मध्य प्रदेश के पुरातत्व विभाग में इतिहास प्रेमी नही इतिहाश से नफरत करने वाले हैं इसलिए ना सूचना बोर्ड ना ही किले तक पहुंच मार्ग बना
मुलताई। जिले में अपनी अलग ऐतिहासिक पहचान रखने वाला मुलताई के पास स्थित शेरगढ़ का किला रख-रखाव के अभाव एवं उपेक्षा के कारण पर्यटन की संभावना होने के बावजूद अपनी पहचान खोते जा रहा है। पुरातत्व विभाग सहित पंचायत की लापरवाही से फिलहाल यहां पहुंचने वाले दूर-दूर से आए पर्यटकों को निराशा हाथ लगती है। किले में उग आई बड़ी-बड़ी झाडिय़ों से किले के अंदर जाना मुश्किल हो गया है ।
धीरे-धीरे यह ऐतिहासिक धरोवर अपनी पहचान खोते जा रही है और स्थिति अब यह है कि यह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। प्राकृतिक दृष्टि से भी यह स्थान अपनी विशेषता रखता है, किले के आसपास वर्धा नदी सहित छोटी बड़ी पहाडिय़ां और हरी-भरी वादियां इसे और खूबसूरत बनाती है। यहां मोर की संख्या अत्याधिक होने से यह पूरा क्षेत्र मोर की आवाजों से हमेशा गूंजता रहता है वहीं बारिश के दौरान यहां मोर नृत्य करते भी नजर आते हैं जिससे यह स्थान ऐतिहासिक के साथ प्राकृतिक रूप से भी समृद्ध है। एक साथ इतनी विशेषता होने के बावजूद शासन प्रशासन द्वारा इसे क्यों उपेक्षित किया गया है यह समझ से परे हैं लेकिन यदि इसकी सुध ली गई तो पूरे जिले में इससे अधिक दूसरा कोई मनमोहक स्थान नही है जहां पर्यटकों की लाईन लग सकती है।
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प्रकृति प्रेमियों एवं इतिहास में रूचि रखने वालों के लिए महत्वपूर्ण स्थान
शेरगढ़ का किला यूं तो ऐतिहासिक धरोवर है लेकिन अब समय के साथ साथ सिर्फ अवशेष ही शेष है। लेकिन यहां की भौगोलिक एवं प्राकृतिक स्थिति के कारण अभी भी किले का आकर्षण बना हुआ है। वर्धा नदी के तट पर उंची पहाड़ी पर बने किले से आसपास का विहंगम प्राकृतिक नजारा दिखता है जिससे प्रकृति प्रेमियों का जहां मन प्रफुल्लित हो जाता है वहीं इतिहास में रूचि रखने वालों के लिए किले की बनावट एवं संरचना अपने अलग मायने रखती है। विशेष रूप से बारिश में इस जगह पर जो ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक रूप से संयोजन देखने को मिलता है वह अद्भुत है।
किले के अलावा वर्धा नदी का तट भी आकर्षण का केन्द्र है जहां नदी के घुमावदार रास्ते एवं पत्थर की चट्टाने बरबस ही अपनी ध्यान खींच लेती है।
मंदिर एवं मजार दोनों है यहां
शेरगढ़ का किला गोंड राजा शेरसिंह द्वारा बनाया गया था लेकिन बाद में इस पर मुस्लिम शासक द्वारा कब्जा कर लिया गया था इसलिए यहां मंदिर एवं मजार दोनों स्थित है। प्रकृति के बीच में वर्धा नदी की कल-कल एवं प्रकृति के बीच मंदिर,
मस्जिद सहित ऐतिहासिक किला इस स्थान को पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाते हैं। यदि यहां पर सहीं दिशा में विकास किया जाए तो यह किला पर्यटन का एक प्रमुख स्थल हो सकता है तथा मां ताप्ती की नगरी में आने वाले लोगो के लिए भी यह एक घूमने का स्थान हो सकता है लेकिन यह किला हमेशा ही जनप्रतिनिधियों सहित प्रशासन की भी उपेक्षा का शिकार रहा है।
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ना सूचना बोर्ड ना ही किले तक पहुंच मार्ग बना
शेरगढ़ का किला कितनी उपेक्षा का शिकार है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां पहुंच मार्ग उबड़ खाबड़ एवं कच्चा है। किले तक पहुंचने के लिए वाहन को दूर ही खड़ा करना पड़ता है जबकि किले तक व्यवस्थित मार्ग होना आवश्यक है। पूर्व में पंचायत द्वारा यहां वृक्षारोपण तो किया गया था लेकिन मार्ग नही बनाया गया जिससे यहां पहुंचने वाले पर्यटक असमंजस में पड़ जाते हैं।
इसके अलावा प्रभात पट्टन मार्ग पर ना तो किले संबन्धित कोई सूचना बोर्ड लगाया गया है और ना ही किले के पास किले संबन्धित जानकारी की ही कोई बोर्ड है जिससे पहुंचने वाले किले के इतिहास को नही जान पाते। उक्त ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक स्थल की यदि अभी भी सुध ले जी जाए तो यह पूरे जिले के लिए महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हो सकता है।
News Source ANI
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