीं हुआ है। 

बल्कि प्रदेश के अस्तित्व जितना ही पुराना है। सैंकड़ों गांवों में चर्च सालों पहले बन चुके हैं। युवा पीढ़ी बच्चे नई धार्मिक मान्यताओं के बीच ही बढ़ रहे हैं। जो उनके पूर्वजों ने सालों पहले अपनाई, ग्रामीणों से चर्चा के बाद यह तसल्ली से समझा जा सकता है कि आदिवासी इलाकों में धार्मिक मान्यताओं के बदलाव का ये क्रम ताजा तो कतई नहीं है।

कोई जबरन धर्म परिवर्तन करवाए तो..

केंद्रीय स्तर पर, भारत में कोई कानून नहीं है जो जबरन ‘धर्म परिवर्तन के मामले में कार्रवाई की बात करता हो। 1968 में ओडिशा(Odisha) और मध्य प्रदेश(Madhya pradesh ने बल से ‘धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कुछ अधिनियमों को पारित किया। उड़ीसा के ‘धर्म परिवर्तन विरोधी कानून में अधिकतम दो साल की कारावास और जुर्माना लगाया गया जाता है।

तमिलनाडु(Tamilnadu) और गुजरात (Gujrat) जैसे अन्य राज्यों में इसी तरह के कानून पारित हुए, जिसने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 295 ए और 298 के तहत अपराध के रूप में इस पर कार्रवाई होती है। इन प्रावधानों के अनुसार जबरदस्ती ‘धर्म परिवर्तन के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को कारावास के साथ दंडित किए जाने का प्रावधान है। छत्तीसगढ़ में हमेशा प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ये बात मीडिया में कहते रहे हैं, कि कोई भी जबरन किसी का धर्म परिवर्तन नहीं करवा सकता, इसकी शिकायत मिलने पर हम सख्त कार्रवाई करेंगे।

अब जानिए जनजाति सुरक्षा मंच के बारे में..

यह संगठन देशभर में जनजातियों की संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण के मकसद से बनाया गया संगठन है। यह संगठन RSS की विचारधारा से जुड़ा संगठन माना जाता है। यह राजनीतिक संगठन नहीं है। लेकिन इसके कार्यक्रमों में अक्सर विश्व हिंदू परिषद भारतीय जनता पार्टी बजरंग दल के नेता नजर आते हैं। और इस संगठन का समर्थन भी करते हैं।

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