राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम( Ram Mandir Pran Pratistha Program) को लेकर अयोध्या में तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. प्राण प्रतिष्ठा से पहले होने वाले रितीरिवाज भी शुरू हो गया है. मगर हिन्दू धर्म के सर्वश्रेस्ठ गुरुओ शंकराचार्यों ने राम मंदिर उद्घाटन कार्यक्रम में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है.
इसे लेकर काफी Controversy भी मची हुई है. वहीं, जब कवि कुमार विश्वास से इस बारे में सवाल किया गया तो कवि कुमार विश्वाश ने बोला कि शंकराचार्यों पर टिप्पणी करना उनके लिए सही बात नहीं है.
पंजाब चंडीगढ़ में एक कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे कुमार विश्वास ने कहा, '550 वर्षों के संघर्ष का स्वप्न दिवस आ रहा है. पूरे विश्व में भगवान के प्रति जो भी आग्रह रखते हैं, उन सभी लोगों को हार्दिक बधाई है.' उन्होंने कहा, 'मेरा सौभाग्य है कि मुझे उस पुण्य क्षण में मौजूद होने का निमंत्रण मिला है. इसलिए मैं वहां जाऊंगा. मैं आप सभी को शुभकामना देता हूं कि आप सब लोग इस अवसर को भगवान राम के आदर्शों पर चलने के लिए स्वयं को प्रेरित करने का लक्ष्य बनाएं.'
'हम तो अपने पिता के आगे नहीं बोले हैं.
वहीं, जब विश्वास से एक और सवाल किया गया कि शंकराचार्यों ने प्राण प्रतिष्ठा ने नहीं आने का निर्णय लिया है. इस पर आप क्या कहना चाहेंगे. इस सवाल का जवाव देते हुए कवि ने कहा, 'हम तो अपने पिता के आगे नहीं बोले हैं. अगर कोई व्यक्ति ऐसा कह रहा है तो वह खुद इतने बड़े संत हैं. उन पर टिप्पणी करने का मुझे कोई अधिकार नहीं है.'
उन्होंने सवाल के उत्तरो पर आंगे कहा, 'हम उस परंपरा में हैं, जहां हम अपने पिता की किसी बात का प्रतिकार नहीं करते, उत्तर नहीं देते और टिप्पणी नहीं करते हैं. भगवान शंकराचार्य सनातन धर्म की मर्यादा पीठ के पितामह हैं. वे स्वयं ईश्वरीय वाणी हैं. मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति के लिए उन पर टिप्पणी करना सीमा से बाहर की बात है.'
अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का कहना है कि अधूरे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है
दरअसल, एक इंटरव्यू में ज्योतिर्मठ के वर्तमान जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती(The present Jagadguru Shankaracharya of Jyotirmath is Swami Avimukteshwaranand Saraswati). ने बताया कि उन्हें अभी तक प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण नहीं मिला( Did not receive invitation for consecration) है. मगर उन्हें निमंत्रण दिया भी जाता है, तो वह उसमें शामिल नहीं होंगे. अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का कहना है कि अधूरे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है(An incomplete temple is not consecrated.). अयोध्या में जिस तरह से अधूरे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है, वो शास्त्रों के विरुद्ध है. उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि जो कुछ भी हो, वो शास्त्रों के अनुरुप हो.
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