Gondwana Itihash: गोंड शासकों के तंत्र विद्या की कहानी कहता है काला पहाड़

रामनगर मंडला | Ramnagar Mandla: मंडला जिले के रामनगर में स्थित किला एक प्राचीन धरोहर है, नर्मदा नदी के तट पर स्थित यह किला आज भी प्राचीन होते हुए भी अच्छा है। सरकार द्वारा संरक्षित यह किला पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह एक ऐतिहासिक किला है, यहां कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। यहां जाने पर प्राचीन धरोहरों की जानकारी मिलती है।यह 17वीं शताब्दी के अंत में गोंड राजाओं द्वारा बनवाया गया था। इसका निर्माण नर्मदा नदी के एक लूप में किया गया है। यह गोंड वास्तुकला का शानदार और सुंदर नमूना है।  गोंड वंश की राजधानी चोरागढ़ हुआ करती थी। 1651 ई. में जुझार सिंह का भाई पहाड़सिंह के चौरागढ़ के जागीरदार बन जाने से हृदय शाह के हाथ से निकल गया। इसके बाद हृदयशाह ने राजधानी परिवर्तन का फैसला का लिया और सुरक्षित, सुदूर सुरम्य वातावरण में सतपुड़ा के जंगलों से 20 किमी. दूर नर्मदा के किनारे रामनगर मंडला को लगभग 1651-52 ई. के आसपास अपनी राजधानी बनाया।   हृदय शाह ने यहाँ अनेक महलों और मंदिरों का निर्माण कराया और सबसे मुख्य काम बाहर से कुशल श्रमिकों को बुलाकर बसाया। हृदयशाह की कीर्ति के महत्वपूर्ण साक्ष्य रामनगर में स्थित भवन में है। इन्होने मोती महल, रानी महल, राय भगत की कोठी और विष्णु मंदिर का निर्माण कराया ,जो आज भी सुरक्षित है। सभी इमारतों को बचने का प्रयास पुरातत्व विभाग के द्वारा किया जा रहा है।  24 अप्रैल 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रामनगर मंडला आकर आदिवासी विकास पंचवर्षीय का प्रारंभ किया। समय समय पर यहाँ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और मंत्री का आना जाना होता रहता है।  निर्माण को लेकर किवंदतियां  प्रचलित दन्त कथाओं के अनुसार इस रामनगर मंडला महल का निर्माण ढाई दिन में हुआ है राजा हृदय शाह तंत्र विद्या में माहिर थे और इन्होने अपनी तंत्र शक्ति से महल का निर्माण किया और इसके निर्माण में पत्थर उड़ कर महल तक आये थे।  आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार हृदयशाह तंत्र विद्या के जानकर थे, किन्तु महल में प्रयोग किये गये अष्टफलकीय पत्थर बहार से बुलवाए गए थे और बचे हुए पत्थर जहा रखे वही आज काला पहाड़ के नाम से प्रसिद्ध है। प्राकृतिक नजारों से समृद्ध और माँ नर्मदा के अनुपम दृश्य इस महल की शोभा बढ़ाते है। यहाँ रोजाना ही देशी विदेशी पर्यटक आते है, जिससे यहाँ के स्थानीय लोगो को रोजगार भी मिलता है।  काला पहाड़ अपने में कई पहेलियां छिपाए मंडला। गोंडकालीन शासक हृदयशाह ने मंडला से 17 किमी दूर जंगलों के बीच सुरम्य वातावरण में नर्मदा किनारे रामनगर में अपनी राजधानी बनाई थी। राजधानी में कई ऐतिहासिक और शानदार महल एवं इमारतों का निर्माण कराया जो आज भी गोंडकालीन शासन के विरासत के रूप में पूरी दुनिया में पहचानी जाती है। गोंडकालीन राजधानी रामनगर के भव्य महल और इमारतों के साथ एक और वह रहस्मयी स्थान है जिसे काला पहाड़ के नाम से जाना जाता है। आज भी रामनगर का काला पहाड़ अपने में कई पहेलियां और अनसुलझे प्रश्न छिपाए हुए है। जिसे जानने और समझने के लिए प्रतिवर्ष सैकड़ों सैलानी दुनिया के अलग अलग कोने से रामनगर में भ्रमण करने पहुंचते हैं।  रामनगर से लगभग 4 किमी की दूरी पर स्थित अष्टफलकीय काले पत्थरों का पहाड़ है। इसे ही काला पहाड़ के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि राजा हृदय शाह ने अपने तंत्र मंत्र के बल पर काले पहाड़ से पत्थरों को हवा में उड़ाकर लाए थे और महज ढाई दिनों में ही महलों का निर्माण हुआ था। जबकि इतिहासकारों की पुस्तकों में बताया गया है कि संभवत: रामनगर के महलों के निर्माण के लिए ये पत्थर अन्य स्थानों से बुलवाए गए थे। महलों के निर्माण के बाद इन पत्थरों को रामनगर राजधानी से कुछ किमी दूर रखवाया गया और अत्यधिक संख्या में होने के कारण पहाड़ के रूप में दिखाई पड़ते हैं। इन पत्थरों पर आज तक कोई वनस्पति नहीं पाई गई। यही कारण है कि इन पत्थरों को रहस्यमयी माना जाता है।

रामनगर मंडला | Ramnagar Mandla: मंडला जिले के रामनगर में स्थित किला एक प्राचीन धरोहर है, नर्मदा नदी के तट पर स्थित यह किला आज भी प्राचीन होते हुए भी अच्छा है। सरकार द्वारा संरक्षित यह किला पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह एक ऐतिहासिक किला है, यहां कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। यहां जाने पर प्राचीन धरोहरों की जानकारी मिलती है।यह 17वीं शताब्दी के अंत में गोंड राजाओं द्वारा बनवाया गया था। इसका निर्माण नर्मदा नदी के एक लूप में किया गया है। यह गोंड वास्तुकला का शानदार और सुंदर नमूना है।

गोंड वंश की राजधानी चोरागढ़ हुआ करती थी। 1651 ई. में जुझार सिंह का भाई पहाड़सिंह के चौरागढ़ के जागीरदार बन जाने से हृदय शाह के हाथ से निकल गया। इसके बाद हृदयशाह ने राजधानी परिवर्तन का फैसला का लिया और सुरक्षित, सुदूर सुरम्य वातावरण में सतपुड़ा के जंगलों से 20 किमी. दूर नर्मदा के किनारे रामनगर मंडला को लगभग 1651-52 ई. के आसपास अपनी राजधानी बनाया। 

हृदय शाह ने यहाँ अनेक महलों और मंदिरों का निर्माण कराया और सबसे मुख्य काम बाहर से कुशल श्रमिकों को बुलाकर बसाया। हृदयशाह की कीर्ति के महत्वपूर्ण साक्ष्य रामनगर में स्थित भवन में है। इन्होने मोती महल, रानी महल, राय भगत की कोठी और विष्णु मंदिर का निर्माण कराया ,जो आज भी सुरक्षित है। सभी इमारतों को बचने का प्रयास पुरातत्व विभाग के द्वारा किया जा रहा है।

24 अप्रैल 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रामनगर मंडला आकर आदिवासी विकास पंचवर्षीय का प्रारंभ किया। समय समय पर यहाँ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और मंत्री का आना जाना होता रहता है।

निर्माण को लेकर किवंदतियां 

प्रचलित दन्त कथाओं के अनुसार इस रामनगर मंडला महल का निर्माण ढाई दिन में हुआ है राजा हृदय शाह तंत्र विद्या में माहिर थे और इन्होने अपनी तंत्र शक्ति से महल का निर्माण किया और इसके निर्माण में पत्थर उड़ कर महल तक आये थे।

आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार हृदयशाह तंत्र विद्या के जानकर थे, किन्तु महल में प्रयोग किये गये अष्टफलकीय पत्थर बहार से बुलवाए गए थे और बचे हुए पत्थर जहा रखे वही आज काला पहाड़ के नाम से प्रसिद्ध है। प्राकृतिक नजारों से समृद्ध और माँ नर्मदा के अनुपम दृश्य इस महल की शोभा बढ़ाते है। यहाँ रोजाना ही देशी विदेशी पर्यटक आते है, जिससे यहाँ के स्थानीय लोगो को रोजगार भी मिलता है।

काला पहाड़ अपने में कई पहेलियां छिपाए

मंडला। गोंडकालीन शासक हृदयशाह ने मंडला से 17 किमी दूर जंगलों के बीच सुरम्य वातावरण में नर्मदा किनारे रामनगर में अपनी राजधानी बनाई थी। राजधानी में कई ऐतिहासिक और शानदार महल एवं इमारतों का निर्माण कराया जो आज भी गोंडकालीन शासन के विरासत के रूप में पूरी दुनिया में पहचानी जाती है। गोंडकालीन राजधानी रामनगर के भव्य महल और इमारतों के साथ एक और वह रहस्मयी स्थान है जिसे काला पहाड़ के नाम से जाना जाता है। आज भी रामनगर का काला पहाड़ अपने में कई पहेलियां और अनसुलझे प्रश्न छिपाए हुए है। जिसे जानने और समझने के लिए प्रतिवर्ष सैकड़ों सैलानी दुनिया के अलग अलग कोने से रामनगर में भ्रमण करने पहुंचते हैं।

रामनगर से लगभग 4 किमी की दूरी पर स्थित अष्टफलकीय काले पत्थरों का पहाड़ है। इसे ही काला पहाड़ के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि राजा हृदय शाह ने अपने तंत्र मंत्र के बल पर काले पहाड़ से पत्थरों को हवा में उड़ाकर लाए थे और महज ढाई दिनों में ही महलों का निर्माण हुआ था। जबकि इतिहासकारों की पुस्तकों में बताया गया है कि संभवत: रामनगर के महलों के निर्माण के लिए ये पत्थर अन्य स्थानों से बुलवाए गए थे। महलों के निर्माण के बाद इन पत्थरों को रामनगर राजधानी से कुछ किमी दूर रखवाया गया और अत्यधिक संख्या में होने के कारण पहाड़ के रूप में दिखाई पड़ते हैं। इन पत्थरों पर आज तक कोई वनस्पति नहीं पाई गई। यही कारण है कि इन पत्थरों को रहस्यमयी माना जाता है।

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