लीलादेवी के हाथों में उनके बेटे की तस्वीर है जिनकी उम्र 20 साल से अधिक है.
उनका बेटा, राजा साहनी उसी कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन में सवार था जो ओडिशा के बालासोर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई. ये तस्वीर उनके बेटे ने ट्रेन पकड़ने से पहले ली थी. अब अपने बेटे की यही तस्वीर हाथों में लेकर लीलीदेवी बालासोर में उनकी तलाश कर रही हैं. मूल रूप से बिहार की रहने वाली लीलादेवी देवी को घटनास्थल तक पहुंचने में 30 घंटे लगे, लेकिन वो कहती हैं कि उनकी इस मेहनत का अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है. His son, Raja Sahni was aboard the same Coromandel Express train that crashed near Balasore in Odisha. This picture was taken by his son before catching the train. लीलादेवी कहती हैं, "मैंने सभी अस्पतालों और मुर्दाघरों में तलाश किया, लेकिन अब तक उसे खोज नहीं सकी हूं... हमने मुर्दाघरों के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों से सभी मृतकों की तस्वीरें भी दिखाने को कहा.... लेकिन उनमें भी वो नहीं था." Leeladevi says, "I searched all the hospitals and morgues, but still haven't been able to find him... We even asked the officials responsible for the morgues to show us the photos of all the dead... but he was not there either." ."
वो कहती हैं, "मैं दुआ करती हूं कि किसी न किसी तरह वो कहीं मिल जाए. इससे ज़्यादा मैं कुछ नहीं चाहती. ईश्वर मेरे बेटे की रक्षा करे." She says, "I pray that somehow he is found somewhere. I want nothing more than this. May God protect my son." कोरोमंडल एक्सप्रेस में सवार लीलावती देवी के परिवार के आठ अन्य सदस्यों से उनकी मुलाक़ात हो गई है, लेकिन अब तक उनके बेटे का कोई सुराग नहीं मिला. He has met eight other family members of Lilavati Devi who were aboard the Coromandel Express, but till now no clue of her son has been found.
लीलावती का रो-रो कर बुरा हाल है. कई लोगों का भी हाल उन्हीं की तरह है.
ये लोग अपने परिजनों की तलाश में अस्पताल से लेकर मुर्दाघर तक खोज रहे हैं. ये लोग मृतकों की तस्वीरें देख रहे हैं और उनमें किसी तरह का सुराग तलाशने की कोशिश कर रहे हैं जो अपने आप में दिल तोड़ने वाली कोशिश है. साथ ही उनकी उम्मीद इस बात पर भी टिकी है कि उन्हें कहीं से कोई ख़बर मिल जाएगी. These people are searching from hospital to mortuary in search of their relatives. These people are looking at the pictures of the dead and trying to find some kind of clue in them which is heart breaking in itself. Along with this, their hope is also based on the fact that they will get some news from somewhere. राजा साहनी ने बेंगलुरु जाने के लिए हावड़ा से ट्रेन पकड़ने से पहले उन्हें अपनी ये तस्वीर भेजी थी. लेकिन ट्रेन छूटने के क़रीब दो घंटे बाद परिवार के कुछ सदस्यों ने उन्हें फ़ोन कर बताया कि ट्रेन का एक्सीडेंट हो गया है. Raja Sahni had sent him this picture of himself before boarding the train from Howrah to Bangalore. But about two hours after the departure of the train, some family members called him and told him that the train had met with an accident. इसके बाद से लीलावती देवी रह-रह कर लगातार अपने बेटे को फ़ोन मिली रही हैं लेकिन उनका फ़ोन स्विच-ऑफ़ आ रहा है. Since then, Lilavati Devi has been continuously getting phone calls from her son, but her phone is getting switched-off.
बेंगलुरु में दिहाड़ी मज़दूरी
दुर्घटना की ख़बर मिलने के बाद उनके परिजन बालासोर के लिए निकले. ये लोग 30 घंटे बाद यहां पहुंचे. उन्होंने बताया कि बिहार से यहां तक पहुंचने के लिए उन्होने 45,000 रुपये दे कर एक कार किराये पर ली है. लीलावती देवी के तीन बेटे हैं, जिसनें राजा साहनी सबसे छोटे हैं. ये बताते-बताते उनका गला रुंध जा रहा था. राजा साहनी अपना घर छोड़कर समृद्ध माने जाने वाले दक्षिणी भारत के शहर बेंगलुरु में दिहाड़ी मज़दूरी का काम करते थे. वो गांव के अपने कुछ और रिश्तेदारों के साथ वहीं जाने के लिए निकले थे. इस यात्रा के दौरान उन्हें हावड़ा स्टेशन पर ट्रेन बदलनी होती है. लीलावती देवी कहती हैं कि अब उनका बेटा शायद कभी लौट कर नहीं आएगा. भारत में अप्रैल से जून के बीच आम तौर पर ट्रेनों में भीड़ अधिक होती है. इस दौरान स्कूलों में गर्मी की छुट्टियां चल रही होती हैं और लोग घूमने के लिए निकलते हैं. हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर ट्रेनों में ज़रूरत से ज़्यादा भीड़ की कई तस्वीरें और वीडियो वायरल भी हुए थे.
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