एक थे लाल श्याम शाह, नेहरू जी भी मिलने मंच पर आये.. आदिवासियों के हक की मांग पूरी नहीं हुई तो पहले ही दिन संसद में सौंप आए इस्तीफा

One was Lal Shyam Shah, known as the messiah of the tribals.

एक थे लाल श्याम शाह, एक दिन के सांसद... आदिवासियों के हक की मांग पूरी नहीं हुई तो पहले ही दिन संसद में सौंप आए इस्तीफा

सिर्फ 10 दिन का रहा कार्यकाल

राजनांदगांव(rajnadgaon) के मानपुर-मोहला के चर्चित आदिवासी(Tribal) नेता थे शाह, आदिवासियों ने आज भी गांवों में लगा रखी है उनकी प्रतिमा

राजनांदगांव के वनांचल और महाराष्ट्र बॉर्डर(Maharstra Border) के गांवों में पहुंचें तो यहां लगी एक शख्सियत की प्रतिमाएं बरबस ही आपका ध्यान खींच लेती है। ये प्रतिमाएं हैं आदिवासी नेता लाल श्याम शाह(Lal Shyam Shah) की। 60 के दशक के सांसद। दरअसल, श्याम शाह राजनांदगांव के आदिवासी बाहुल्य मानपुर-मोहला(Manpur Mohalla) क्षेत्र से थे और 1962 में महाराष्ट्र के चांदा (अब चंद्रपुर) से सांसद चुने गए थे। तब मोहला-मानपुर भी इसी सीट का हिस्सा हुआ करता था। कुर्सी का मोह न था। मकसद था, आदिवासियों को उनका हक मिले।

सांसद बनने के बाद पहली बार संसद पहुंचे। आदिवासियों के हक की मांग उठाई। मांग नहीं मानी गई तो पद भी वहीं छोड़ आए। शाह का कार्यकाल यूं तो 10 दिन का रहा, लेकिन संसद में महज एक दिन के सांसद रहे। उनकी बेबाकी और संघर्षों की याद ताजा रखने के लिए ही ग्रामीणों ने ये प्रतिमाएं लगवाई हैं। मोहला क्षेत्र के पानाबरस गांव में जमींदार के घर 1 मई 1919 को जन्मे लालश्याम शाह चर्चित आदिवासी नेता के रूप में उभरे। वे आदिवासी और कमजोर वर्ग के लोगों के लिए खुलकर संघर्ष करते थे।

सांसद बनने के बाद वे संसद पहुंचे। वहां मांग उठाई कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र को अलग राज्य बना दिया जाए। इस मांग पर कोई सुनवाई नहीं हुई। इस पर उन्होंने पद का मोह नहीं किया और इस्तीफा देकर गांव लौट आए। इस्तीफे के साथ एक पत्र भी लिखा, जिसमें उन्होंने वजह बताते हुए कहा था- ‘आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र को गोंडवाना राज्य का दर्जा दिया जाए। जब नए राज्य सांस्कृतिक, भौगोलिक व ऐतिहासिक आधार पर बनाए जा रहे हैं तो हमारी गोंडवाना प्रांत(Gondwana Land) की मांग की उपेक्षा क्या घोर अन्याय नहीं है?’ 10 मार्च 1988 को श्याम शाह की मृत्यु हो गई। अलग राज्य की मांग पूरी तो हुई, लेकिन उनकी मृत्यु के 12 साल बाद। 

अवैध कटाई नहीं रुकी तो छोड़ दी थी विधायक की कुर्सी 

दरअसल, श्याम शाह ने राजनीति में कदम रखते ही अलग गोंडवाना राज्य(Gondwana Rajya) की मांग शुरू कर दी थी। 1951 और 56 के दौर वे अंबागढ़ चौकी(Ambagarh Chowki) विधानसभा से दो बार विधायक भी चुने गए। इस पद से भी उन्होंने इस्तीफा दिया था। जंगल में लगातार पेड़ों की अवैध कटाई होने पर श्याम शाह ने वन मंत्री को टेलीग्राम से इसकी सूचना दी थी। यहां तक मुख्यमंत्री से भी शिकायत की। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई तो विधायक का पद छोड़ दिया। उस दौर में पांच साल में इस एक सीट पर चार बार चुनाव कराने पड़े।

किसी पार्टी से नहीं जुड़े, निर्दलीय ही लड़ते और जीतते रहे चुनाव

शाह की लोकप्रियता महाराष्ट्र तक थी। वे अंतिम तक किसी पार्टी से नहीं जुड़े। निर्दलीय ही चुनाव लड़ते और जीतते थे। लोकप्रियता ऐसी कि मानपुर(Manpur), मोहला(Mohla), पानाबरस(Panabarash), बिजईपुर(Bijayipur) सहित आसपास के गांवों में आज भी इनकी प्रतिमा देखने को मिलती है। आदिवासी इन्हें मसीहा के रूप में मानते हैं। 1 मई 2019 को शाह की जन्म शताब्दी मनाई जाएगी। 

सीएम को लिखी चिट्‌ठी- टेलीग्राम पर फिजूलखर्ची नहीं करना चाहते

विधायक रहते हुए शाह ने वनों की अवैध कटाई के मुद्दे पर वन मंत्री को टेलीग्राम किया था। इस पर 15 रुपए खर्च हुए थे। कार्रवाई न होने पर उन्होंने सीएम व राज्यपाल को चिट्‌ठी लिखी और कहा था कि पहले टेलीग्राम में 15 रुपए खर्च करने पड़े और अब 35 रुपए। वे इस तरह फिजूलखर्ची नहीं करना चाहते। कार्रवाई न होने पर नाराजगी भी जताई। 

 जब शाह से मिलने नेहरूजी को मंच तक आना पड़ा 

श्याम शाह के नाती लक्ष्मेन्द्र शाह(Laxman Shah) बताते हैं, 1950-60 के दशक में रायपुर(Raipur) में कांग्रेस की राष्ट्रीय समिति का सम्मेलन हुआ था। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू(Pandit Jawaharlal Nehru) शामिल हुए थे। तब आदिवासी सेवा मंडल के अध्यक्ष रहे श्याम शाह करीब 30 हजार आदिवासियों की भीड़ लेकर पैदल ही रायपुर पहुंच गए थे। वे प्रधानमंत्री से मिलकर आदिवासियों के हक की बात रखना चाहते थे। भीड़ देखकर प्रधानमंत्री खुद आदिवासी सभा के मंच तक पहुंचे और श्याम शाह की बात सुनी। 

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