गोंडवाना राज्य चिन्ह के संस्थापक - यादव राय टेकाम (कछवा ) (157 AD)
गोंड जाति का टेकाम गोत्र होता है. जो के 7 देव पूजने वाले होते है, और कछवा को सबसे पवित्र जीव मानते है, यदि कछवा को कुछ भी हानि टेकाम गोत्र के पहुँचाते है..तो इनको पवित्र होना पडता है..गढ़ मंडला के राजाओ के वंश के स्तुति स्लोको का संग्रह गणेशनृप वर्णनम है..जो कि संस्कृत श्लोको का संग्रह ज़िसमें गोंडी शब्द टेकाम को कछवा कहा गया है..
टेकाम गोत्र (सूर्यवंशी शाखा, लांजीगढ़ )
गोंडी भाषा = टेकाम
संसकृत भाषा - कछवा,
English Language- Tortoise,
और नागवंशी इसलिए कहा गया है..क्योंकि मंडला के गोंड नागवंशी उपाधि धारक है..स्लीमेन .. इन गोंडो का पूज्य रावेन (नीलकंठ पक्षी ) है..
गोत्र मरावी (नागवंशी साखा) गोंडी भाषा - रावेन, संस्कृत भाषा - पुलतस्य, हिन्दी भाषा - नीलकंठ English Language- epithet of siva, वैज्ञानिक नाम : कोरेशियस बेन्गालेन्सिस) रोल ...
क्योंकि ऊस समय स्त्री के गोत्र कुल से उस राज्य को संचालित किया जाता था, मरावी गोत्रधारी नाग और नीलकंठ को पूज्य मानते है..और यादव राय टेकाम एक पटेल (टेकाम )का लड़का था ज़िसको नागवंशी गोंडो का राज्य उनकी वीरता को देखकर दिया गया..मंडला के नागवंशी गोंडो की एक साखा खेरागढ़ छत्तीसगढ़ का राज़परिवार है..जो के यादव राय के ससुर भुआराव के छोटे भाई के वंसज़ है..
यह उल्लेखनीय है कि परम्परा के अनुसार गढ़ा के शासकों का राजचिन्ह था हाथी को दबोचे हुए सींग वाला शेर यह चिन्ह भारत के प्रत्येक कोने पर मिल जायेगा जहाँ पर प्राचीन मंदिर हो दाक्षिंड भारत और मध्य भारत के अधिकतर मंदिर मैं ये चिन्ह दिख जाता है गोंडवाना सम्राजया के राजपूरोहित महेश ठाकुर मिश्र थे ज़िन्होने दरभंगा राज्य को बसाया मिथिला उत्तरप्रदेश के जागीरदार हुए तो उनके राज़चिन्ह हर जगह मिलना कोई बड़ीबात नही ये उनके लिए अजीब लगेगा ज़िन्होने गोंडवाना का इतिहाश ही नही पडा.
गढ़ मंडला वंश की उत्पत्ति
जनश्रुति के अनुसार, स्लीमैन (1844) राजा वेन ( श्रीमद भागवत, अध्याय पृष्ठ) के शरीर से उत्पन्न होने के कारण कुछ गोंड़ बेनवंशी गोंड़ कहलाए। इन बेनवंशी गोंड़ों में से एक थे, भुआराव, वे नागवंश थे। उनके पिता राजा कर्ण थे और माता नागवंश की थीं। पंचमढ़ी के तालाब के पास उन दोनों का सहवास हुआ। भुआराव के वंशज नागवंशी गोंड़ कहलाए। इस वंश के अंतिम राजा धारूशाह या धानुपंडा थे, जिनकी पुत्री के साथ यादव राय का विवाह हुआ। धानुपंडा तीन भाई थे। धानुपंडा या धारू शाह, धुरन्धर शाह और महीपत, तीनों भाईयों के बीच राज्य का बंटवारे में, धुरन्धरशाह को छत्तीसगढ़, महीपत को देवगढ़ और धानु पंडा को गढ़ा का राज्य मिला, जिसके अन्तर्गत मण्डला, रायगढ़, लांजी, हटा, कामता, खैरागढ़, धुर्राई, खदान, कवर्धा, पुरुलिया, चौरागढ़, और नरसिंहपुर थे।
जब कोई सम्राट बहुत सी रियास्तो पर विजय प्राप्त कर अपने सम्राज्य को बनाता है, और फिर अपनी एक पहचान के लिए एक राज़चिन्ह बनाता है, और उस राज्य के महलो, मंदिरो, तालाबो में वो राज्य चिन्ह ऊकेरा य़ा प्रिंट करवाया जाता है उस राजचिन्ह से उस सम्राजय़ा की पहचान होती है ज़िसे राज़ चिन्ह कहा जाता है, और भारतीय इतिहास में गोंडवाना ही मात्र एेसा राज्य है ज़िसका हाथी ऊपर सिंह राज़चिन्ह पाया जाता है, और गोंडो की 258 रियासतो के तालाबो, मंदिर, महल में ये राज्य चिन्ह पाया जाता है, ज़िससे हम उनके बेभव का अन्दाजा लगा सकते है, गोंडवाना का ये राज्य चिन्ह महाराष्ट्र, तिलंगाना, मध्यप्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगड़, तमिलनाड़ू, के मंदिरो और तालाबो में साफ, साफ देखा जा सकता है, बहुत से इतिहासकारों और गजेटियर में गोंडवाना राज्य चिन्ह का विस्तृत वर्णन है, प्रमुखता रामभरोसे अग्रवाल ने अधिक विस्तृत वर्णन किया इनके अनुसार इस राज्य चिन्ह को गोंडराज्य के संस्थापक य़ादव राय ने बनाया यादव का शाशन काल मेंथिल ब्राम्हण रुपनाथ ओझा के अनुसार 158 AD और स्लीमेन के अनुसार 382 AD बताया गया है.. इनका कार्यकाल दोनो इतिहासकारो ने 5 वर्ष माना है,
यादव राय टेकाम (158 AD) टेकाम गोत्र के पवित्र स्थल लाँझी गढ़(दक्षिण प्रदेश ) के जोधा सिंह पटेल के एक मात्र पुत्र..
गड़ा राज्य की स्थापना लाँझी के सेहल गांव निवासी जोध सिंह पटेल के पुत्र यादवराय ने 158 AD में एक किंवदंति के अनुसार मां नर्मदा ने यादव राय को स्वप्न देख कर सर्वे पाठक की सहायता से गढ़ा वंश की स्थापना हेतु आदेशित किया जिससे प्रेरणा लेकर उसने गढ़ा की राजकुमारी रत्नावली मरावी(नागवंशी) से विवाह किया। और 102 AD से लेकर 400 AD तक लगभग मातृसत्तात्मक युग था ज़िसमें माता के वंश पर ही वंश चलता था, उस समय का सतकरनी वंश इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. और उसी परंपरा के अनुसार यादव राय की आंगे की पीडी ने अपने माँ के कुल से मरावी राज्य को चलाना सही समझा..
तदुपरांत गढ़ा वंश की नींव डाली..
गढ़ा वंश के संस्थापक के रूप में यादव राय की पुष्टि 'रामनगर शिलालेख' और 'गढेशनॄपवर्णनम्' के उल्लेख से होती हैं इसी वंश के बाद में पुलस्त्य वंशी संग्राम शाह जैसे प्रतापी शासक हुए वहीं इसी साम्राज्य में वीरांगना दुर्गावती भी हुई। और पुलतासी मरावी गोत्र का गंडचिन्ह है..ज़िसे नीलकंठ कहा जाता है..
नोट - राज्य चिन्ह गोंड की गोत्र व्यवस्था से अलग होता है, गोंडी भाषा टेकाम शब्द को संस्कृत में कच्छवा बोला जाता है, और यादवराय की जानकारी गणेशनृपवर्णनम संस्कृत ग्रंथ से मिलती है, ज़िसमें कच्छवा क्षत्रिया नाम से संबोधित किया गया है ना कि राज़पूत, और लाँझी गढ़ के गोंड सूर्यवंशी पदवी धारक है रामभरोसे अग्रवाल की गोंड जाति का सामाजिक अध्यन के अनुसार जब यादवराय जंगल में शिकार करने के लिए निकले उन्होने देखा के किस तरह एक सिंह अपनी बुद्धि का उपयोग कर एक हाथी के ऊपर सवार है और हाथी आकार में तीन गुना बड़ा होते हुए भी असमर्थ है, ईसी बात को ध्यान में रखते हुए, यादवराय ने अपने हाथी जैसे विशाल सम्राजय की पहचान के लिए हाथी ऊपर सिंह का राज्य चिन्ह बनाया गया ज़िसे (गजसोडूम) भी बोला जाता है, इस राज्य चिन्ह की उत्पत्ति का समय 158 AD मानना सही होगा क्योंकि मैथिल ब्राम्हण उनके राज़पुरोहित रहे है और इस राज्य चिन्ह की प्रमाणिकता का यह सबसे बड़ा कारण है. गोंडवाना राज्य से पहले सम्राट अशोक का राज्य चिन्ह मिलता है जो अब भारतीय मुद्रा में अंकित है, ब्रिटिशो का भी राज़ चिन्ह था, मगर अकबर और अन्य सम्राजयो के राज्य चिन्ह मंदिरो और मसज़िदो में क्यो नही मिलते एेसा क्यो🤔
इब्राहिम लोधी के दिल्ही सल्तनत के समान ही गोंडवाना राज्य था भारत मैं मध्यकाल मैं हिन्दू राज्यो मैं गोंडवाना ही सबसे बड़ा राज्य था जब तक संग्राम शाह जीवित रहे किसी मुगल अक्रांता की औकात नही थी के वो संग्राम शाह के राज्य पर हमला करदे संग्राम शाह का राज्य अपने आप मैं एक स्वतांत्र सरकार थी भारत के एक मात्र सम्राट ज़िन्होने सोने,चांदी ,पीतल ,तांबा के सिक्के जारी किये इतिहाश में ऐसे राजा का इतिहाश को दबाया गया आखिर क्यो ? क्या वो इतिहासकार मुगलो के लिए बफादार थे इनको इतना बढा गोंडवाना सम्राजया नही दिखा मगर मुगलो के गुलामो के लिए तारीफ के बांध बना दिये जो के जमता नही क्योंकि ये 800 वर्ष मुगलो के गुलाम रहे है..इनका शोसण मुगलो ने दिल से किया है..ये इतने डरपोक थे के कोई भी अफगानी आकार मंदिरो को तोड़ जाता था..मगर गोंडवाना में मंदिर मध्यकाल में ही सबसे ज्यादा बनाये गए..संग्राम शाह ने दिल्ही के तोमर वंशजो को गोंडवाना में शरण दी और उनके ग्राम बसाये जबकि अन्य राज्य दिल्ली सल्तनत से डरी हुई थी.. आपको बता दे कि गोंडवाना से पहले राज़स्थान पडता है..और इन तोमर राजपुतो को रज़िस्थान के गुलाम राजाओ ने शरण क्यों नही दी? और आज ये राज़िस्थानी हम गोंडो के इतिहास को चुरा रहे है..शर्म करो बे..
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