मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, विदर्भ महाराष्ट्र, तेलंगाना, उत्तरप्रदेश का जलालाबाद के महाराजा दलपति शाह गौंड की सुन्दरता का वर्णन महारानी दूर्गावती और उनकी सहेली रामचेरी ने किया जो के इस प्रकार है

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, विदर्भ महाराष्ट्र, तेलंगाना, उत्तरप्रदेश का जलालाबाद के महाराजा दलपति शाह गौंड की सुन्दरता का वर्णन महारानी दूर्गावती और उनकी सहेली रामचेरी ने किया जो के इस प्रकार है

पड़ाव में पहुँचने के पहले दुर्गावती ने पीछे मुड़कर देखा। दृश्य ओझल हो चुका था। पीछे - पीछे लगभग दौड़ती हुई रामचेरी चली आ रही थी। एक पेड़ की छाया में खड़ी होकर दुर्गावती पूरे घटनाक्रम को सोचने लगी। रामचेरी ने पास आकर हिलाया , “ जागो राजकुमारी , जागो ! " 

दुर्गावती : क्या सो रही हूँ ? 

रामचेरी : तो क्या सचमुच जाग गई हो ? 

दुर्गावती : ऐसा क्यों कहती हो ? 

रामचेरी : दलपति शाह गढ़ा राज्य के महाराज हैं। वे तुम्हें तब तक अपलक देखते रहे जब तक तू दिखी ! पता नहीं आगे का भविष्य कैसा है ? 

दुर्गावती : क्या सच में हमारी भेंट महाराज दलपति शाह से ही हुई है? 

रामचेरी : तुम तो मिलकर आई हो। उनका अश्व क्यों नहीं ले लिया ? वे भी तो पहुँचाने को तैयार थे। 

दुर्गावती: धत् ! एक घोड़े में भला दो लोग कैसे बैठेंगे ? • 
रामचेरी: किंतु वे तो तैयार थे। 

दुर्गावती : मुझे स्वप्न जैसा लगता है। जैसे कोई अनूठा स्वप्न देखने से शरीर की दशा होती है, वैसी ही मेरी दशा हो रही थी। मुझे पता नहीं चला, कि मैं पसीना पसीना क्यों हो गई ? 

रामचेरी: आज मुझे पता चला कि तू भी डरना जानती है

दुर्गावती : नाहर को सामने देखकर मैं नहीं डरी, किंतु सामने गढ़ाराज्य के महाराज को देखकर मेरा पूरा शरीर काँप गया

रामचेरी: लगता है, यह डर का नहीं बल्कि लज्जा का वेग था

दुर्गावती : न तो कोई डर था, न कोई लज्जा की बात, किंतु देखने मात्र से दिल - दिमाग काम नहीं कर रहा था। इतना आदर्श पुरुष मैंने पढ़ा तो है, किंतु देखा नहीं। कल्पना से परे श्रेष्ठ पुरुष का सामने प्रकटीकरण क्या यही दशा करता होगा ? 

रामचेरी : तू अनुरक्त हो चुकी है। 

दुर्गावती: क्या इसे ही आकर्षण कहते हैं ? मुझे लगता है, उनके सामने मेरी सारी अकड़ निकल गई। ऐसे पुरुष सिंह के सानिध्य में नारी अपना व्यक्तित्व गढ़ती है। 

रामचेरी : तू कम, दलपति शाह अधिक आकर्षित थे। तू तो चल रही थी। चेतना थी, पर वे तो शाश्वत अचेत थे। न एक पग आगे बढ़ सके, न एक पग पीछे। नदी की तरह वहीं पर अपना सारा अस्तित्व लेकर जम गए । 

दुर्गावती : नदी की तरह क्या तात्पर्य ? 
रामचेरी : पगली मत बनो । यह कहानी तो तुमने ही सुनाई थी। 
दुर्गावती : ( पीछे देखकर ) कब ? • 

रामचेरी : पीछे मत देखो। वे तुम्हारा पीछा नहीं कर सकते । न उन्हें इतनी जल्दी है और न तुम्हें होनी चाहिए। पर मुझे लगता है, वे तुझे पाने के लिए प्रयास अवश्य करेंगे और एक दिन तुमको अपने घोड़े में बिठा ले जाएँगे, उस समय तू कुछ न बोल सकेगी। 

दुर्गावती : बहुत बोलती है तू। 

रामचेरी : पड़ाव के सैनिक आ रहे हैं। दोपहर होने को है । आज की पूजा सफल रही। अब पेट पूजा। 

दुर्गावती ने पुनः एक बार उस गली की ओर देखा जिस गली से होकर आई थी। 
post credit - शंकर दय़ाल भारद्वाज 

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