शारदा देवी मंदिर मदन महल : मुगल बादशाह बाजबहादुर को हराने के बाद शुरू हुई ध्वज अर्पण की परम्परा

वीरांगना रानी दुर्गावती के आह्वान पर पहाड़ी पर विराजमान हुईं माँ शारदा शारदा देवी मंदिर मदन महल : मुगल बादशाह को शिकस्त देने के बाद शुरू हुई ध्वज अर्पण की परम्परा  शारदा देवी मंदिर मदन महल : मुगल बादशाह को शिकस्त देने के बाद शुरू हुई ध्वज अर्पण की परम्परा  सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए गोंडवाना साम्राज्य में भी देवी आराधना की परम्परा रही है। गोंड वंश की रानी दुर्गावती ने अपने साम्राज्य में अकाल पडऩे पर शारदा माता की प्रतिमा स्थापित कर उनका आह्वान किया। माँ अपनी बेटी के आग्रह को टाल न सकीं और इस तरह माँ की प्रतिमा के स्थापित होने के बाद साम्राज्य में बारिश का दौर शुरू हुआ। यही वजह है कि आराधना व भक्ति के साथ यह स्थान मनोकामना पूर्ण करने के लिए भी जाना जाता है। आज भी दूर-दूर से लोग अपनी मन्नत लेकर यहाँ आते हैं। माँ शारदा सभी की मनाकानाओं को पूरा करती हैं। मन को असीम शांति प्रदान करता है प्रकृति की गोद में बना स्थल मालवा के मुगल बादशाह सुजात खान के पुत्र बाज बहादुर ने गोंडवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया। इस युद्ध में रानी ने दुश्मन सेना के दाँत खट्टे कर दिए थे। बाज बहादुर को जान बचाकर भागना पड़ा। इस विजय के बाद रानी पूरी सेना के साथ माता के दरबार में पहुँचीं और उनके चरणों में ध्वजा अर्पित की, तभी से यह परम्परा बन गई। सावन माह के सोमवार और चैत्र व शारदीय नवरात्रि में यहाँ ध्वज अर्पित किए जाते हैं। यह स्थल मन को भी शांति प्रदान करता है।   Sharda Temple In Jabalpur। मदन महल पहाड़ी के नीचे पर ऊंचाई पर स्थित मां शारदा मंदिर अपने आप में अनूठा है। मनमोहक हरियाली के बीच ऊंचाई पर स्थित शारदा मां का मंदिर अलौकिक शक्ति केंद्र है। आध्यात्मिक, पौराणिक महत्व के कारण एकांत साधना का उत्कृष्ट धार्मिक स्थल भी है। मंदिर का निर्माण गोंडवाना साम्राज्य की वीरांगना रानी दुर्गावती ने कराया था।  वीरांगना के स्वप्न में आईं माता  रानी दुर्गावती खुद यहां मां शारदा का पूजन करने आती थीं। इस ऐतिहासिक मंदिर में सावन के महीने में मेला भी लगता है। श्रद्धालु यहां भक्ति भाव से बड़े-बड़े झंडे चढ़ाते हैं। बारिश मेंं बिखरी प्रकृति की अद्भुत छटा देखते ही बनती है। कहा जाता है कि वीरांगना रानी दुर्गावती के स्वप्न में मां शारदा माता आई थीं, उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया था। वे यहां प्रतिदिन मां शारदा पूजन करने भी आती थीं।  पहली बार मां को विजय ध्वज अर्पित किया था  एक मुगल शासक को शिकस्त देने के बाद उन्होंने पहली बार मां को विजय ध्वज अर्पित किया था। तब से यहां झंडा चढ़ाने की परंपरा का लोग आज भी निर्वहन कर रहे हैं। मंदिर के पुजारी का कहना है कि मंदिर आज भी विजय और इच्छाओं की पूर्ति का प्रतीक है। अपने दुख-दर्द को लेकर भक्त मातारानी के दरबार में हाजिरी लगाते हैं और मां उनकी मनोकामना पूरी करती हैं। यह मंदिर हिंदू धर्म से जुड़े लोगों के लिए बड़ा आस्था का केंद्र माना जाता है।  मिलती है आध्यात्मिक शांति  मदनमहल पहाड़ी के नीचे स्थापित इस मंदिर में अलग तरह की शांति का आभाष होता है। हरे-भरे पेड़ पौधे, चट्टान, पक्षियों का सुमधुर कलरव भी भाता है। सावन साेमवार को यहां की अलग छंटा ही देखते मिलती है। चारों तरफ बड़े-बड़े झंडे लहराते हैं। लोग भक्ति भाव से मातारानी काे झंडे अपर्ण करते हैं। इसी तरह चैत्र, शारदीय नवरात्र में यहां अच्छी खासी भीड़ होती है। मंदिर के पास ही फलफूल की दुकानें भी हैं, जहां प्रसाद, फल, फूल, झंडा, चुनरी और मां का श्रृगांर मिलता है। मंदिर पर ऊंचाई पर होने से बढि़यां सीमेंट रोड और प्रकाश की भी उत्तम व्यवस्था भी है।

वीरांगना रानी दुर्गावती के आह्वान पर पहाड़ी पर विराजमान हुईं माँ शारदा शारदा देवी मंदिर मदन महल : मुगल बादशाह को शिकस्त देने के बाद शुरू हुई ध्वज अर्पण की परम्परा

शारदा देवी मंदिर मदन महल : मुगल बादशाह को शिकस्त देने के बाद शुरू हुई ध्वज अर्पण की परम्परा

सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए गोंडवाना साम्राज्य में भी देवी आराधना की परम्परा रही है। गोंड वंश की रानी दुर्गावती ने अपने साम्राज्य में अकाल पडऩे पर शारदा माता की प्रतिमा स्थापित कर उनका आह्वान किया। माँ अपनी बेटी के आग्रह को टाल न सकीं और इस तरह माँ की प्रतिमा के स्थापित होने के बाद साम्राज्य में बारिश का दौर शुरू हुआ। यही वजह है कि आराधना व भक्ति के साथ यह स्थान मनोकामना पूर्ण करने के लिए भी जाना जाता है। आज भी दूर-दूर से लोग अपनी मन्नत लेकर यहाँ आते हैं। माँ शारदा सभी की मनाकानाओं को पूरा करती हैं। मन को असीम शांति प्रदान करता है प्रकृति की गोद में बना स्थल मालवा के मुगल बादशाह सुजात खान के पुत्र बाज बहादुर ने गोंडवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया। इस युद्ध में रानी ने दुश्मन सेना के दाँत खट्टे कर दिए थे। बाज बहादुर को जान बचाकर भागना पड़ा। इस विजय के बाद रानी पूरी सेना के साथ माता के दरबार में पहुँचीं और उनके चरणों में ध्वजा अर्पित की, तभी से यह परम्परा बन गई। सावन माह के सोमवार और चैत्र व शारदीय नवरात्रि में यहाँ ध्वज अर्पित किए जाते हैं। यह स्थल मन को भी शांति प्रदान करता है। 

Sharda Temple In Jabalpur। मदन महल पहाड़ी के नीचे पर ऊंचाई पर स्थित मां शारदा मंदिर अपने आप में अनूठा है। मनमोहक हरियाली के बीच ऊंचाई पर स्थित शारदा मां का मंदिर अलौकिक शक्ति केंद्र है। आध्यात्मिक, पौराणिक महत्व के कारण एकांत साधना का उत्कृष्ट धार्मिक स्थल भी है। मंदिर का निर्माण गोंडवाना साम्राज्य की वीरांगना रानी दुर्गावती ने कराया था।

वीरांगना के स्वप्न में आईं माता

रानी दुर्गावती खुद यहां मां शारदा का पूजन करने आती थीं। इस ऐतिहासिक मंदिर में सावन के महीने में मेला भी लगता है। श्रद्धालु यहां भक्ति भाव से बड़े-बड़े झंडे चढ़ाते हैं। बारिश मेंं बिखरी प्रकृति की अद्भुत छटा देखते ही बनती है। कहा जाता है कि वीरांगना रानी दुर्गावती के स्वप्न में मां शारदा माता आई थीं, उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया था। वे यहां प्रतिदिन मां शारदा पूजन करने भी आती थीं।

पहली बार मां को विजय ध्वज अर्पित किया था

एक मुगल शासक को शिकस्त देने के बाद उन्होंने पहली बार मां को विजय ध्वज अर्पित किया था। तब से यहां झंडा चढ़ाने की परंपरा का लोग आज भी निर्वहन कर रहे हैं। मंदिर के पुजारी का कहना है कि मंदिर आज भी विजय और इच्छाओं की पूर्ति का प्रतीक है। अपने दुख-दर्द को लेकर भक्त मातारानी के दरबार में हाजिरी लगाते हैं और मां उनकी मनोकामना पूरी करती हैं। यह मंदिर हिंदू धर्म से जुड़े लोगों के लिए बड़ा आस्था का केंद्र माना जाता है।

मिलती है आध्यात्मिक शांति

मदनमहल पहाड़ी के नीचे स्थापित इस मंदिर में अलग तरह की शांति का आभाष होता है। हरे-भरे पेड़ पौधे, चट्टान, पक्षियों का सुमधुर कलरव भी भाता है। सावन साेमवार को यहां की अलग छंटा ही देखते मिलती है। चारों तरफ बड़े-बड़े झंडे लहराते हैं। लोग भक्ति भाव से मातारानी काे झंडे अपर्ण करते हैं। इसी तरह चैत्र, शारदीय नवरात्र में यहां अच्छी खासी भीड़ होती है। मंदिर के पास ही फलफूल की दुकानें भी हैं, जहां प्रसाद, फल, फूल, झंडा, चुनरी और मां का श्रृगांर मिलता है। मंदिर पर ऊंचाई पर होने से बढि़यां सीमेंट रोड और प्रकाश की भी उत्तम व्यवस्था भी है।

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