Mahakal Lok: क्या महाकाल लोक में मूर्तियां गिरने की वजह वास्तु दोष?: जानकार बोले- दक्षिण में नंदी द्वार बनाया, ये परंपरा नहीं थी; विद्वानों से सलाह नहीं ली

Mahakal Lok: क्या महाकाल लोक में मूर्तियां गिरने की वजह वास्तु दोष?: जानकार बोले- दक्षिण में नंदी द्वार बनाया, ये परंपरा नहीं थी; विद्वानों से सलाह नहीं ली

28 मई 2023 रविवार शाम को उज्जैन शहर में आंधी आई और बारिश होने लगी। बारिश ने उस दिन भले ही लोगों को भीषण गर्मी से राहत दिलाई हो, लेकिन बारिश से पहले बने मौसम ने महाकाल लोक की सूरत बिगाड़ दी। कॉरिडोर में स्थापित 7 सप्तऋषियों में से 6 मूर्तियां आंधी से उखड़ गईं। तीन दिन बाद महाकाल लोक कॉरिडोर के नंदी द्वार का कलश गिर गया। नीचे से गुजर रहे लोगों की जान बाल-बाल बची।

ग्राउंड रिपोर्टक्या महाकाल लोक में मूर्तियां गिरने की वजह वास्तु दोष?:जानकार बोले- दक्षिण में नंदी द्वार बनाया, ये परंपरा नहीं थी; विद्वानों से सलाह नहीं ली

28 मई 2023 रविवार शाम को उज्जैन शहर में आंधी आई और बारिश होने लगी। बारिश ने उस दिन भले ही लोगों को भीषण गर्मी से राहत दिलाई हो, लेकिन बारिश से पहले बने मौसम ने महाकाल लोक की सूरत बिगाड़ दी। कॉरिडोर में स्थापित 7 सप्तऋषियों में से 6 मूर्तियां आंधी से उखड़ गईं। तीन दिन बाद महाकाल लोक कॉरिडोर के नंदी द्वार का कलश गिर गया। नीचे से गुजर रहे लोगों की जान बाल-बाल बची।

दो घटनाओं के बाद 900 करोड़ की लागत वाले महाकाल लोक के निर्माण को लेकर सरकार पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि उज्जैन में संकट हरण महाकाल की अनुमति के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता फिर अचानक ये अनहोनियां क्यों हो रही हैं? ये भी सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार ने वास्तु देखे बिना ही कॉरिडोर का निर्माण करवाया है? इस कारण से ये घटनाएं हो रही हैं।
उज्जैन पूरी दुनिया में ज्योतिष का केंद्र है। यहां की गणनाओं को सर्वश्रेष्ठ और सटीक माना जाता है। इस कारण हमारी उत्सुकता बढ़ी और इसका जवाब लेने हम महाकाल लोक पहुंचे। यहां के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यों और वास्तुविदों से बात की। आइए एक-एक कर सभी के जवाब सुनते हैं और जानते हैं कि क्या वाकई महाकाल लोक में कोई वास्तु दोष है?

सबसे ज्यादा डैमेज दक्षिण दिशा में हुआ

महाकाल लोक में चार द्वार बनाए गए हैं पिनाकी, शंख, नंदी और नीलकंठ। इनमें से नंदी और नीलकंठ मुख्य द्वार हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि महाकाल लोक की शुरुआत ही इन्हीं द्वारों से होती है। दरअसल, महाकाल का मुख दक्षिण दिशा की ओर है। महाकाल लोक की समाप्ति इसी मंदिर पर होती है। नंदी द्वार महाकाल मंदिर के ठीक सामने बना हुआ है जो दक्षिण दिशा में है। नंदी द्वार के बगल से ही पश्चिम दिशा में नीलकंठ द्वार है। नीलकंठ द्वार के लिए बेगमबाग से और नंदी द्वार के लिए त्रिवेणी संगम से रास्ता है।
नंदी द्वार के ऊपर आजू-बाजू दो बड़े नंदी विराजमान हैं। यह मार्बल से बना है। दीवारों पर चांदी का वर्क किया है। द्वार के एंट्री पॉइंट पर खड़े होते ही आपको सामने लोक के 108 स्तंभ दिखाई देंगे। जो आपको महाकाल मंदिर तक लेकर जाएंगे। इन स्तंभों पर भगवान शिव के नटराज स्वरूप की अलग-अलग मुद्राओं को उकेरा गया है। महाकाल पथ में 25 दीवारों पर करीब 52 और सप्तऋषि पर 28 म्यूरल (दीवारों पर कलाकृति) बनाए गए हैं। पूरे कैंपस में कुल 81 म्यूरल बनाए हैं।

28 मई 2023 रविवार शाम को उज्जैन शहर में आंधी आई और बारिश होने लगी। बारिश ने उस दिन भले ही लोगों को भीषण गर्मी से राहत दिलाई हो, लेकिन बारिश से पहले बने मौसम ने महाकाल लोक की सूरत बिगाड़ दी। कॉरिडोर में स्थापित 7 सप्तऋषियों में से 6 मूर्तियां आंधी से उखड़ गईं। तीन दिन बाद महाकाल लोक कॉरिडोर के नंदी द्वार का कलश गिर गया। नीचे से गुजर रहे लोगों की जान बाल-बाल बची।
दो घटनाओं के बाद 900 करोड़ की लागत वाले महाकाल लोक के निर्माण को लेकर सरकार पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि उज्जैन में संकट हरण महाकाल की अनुमति के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता फिर अचानक ये अनहोनियां क्यों हो रही हैं? ये भी सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार ने वास्तु देखे बिना ही कॉरिडोर का निर्माण करवाया है? इस कारण से ये घटनाएं हो रही हैं।
उज्जैन पूरी दुनिया में ज्योतिष का केंद्र है। यहां की गणनाओं को सर्वश्रेष्ठ और सटीक माना जाता है। इस कारण हमारी उत्सुकता बढ़ी और इसका जवाब लेने हम महाकाल लोक पहुंचे। यहां के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यों और वास्तुविदों से बात की। आइए एक-एक कर सभी के जवाब सुनते हैं और जानते हैं कि क्या वाकई महाकाल लोक में कोई वास्तु दोष है?

महाकाल लोक में चार द्वार बनाए गए हैं पिनाकी, शंख, नंदी और नीलकंठ। इनमें से नंदी और नीलकंठ मुख्य द्वार हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि महाकाल लोक की शुरुआत ही इन्हीं द्वारों से होती है। दरअसल, महाकाल का मुख दक्षिण दिशा की ओर है। महाकाल लोक की समाप्ति इसी मंदिर पर होती है। नंदी द्वार महाकाल मंदिर के ठीक सामने बना हुआ है जो दक्षिण दिशा में है। नंदी द्वार के बगल से ही पश्चिम दिशा में नीलकंठ द्वार है। नीलकंठ द्वार के लिए बेगमबाग से और नंदी द्वार के लिए त्रिवेणी संगम से रास्ता है।
नंदी द्वार के ऊपर आजू-बाजू दो बड़े नंदी विराजमान हैं। यह मार्बल से बना है। दीवारों पर चांदी का वर्क किया है। द्वार के एंट्री पॉइंट पर खड़े होते ही आपको सामने लोक के 108 स्तंभ दिखाई देंगे। जो आपको महाकाल मंदिर तक लेकर जाएंगे। इन स्तंभों पर भगवान शिव के नटराज स्वरूप की अलग-अलग मुद्राओं को उकेरा गया है। महाकाल पथ में 25 दीवारों पर करीब 52 और सप्तऋषि पर 28 म्यूरल (दीवारों पर कलाकृति) बनाए गए हैं। पूरे कैंपस में कुल 81 म्यूरल बनाए हैं।

नंदी द्वार से 50 कदम अंदर की तरफ जाएंगे तो बाएं हाथ की ओर आपको बड़े-बड़े चबूतरों पर खाली 7 कमल आकृति बनी दिखाई देगीं। इन्हीं कमल आकृतिओं के ऊपर सप्तऋषि की मूर्तियां स्थापित थीं।
28 मई की आंधी ने इन्हें उखाड़कर जमीन पर पटक दिया। पश्चिम द्वार से भी अगर आप 100 कदम अंदर आएंगे तो ये खाली कमल पुष्प आपको दिखाई दे जाएंगे। ये सप्तऋषि महाकाल लोक की शुरुआत में ही विराजमान थे।
इसके बाद 1 जून को नंदी द्वार का कलश टूटकर गिर गया। कुल मिलाकर कहा जाए तो महाकाल लोक में आंधी की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान महाकाल मुख के ठीक सामने वाली जगह यानी दक्षिण दिशा में ही हुआ है।
अब जानते हैं वास्तु को लेकर क्या हैं ज्योतिषाचार्य और वास्तुविदों की राय...
वास्तु के हिसाब से दक्षिण दरवाजा शुभ नहीं माना जाता, फिर भी बनाया
ज्योतिषाचार्य, वास्तुविद और महाकाल की भस्म आरती के पुजारी आनंद शंकर व्यास ने बताया हम महर्षि सांदीपनि के वंशज हैं। हमारा वंश 5 हजार वर्षों से है, उज्जैन में ही रह रहा है। मैं खुद 86 साल का हो गया हूं। इस वक्त हमारे 4 परिवार हैं। सभी एक-एक वर्ष महाकाल की भस्म आरती की जिम्मेदारी संभालते हैं। महाकाल लोक बनने से पहले दर्शन करने वाले श्रद्धालु पूर्व और उत्तरी गेट से ही महाकाल के दर्शन के लिए मंदिर में प्रवेश करते थे। परंपरा थी लोग शिप्रा में स्नान करके बड़े गणपति के दर्शन करके सामने के द्वार से महाकाल मंदिर में प्रवेश करते थे। शहर से आने वाले लोग पूर्व द्वार से दर्शन के लिए जाते थे, लेकिन अब दक्षिण और पश्चिम में मुख्य दरवाजा बना दिया गया है।
इन द्वारों से आने-जाने की परंपरा कभी नहीं थी। अभी जो अपशकुन हो रहे हैं इसका कारण इन परंपराओं को नजरअंदाज करना है। दक्षिण दिशा की तरफ खुलने वाला दरवाजा वास्तु के हिसाब से शुभ नहीं माना जाता। शायद इसीलिए पूरा डैमेज महाकाल लोक के दक्षिणी हिस्से में हुआ है। उस दिन पूरे उज्जैन में कई घटनाएं हुईं। मौतें भी हुई हैं। पेड़ और घर गिर गए।

गुरुओं पर चंडाल का योग, इसलिए उखड़े सप्तऋषि

ज्योतिषाचार्य डॉ. प्रणयन एम पाठक ने कहा कि महाकाल लोक में सप्त ऋषि की प्रतिमाएं खंडित होने के पीछे ज्योतिषीय आधार देखा जाए तो 22 अप्रैल को गुरु ने राशि परिवर्तन किया है। गुरु ने मीन राशि से मेष में प्रवेश किया है। ये गुरु 29 नवंबर 2023 तक मेष राशि में ही रहेंगे। गुरु देव के राशि परिवर्तन के कारण मेष राशि के अंदर पहले से स्थित राहु और गुरु की युति बन गई है। मेष राशि में गुरु और राहु की युति बनने से गुरु चंडाल योग बन गया है।
जब गुरु चंडाल योग बनता है तो आकाशीय घटनाएं और पूरे देश को क्षति पहुंचाने वाली घटनाएं ज्यादा होती हैं। जैसे अभी गर्मी में भी बारिश और ओले गिर रहे हैं। ओडिशा में इतना बड़ा ट्रेन हादसा हो गया। सप्तऋषि गुरु ही हैं और गुरु पर चंडाल योग लगा हुआ है। महाकाल लोक में अनहोनी का ये भी एक कारण है। गुरु के ऊपर शनि की नीच दृष्टि भी गिर रही है। इस कारण आंधी तूफान और प्रकृति में कई घटनाएं घट रही हैं।

महापुरुषों की मूर्तियां बना सकते हैं, लेकिन भगवान की नहीं

ज्योतिषाचार्य डॉ. प्रणयन एम पाठक ने कहा कि भगवान की मूर्ति पूजन पद्धति का हिस्सा है, जो मंदिर शिखर के अंदर ही होती है। सरकार ये सब दिखावे के लिए करती है, लेकिन इससे संस्कृति को बड़ा नुकसान होता है। अब जैसे- अयोध्या में सरयू नदी के किनारे भगवान राम की मूर्ति बनाई जा रही है। ओंकारेश्वर में भगवान आदि शंकराचार्य की मूर्ति बनाई जा रही है। ऐसे ही भगवान परशुराम की बड़ी मूर्ति बनाने की बातें चल रही हैं जो कि पूरी तरह गलत है। देश में पैदा हुए महापुरुषों की बड़ी मूर्ति बनाई जा सकती हैं, लेकिन भगवान की नहीं। ये सभी काम परंपरा के विपरीत चल रहे हैं।
यहां उज्जैन में कई महापुरुषों की मूर्तियां लगी हैं। कई स्टेच्यू 60-70 साल से बने हुए हैं, लेकिन उन पर आंधी से कोई असर नहीं पड़ा। उस समय ईमानदारी से काम किया गया था, इसलिए निर्माण मजबूती से खड़ा हुआ है। महाकाल लोक में साफ तौर पर भ्रष्टाचार भी नजर आ रहा है। करोड़ों का काम हुआ। साल भर से कम वक्त में मूर्तियां टूटकर जमींदोज हो गईं। वास्तु से हटकर देखें तो सप्तऋषियों की मूर्ति समेत कई जगह कमजोरी से काम होने की बातें सामने आ रही हैं। बची हुई मूर्तियां ये आंधी झेल गईं, लेकिन आगे के आंधी तूफान से और साफतौर पर पता चल जाएगा कि महाकाल लोक का काम कितनी मजबूती से हुआ है।

28 मई 2023 रविवार शाम को उज्जैन शहर में आंधी आई और बारिश होने लगी। बारिश ने उस दिन भले ही लोगों को भीषण गर्मी से राहत दिलाई हो, लेकिन बारिश से पहले बने मौसम ने महाकाल लोक की सूरत बिगाड़ दी। कॉरिडोर में स्थापित 7 सप्तऋषियों में से 6 मूर्तियां आंधी से उखड़ गईं। तीन दिन बाद महाकाल लोक कॉरिडोर के नंदी द्वार का कलश गिर गया। नीचे से गुजर रहे लोगों की जान बाल-बाल बची।
दो घटनाओं के बाद 900 करोड़ की लागत वाले महाकाल लोक के निर्माण को लेकर सरकार पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि उज्जैन में संकट हरण महाकाल की अनुमति के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता फिर अचानक ये अनहोनियां क्यों हो रही हैं? ये भी सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार ने वास्तु देखे बिना ही कॉरिडोर का निर्माण करवाया है? इस कारण से ये घटनाएं हो रही हैं।
उज्जैन पूरी दुनिया में ज्योतिष का केंद्र है। यहां की गणनाओं को सर्वश्रेष्ठ और सटीक माना जाता है। इस कारण हमारी उत्सुकता बढ़ी और इसका जवाब लेने हम महाकाल लोक पहुंचे। यहां के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यों और वास्तुविदों से बात की। आइए एक-एक कर सभी के जवाब सुनते हैं और जानते हैं कि क्या वाकई महाकाल लोक में कोई वास्तु दोष है?

महाकाल लोक में चार द्वार बनाए गए हैं पिनाकी, शंख, नंदी और नीलकंठ। इनमें से नंदी और नीलकंठ मुख्य द्वार हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि महाकाल लोक की शुरुआत ही इन्हीं द्वारों से होती है। दरअसल, महाकाल का मुख दक्षिण दिशा की ओर है। महाकाल लोक की समाप्ति इसी मंदिर पर होती है। नंदी द्वार महाकाल मंदिर के ठीक सामने बना हुआ है जो दक्षिण दिशा में है। नंदी द्वार के बगल से ही पश्चिम दिशा में नीलकंठ द्वार है। नीलकंठ द्वार के लिए बेगमबाग से और नंदी द्वार के लिए त्रिवेणी संगम से रास्ता है।
नंदी द्वार के ऊपर आजू-बाजू दो बड़े नंदी विराजमान हैं। यह मार्बल से बना है। दीवारों पर चांदी का वर्क किया है। द्वार के एंट्री पॉइंट पर खड़े होते ही आपको सामने लोक के 108 स्तंभ दिखाई देंगे। जो आपको महाकाल मंदिर तक लेकर जाएंगे। इन स्तंभों पर भगवान शिव के नटराज स्वरूप की अलग-अलग मुद्राओं को उकेरा गया है। महाकाल पथ में 25 दीवारों पर करीब 52 और सप्तऋषि पर 28 म्यूरल (दीवारों पर कलाकृति) बनाए गए हैं। पूरे कैंपस में कुल 81 म्यूरल बनाए हैं।

नंदी द्वार से 50 कदम अंदर की तरफ जाएंगे तो बाएं हाथ की ओर आपको बड़े-बड़े चबूतरों पर खाली 7 कमल आकृति बनी दिखाई देगीं। इन्हीं कमल आकृतिओं के ऊपर सप्तऋषि की मूर्तियां स्थापित थीं।
28 मई की आंधी ने इन्हें उखाड़कर जमीन पर पटक दिया। पश्चिम द्वार से भी अगर आप 100 कदम अंदर आएंगे तो ये खाली कमल पुष्प आपको दिखाई दे जाएंगे। ये सप्तऋषि महाकाल लोक की शुरुआत में ही विराजमान थे।
इसके बाद 1 जून को नंदी द्वार का कलश टूटकर गिर गया। कुल मिलाकर कहा जाए तो महाकाल लोक में आंधी की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान महाकाल मुख के ठीक सामने वाली जगह यानी दक्षिण दिशा में ही हुआ है.

महाकाल लोक निर्माण में भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद लोकायुक्त की टीम 3 जून को जांच करने पहुंची थी।

अब जानते हैं वास्तु को लेकर क्या हैं ज्योतिषाचार्य और वास्तुविदों की राय...

वास्तु के हिसाब से दक्षिण दरवाजा शुभ नहीं माना जाता, फिर भी बनाया

ज्योतिषाचार्य, वास्तुविद और महाकाल की भस्म आरती के पुजारी आनंद शंकर व्यास ने बताया हम महर्षि सांदीपनि के वंशज हैं। हमारा वंश 5 हजार वर्षों से है, उज्जैन में ही रह रहा है। मैं खुद 86 साल का हो गया हूं। इस वक्त हमारे 4 परिवार हैं। सभी एक-एक वर्ष महाकाल की भस्म आरती की जिम्मेदारी संभालते हैं। महाकाल लोक बनने से पहले दर्शन करने वाले श्रद्धालु पूर्व और उत्तरी गेट से ही महाकाल के दर्शन के लिए मंदिर में प्रवेश करते थे। परंपरा थी लोग शिप्रा में स्नान करके बड़े गणपति के दर्शन करके सामने के द्वार से महाकाल मंदिर में प्रवेश करते थे। शहर से आने वाले लोग पूर्व द्वार से दर्शन के लिए जाते थे, लेकिन अब दक्षिण और पश्चिम में मुख्य दरवाजा बना दिया गया है।
इन द्वारों से आने-जाने की परंपरा कभी नहीं थी। अभी जो अपशकुन हो रहे हैं इसका कारण इन परंपराओं को नजरअंदाज करना है। दक्षिण दिशा की तरफ खुलने वाला दरवाजा वास्तु के हिसाब से शुभ नहीं माना जाता। शायद इसीलिए पूरा डैमेज महाकाल लोक के दक्षिणी हिस्से में हुआ है। उस दिन पूरे उज्जैन में कई घटनाएं हुईं। मौतें भी हुई हैं। पेड़ और घर गिर गए।

गुरुओं पर चंडाल का योग, इसलिए उखड़े सप्तऋषि

ज्योतिषाचार्य डॉ. प्रणयन एम पाठक ने कहा कि महाकाल लोक में सप्त ऋषि की प्रतिमाएं खंडित होने के पीछे ज्योतिषीय आधार देखा जाए तो 22 अप्रैल को गुरु ने राशि परिवर्तन किया है। गुरु ने मीन राशि से मेष में प्रवेश किया है। ये गुरु 29 नवंबर 2023 तक मेष राशि में ही रहेंगे। गुरु देव के राशि परिवर्तन के कारण मेष राशि के अंदर पहले से स्थित राहु और गुरु की युति बन गई है। मेष राशि में गुरु और राहु की युति बनने से गुरु चंडाल योग बन गया है।
जब गुरु चंडाल योग बनता है तो आकाशीय घटनाएं और पूरे देश को क्षति पहुंचाने वाली घटनाएं ज्यादा होती हैं। जैसे अभी गर्मी में भी बारिश और ओले गिर रहे हैं। ओडिशा में इतना बड़ा ट्रेन हादसा हो गया। सप्तऋषि गुरु ही हैं और गुरु पर चंडाल योग लगा हुआ है। महाकाल लोक में अनहोनी का ये भी एक कारण है। गुरु के ऊपर शनि की नीच दृष्टि भी गिर रही है। इस कारण आंधी तूफान और प्रकृति में कई घटनाएं घट रही हैं।

महापुरुषों की मूर्तियां बना सकते हैं, लेकिन भगवान की नहीं

ज्योतिषाचार्य डॉ. प्रणयन एम पाठक ने कहा कि भगवान की मूर्ति पूजन पद्धति का हिस्सा है, जो मंदिर शिखर के अंदर ही होती है। सरकार ये सब दिखावे के लिए करती है, लेकिन इससे संस्कृति को बड़ा नुकसान होता है। अब जैसे- अयोध्या में सरयू नदी के किनारे भगवान राम की मूर्ति बनाई जा रही है। ओंकारेश्वर में भगवान आदि शंकराचार्य की मूर्ति बनाई जा रही है। ऐसे ही भगवान परशुराम की बड़ी मूर्ति बनाने की बातें चल रही हैं जो कि पूरी तरह गलत है। देश में पैदा हुए महापुरुषों की बड़ी मूर्ति बनाई जा सकती हैं, लेकिन भगवान की नहीं। ये सभी काम परंपरा के विपरीत चल रहे हैं।
यहां उज्जैन में कई महापुरुषों की मूर्तियां लगी हैं। कई स्टेच्यू 60-70 साल से बने हुए हैं, लेकिन उन पर आंधी से कोई असर नहीं पड़ा। उस समय ईमानदारी से काम किया गया था, इसलिए निर्माण मजबूती से खड़ा हुआ है। महाकाल लोक में साफ तौर पर भ्रष्टाचार भी नजर आ रहा है। करोड़ों का काम हुआ। साल भर से कम वक्त में मूर्तियां टूटकर जमींदोज हो गईं। वास्तु से हटकर देखें तो सप्तऋषियों की मूर्ति समेत कई जगह कमजोरी से काम होने की बातें सामने आ रही हैं। बची हुई मूर्तियां ये आंधी झेल गईं, लेकिन आगे के आंधी तूफान से और साफतौर पर पता चल जाएगा कि महाकाल लोक का काम कितनी मजबूती से हुआ है।

टूटी सप्त ऋषियों की मूर्तियों को रिपेयरिंग करने का काम शुरू किया गया। हालांकि बाद में यह तय हुआ कि खंडित मूर्तियों को ठीक कर लगाने की बजाय नई लगाई जाएंगी।

तारामंडल में सप्त ऋषियों की जो स्थिति वैसे ही बैठाने थे, घेरा बनाकर बैठा दिए

डॉ. प्रणयन एम पाठक ने बताया कि महाकाल लोक में सप्त ऋषियों की मूर्ति खंडित होने का बड़ा कारण है कि सरकार ने जल्दबाजी में काम किया। विद्वानों से सलाह नहीं ली। लोक में सप्त ऋषियों को एक गोल घेरा बनाकर बैठा दिया गया था। जबकि सप्त ऋषियों के बैठने की असल स्थिति आकाश में दिखाई दे रहे सप्त ऋषि तारा मंडल में स्पष्ट दिखाई देती है। यहां भी उनकी मूर्तियां उसी पोजिशन में रखी जानी चाहिए थीं। पूरा निर्माण ठेकेदारों के भरोसे था। उन्हें जहां जैसे जगह दिखाई दी वो सजावट के लिए सारे काम करते गए।

सरकार ने एक भी वास्तुविद से राय नहीं ली

वास्तुविद विजय जोशी कहते हैं कि महाकाल लोक में हो रही ये अनहोनियां प्रशासन और मंदिर ट्रस्ट के लिए संकेत हैं। महाकाल को आडंबर पसंद नहीं है। महाकाल गर्भ गृह में विराजमान हैं। उन्हें गुफाओं का अधिष्ठाता कहा जाता है। लोक में उनकी बड़ी-बड़ी मूर्तियां बनाकर लगा दी गई हैं। उन्हें प्रदर्शनी का सामान बना दिया है। भगवान डिस्प्ले की चीज नहीं हैं। यही 800 करोड़ रुपए शिप्रा नदी के प्रवाह को ठीक कराने में लगा देते तो लाखों लोग साफ पानी में स्नान करते। वहां लोग नौका विहार का आनंद लेते। ट्रस्ट को पूरा फायदा भी होता। भक्तों को भी अच्छा लगता। प्रशासन को सूख रही शिप्रा के लिए काम करना चाहिए था। जैसे काशी में कॉरिडोर बना है वैसा ही यहां बनना चाहिए था।

फेंगशुई के सिद्धांत के अनुरूप महाकाल मंदिर तो फिर दिक्कत कहां...

फेंगशुई एक प्राचीन चीनी परंपरा है जो एक सकारात्मक वातावरण स्थापित करने में मदद करती है। फेंगशुई का एक सिद्धांत है कि यदि पहाड़ के मध्य में कोई भवन बना हो, जिसके पीछे पहाड़ की ऊंचाई हो, आगे की तरफ पहाड़ की ढलान हो और ढलान के बाद पानी का झरना, कुंड, तालाब, नदी इत्यादि हो, ऐसा भवन प्रसिद्धि पाता है और सदियों तक बना रहता है। फेंगशुई के इस सिद्धांत में दिशा का कोई महत्व नहीं है। ऐसा भवन किसी भी दिशा में हो सकता है। चाहे पूर्व दिशा ऊंची हो और पश्चिम में ढलान के बाद तालाब हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
वैसे तो वास्तु-फेंगशुई की अनुकूलता के कारण महाकालेश्वर भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध है, लेकिन बाबा महाकाल के दर्शन करने की व्यवस्था वास्तु के अनुकूल नहीं है। वर्तमान में दर्शनार्थियों को मुख्य द्वार से गर्भगृह के द्वार तक और वहां से बाहर जाने तक एंटी क्लाक वाइज गलियारे से होकर दर्शन करने होते हैं। यदि दर्शन करने की इस व्यवस्था को क्लाक वाइज कर दिया जाए तो यह बदलाव वास्तु के अनुकूल होकर अत्यंत शुभ होगा। इस बदलाव से दर्शन व्यवस्था सुव्यवस्थित एवं सुविधाजनक तो होगी ही साथ ही यह परिवर्तन दर्शनार्थियों को ओर अधिक आकर्षित करने में सहायक होगा।

अब, सप्तऋषियों की मूर्ति खंडित होने के बाद से अब तक हुए घटनाक्रम पर चलते हैं...

राजनीति : कांग्रेस की जांच कमेटी ने कहा चाइनीज मटेरियल का इस्तेमाल हुआ

मूर्तियां जमींदोज होने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व सीएम कमलनाथ ने जांच के लिए सात सदस्यीय कमेटी बनाई। कांग्रेस का जांच दल विशेषज्ञ के तौर पर मूर्तिकारों और तकनीकी एक्सपर्ट्स को अपने साथ महाकाल लोक ले गए थे। जांच के बाद बुधवार को भोपाल में पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा और शोभा ओझा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। वर्मा ने बीजेपी सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा कि इन मूर्तियों को बनाने में घटिया चायनीज शीट का इस्तेमाल किया गया है।
28 मई 2023 रविवार शाम को उज्जैन शहर में आंधी आई और बारिश होने लगी। बारिश ने उस दिन भले ही लोगों को भीषण गर्मी से राहत दिलाई हो, लेकिन बारिश से पहले बने मौसम ने महाकाल लोक की सूरत बिगाड़ दी। कॉरिडोर में स्थापित 7 सप्तऋषियों में से 6 मूर्तियां आंधी से उखड़ गईं। तीन दिन बाद महाकाल लोक कॉरिडोर के नंदी द्वार का कलश गिर गया। नीचे से गुजर रहे लोगों की जान बाल-बाल बची।
दो घटनाओं के बाद 900 करोड़ की लागत वाले महाकाल लोक के निर्माण को लेकर सरकार पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि उज्जैन में संकट हरण महाकाल की अनुमति के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता फिर अचानक ये अनहोनियां क्यों हो रही हैं? ये भी सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार ने वास्तु देखे बिना ही कॉरिडोर का निर्माण करवाया है? इस कारण से ये घटनाएं हो रही हैं।
उज्जैन पूरी दुनिया में ज्योतिष का केंद्र है। यहां की गणनाओं को सर्वश्रेष्ठ और सटीक माना जाता है। इस कारण हमारी उत्सुकता बढ़ी और इसका जवाब लेने हम महाकाल लोक पहुंचे। यहां के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यों और वास्तुविदों से बात की। आइए एक-एक कर सभी के जवाब सुनते हैं और जानते हैं कि क्या वाकई महाकाल लोक में कोई वास्तु दोष है?

सबसे ज्यादा डैमेज दक्षिण दिशा में हुआ

महाकाल लोक में चार द्वार बनाए गए हैं पिनाकी, शंख, नंदी और नीलकंठ। इनमें से नंदी और नीलकंठ मुख्य द्वार हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि महाकाल लोक की शुरुआत ही इन्हीं द्वारों से होती है। दरअसल, महाकाल का मुख दक्षिण दिशा की ओर है। महाकाल लोक की समाप्ति इसी मंदिर पर होती है। नंदी द्वार महाकाल मंदिर के ठीक सामने बना हुआ है जो दक्षिण दिशा में है। नंदी द्वार के बगल से ही पश्चिम दिशा में नीलकंठ द्वार है। नीलकंठ द्वार के लिए बेगमबाग से और नंदी द्वार के लिए त्रिवेणी संगम से रास्ता है।
नंदी द्वार के ऊपर आजू-बाजू दो बड़े नंदी विराजमान हैं। यह मार्बल से बना है। दीवारों पर चांदी का वर्क किया है। द्वार के एंट्री पॉइंट पर खड़े होते ही आपको सामने लोक के 108 स्तंभ दिखाई देंगे। जो आपको महाकाल मंदिर तक लेकर जाएंगे। इन स्तंभों पर भगवान शिव के नटराज स्वरूप की अलग-अलग मुद्राओं को उकेरा गया है। महाकाल पथ में 25 दीवारों पर करीब 52 और सप्तऋषि पर 28 म्यूरल (दीवारों पर कलाकृति) बनाए गए हैं। पूरे कैंपस में कुल 81 म्यूरल बनाए हैं।

नंदी द्वार से 50 कदम अंदर की तरफ जाएंगे तो बाएं हाथ की ओर आपको बड़े-बड़े चबूतरों पर खाली 7 कमल आकृति बनी दिखाई देगीं। इन्हीं कमल आकृतिओं के ऊपर सप्तऋषि की मूर्तियां स्थापित थीं।
28 मई की आंधी ने इन्हें उखाड़कर जमीन पर पटक दिया। पश्चिम द्वार से भी अगर आप 100 कदम अंदर आएंगे तो ये खाली कमल पुष्प आपको दिखाई दे जाएंगे। ये सप्तऋषि महाकाल लोक की शुरुआत में ही विराजमान थे।
इसके बाद 1 जून को नंदी द्वार का कलश टूटकर गिर गया। कुल मिलाकर कहा जाए तो महाकाल लोक में आंधी की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान महाकाल मुख के ठीक सामने वाली जगह यानी दक्षिण दिशा में ही हुआ है।

अब जानते हैं वास्तु को लेकर क्या हैं ज्योतिषाचार्य और वास्तुविदों की राय...
वास्तु के हिसाब से दक्षिण दरवाजा शुभ नहीं माना जाता, फिर भी बनाया
ज्योतिषाचार्य, वास्तुविद और महाकाल की भस्म आरती के पुजारी आनंद शंकर व्यास ने बताया हम महर्षि सांदीपनि के वंशज हैं। हमारा वंश 5 हजार वर्षों से है, उज्जैन में ही रह रहा है। मैं खुद 86 साल का हो गया हूं। इस वक्त हमारे 4 परिवार हैं। सभी एक-एक वर्ष महाकाल की भस्म आरती की जिम्मेदारी संभालते हैं। महाकाल लोक बनने से पहले दर्शन करने वाले श्रद्धालु पूर्व और उत्तरी गेट से ही महाकाल के दर्शन के लिए मंदिर में प्रवेश करते थे। परंपरा थी लोग शिप्रा में स्नान करके बड़े गणपति के दर्शन करके सामने के द्वार से महाकाल मंदिर में प्रवेश करते थे। शहर से आने वाले लोग पूर्व द्वार से दर्शन के लिए जाते थे, लेकिन अब दक्षिण और पश्चिम में मुख्य दरवाजा बना दिया गया है।
इन द्वारों से आने-जाने की परंपरा कभी नहीं थी। अभी जो अपशकुन हो रहे हैं इसका कारण इन परंपराओं को नजरअंदाज करना है। दक्षिण दिशा की तरफ खुलने वाला दरवाजा वास्तु के हिसाब से शुभ नहीं माना जाता। शायद इसीलिए पूरा डैमेज महाकाल लोक के दक्षिणी हिस्से में हुआ है। उस दिन पूरे उज्जैन में कई घटनाएं हुईं। मौतें भी हुई हैं। पेड़ और घर गिर गए।

ज्योतिषाचार्य डॉ. प्रणयन एम पाठक ने कहा कि महाकाल लोक में सप्त ऋषि की प्रतिमाएं खंडित होने के पीछे ज्योतिषीय आधार देखा जाए तो 22 अप्रैल को गुरु ने राशि परिवर्तन किया है। गुरु ने मीन राशि से मेष में प्रवेश किया है। ये गुरु 29 नवंबर 2023 तक मेष राशि में ही रहेंगे। गुरु देव के राशि परिवर्तन के कारण मेष राशि के अंदर पहले से स्थित राहु और गुरु की युति बन गई है। मेष राशि में गुरु और राहु की युति बनने से गुरु चंडाल योग बन गया है।
जब गुरु चंडाल योग बनता है तो आकाशीय घटनाएं और पूरे देश को क्षति पहुंचाने वाली घटनाएं ज्यादा होती हैं। जैसे अभी गर्मी में भी बारिश और ओले गिर रहे हैं। ओडिशा में इतना बड़ा ट्रेन हादसा हो गया। सप्तऋषि गुरु ही हैं और गुरु पर चंडाल योग लगा हुआ है। महाकाल लोक में अनहोनी का ये भी एक कारण है। गुरु के ऊपर शनि की नीच दृष्टि भी गिर रही है। इस कारण आंधी तूफान और प्रकृति में कई घटनाएं घट रही हैं।

महापुरुषों की मूर्तियां बना सकते हैं, लेकिन भगवान की नहीं

ज्योतिषाचार्य डॉ. प्रणयन एम पाठक ने कहा कि भगवान की मूर्ति पूजन पद्धति का हिस्सा है, जो मंदिर शिखर के अंदर ही होती है। सरकार ये सब दिखावे के लिए करती है, लेकिन इससे संस्कृति को बड़ा नुकसान होता है। अब जैसे- अयोध्या में सरयू नदी के किनारे भगवान राम की मूर्ति बनाई जा रही है। ओंकारेश्वर में भगवान आदि शंकराचार्य की मूर्ति बनाई जा रही है। ऐसे ही भगवान परशुराम की बड़ी मूर्ति बनाने की बातें चल रही हैं जो कि पूरी तरह गलत है। देश में पैदा हुए महापुरुषों की बड़ी मूर्ति बनाई जा सकती हैं, लेकिन भगवान की नहीं। ये सभी काम परंपरा के विपरीत चल रहे हैं।
यहां उज्जैन में कई महापुरुषों की मूर्तियां लगी हैं। कई स्टेच्यू 60-70 साल से बने हुए हैं, लेकिन उन पर आंधी से कोई असर नहीं पड़ा। उस समय ईमानदारी से काम किया गया था, इसलिए निर्माण मजबूती से खड़ा हुआ है। महाकाल लोक में साफ तौर पर भ्रष्टाचार भी नजर आ रहा है। करोड़ों का काम हुआ। साल भर से कम वक्त में मूर्तियां टूटकर जमींदोज हो गईं। वास्तु से हटकर देखें तो सप्तऋषियों की मूर्ति समेत कई जगह कमजोरी से काम होने की बातें सामने आ रही हैं। बची हुई मूर्तियां ये आंधी झेल गईं, लेकिन आगे के आंधी तूफान से और साफतौर पर पता चल जाएगा कि महाकाल लोक का काम कितनी मजबूती से हुआ है।

टूटी सप्त ऋषियों की मूर्तियों को रिपेयरिंग करने का काम शुरू किया गया। हालांकि बाद में यह तय हुआ कि खंडित मूर्तियों को ठीक कर लगाने की बजाय नई लगाई जाएंगी।

तारामंडल में सप्त ऋषियों की जो स्थिति वैसे ही बैठाने थे, घेरा बनाकर बैठा दिए

डॉ. प्रणयन एम पाठक ने बताया कि महाकाल लोक में सप्त ऋषियों की मूर्ति खंडित होने का बड़ा कारण है कि सरकार ने जल्दबाजी में काम किया। विद्वानों से सलाह नहीं ली। लोक में सप्त ऋषियों को एक गोल घेरा बनाकर बैठा दिया गया था। जबकि सप्त ऋषियों के बैठने की असल स्थिति आकाश में दिखाई दे रहे सप्त ऋषि तारा मंडल में स्पष्ट दिखाई देती है। यहां भी उनकी मूर्तियां उसी पोजिशन में रखी जानी चाहिए थीं। पूरा निर्माण ठेकेदारों के भरोसे था। उन्हें जहां जैसे जगह दिखाई दी वो सजावट के लिए सारे काम करते गए।

सरकार ने एक भी वास्तुविद से राय नहीं ली

वास्तुविद विजय जोशी कहते हैं कि महाकाल लोक में हो रही ये अनहोनियां प्रशासन और मंदिर ट्रस्ट के लिए संकेत हैं। महाकाल को आडंबर पसंद नहीं है। महाकाल गर्भ गृह में विराजमान हैं। उन्हें गुफाओं का अधिष्ठाता कहा जाता है। लोक में उनकी बड़ी-बड़ी मूर्तियां बनाकर लगा दी गई हैं। उन्हें प्रदर्शनी का सामान बना दिया है। भगवान डिस्प्ले की चीज नहीं हैं। यही 800 करोड़ रुपए शिप्रा नदी के प्रवाह को ठीक कराने में लगा देते तो लाखों लोग साफ पानी में स्नान करते। वहां लोग नौका विहार का आनंद लेते। ट्रस्ट को पूरा फायदा भी होता। भक्तों को भी अच्छा लगता। प्रशासन को सूख रही शिप्रा के लिए काम करना चाहिए था। जैसे काशी में कॉरिडोर बना है वैसा ही यहां बनना चाहिए था।

फेंगशुई के सिद्धांत के अनुरूप महाकाल मंदिर तो फिर दिक्कत कहां...

फेंगशुई एक प्राचीन चीनी परंपरा है जो एक सकारात्मक वातावरण स्थापित करने में मदद करती है। फेंगशुई का एक सिद्धांत है कि यदि पहाड़ के मध्य में कोई भवन बना हो, जिसके पीछे पहाड़ की ऊंचाई हो, आगे की तरफ पहाड़ की ढलान हो और ढलान के बाद पानी का झरना, कुंड, तालाब, नदी इत्यादि हो, ऐसा भवन प्रसिद्धि पाता है और सदियों तक बना रहता है। फेंगशुई के इस सिद्धांत में दिशा का कोई महत्व नहीं है। ऐसा भवन किसी भी दिशा में हो सकता है। चाहे पूर्व दिशा ऊंची हो और पश्चिम में ढलान के बाद तालाब हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
वैसे तो वास्तु-फेंगशुई की अनुकूलता के कारण महाकालेश्वर भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध है, लेकिन बाबा महाकाल के दर्शन करने की व्यवस्था वास्तु के अनुकूल नहीं है। वर्तमान में दर्शनार्थियों को मुख्य द्वार से गर्भगृह के द्वार तक और वहां से बाहर जाने तक एंटी क्लाक वाइज गलियारे से होकर दर्शन करने होते हैं। यदि दर्शन करने की इस व्यवस्था को क्लाक वाइज कर दिया जाए तो यह बदलाव वास्तु के अनुकूल होकर अत्यंत शुभ होगा। इस बदलाव से दर्शन व्यवस्था सुव्यवस्थित एवं सुविधाजनक तो होगी ही साथ ही यह परिवर्तन दर्शनार्थियों को ओर अधिक आकर्षित करने में सहायक होगा।

अब, सप्तऋषियों की मूर्ति खंडित होने के बाद से अब तक हुए घटनाक्रम पर चलते हैं...

#राजनीति : कांग्रेस की जांच कमेटी ने कहा चाइनीज मटेरियल का इस्तेमाल हुआ

मूर्तियां जमींदोज होने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व सीएम कमलनाथ ने जांच के लिए सात सदस्यीय कमेटी बनाई। कांग्रेस का जांच दल विशेषज्ञ के तौर पर मूर्तिकारों और तकनीकी एक्सपर्ट्स को अपने साथ महाकाल लोक ले गए थे। जांच के बाद बुधवार को भोपाल में पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा और शोभा ओझा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। वर्मा ने बीजेपी सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा कि इन मूर्तियों को बनाने में घटिया चायनीज शीट का इस्तेमाल किया गया है।

कांग्रेस की 7 सदस्यीय टीम ने महाकाल लोक का दौरा किया था।

पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने कहा- 4 सितंबर 2018 को तत्कालीन शिवराज सरकार ने निविदा क्रमांक 52/ यूएससीएल/ 1819 की योजना बनाई थी। इसकी अनुमानित लागत 97 करोड़ 71 लाख थी। कांग्रेस की सरकार के आने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस राशि को बढ़ाकर 300 करोड़ रुपए कर दिया। कांग्रेस सरकार ने 7 मार्च 2019 को इसका वर्क ऑर्डर जारी किया था। इसके साथ ही कमलनाथ ने कहा कि महाकाल लोक घोटाले की जांच हाईकोर्ट के किसी वर्तमान न्यायाधीश से कराई जाए। अगर सरकार कांग्रेस की यह मांग स्वीकार नहीं करती तो जनता में स्पष्ट संदेश जाएगा कि शिवराज सरकार की मानसिकता हिंदुओं की आस्था पर चोट करने की और घोटालेबाजों को पूर्ण संरक्षण देने की है।

कांग्रेस ने बताई मूर्तियों में गड़बड़ियों की तकनीकी खामियां

फायबर रिइन्फोर्सड प्लास्टिक (FRP) की प्रतिमाओं की मजबूती के लिए लोहे का आंतरिक ढांचा बनाया जाता है, लेकिन महाकाल लोक की प्रतिमाओं में यह स्टील का इंटरनल स्ट्रक्चर नहीं बनाया गया। प्रतिमाओं के निर्माण में उपयोग की जाने वाली नेट की मोटाई 1200 से 1600 ग्राम जीएसएम की होना चाहिए, लेकिन महाकाल लोक में स्थापित की गई प्रतिमाओं में 150 से 200 ग्राम जीएसएम की ही चायनीज नेट उपयोग की गई।
मूर्तियों को बिना बेस (फाउंडेशन) के 10 फीट ऊंचे पेडस्टल पर सीमेंट से जोड़ा गया। इसी कारण, 30 किलोमीटर प्रतिघंटे की हल्की रफ्तार से चली हवा में ही मूर्तियां गिरकर क्षतिग्रस्त हो गईं।
निविदा की शर्त क्रमांक 2 जो कि पृष्ठ क्रमांक 107 पर अंकित है, जिसमें स्पष्ट निर्देश हैं कि मूर्तियों की गुणवत्ता की जांच के लिए साइट पर ही मटेरियल टेस्टिंग लैबोरेटरी बनाई जानी थी। ये लैब नहीं बनाई गई।

मूर्तियां तीन साल के वारंटी पीरियड में थीं

पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने कहा कि 11 अक्टूबर 2022 को आनन-फानन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकाल लोक का उद्घाटन किया। घोषणा की थी कि ये मूर्तियां न कभी गिरेंगी और न ही कभी बदरंग होंगी। इस दावे को चुनौती देते हुए करीब एक महीने बाद 24 नवंबर 2022 को स्मार्ट सिटी प्रशासन ने पीयू कलर्स वेदरकोट प्राइमर आदि का 96 लाख रुपए का टेंडर निकाला, जबकि ये मूर्तियां तीन साल के वारंटी पीरियड में थीं।
निविदा शर्त के अनुसार मूर्तियों के बदरंग होने की वजह मूर्तियों की घिसाई न होना, प्राइमर और वेदरप्रूफ पीयू रंग का पर्याप्त इस्तेमाल न होना है। अब सवाल यह है कि 24 नवंबर 2022 के टेंडर के माध्यम से खरीदी गई सामग्री कहां गई? उसका उपयोग क्यों और किसलिए नहीं हुआ? क्या उक्त टेंडर के माध्यम से कागजी खरीदी की गई? यह जांच का विषय है।

मंत्री का जवाब ने कहा- भ्रष्टाचार हुआ है तो लिखित में दें

कांग्रेस के आरोपों पर नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने पलटवार किया। कहा- महाकाल लोक के लिए कांग्रेस सरकार ने एक नया पैसा नहीं दिया। महाकाल लोक के लिए भू-अर्जन तक भाजपा की सरकार में हुआ। बीच में जब कांग्रेस की सरकार थी, तब सज्जन सिंह वर्मा प्रभारी मंत्री थे। सज्जन सिंह वर्मा ने प्रेजेंटेशन देखा था। उस समय नगरीय प्रशासन मंत्री, पीसी शर्मा भी मौजूद थे। उस समय प्रेजेंटेशन की प्रशंसा की थी। यदि भ्रष्टाचार हुआ है, तो लिखकर दें।
भूपेंद्र सिंह ने कहा- 2016 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के नेतृत्व में देश के इतिहास का सबसे अच्छा सिंहस्थ हुआ था। धार्मिक क्षेत्रों में भाजपा की सरकार में ही काम हुआ है। महाकाल लोक, ओंकारेश्वर, ओरछा, चित्रकूट का विकास भाजपा की सरकार में हुआ। कांग्रेस ने धर्म के लिए कभी कुछ नहीं किया। दिग्विजय सिंह बताएं कि उन्होंने 10 साल में क्या किया? कांग्रेस ने सिर्फ धर्म के नाम पर राजनीति की। कांग्रेस ने हिंदू धर्म का मजाक उड़ाने का काम किया है।

लोकायुक्त ने शुरू की जांच, 2 मूर्तियों को पीछे से काटकर जांचा

1 जून को लोकायुक्त ने पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है। 5 साल में संभवत: यह पहला मामला है, जब लोकायुक्त ने स्वत: संज्ञान लेकर किसी केस में ऐसे जांच दर्ज की है। लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता ने दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत में बताया था कि जांच दर्ज कर तकनीकी शाखा को भेज दी गई है। इसके बाद जांच के लिए 3 जून को लोकायुक्त की टीम जांच के लिए महाकाल लोक पहुंची।
स्मार्ट सिटी के डायरेक्टर नीरज पांडे की मौजूदगी में लोकायुक्त की टीम ने रावण द्वारा कैलाश पर्वत को उठाने एवं मारकंडेश्वर शिव की मूर्तियों के पिछले हिस्से को कटवाया और जांच की। मूर्तियों के अंदर लोहे के पाइप लगे थे। इस वजह से उन्हें बाहर से नुकसान नहीं पहुंचा था। जांच के बाद इन दोनों मूर्तियों के काटे गए हिस्से को फिर से लगवाया गया। लोकायुक्त टीम ने शनिवार को इंच-टेप से यह भी देखा कि लेयर कितने मिलीमीटर की है।
दरअसल, कुछ मूर्तिकारों ने दावा किया था कि जब दस मीटर ऊंचाई पर मूर्तियों को रखा जाता है तो मोटाई आठ एमएम की होनी चाहिए। हालांकि, उनके मुताबिक महाकाल लोक में लगी मूर्तियों में परत की मोटाई तीन मिमी ही रखी गई थी।

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