बीजेपी ने मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के बदले मोहन यादव को क्यों चुना? शिवराज सिंह चौहान का क्या होगा?

''मोहन यादव कौन हैं?'' भोपाल में बीजेपी मुख्यालय में जब मध्य प्रदेश के नए सीएम का एलान किया गया तो बाहर खड़े पत्रकारों और लोगों के मन में ये सवाल सबसे पहले आया.  एमपी के नए सीएम के नाम को लेकर मीडिया में जो भी ख़बरें चल रही थीं, मोहन यादव का नाम उनमें कहीं नहीं था.  बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के इस चौंकाने वाले क़दम की ख़बरें दिल्ली से छपने वाले सभी अख़बारों में छाई हुई हैं.  द हिंदू की रिपोर्ट में लिखा है कि मोहन यादव के नाम का एलान होने से पहले जो समर्थक शिवराज सिंह चौहान, प्रह्लाद सिंह पटेल समेत संभावित मुख्यमंत्री पद के दावेदारों के समर्थन में नारे लगा रहे थे, वही समर्थक एलान होते ही मोहन यादव को लेकर नारे लगाने लगे.  ये फै़सला उन लोगों के लिए चौंकाने वाला रहा, जो ये कह रहे थे कि अगर शिवराज सिंह चौहान को नहीं लाया गया तो बीजेपी प्रह्लाद पटेल और नरेंद्र सिंह तोमर के साथ जा सकती है.  चर्चा बीजेपी के महासचिव और विधायक कैलाश विजयवर्गीय, ज्योतिरादित्य सिंधिया की भी रही थी. मगर इन नामों में से सिर्फ़ नरेंद्र सिंह तोमर को स्पीकर पद मिला.  बीजेपी नेतृत्व एक ऐसे नाम के साथ आई, जिनके बारे में किसी राजनीतिक विश्लेषक को अंदाज़ा भी नहीं था. बीजेपी पहले भी ऐसे चौंकाने वाले नामों के साथ सामने आती रही है.

''मोहन यादव कौन हैं?'' भोपाल में बीजेपी मुख्यालय में जब मध्य प्रदेश के नए सीएम का एलान किया गया तो बाहर खड़े पत्रकारों और लोगों के मन में ये सवाल सबसे पहले आया.

एमपी के नए सीएम के नाम को लेकर मीडिया में जो भी ख़बरें चल रही थीं, मोहन यादव का नाम उनमें कहीं नहीं था.

बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के इस चौंकाने वाले क़दम की ख़बरें दिल्ली से छपने वाले सभी अख़बारों में छाई हुई हैं.

द हिंदू की रिपोर्ट में लिखा है कि मोहन यादव के नाम का एलान होने से पहले जो समर्थक शिवराज सिंह चौहान, प्रह्लाद सिंह पटेल समेत संभावित मुख्यमंत्री पद के दावेदारों के समर्थन में नारे लगा रहे थे, वही समर्थक एलान होते ही मोहन यादव को लेकर नारे लगाने लगे.

ये फै़सला उन लोगों के लिए चौंकाने वाला रहा, जो ये कह रहे थे कि अगर शिवराज सिंह चौहान को नहीं लाया गया तो बीजेपी प्रह्लाद पटेल और नरेंद्र सिंह तोमर के साथ जा सकती है.

चर्चा बीजेपी के महासचिव और विधायक कैलाश विजयवर्गीय, ज्योतिरादित्य सिंधिया की भी रही थी. मगर इन नामों में से सिर्फ़ नरेंद्र सिंह तोमर को स्पीकर पद मिला.

बीजेपी नेतृत्व एक ऐसे नाम के साथ आई, जिनके बारे में किसी राजनीतिक विश्लेषक को अंदाज़ा भी नहीं था. बीजेपी पहले भी ऐसे चौंकाने वाले नामों के साथ सामने आती रही है.

मोहन यादव को चुनने की वजह

मोहन यादव ने ख़ुद भी मीडिया से कहा कि विधायक दल की बैठक में जब उनका नाम लिया गया तो वो इससे हैरत में थे.  हालांकि एक बीजेपी नेता ने द हिंदू को बताया कि मोहन यादव को सोमवार सुबह इस फ़ैसले के बारे में बता दिया गया था.  ये नेता बताते हैं कि तोमर शुरुआत में स्पीकर पद लिए जाने को लेकर हिचकिचा रहे थे. मगर बाद में जेपी नड्डा ने कहा कि ये पार्टी का फ़ैसला है.    द हिंदू समेत कई अखबारों ने ये बीजेपी नेतृत्व के मोहन यादव को चुने जाने की वजहों पर रिपोर्ट की है.    मोहन यादव ओबीसी समुदाय से हैं. द हिंदू लिखता है कि बीजेपी मोहन यादव को चुनकर इंडिया गठबंधन के दो प्रमुख नेताओं समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और राष्ट्रीय जनता दल के यादव चेहरों को 2024 चुनावों में टक्कर देना चाहती है. कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मोहन यादव को चुनकर पड़ोसी राज्यों में भी बीजेपी को फ़ायदा पहुंचेगा.

मोहन यादव ने ख़ुद भी मीडिया से कहा कि विधायक दल की बैठक में जब उनका नाम लिया गया तो वो इससे हैरत में थे.

हालांकि एक बीजेपी नेता ने द हिंदू को बताया कि मोहन यादव को सोमवार सुबह इस फ़ैसले के बारे में बता दिया गया था.

ये नेता बताते हैं कि तोमर शुरुआत में स्पीकर पद लिए जाने को लेकर हिचकिचा रहे थे. मगर बाद में जेपी नड्डा ने कहा कि ये पार्टी का फ़ैसला है.

द हिंदू समेत कई अखबारों ने ये बीजेपी नेतृत्व के मोहन यादव को चुने जाने की वजहों पर रिपोर्ट की है.

मोहन यादव ओबीसी समुदाय से हैं. द हिंदू लिखता है कि बीजेपी मोहन यादव को चुनकर इंडिया गठबंधन के दो प्रमुख नेताओं समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और राष्ट्रीय जनता दल के यादव चेहरों को 2024 चुनावों में टक्कर देना चाहती है. कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मोहन यादव को चुनकर पड़ोसी राज्यों में भी बीजेपी को फ़ायदा पहुंचेगा.

मध्य प्रदेश की 52 फ़ीसदी आबादी ओबीसी समुदाय की है. इस समुदाय ने नवंबर में हुए चुनावों में बड़ी संख्या में बीजेपी के हक़ में वोट डाला, जिसकी बदौलत बीजेपी 230 में से 163 सीटें जीतने में सफल रही.

मोहन यादव महाकाल मंदिर के शहर उज्जैन से हैं. उन्हें हिंदुत्व की राजनीति का समर्थक भी माना जाता है.

बीते विधानसभा चुनावों में मोहन यादव के कई विवादित बयान भी चर्चा में रहे थे. ऐसे ही एक भाषण में मोहन यादव ने कहा था, ''कांग्रेस वालों तुम और तुम्हारे समर्थक कहीं नहीं मिलेंगे. तुम्हारी औकात क्या है. तुम्हें यहीं दफनाया जाएगा.''

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक़, मोहन यादव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं.

द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में लिखा है कि साल 2021 में मोहन यादव ने कॉलेजों में रामचरितमानस को वैकल्पिक विषय के तौर पर शुरू किया था और ये एलान किया था कि छात्रों को डिग्री तभी दी जाएगी, जब वो एक पौधा लगाएंगे.

मोहन यादव को चुने जाने का यूपी, बिहार में क्या असर होगा

द हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में लिखा है कि जब मोहन यादव को एमपी के नए सीएम पद के लिए चुना गया तो इसका असर सिर्फ़ मध्य प्रदेश तक नहीं रह गया.

जानकारों का मानना है कि इस फ़ैसले का असर यूपी, बिहार की 120 लोकसभा सीटों पर भी महसूस होगा. इन सीटों पर यादवों की आबादी अच्छी ख़ासी है.

मोहन यादव की पत्नी सीमा भी आरएसएस से हैं और उत्तर प्रदेश से आती हैं. अगस्त 2022 में मोहन यादव अपनी पत्नी के साथ सुल्तानपुर में अपने ससुर ब्रह्मदीन यादव से मिलने गए थे.

ब्रह्मदीन यादव ने हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार से फ़ोन पर कहा- मैं चाहता हूं कि यूपी और एमपी दोनों विकास करे.

मोहन यादव के सहारे 2024 लोकसभा चुनावों में बीजेपी अखिलेश यादव की सपा को चुनौती देने की तैयारी कर चुकी है.

उत्तर प्रदेश में बीजेपी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता कहते हैं- ये बात सच है कि यूपी में मुलायम सिंह यादव और बिहार में लालू यादव परिवार को यादव समुदाय का वोट बड़ी संख्या में मिलता रहा है. एमपी में एक यादव चेहरा चुनकर बीजेपी पुरानी धारणाएं बदलने का मन बना चुकी है.

योगी सरकार के इकलौते मंत्री गिरीश यादव ने कहा- ये एक अच्छा फ़ैसला है. हालांकि बीजेपी जाति की राजनीति में यक़ीन नहीं रखती है लेकिन इस फ़ैसले से यादव समुदाय का बीजेपी भरोसा पा सकेगी.

केंद्र में तीसरी बार सत्ता चाह रही बीजेपी मुख्य तौर पर उत्तर प्रदेश के सहारे रहेगी, जहां ओबीसी समुदाय में यादवों की बड़ी हिस्सेदारी है.

मोहन यादव कौन हैं?

25 मार्च 1965 को जन्म हुआ. उज्जैन दक्षिण सीट से तीन बार से विधायक हैं. बीते चुनावों में कांग्रेस के चेतन यादव को क़रीब 13 हज़ार वोट से हराया.

शिवराज सरकार में वो उच्च शिक्षा विभाग संभाल रहे थे. 2011-2013 के बीच वो मध्य प्रदेश टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष पद भी थे. ये कैबिनेट मंत्री की रैंक वाला पद था.

यादव ने बीएससी, एलएलबी, एमए, एमबीए और 2010 में पीएचडी की पढ़ाई पूरी की है.

अपने ट्विटर बायो में मोहन यादव ने ख़ुद को मध्य प्रदेश रेसलिंग एसोसिएशन का अध्यक्ष बताया है. स्थानीय स्तर पर वो पहलवानी भी कर चुके हैं और उनके समर्थक उन्हें मोहन पहलवान कहकर भी बुलाते हैं.

जब वो सीएम पद के लिए चुने गए तो उनका एक पुराना वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ.

इस वीडियो में वो दो तलवार लहराते हुए नज़र आए.

मोहन यादव ने 1982 में अपने करियर की शुरुआत छात्र राजनीति से की थी. वो उज्जैन विज्ञान महाविद्यालय में जॉइंट सेक्रेटरी और प्रेसीडेंट पद पर रह चुके हैं.

1984 में उज्जैन की अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नगर मंत्री बने और 1986 विभाग प्रमुख बने. 2002-2003 में बीजेपी के नगर जिला महामंत्री बने और 2004 में बीजेपी की प्रदेश कार्य समिति के सदस्य बने.

2004 में उन्हें सिंहस्थ मध्य प्रदेश की केंद्रीय समिति का अध्यक्ष बनाया गया.

2011 और 2012 में मोहन यादव को भारत के राष्ट्रपति की ओर से राज्य में टूरिज्म बढ़ाने के चलते सम्मानित भी किया गया था.

बीजेपी का फ़ैसला

द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़, मोहन यादव के नाम का एलान कर बीजेपी नए नेताओं को आगे लाना चाहती है.

रिपोर्ट में लिखा है कि एक चाय वाले के बेटे मोहन यादव को चुनकर बीजेपी ओबीसी समुदाय में अपनी पकड़ को मज़बूत करना चाहती है. हालांकि शिवराज सिंह चौहान भी ओबीसी समुदाय से हैं.

बीजेपी ने दलित जगदीश देवड़ा और ब्राह्मण राजेंद्र शुक्ला को उप-मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला किया है.

बीजेपी के इस फ़ैसले से मोहन यादव भी विधायक दल की बैठक में हैरान नज़र आए.

विधायक दल की बैठक में मौजूद एक नेता ने कहा- जब मोहन यादव के नाम का एलान हुआ तो शुरुआती कुछ मिनटों में वो कुछ नहीं बोल सके.

रिपोर्ट में लिखा है कि शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी ने प्रोजेक्ट नहीं किया था. 15 महीनों को छोड़ दिया जाए तो शिवराज सिंह 2005 से सत्ता में हैं.

मोहन यादव मालवा क्षेत्र से आते हैं और एबीवीपी-संघ में सक्रिय रहे हैं.

अखबार लिखता है कि शिवराज भी ओबीसी हैं लेकिन उनके विकल्प के तौर पर एक ओबीसी यादव को चुनकर बीजेपी उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा पर भी पकड़ मज़बूत करना चाहती है. बीजेपी यूपी और बिहार में यादव समुदाय का समर्थन हासिल करने में संघर्ष का सामना करती रही है.

मोहन यादव को चुने जाने पर बीजेपी क्या कह रही है

मोहन यादव 13 दिसंबर को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे.

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में लिखा है कि विधानसभा चुनावों में शिवराज की लाड़ली बहना योजना ने जीत दिलवाने में अहम भूमिका अदा की थी.

जबलपुर से विधायक राकेश सिंह के मुताबिक़, शिवराज सिंह चौहान ने ही मुख्यमंत्री नाम का प्रस्ताव रखा था.

राकेश सिंह कहते हैं, ''मोहन यादव अच्छे प्रशासक हैं. हम उम्मीद करते हैं कि वो पार्टी की विकास की नीतियों को आगे ले जाएंगे. बीजेपी ने मुझे विधायक बनने की ज़िम्मेदारी दी है. मैं अपने कर्तव्यों को पूरा करूंगा. मैं ख़ुद सीएम पद की रेस में नहीं था.''

कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं, ''ये नई ऊर्जा, नई उम्मीद है. मोदी जी जिस नए भारत के लिए काम कर रहे हैं, मध्य प्रदेश एक मॉडल की तरह नेतृत्व करेगा. नए नेतृत्व के तहत राज्य उनके सपनों को पूरा करेगा.''

विधायक गोविंद सिंह राजपूत ने कहा, ''हम इस फ़ैसले से बहुत खुश हैं. वो ओबीसी बैकग्राउंड से आते हैं. ये गर्व का पल है, वो ज़मीन से जुड़े हुए हैं.''

Shivraj Singh Chouhan: मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने इस्तीफा दे दिया है। इसके बाद कयास लग रहे हैं कि उनकी अगली भूमिका क्या होगी। क्या वह टीम मोदी में शामिल होंगे या फिर संगठन में उन्हें कोई बड़ी भूमिका दी जाएगी।

भोपाल: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। मोहन यादव के नाम की घोषणा के बाद उन्होंने राज्यपाल से मिलकर इस्तीफा सौंप दिया है। इसके बाद उनके भविष्य को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। अब शिवराज सिंह चौहान क्या करेंगे। उन्हें जब इस बात का अंदेशा हो गया था कि अब वह सीएम नहीं होंगे तो कुछ दिनों पहले कहा था कि मैं दिल्ली नहीं जाऊंगा। अब आलाकमान ने फैसला ले लिया है। इसके बाद उनके भविष्य को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।

शिवराज सिंह चौहान ने दिया इस्तीफा

उनके इस्तीफे के बाद यह चर्चा हो रही है। शिवराज सिंह चौहान अब केंद्र की राजनीति में शिफ्ट होंगे। उन्हें केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी लोकसभा चुनाव से पहले दी जा सकती है। यह जिम्मेदारी सरकार में होगी। नरेंद्र सिंह तोमर के इस्तीफे के बाद कृषि मंत्रालय खाली है। अटकलें हैं कि शिवराज सिंह चौहान को केंद्र में नरेंद्र सिंह तोमर की जगह मिल सकती है। नरेंद्र सिंह तोमर एमपी विधानसभा के अध्यक्ष बन गए हैं। हालांकि सवाल है कि शिवराज सिंह चौहान इसके तैयार होंगे या नहीं।

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हालांकि यह भी अटकलें हैं कि उन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बनाकर राजनीतिक पारी को विराम दिया जा सकता है। वहीं, इसके लिए शिवराज सिंह चौहान तैयार होंगे। यह मुश्किल है। शिवराज सिंह चौहान नतीजों के बाद से ही मध्य प्रदेश में एक्टिव हो गए हैं। वह लगातार मिशन-29 के लिए जुट गए हैं। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा है कि मैं मध्य प्रदेश को नहीं छोड़ रहा हूं। मध्य प्रदेश से आगामी विधानसभा चुनाव में 29-29 सीटें जीतकर मोदी जी के गले में डालूंगा।

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वहीं, एक चर्चा यह भी है कि उन्हें संगठन में कोई बड़ी भूमिका दी जा सकती है। 2018 के विधानसभा चुनाव में जब उनकी हार हुई थी तो पार्टी ने उन्हें उपाध्यक्ष बनाया था। इसके बाद उन्हें सदस्यता अभियान का राष्ट्रीय प्रभारी बनाया गया था। उस समय भी शिवराज सिंह चौहान वहां नहीं जाना चाहते थे लेकिन पार्टी के फैसले के खिलाफ भी नहीं जा सके थे।

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गौरतलब है कि अब सबकी निगाहें दिल्ली पर टिकी है कि शिवराज सिंह चौहान के भविष्य पर क्या फैसला होगा। वहीं, भोपाल में अपने लिए उन्होंने सीएम रहते हुए दूसरा घर तैयार करवा लिया था। साथ ही अपनी लाडली बहनों को भी संकेत दे दिए थे कि मैं जब चला जाऊंगा तब बहुत याद आऊंगा। अब शिवराज सिंह चौहान चले गए हैं और लाडली बहनों को एक सप्ताह पहले सातवीं किस्त की राशि मिली है। ऐसे में उनके अगले कदम पर लोगों की निगाहें टिकी हैं

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