G20 Summit 2023 In Delhi: जी-20 शिखर सम्मेलन में साझा बयान जारी करना कैसे भारत के लिए है चुनौती

भारत ने जी-20 को एक ऐसे कूटनीतिक आयोजन(diplomatic event) में बदल दिया है जो इससे पहले कभी नहीं देखा गया.  बीते साल 60 भारतीय शहरों में 200 बैठकें आयोजित की गईं(200 meetings were organized in 60 Indian cities). जी-20 शिखर सम्मेलन( G-20 summit) में भाग लेने के लिए नेताओं का दिल्ली पहुंचना जारी है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन(US President Joe Biden), ब्रितानी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक(British Prime Minister Rishi Sunak), जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा(Prime Minister Fumio Kishida), बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना (Prime Minister of Bangladesh Sheikh Hasina) और अन्य नेता दिल्ली पहुंच चुके हैं.  इस सम्मेलन के लिए दिल्ली को बड़े-बड़े होर्डिंगों और पोस्टरों से सजाया गया है(Delhi has been decorated with huge hoardings and posters). इसमें सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों के स्वागत संदेश के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी( PM Narendra Modi) की फोटो है. ये दुनिया को गले लगाने की भारत की तत्परता को दिखा रहे हैं.  ये सारे प्रयास शिखर सम्मेलन( Shikhar Sammelan) के अंत में नेताओं की ओर से एक संयुक्त बयान जारी करने की उनकी क्षमता तक पहुंचेगा. यह अंततराष्ट्रीय चिंता के मुद्दों पर व्यापक सहमति का संकेत है(indicating broad consensus on issues of international concern) .  क्या जारी हो पाएगा साझा बयान?  भारत सम्मेलन के अंत में एक संयुक्त बयान(joint statement) के लिए कड़ी मेहनत( Hard Work) कर रहा है. अगर यह शिखर सम्मेलन बिना किसी साझा घोषणा के खत्म होता है, तो ऐसा पहली बार होगा. लेकिन जी20 के लिए यह आसान नहीं होगा, जो कई मुद्दों पर बंटा हुआ है. इनमें सबसे बड़ा मुद्दा है यूक्रेन युद्ध.  रूस-यूक्रेन युद्ध(Russia-Ukraine war) का साया पिछले साल इंडोनेशिया( Indonesiya) में हुए जी20 शिखर सम्मेलन पर भी मंडरा रहा था, लेकिन जल्दबाजी में ही सही, समूह एक साझा घोषणा जारी करने में सफल रहा था.  उसमें यूक्रेन पर जी-20 में पैदा हुए मतभेदों का ज़िक्र था(There was mention of differences arising in G-20 on Ukraine) . लेकिन उसके बाद से स्थितियां बदल गई हैं. रूस और चीन रियायतें(China concessions) देने के लिए सहमत नहीं हैं और अमेरिका( America) के नेतृत्व वाला पश्चिम युद्ध की साफ-साफ निंदा से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करने वाला.  रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Russian President Vladimir Putin) और उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग ( Xi Jinping) जी-20 शिखर सम्मेल में भाग नहीं ले रहे हैं. इससे फैसला लेना थोड़ा कठिन हो सकता है.  सम्मेलन में रूस का प्रतिनिधित्व उसके विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और चीन का प्रतिनिधित्व वहां के प्रीमियर ली चियांग करेंगे(Russia will be represented by its Foreign Minister Sergei Lavrov and China will be represented by its Premier Li Chiang). लेकिन इनके पास अपने नेताओं से सलाह-मशविरा किए बिना अंतिम समय में कोई रियायत देने की ताकत नहीं हो सकती है.  इस साल के शुरू में जी-20 के विदेश और वित्त मंत्रियों की बैठक भी बिना किसी साझा घोषणा पत्र के खत्म हो गई थी. इसके बाद भी भारत को उम्मीद है कि यूक्रेन का मुद्दा ग्लोबल साउथ और विकासशील देशों की चिंताओं को पटरी से नहीं उतारेगा, जिन पर वह चर्चा करना चाहता है.

भारत ने जी-20 को एक ऐसे कूटनीतिक आयोजन(diplomatic event) में बदल दिया है जो इससे पहले कभी नहीं देखा गया.

बीते साल 60 भारतीय शहरों में 200 बैठकें आयोजित की गईं(200 meetings were organized in 60 Indian cities). जी-20 शिखर सम्मेलन( G-20 summit) में भाग लेने के लिए नेताओं का दिल्ली पहुंचना जारी है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन(US President Joe Biden), ब्रितानी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक(British Prime Minister Rishi Sunak), जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा(Prime Minister Fumio Kishida), बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना (Prime Minister of Bangladesh Sheikh Hasina) और अन्य नेता दिल्ली पहुंच चुके हैं.

इस सम्मेलन के लिए दिल्ली को बड़े-बड़े होर्डिंगों और पोस्टरों से सजाया गया है(Delhi has been decorated with huge hoardings and posters). इसमें सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों के स्वागत संदेश के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी( PM Narendra Modi) की फोटो है. ये दुनिया को गले लगाने की भारत की तत्परता को दिखा रहे हैं.

ये सारे प्रयास शिखर सम्मेलन( Shikhar Sammelan) के अंत में नेताओं की ओर से एक संयुक्त बयान जारी करने की उनकी क्षमता तक पहुंचेगा. यह अंततराष्ट्रीय चिंता के मुद्दों पर व्यापक सहमति का संकेत है(indicating broad consensus on issues of international concern) .

क्या जारी हो पाएगा साझा बयान?

भारत सम्मेलन के अंत में एक संयुक्त बयान(joint statement) के लिए कड़ी मेहनत( Hard Work) कर रहा है. अगर यह शिखर सम्मेलन बिना किसी साझा घोषणा के खत्म होता है, तो ऐसा पहली बार होगा. लेकिन जी20 के लिए यह आसान नहीं होगा, जो कई मुद्दों पर बंटा हुआ है. इनमें सबसे बड़ा मुद्दा है यूक्रेन युद्ध.
रूस-यूक्रेन युद्ध(Russia-Ukraine war) का साया पिछले साल इंडोनेशिया( Indonesiya) में हुए जी20 शिखर सम्मेलन पर भी मंडरा रहा था, लेकिन जल्दबाजी में ही सही, समूह एक साझा घोषणा जारी करने में सफल रहा था.
उसमें यूक्रेन पर जी-20 में पैदा हुए मतभेदों का ज़िक्र था(There was mention of differences arising in G-20 on Ukraine) . लेकिन उसके बाद से स्थितियां बदल गई हैं. रूस और चीन रियायतें(China concessions) देने के लिए सहमत नहीं हैं और अमेरिका( America) के नेतृत्व वाला पश्चिम युद्ध की साफ-साफ निंदा से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करने वाला.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Russian President Vladimir Putin) और उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग ( Xi Jinping) जी-20 शिखर सम्मेल में भाग नहीं ले रहे हैं. इससे फैसला लेना थोड़ा कठिन हो सकता है.
सम्मेलन में रूस का प्रतिनिधित्व उसके विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और चीन का प्रतिनिधित्व वहां के प्रीमियर ली चियांग करेंगे(Russia will be represented by its Foreign Minister Sergei Lavrov and China will be represented by its Premier Li Chiang). लेकिन इनके पास अपने नेताओं से सलाह-मशविरा किए बिना अंतिम समय में कोई रियायत देने की ताकत नहीं हो सकती है.
इस साल के शुरू में जी-20 के विदेश और वित्त मंत्रियों की बैठक भी बिना किसी साझा घोषणा पत्र के खत्म हो गई थी. इसके बाद भी भारत को उम्मीद है कि यूक्रेन का मुद्दा ग्लोबल साउथ और विकासशील देशों की चिंताओं को पटरी से नहीं उतारेगा, जिन पर वह चर्चा करना चाहता है.
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