gondwana kingdom: महाराजाधिराज की उपाधि लिये 3 वेदिक यज्ञ में से एक यज्ञ कराना अनिवार्य था

For the title of Maharajadhiraj, it was mandatory to perform one of the 3 Vedic Yagyas.   1).In the beginning of the Mughal period, Maharajadhiraj Gaudadhipati Sangram Shah (1482 AD to 1532 AD) performed Ashwamedha Yagya and on this occasion issued a gold coin sitting on a white elephant, which are found in today's Madhya Pradesh, Chhattisgarh, Telangana, Odisha, Vidarbha (Maharashtra), Sambalpur area, these coins (gold, silver, brass) are from,   2).  Maharajadhiraj Gaudadhipati Dalpat Shah (1532 AD to 1550 AD) performed Rajasuya Yagya   3).  Maharajadhiraj Gaudadhipati Premnarayan Shah (1652 AD to 1671 AD) performed Vajpayee Yagya   4).Maharajadhiraj Gaudadhipati Hirday Shah (1671 AD to 1701 AD) performed Rajasuya Yagya   Definition of Vedic Yagya   Yagya, sacrifice, is an act by which we dedicate something to the gods.  Such action should be based on a sacred authority (agam), and should work for the salvation (shreyoartha) of man.  The nature of the gift is less important.  It could be cake (purodasha), lentils (karu), mixed milk (sanayya), an animal (pashu), soma-plant juice (soma), etc.;  No, even the smallest offering of butter, flour and milk can serve the purpose of the sacrifice.

महाराजाधिराज की उपाधि लिये 3 वेदिक यज्ञ में से एक यज्ञ कराना अनिवार्य था

1).मुगल काल के आरंभ में महाराजाधिराज गौडाधिपति संग्राम शाह(1482 AD to 1532 AD) ने अश्वमेध यज्ञ कराया और इसी उपलक्षय में सफेद हाथी पर विराजमान होकर सोने का सिक्का ज़ारी किया जो के आज के मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ तेलंगाना ओडिशा विदर्भ(महाराष्ट्र ) संभलपुर क्षेत्र से मिले ये सिक्के (सोने ,चाँदी ,पीतल )के हैं ,

2). महाराजाधिराज गौडाधिपति दलपत शाह( 1532 AD to 1550 AD) ने राजसूय यज्ञ कराया

3). महाराजाधिराज गौडाधिपति प्रेमनारायण शाह( 1652 AD to 1671 AD) वाजपेय यज्ञ कराया

4).महाराजाधिराज गौडाधिपति हिर्दयशाह( 1671 AD to 1701 AD) ने राजसूय यज्ञ कराया

वैदिक यज्ञ की परिभाषा

यज्ञ, बलिदान, एक ऐसा कार्य है जिसके द्वारा हम देवताओं के लिए कुछ समर्पित करते हैं। इस तरह का कार्य एक पवित्र अधिकार ( अगम ) पर आधारित होना चाहिए, और मनुष्य के उद्धार ( श्रेयोर्था ) के लिए काम करना चाहिए। उपहार की प्रकृति का महत्व कम है। यह केक (पुरोदाशा), दाल ( करु ), मिश्रित दूध ( सानय्या ), एक जानवर (पशु ) , सोम-पौधे का रस (सोम), आदि हो सकता है; नहीं, मक्खन, आटा और दूध की सबसे छोटी भेंट भी बलिदान के उद्देश्य से काम आ सकती है।

— आपस्तंब यज्ञ परिभास-सूत्र 1.1 , अनुवादक: एम धावमोनी [11] [12]

वैदिक यज्ञ /स्रोत यज्ञ

इसमें केवल हवन सामग्री से यज्ञ किया जाता है। वैदिक काल के महत्वपूर्ण यज्ञ -

  1. राजसूय 
  2. अश्वमेध
  3. वाजपेय 

ये बात हमसे क्यों छुपायी जाति है..वेदिक क्षत्रिया किसी को अपने से उच्च नही मानते थे..वेदिक काल में राजा ही सर्वोपरि होता था इसका सबसे बढा उदाहरण गौड राजे रजवाड़ो की प्राचीन भूमि गोंडवाना के छत्तीसगढ़ में एक प्राचीन प्रथा दशहरा पर देखने को मिलती है..ज़िसमें गौंड राजा की पालकी या शोभा निकाली जाति है. ज़िसमें समस्थ क्षेत्र के लोग गोंड राजा की पूजा करते है..छत्तीसगढ़ में मान्यता है. कि राजा इश्वर तुल्य है..अत: दशहरा पर दर्शन करना शुभ होता है

प्रारंभिक ऋगवेदिक आदिम जाति (जनजाति) मुख्यधारा..

ऋग्वैदिक कालीन शासन प्रणाली में सम्पूर्ण कबीले का प्रमुख "राजन" कहलाता था व राजन की पदवी वंशानुगत नहीं होती थी। कबीले की समिति जिसमें महिलाएं भी भागीदार होती थीं, राजा का सर्व सहमति से चयन करती थी। कबीले के जन व पशुधन (गाय) की रक्षा करना राजन का कर्तव्य था। राजपुरोहित राजन का सहयोगी होता था। प्रारंभिक दौर में अलग से कोई सेना नहीं होती थी परंतु कालांतर में शासक व सैनिकों के एक पृथक वर्ग का उदय हुआ। उस समय समाज के विभाजन की प्रणाली वर्णों के आधार पर नहीं थी।[4]

काशीप्रसाद जायसवाल का तर्क है कि ऋग्वेद में "ब्राह्मण" शब्द भी दुर्लभ प्रतीत होता है, यह सिर्फ "पुरुषसूक्त" में ही आया है तथा संभवतः पुरोहित वर्ग विशेष के लिए नहीं प्रयुक्त हुआ है।[7] पाणिनी, पतंजलि, कात्यायन व महाभारत के आधार पर जयसवाल मानते हैं कि राजनैतिक वर्ग को राजन्य नाम से संबोधित किया जाता था तथा राजन्य लोकतान्त्रिक रूप से चुने हुये शासक थे।[9] लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से चुने हुये शासक जैसे कि अंधक व वृष्णि इत्यादि इस संदर्भ में उदाहरण माने जाते हैं।[7]

रामशरण शर्मा दर्शाते हैं कि "राजन्य (राज सहयोगी वर्ग)" व "विस (वंश का कृषक वर्ग)" के मध्य बढ़ते हुये ध्रुवीकरण के उपरान्त कैसे विभिन्न वंश प्रमुखों द्वारा एक सर्वमान्य मुखिया का चयन होता था जिसके फलस्वरूप एक तरफ शासक वर्ग (राजा, राजन्य, क्षत्र, क्षत्रिय) तथा दूसरी तरफ "विस" (उसी वंश के कृषक) जैसे पृथक वर्गों का विभेदीकरण उत्पन्न होता गया।[10]

सामाजिक स्थिति..

ब्राह्मण काल में क्षत्रियों की सामाजिक स्थिति पर मतभेद है। "पंचविंश ब्राह्मण (13,4,7)" के अनुसार राजन्य का स्थान सर्वोच्च है तथा ब्राह्मण व वैश्य उससे नीचे की श्रेणी में हैं। "शतपथ ब्राह्मण 13.8.3.11" के अनुसार राजन्य, ब्राह्मण व वैश्य के बाद दूसरे क्रम पर आते हैं। शतपथ ब्राह्मण में वर्ण क्रम -ब्राह्मण, वैश्य, राजन्य व शूद्र है। वर्तमान ब्राह्मणवादी परंपरा का क्रम - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र, धर्मशास्त्र काल के बाद स्थिर हो गया।[12] बौद्ध काल में प्रायः क्षत्रिय उत्कृष्ट वर्ग माना गया।[13]

🙏जय माँ कली कंकाली दाई 🙏

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