नृत्याचार्य को दरबारी बनाने के लिए छोटे घराने पर कर दिया था हमला..
रा जा मदन सिंह गोंडवंश के पहले राजा रहे, 1625 में शासन शुरू हुआ। अंग्रेजों ने 1911 में इसे प्रिंसली इस्टेट ( रियासत ) का दर्जा दिया। आज रायगढ़ रियासत को तात्कालीन राजाओं के शौर्य के साथ ही संगीत और संस्कृति के सृजन के लिए देश में पहचाना जाता है। रायगढ़ राजघराने के राजा घनश्याम सिंह के बेटे राजा भूपदेव सिंह के कार्यों की वजह से राजवंश को ख्याति मिली। संगीत की महफिल और कुश्ती के अखाड़े उनके कार्यकाल में शुरू हुए। पिता की परंपराओं को राजा चक्रधर सिंह ने आगे बढ़ाया। उसे लिपीबद्ध कर नृत्य की एक विधा से दुनिया को परिचय कराया। शहनाई बजाने आए थे उस्ताद बिस्मिल्ला खान राजा चक्रधर सिंह की तीन रानियां थीं। पहली वृंदा नवागढ़ , दूसरी सारंगढ़ और नीसरी कवर्धा से थीं। सारंगढ़ की राजकुमारी वसंत माला के साथ राजा चक्रधर सिंह का विवाह हुआ तो शहनाई बजाने उस्ताद बिस्मिल्ला खान रायगढ़ आए थे। राजकुमारी के परिवार के मेहमान भी बिस्मिल्ला खान के भाई बने और लड़की पक्ष की ओर से शहनाई बजाई थी।
रोचक किस्सा.. दीयागढ़ और मीलूगढ़ से आया संगीत
किसी मुगल दरबार में विशाखदत्त नाम के नृत्याचार्य और संगीत के विद्वान हुए। लैलूंगा में एक दुर्गम जगह दीयागढ़ होती थी। यहां के नरेश ने अपनी दो पुत्रियों को नृत्य की शिक्षा देने की शर्त पर विशाखदत्त को आश्रय दिया। कुछ वर्षों में नरेश की पुत्रियां नृत्य में पारंगत हुई। इस बात को पता पड़ोस के मीलूगढ़ ( अब मिलूपारा ) के नरेश को इसका पता चला। उन्होंने दीयागढ़ के नरेश से अपने बेटों के लिए उनका हाथ मांगा। शादी हुई तो राजकुमारियों के आग्रह पर विशाखदत्त मीलूगढ़ का राजदरबार का हिस्सा हो गए। राजा भूपदेव सिंह ने 18 वीं सदी के आखिर में मीलूगढ़ पर हमला कर यह क्षेत्र रायगढ़ रियासत में मिला लिया। इसके साथ ही गुरु विशाखदत्त रायगढ़ राज दरबार का हिस्सा हो गए। विशाखदत्त द्वारा रचित ग्रंथ नृत्यम रहस्यम भी दरबार में रखा गया। राजा भूपदेव ने अपने बेटे चक्रधर सिंह , समेत संगीत में रुचि रखने वालों को प्रशिक्षण दिलाना शुरू किया। चक्रधर सिंह ने तबला वादन शुरू किया। चक्रधर सिंह 1924 में राजा बने। उन्होंने विशाखदत्त के पुत्र शिवदत्त के साथ मिलकर संगीत और नृत्य की विधा को लिपीबद्ध करना शुरू किया।
राजा चक्रधर के ग्रंथ से बना कथक का रायगढ़ घराना
राजा चक्रधर सिंह ने नर्तम सर्वसम की रचना की। इसके साथ ही नृत्याचारों से मंत्रणा होती रही। लखनऊ, जयपुर और बनारस घराने के साहित्य का अध्ययन, इन घराने की गुरुओं से संगत कर वहां के संगीत को समझा और अपने ग्रंथ के कुछ बोल व मात्राओं को मिलाकर कथक का रायगढ़ घराना बनाया।
पंडित बिरजू महाराज के • पिता अच्छन महाराज और उनके भाई लच्छु महाराज रायगढ़ राज दरबार का हिस्सा थे। पंडित बिरजू महाराज लखनऊ वाले (इनाम: संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार - नृत्य -कथक,) का बचपन रायगढ़ में बीता। " स्वतंत्रता के बाद पंडित जी का परिवार लखनऊ चला गया
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