राजा हीरा खान सिंह क्षत्रिय बोले साहकरन (घोड़े का नाम) मर्द अपनी मर्दागनी को, सुअर खेत को और क्षत्रीय अपना क्षत्रीय धर्म कभी नहीं छोड़ता वह चाहे खेत में रहे या युद्ध के मैदान में
राजा भी अपने साथियों के साथ भोजन करने बैठ गये. राजा अपनी थाली से थोड़ा थोड़ा सभी प्रकार का भोजन निकालकर धरती माता को अर्पित करते हैं. पांच कौर भोजन सान कर देवताओं को अर्पित करते हैं. राजा के दिये हुये भोजन को देवताओं ने ऊपर ही ऊपर ग्रहण कर लिया. राजा ने देवताओं को जल अर्पित किया. इसके बाद स्वतः भोजन ग्रहण किया.
भोजन करने के बाद राजा घुड़साल में साहकरन घोड़ा के पास गये. राजा ने जब घोड़े की पीठ पर हाथ फेरा तो घोड़े ने कहा राजन आप पर कौन सा कष्ट आ गया है. मैं इतने सालों से घुड़साल में बंधा हूं. आपने इसके पहले कभी भी मेरी पीठ पर हाथ नहीं फेरा तब राजा बोलते हैं घोड़ा गिद्द बाघ बछेड़ा मुझे अपनी ससुराल रैया सिंघोला जाना है. तुम मुझे साथ दोगे की नहीं.
तो घोड़ा बोला राजन जब मेरी जवानी थी. तब तो आप ने कभी रैया सिंघोला पर चढ़ाई नहीं की. अब मैं जब बूढ़ा हो रहा हूं तब आप रैया सिंघोला में चढ़ाई करने की सोच रहे हैं. वहां पर आपकी सात पीढ़ी के सिर टंगे हैं. तब राजा बोलते हैं।
साहकरन (घोड़े का नाम) मर्द अपनी मर्दागनी को, सुअर खेत को और क्षत्रीय अपना क्षत्रीय धर्म कभी नहीं छोड़ता वह चाहे खेत में रहे या युद्ध के मैदान में तब घोड़ा बोला राजन जब तक आप मेरी पीठ पर सवार रहेंगे तब तक आपको किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होने दूंगा. जिस दिन आप मेरी पीठ छोड़ देंगे. उस दिन की बात मैं नहीं जानता.
राजा हीरा खान सिंह क्षत्रिय घोड़े की लगाम पकड़कर उसे घुड़साल से आंगन में लेकर आते हैं. राजा घोड़े को चना की दाल और घी का लौंदा खिलाते हैं. वे बारह बैलों की घंटी और तेरह
बैलों का श्रृंगार घोड़े के गले में बांधते हैं. राजा घोड़े का श्रृंगार करके अपने महल में आ जाते हैं.
अब राजा हीरा खान सिंह अपनी ससुराल जाने की तैयारी कर रहे हैं. वे अपने शरीर में बारा मृद का साजू और तेरह मृद के बाजू बांध रहे हैं. राजा ने अपने शरीर में लोहे के साज बाज और जिरह बख्तर धारण किये. पैरों में मखमल के जूते सिर पर शीश बंध की टोपी जो रेश्म की कलगी से सजी थी उसे धारण किया. इसके बाद राजा काले पीले चांवल देवताओं को अर्पित करते हैं.
राजा हीरा खान सिंह क्षत्रीय बड़ा देव का स्मरण कर देवताओं को अपने वश में कर रहे हैं. राजा ने घोड़े के चारों पांव में चाकू छुरियां बांध दी हैं. देवताओं को घोड़े के सिर पर सवार करा दिया है. राजा के अंग अंग में ठाकुर देव, दुल्हा देव, दुल्खुरी माई, रात माई, मुड़खुरी माई नारायण देव सवार हो जाते हैं. बड़ा देव और बूढ़ा देव राजा के खरदा में विराजमान हो जाते हैं. जब देवताओं ने सुना की राजा रैया सिंघोला जा रहे हैं. तो सभी देवता व्याकुल हो जाते हैं.
Source- History Source- स्वराज संस्थान संचालनालय संस्कृति विभाग भोपाल द्वारा स्वाधीनता फैलोशिप 2006.07, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग म.प्र.शोध पत्र का पठन। जवाहर लाल नेहरु कृपि विश्वविद्यालय जबलपुर शोध पत्र का पठन। स्वराज भवन भोपाल एवं गौंड़ी पब्लिक ट्रस्ट मंड़ला द्वारा मार्च 2006 को मंडला में आयोजित म.प्र. के स्वतंत्रता संग्राम..
0 टिप्पणियाँ