अतीक ने बेटे को बमबाजी से रोका तो शूटर बना:12वीं के बाद पढ़ाई के लिए विदेश जाना था; जानिए पूरी कहानी..

When Atiq stopped his son from bombing, he became a shooter: Had to go abroad for studies after 12th;  Know the full story..

उमेश पाल हत्याकांड में फरार चल रहे माफिया अतीक अहमद के बेटे असद और उसके गुर्गे गुलाम मोहम्मद को यूपी एसटीएफ ने झांसी में मार गिराया। असद ने ही उमेश को मारने की साजिश रची और फिर प्रयागराज में दिनदहाड़े अपने गुर्गों के साथ उनकी हत्या कर दी। असद लखनऊ के एक नामी कॉलेज से 12वीं करने के बाद पढ़ाई के लिए विदेश जाना चाहता था। लेकिन परिवार के आपराधिक रिकॉर्ड की वजह से पासपोर्ट क्लियर नहीं हो रहा था।

आइए जानते हैं असद अहमद और शूटर गुलाम मोहम्मद की कहानी, लेकिन उससे पहले एनकाउंटर की यह तस्वीर देखिए...

असद अहमद और शूटर गुलाम मोहम्मद की कहानी, लेकिन उससे पहले एनकाउंटर की यह तस्वीर देखिए..

अतीक के पांच बेटों में तीसरे नंबर का था असद..

माफिया अतीक के पांच बेटे हैं। असद तीसरे नंबर का था। उससे बड़े दो भाई उमर और अली जेल में हैं, जबकि दो छोटे भाई नाबालिग हैं और बाल सुधार गृह में हैं। असद अब तक फरार चल रहा था, लेकिन गुरुवार को एनकाउंटर में मारा गया।

12 साल की उम्र में फायरिंग की थी..

असद का पिछले ही हफ्ते एक वीडियो वायरल हुआ था। वह वीडियो 2017 का था। उस वक्त उसकी उम्र करीब 12 साल थी। वह एक शादी समारोह में हवाई फायर कर रहा था। साथ ही बैठे परिवार के लोग तारीफ में और चलाओ, और चलाओ कह रहे थे। यह हर्ष फायरिंग चकिया की ही एक शादी समारोह की थी। लोग बताते हैं कि अतीक अहमद अपने बच्चों को बचपन से ही फायरिंग की ट्रेनिंग देता था।

गुस्सैल इतना कि टीचर को पीट दिया..

प्रयागराज के बिशप जॉनसन से अपनी पढ़ाई की शुरुआत करने वाला असद उस वक्त अपनी क्लास का टॉपर स्टूडेंट था।​​​​​ लेकिन मिजाज का गुस्सैल था। उसका गुस्सा घर के साथ अक्सर स्कूल में भी सामने आता था। जब वह छोटा था तो स्कूल में एक रस्साकसी प्रतियोगिता में अपनी क्लास को रिप्रजेंट कर रहा था। उस रस्साकसी के मैच में उसकी टीम हार गई। असद को इतना गुस्सा आया कि उसने मैच में रेफरी बने टीचर को ही पीट दिया था। स्कूल प्रबंधन को माफिया के परिवार का इतना डर था कि उसने अपने टीचर की पिटाई की शिकायत थाने में भी नहीं की।

विदेश जाना था, परिवार के क्रिमिनल रिकॉर्ड के कारण पासपोर्ट क्लियर नहीं हुआ..

असद ने लखनऊ के एक नामी कॉलेज से 12वीं की परीक्षा पास की। वह पढ़ाई में ठीक था। उसने आगे कानून की पढ़ाई करने का फैसला किया था। इसके लिए वह विदेश जाना चाहता था, लेकिन अतीक-अशरफ और उसके दोनों बड़े भाइयों के आपराधिक रिकॉर्ड के चलते उसका पासपोर्ट क्लियर नहीं हो सका था।

दोस्त छोटे सांसद के नाम से जानते थे..

स्कूली टाइम से ही असद अफने अब्बू अतीक अहमद के नक्शे कदम पर चल रहा था। अतीक अहमद पांच बार शहर पश्चिमी से विधायक रहने के बाद वर्ष 2004 में फूलपुर संसदीय क्षेत्र से अपना दल से सांसद बना था। जिसके बाद से लोग उसे "सांसद जी" कहने लगे थे। उसी आधार पर अतीक के उत्तराधिकारी के रूप में अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे असद अतीक को उसके गिरोह के लोग "छोटे सांसद" के नाम से बुलाने लगे थे।

अतीक ने बेटे को बमबाज बनने से रोका..

असद अहमद घर के आसपास जब बमबाजी की घटनाएं सुनता और देखता तो उसे भी ये सब करने का मन करता। अतीक को बमबाजी पसंद नहीं थी। वह बम और बमबाजी के नफा-नुकसान को अपनी आंखों से देख चुका था, इसलिए उसने असद को इससे दूर रहने की हिदायत दी। इसके बाद बेटे का लगाव पिस्टल से बढ़ा और वह शूटर बन गया। अतीक ने उसके बाद उसे कभी नहीं रोका।

अतीक के जेल जाने के बाद बिजनेस संभालता था..

अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ के जेल जाने के बाद अतीक के बेटे परिवार का बिजनेस संभालते थे। पिछले एक साल में अतीक के दोनों बड़े बेटे उमर और अली को गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद असद ही कारोबार को देखता था। हालांकि कोई बड़ा फैसला होता तो वह अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन ही लेती थीं।

असद को उमेश पाल को मारने की जरूरत क्यों पड़ी..

STF के ही एक अधिकारी बताते हैं- अतीक जब भी राजनीति में अपने परिवार के किसी व्यक्ति को उतारना चाहता है तब एक खौफ पैदा करता है। जैसे खुद राजनीति में आया तब चांदबाबा हत्याकांड में उसका नाम आया। भाई अशरफ को राजनीति में लॉन्च किया तब उसका नाम विधायक राजू पाल हत्याकांड में आया। अब वह अपने बेटे असद को राजनीति में लॉन्च करना चाहता था, इसलिए असद ने उमेश पाल की हत्या की।

यह तो थी असद अहमद की कहानी। अब बात एनकाउंटर में ढेर गुलाम मोहम्मद की।

यह तो थी असद अहमद की कहानी। अब बात एनकाउंटर में ढेर गुलाम मोहम्मद की।

इस CCTV फुटेज में उमेश पाल की कार सुलेमसराय इलाके की एक गली के सामने रुकी। उमेश के गनर ने उतरकर गेट खोला। उमेश फाइल पकड़े फोन पर बात करते हुए नीचे उतरे। तभी उमेश पर गोलियां चलने लगीं।

गली के बगल में एक दुकान से हाफ जैकेट और टोपी लगाए शख्स निकलता है और पिस्टल निकालकर उमेश पर गोलियां चलाना शुरू कर देता है। उमेश उठकर गली में भागे तो वह भी उनके पीछे चला गया। कुछ देर बाद वापस लौटा। तब से उस शख्स का चेहरा किसी ने नहीं देखा। पुलिस का कहना है कि ये शख्स गुलाम मोहम्मद है।

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से गुलाम ने कानून की पढ़ाई की..

गुलाम प्रयागराज का रहने वाला था। उसने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की। गुलाम का पढ़ाई में ज्यादा मन नहीं लगता था, इसलिए उसने शुरुआती दिनों से ही नेतागीरी शुरू कर दी। सबसे पहले वो यूनिवर्सिटी में छात्र नेता बन गया। कई पार्टियों में अलग-अलग पद पर भी रहा।

यूनिवर्सिटी के मुस्लिम हॉस्टल में रहने वाले सदाकत खान से उसका मिलना-जुलना था। सदाकत ने भी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की है, पढ़ाई पूरी होने के बाद भी वह हॉस्टल में रहता था। उमेश हत्याकांड की साजिश उसके कमरे में ही रची गई थी।

2017 में हत्या करके जेल गया तब अतीक से पहली मुलाकात हुई..

गुलाम नगर निगम में ठेकेदारी करने लगा। वो चंदन सिंह नाम के ठेकेदार के साथ काम करता था। एक बार पैसों को लेकर बात बिगड़ गई। गुलाम ने सिविल लाइन्स में चंदन सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी। कुछ दिन बाद वो जमानत पर बाहर आ गया था। इसके बाद फिर ठेकेदारी में लग गया। छोटे-मोटे ठेके उठाने लगा। 2015 में उसकी शादी हो गई। गुलाम ने लव मैरिज की थी।

2017 में यूनिवर्सिटी में मारपीट के केस में अतीक अहमद नैनी जेल में बंद था। उसी समय गुलाम भी जेल में था। केस के सिलसिले में वो अतीक अहमद के पास गया। अतीक ने नैनी जेल में ही चंदन के परिवार को बुलाया और रुपए-पैसे लेकर सुलह करने के लिए कहा।

अतीक की उस समय तूती बोलती थी। आखिरकार चंदन के परिवार ने बात मान ली। उन्होंने गुलाम के खिलाफ शिकायत वापस ले ली। इसके बदले गुलाम ने अपने हिस्से की जमीन (जिस पर लॉज बना था) बेचकर चंदन के परिवार को पैसे दिए थे। साल 2018 में वो जेल से छूटकर बाहर आ गया।

भाई ने कहा, एनकाउंटर हुआ तो शव नहीं लेंगे..

जब गुलाम मोहम्मद का नाम उमेश पाल एनकाउंटर में सामने आया तो प्रशासन ने गुलाम के घर को अवैध बताकर बुलडोजर चलवा दिया। इस पर गुलाम के भाई राहिल हसन ने कहा कि उसने हमें रोड पर लाकर खड़ा कर दिया। वो भाई हैं, लेकिन भाई लायक कोई काम भी तो करना चाहिए था।

उसने हमारे परिवार का नाम कलंकित कर दिया। ऐसे में हमारे परिवार ने इस बारे में पहले से डिसाइड कर लिया कि एनकाउंटर होने की स्थिति में हम गुलाम का शव लेने नहीं जाएंगे।

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