असम सरकार ने 1,281 मदरसों का नाम बदलकर 'मध्य अंग्रेज़ी' अर्थात एमई स्कूल कर दिया है.
असम प्रारंभिक शिक्षा निदेशक कार्यालय ने बुधवार को एक आदेश जारी कर इन सभी सरकार संचालित और सरकारी सहायता प्राप्त 'एमई मदरसों' (मिडिल स्कूल मदरसा) को तत्काल प्रभाव से सामान्य स्कूलों में बदलने का निर्देश दिया था. असम के शिक्षा मंत्री रनोज पेगु ने भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट कर बताया, “सभी सरकारी और प्रांतीय मदरसों को असम माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तहत सामान्य स्कूलों में परिवर्तित करने के परिणामस्वरूप आज एक अधिसूचना के ज़रिए 1,281 एमई मदरसों के नाम बदलकर एमई स्कूल कर दिए गए हैं.” दरअसल असम में कई दशकों से चल रहे इन मदरसों को बंद करने को लेकर न केवल विवाद पैदा हो गया है बल्कि एक बड़ा तबका बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार पर ध्रुवीकरण की राजनीति करने का आरोप भी लगा रहा है. ऑल असम मदरसा स्टूडेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके वहिदुज़्ज़मान के अनुसार, इन मदरसों को बंद करने का मतलब वहां पढ़ने वाले छात्रों के साथ नाइंसाफ़ी करना है.
मदरसों की क़ानूनी वैधता
असम में सरकारी मदरसों को बंद करने को लेकर राज्य के विधायी और कार्यकारी निर्णयों को चुनौती देते हुए गुवाहाटी हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई थी. लेकिन हाई कोर्ट ने इस पर सुनवाई के बाद 4 फरवरी 2022 को रिट याचिका को यह कहते हुए ख़ारिज़ कर दिया कि असम सरकार द्वारा बनाया गया असम निरसन अधिनियम, 2020 वैध है. फिलहाल यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है. गुवाहाटी हाई कोर्ट में रिट याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी करने वाले वकील एआर भुइयां कहते हैं, "जिन मदरसों को स्कूल में तब्दील किया गया है वो पूरी तरह से मदरसे नहीं थे. इन मदरसों में अरबी पाठ्यक्रम के साथ हाई स्कूल में पाए जाने वाले सभी विषयों की पढ़ाई होती है." "परंतु सरकार का कहना है कि सरकारी पैसे से धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती. इसी वजह से इन मदरसों को सामान्य स्कूलों में तब्दील कर दिया गया." वो कहते हैं, "लेकिन भारत के संविधान ने खासतौर पर अनुच्छेद 25, 29 और 30 के तहत जो अधिकार दिए हैं सरकार उसका हनन कर रही है. मदरसों में क्या पढ़ाया जाएगा उसको सरकार नियंत्रित नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट में यह मामला दाखिल हो गया है और अब हम सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं." असम सरकार ने सभी सरकारी मदरसों के साथ राज्य-संचालित संस्कृत टोल्स यानी संस्कृत केंद्रों को भी बंद करने का निर्णय लिया था. भुइयां बताते हैं, "राज्य सरकार ने सभी संस्कृत केंद्रों को कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत एवं प्राचीन अध्ययन विश्वविद्यालय में मिला दिया है. जबकि संस्कृत टोल्स के पाठ्यक्रम और सिलेबस में ज्यादा कुछ बदला नहीं गया है."
मदरसों पर विवाद और नए नियम
मुख्यमंत्री सरमा 2020 से मदरसों को लेकर कई आयोजनों में आक्रमक बयान देते आ रहे हैं. उन्होंने इस साल मार्च में कर्नाटक के बेलगावी में बीजेपी की विजय संकल्प यात्रा को संबोधित करते हुए कहा था, “मैंने 600 मदरसों को बंद कर दिया है. लेकिन मेरा इरादा सभी मदरसों को बंद करने का है. क्योंकि हमें मदरसों की ज़रूरत नहीं हैं. हमें डॉक्टर, इंजीनियर बनाने के लिए स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय की ज़रूरत है." इन मदरसों में होने वाली पढ़ाई को लेकर पहले कुछ विवाद भी सामने आए हैं. कट्टरपंथी हिंदू संगठनों का आरोप है कि दूरदराज़ के इलाकों में नियमित स्कूल नहीं है वहां के कुछ मदरसों में कट्टरपंथी इस्लाम की पढ़ाई कराई जाती है. असम में पिछले साल चार मदरसों को राष्ट्र विरोधी और जिहादी गतिविधियों में कथित संलिप्तता के आरोप में ढहा दिया गया था. इस साल फरवरी में असम पुलिस के महानिदेशक ने प्राइवेट मदरसे चलाने वाले लोगों के साथ बैठक कर कुछ नियम भी तय किये थे. इन नियमों के तहत 5 किलोमीटर के दायरे में केवल एक ही मदरसा होगा. जिन मदरसों में 50 से कम छात्र हैं वो पास के किसी बड़े मदरसे में खुद को शामिल कर लेगा. इसके अलावा मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों उनके अभिभावकों, हेड मास्टर समेत सभी शिक्षकों की संपूर्ण जानकारी समय-समय पर सरकार को उपलब्ध करानी होगी.
मदरसे के मुद्दे के पीछे की राजनीति
असम में दो तरह के मदरसे हैं. एक सरकारी मान्यता प्राप्त मदरसा जो पूरी तरह सरकारी अनुदान से चलते थे और दूसरा खेराजी जिसे निजी संगठन चलाते हैं. असम के शिक्षा पाठ्यक्रम में मदरसा शिक्षा को 1934 में शामिल किया गया था और उसी वर्ष राज्य मदरसा बोर्ड का भी गठन किया गया था. लेकिन 12 फरवरी 2021 में एक अधिसूचना जारी कर राज्य मदरसा बोर्ड को भंग कर दिया गया. असम में मदरसों का सरकार ने 1995 में सरकारी करण किया था. इन सरकारी अनुदान वाले मदरसों को प्री-सीनियर, सीनियर और टाइटल मदरसे में बांट रखा था. प्री-सीनियर मदरसे में छठी से आठवीं कक्षा तक शिक्षा प्रदान की जाती थी. सीनियर मदरसे में कक्षा आठवीं से बारहवीं तक और टाइटल मदरसे में स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई करवाई जाती थी. इसके अलावा राज्य में चार अरबी कॉलेज भी थे जिसमें कक्षा छह से स्नातकोत्तर स्तर तक की पढ़ाई करवाई जा रही थी. लेकिन असम सरकार द्वारा साल 2020 में निरस्तीकरण अधिनियम लाने से ये सभी मदरसे और अरबी कॉलेज प्रभावित हुए हैं. सरकार सालाना इन मदरसों पर लगभग तीन से चार करोड़ रुपए खर्च करती आ रही थी. असम में इस समय सात बोर्ड के तहत कुल 2250 प्राइवेट मदरसे चल रहे हैं. ऑल असम तंज़ीम मदारिस कौमिया के अंतर्गत सबसे अधिक 1503 प्राइवेट मदरसे हैं. ऑल असम तंज़ीम मदारिस के सचिव मौलाना अब्दुल कादिर कासमी ने बीबीसी से कहा, "मुख्यमंत्री अपनी बात का ही खंडन करते हैं जब वो कहते हैं कि प्राइवेट मदरसों में विज्ञान, गणित जैसे सामान्य विषय पढ़ाया जाए. जबकि जिन सरकारी मदरसों को वो बंद कर रहे हैं उनमें अरबी-उर्दू के अलावा सभी सामान्य विषय पढ़ाए जा रहे थे." "मुख्यमंत्री जब यह कहते हैं कि सरकार मदरसों में मुल्ला-मौलवी नहीं बनाएगी तो बड़ी तकलीफ होती है. वे इस बात से वाक़िफ़ हैं कि इस मुल्क के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद थे जिन्होंने देश की तालीम के लिए नीतियां बनाई थी. सब जानते हैं कि मदरसों को मुद्दा बनाने के पीछे क्या राजनीति है?"
विवाद और राजनीति
वहिदुज़्ज़मान कहते हैं, "मदरसों को लेकर एक ग़लत धारणा फैलाई गई है. जिन मदरसों को सरकार ने स्कूल में तब्दील किया है इसमें धार्मिक शिक्षा के साथ विज्ञान, गणित, अंग्रेज़ी, सामाजिक विज्ञान जैसे सामान्य विषय भी पढ़ाए जा रहे थे." उनका कहना है कि मदरसों में पढ़ाई करने वाले काफी छात्र डॉक्टर, वकील से लेकर कई बड़े पेशे में गए हैं. वो कहते हैं, "यह फैसला एक तरह की राजनीति के तहत लिया गया है. क्योंकि इससे पहले जब हिमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस सरकार में शिक्षा मंत्री थे उस दौरान उन्होंने मदरसों के विकास के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए थे लेकिन बीजेपी में आने के बाद वे बिल्कुल बदल गए हैं." दरअसल असम में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार ने साल 2020 में ही राज्य-संचालित सभी मदरसों को बंद करने का निर्णय ले लिया था. असम सरकार के कैबिनेट ने 13 नवंबर 2020 को एक बैठक कर "प्रांतीय" मदरसों को नियमित उच्च विद्यालयों में परिवर्तित करने तथा इन मदरसों में धार्मिक विषयों की शिक्षा को वापस लेने का फैसला किया था. कैबिनेट के उस फैसले के दौरान मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा राज्य के शिक्षा मंत्री थे. इसके बाद 2021 में दो मदरसा शिक्षा-संबंधित अधिनियमों को समाप्त करने के लिए एक कानून बनाकर सभी सरकारी और प्रांतीय मदरसों को बंद करने की प्रक्रिया शुरू की गई. इस तरह 27 जनवरी 2021 को असम के राज्यपाल की सहमति के बाद असम मदरसा शिक्षा (प्रांतीयकरण) अधिनियम, 1995 और असम मदरसा शिक्षा (शिक्षकों की सेवाओं का प्रांतीयकरण और शैक्षणिक संस्थानों का पुनर्गठन) अधिनियम, 2018 को निरस्त कर दिया गया.
बीजेपी क्या कहती है
राज्य में सरकारी मदरसों को बंद करने को लेकर असम प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रमोद स्वामी ने कहा कि मज़हबी शिक्षा सरकारी अनुदान से नहीं दी जा सकती.
उनके अनुसार, 'इसीलिए सरकारी मदरसों को असम माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तहत स्कूल में तब्दील कर दिया गया है.' वो कहते हैं, "हमारा मक़सद मुसलमान बच्चों को गुणवत्ता शिक्षा उपलब्ध कराना है. ताकि वो आगे चलकर अन्य बच्चों की तरह डॉक्टर, इंजीनियर बनकर देश की सेवा करें. सरकार ने यह फैसला अल्पसंख्यक बच्चों के हित में लिया है." राजनीतिक मंशा पर उठे सवालों पर उन्होंने कहा, "हमारी पार्टी मुसलमान समुदाय को वोट बैंक की राजनीति के लिए इस्तेमाल नहीं करती. इसमें किसी तरह की कोई राजनीति नहीं है." वो कहते हैं कि प्राइवेट मदरसों पर सरकार ने कोई भी कदम नहीं उठाया है, 'मज़हबी शिक्षा के लिए प्राइवेट मदरसे चलते रहेंगे.' असम के जिन 1281 सरकारी मदरसों को स्कूलों में बदला गया है वो कुल 19 ज़िलों में थे. बांग्लादेश की सीमा से सटे असम के धुबरी ज़िले में सबसे ज्यादा 269 मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदला गया है. जबकि नौगांव ज़िले में 165 तथा बारपेटा 158 मदरसों को अब सामान्य स्कूलों में मिला दिया गया है.
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