यमन संकट के बीच ईरान पहुंचे एस. जयशंकर | जानिए जय शंकर ने क्या कहा? ईरान के राष्ट्रपति ने विदेश मंत्री से जो कहा, वो इतना अहम क्यों है?

जनवरी 2024 के पहले हफ़्ते में जब मालदीव सरकार में मंत्री मरियम शिउना ने पीएम नरेंद्र मोदी को 'इसराइल की कठपुतली' बताया, तब दोनों देशों के बीच खटास बढ़ने की शुरुआत हुई.  भारत-मालदीव विवाद की जड़ में लक्षद्वीप की तारीफ़ें थीं.  इस विवाद में इसराइल की एंट्री तब हुई, जब भारत में इसराइली एंबेसी ने तस्वीरें पोस्ट कर लक्षद्वीप की तारीफ़ की. इसराइल लक्षद्वीप में पानी साफ़ करने के प्रोजेक्ट पर भी काम शुरू कर चुका है.  इसराइल लक्षद्वीप के मुद्दे पर जब भारत के साथ दिख रहा है, ठीक उसी समय भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर इसराइल के विरोधी माने जाने वाले ईरान के दौरे पर गए.  जयशंकर ने 15 जनवरी यानी सोमवार को ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाह्यान से मुलाक़ात की.  इस मुलाक़ात में हाल के दिनों में चाबहार पोर्ट और समंदर में जहाज़ों पर बढ़े हमलों पर भी चर्चा की गई.  राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने इस मुलाक़ात में भारत और ईरान के बीच हुए समझौतों को लागू करने और तेज़ी लाने पर ज़ोर दिया. इन समझौतों में चाबहार प्रोजेक्ट भी शामिल है.  रईसी ने ये भी कहा कि जो समझौते भारत ईरान के बीच हुए, उनमें आई देरी की क्षतिपूर्ति किए जाने की ज़रूरत है.  भारत ईरान में चाबहार पोर्ट को विकसित कर रहा है और रईसी इसी पोर्ट के काम में आई देरी की तरफ़ इशारा कर रहे थे.  चाबहार को लेकर कहा जा रहा है कि प्रोजेक्ट में देरी के कारण भारत से ईरान ख़ुश नहीं है.  ईरान चाहता है कि भारत इस प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करे. इस मामले में भारत की तुलना चीन से की जाती है कि चीन अपनी परियोजनाओं को जल्दी लागू कर देता है जबकि भारत ऐसा नहीं कर पाता है.  कई विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के पास पैसे और संसाधन की कमी नहीं है इसलिए वह भारी पड़ता है.

जनवरी 2024 के पहले हफ़्ते में जब मालदीव सरकार में मंत्री मरियम शिउना ने पीएम नरेंद्र मोदी को 'इसराइल की कठपुतली' बताया, तब दोनों देशों के बीच खटास बढ़ने की शुरुआत हुई.

भारत-मालदीव विवाद की जड़ में लक्षद्वीप की तारीफ़ें थीं.

इस विवाद में इसराइल की एंट्री तब हुई, जब भारत में इसराइली एंबेसी ने तस्वीरें पोस्ट कर लक्षद्वीप की तारीफ़ की. इसराइल लक्षद्वीप में पानी साफ़ करने के प्रोजेक्ट पर भी काम शुरू कर चुका है.

इसराइल लक्षद्वीप के मुद्दे पर जब भारत के साथ दिख रहा है, ठीक उसी समय भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर इसराइल के विरोधी माने जाने वाले ईरान के दौरे पर गए.

जयशंकर ने 15 जनवरी यानी सोमवार को ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाह्यान से मुलाक़ात की.

इस मुलाक़ात में हाल के दिनों में चाबहार पोर्ट और समंदर में जहाज़ों पर बढ़े हमलों पर भी चर्चा की गई.

राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने इस मुलाक़ात में भारत और ईरान के बीच हुए समझौतों को लागू करने और तेज़ी लाने पर ज़ोर दिया. इन समझौतों में चाबहार प्रोजेक्ट भी शामिल है.

रईसी ने ये भी कहा कि जो समझौते भारत ईरान के बीच हुए, उनमें आई देरी की क्षतिपूर्ति किए जाने की ज़रूरत है.

भारत ईरान में चाबहार पोर्ट को विकसित कर रहा है और रईसी इसी पोर्ट के काम में आई देरी की तरफ़ इशारा कर रहे थे.

चाबहार को लेकर कहा जा रहा है कि प्रोजेक्ट में देरी के कारण भारत से ईरान ख़ुश नहीं है.

ईरान चाहता है कि भारत इस प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करे. इस मामले में भारत की तुलना चीन से की जाती है कि चीन अपनी परियोजनाओं को जल्दी लागू कर देता है जबकि भारत ऐसा नहीं कर पाता है.

कई विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के पास पैसे और संसाधन की कमी नहीं है इसलिए वह भारी पड़ता है.

जयशंकर का ईरान दौरा महत्वपूर्ण क्यों है?

2023 में ब्रिक्स देशों के समूह ने ईरान की सदस्यता को भी मंज़ूरी मिली थी. ईरान को ब्रिक्स समुह में शामिल किए जाने के विचार पर का भारत ने समर्थन भी किया था.  कुछ ही समय पहले ही में अमेरिका ने भी दावा किया था कि सऊदी अरब से भारत आ रहे समानो के टैंकर पर ईरान के हूती समर्थित ड्रोन हमला किया गया था. ईरान ने अमेरिका के दावे को ख़ारिज भी  किया था.  इसके बाद भारत ने आते अपने टैंकर पर हुए हमले के ऐवज में भी भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया भी दी थी.  उसी समय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी दिसंबर में कहा था, ''अरब सागर में हाल ही में एमवी चेम प्लूटो पर हुए ड्रोन हमले और लाल सागर में एमवी साईं बाबा पर हुए हमले को भारत ने गंभीरतापूर्वक लिया है. भारतीय नौसेना ने समंदर की.''  वो बोले, ''जिन्होंने ने भी इस हमले को किया है. उन्हें हम सागर तल से भी ढूंढ निकालेंगे और उनके ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई भी की जाएगी. मैं आपको यह आश्वश्त करना चाहता हूं.''  इन दो अहम घटनाओं के बाद ये पहली बार है, जब भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ईरान दौरे पर गए.  इस दौरे में जयशंकर जहां ऐसे मुद्दों पर बात कर रहे थे, जिसमें ईरान प्रत्यक्ष तौर पर सामने नहीं है. जैसे- जहाज़ों पर हूती विद्रोहियों का हमला.  वहीं रईसी ने चाबहार पोर्ट को लेकर जो कहा, उसमें भारत सीधे तौर पर सामने है.

2023 में ब्रिक्स देशों के समूह ने ईरान की सदस्यता को भी मंज़ूरी मिली थी. ईरान को ब्रिक्स समुह में शामिल किए जाने के विचार पर का भारत ने समर्थन भी किया था.

कुछ ही समय पहले ही में अमेरिका ने भी दावा किया था कि सऊदी अरब से भारत आ रहे समानो के टैंकर पर ईरान के हूती समर्थित ड्रोन हमला किया गया था. ईरान ने अमेरिका के दावे को ख़ारिज भी  किया था.

इसके बाद भारत ने आते अपने टैंकर पर हुए हमले के ऐवज में भी भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया भी दी थी.

उसी समय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी दिसंबर में कहा था, ''अरब सागर में हाल ही में एमवी चेम प्लूटो पर हुए ड्रोन हमले और लाल सागर में एमवी साईं बाबा पर हुए हमले को भारत ने गंभीरतापूर्वक लिया है. भारतीय नौसेना ने समंदर की.''

वो बोले, ''जिन्होंने ने भी इस हमले को किया है. उन्हें हम सागर तल से भी ढूंढ निकालेंगे और उनके ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई भी की जाएगी. मैं आपको यह आश्वश्त करना चाहता हूं.''

इन दो अहम घटनाओं के बाद ये पहली बार है, जब भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ईरान दौरे पर गए.

इस दौरे में जयशंकर जहां ऐसे मुद्दों पर बात कर रहे थे, जिसमें ईरान प्रत्यक्ष तौर पर सामने नहीं है. जैसे- जहाज़ों पर हूती विद्रोहियों का हमला.

वहीं रईसी ने चाबहार पोर्ट को लेकर जो कहा, उसमें भारत सीधे तौर पर सामने है.

जयशंकर ने क्या कहा?

भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा हैं कि, ''भारत के आस-पास के क्षेत्र में जहाजों पर हमले अंतरराष्ट्रीय समुदाय(International Community) के लिए गंभीर चिंता का विषय है. इस तरह के ख़तरों का भारत के आर्थिक हितों(Economic Interests) पर सीधा असर पड़ता है.''  जयशंकर बोले कि, ''एक भयानक स्थिति है, जिसका किसी भी पक्ष को फ़ायदा नहीं होगा(which will not benefit either party). हाल ही में हिंद महासागर में समुद्री वाणिज्यिक यातायात (Maritime Commercial Traffic In The Indian Ocean) की सुरक्षा के लिए ख़तरे तेज़ी से बढ़े हैं.''  कुछ वक़्त पहले सऊदी अरब से भारत आते जहाज़ पर हमला हुआ था. अमेरिका ने दावा किया था कि भारत आ रहे टैंकर पर ईरान से हमला हुआ था.  लाल सागर में भी समुद्री जहाज़ों पर हमले बढ़े हैं. ये हमले हूती विद्रोहियों (Houthi Rebels) की ओर से किए जा रहे हैं.  हूती विद्रोहियों को ईरान का समर्थन हासिल है और ये विद्रोही अमेरिका-इसराइल(America-Israel) का विरोध करते हैं. हूती विद्रोहियों की ताज़ा आक्रामकता की वजह ग़ज़ा पर इसराइल के हमले को बताया जा रहा है.  जयशंकर ने कहा ने आंगे बोले कि, ''हमने भारत के आसपास के क्षेत्र में भी कुछ हमले देखे हैं. यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए बड़ी चिंता का विषय है(This is a matter of great concern for the international community). ज़ाहिर है कि इससे भारत के हितों को भी खतरा पैदा हो रहा है. इस तरह के हालात से किसी को फ़ायदा नहीं होगा.''  जयशंकर का इशारा उन हूती विद्रोहियों की तरफ़ था, जिन्हें ईरान का समर्थन हासिल है. इसराइल-हमास युद्ध में ईरान फ़लस्तीनियों का समर्थन करता रहा है (Iran has been supporting Palestinians in the Israel-Hamas war).  जयशंकर ने अपने बयान में फ़लस्तीन का ज़िक्र करते हुए आंगे कहा कि, ''मैं ये बात दोहराता हूं कि फ़लस्तीन के मुद्दे पर भारत दो राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन लंबे वक़्त से करता रहा है, जहां फ़लस्तीनी लोग एक आज़ाद और सुरक्षित सरहदों वाले देश में खुलकर रह सकें. मैं सभी पक्षों से उकसावे की कार्रवाई ना करने और बातचीत, डिप्लोमेसी के रास्ते पर आगे बढ़ने की ज़रूरत पर ज़ोर देता हूं.''

ईरान दौरे पर पहूँचे जयशंकर तेहरान में ईरानी विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाह्यान के साथ जयशंकर ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की हैं.

भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा हैं कि, ''भारत के आस-पास के क्षेत्र में जहाजों पर हमले अंतरराष्ट्रीय समुदाय(International Community) के लिए गंभीर चिंता का विषय है. इस तरह के ख़तरों का भारत के आर्थिक हितों(Economic Interests) पर सीधा असर पड़ता है.''

जयशंकर बोले कि, ''एक भयानक स्थिति है, जिसका किसी भी पक्ष को फ़ायदा नहीं होगा(which will not benefit either party). हाल ही में हिंद महासागर में समुद्री वाणिज्यिक यातायात (Maritime Commercial Traffic In The Indian Ocean) की सुरक्षा के लिए ख़तरे तेज़ी से बढ़े हैं.''

कुछ वक़्त पहले सऊदी अरब से भारत आते जहाज़ पर हमला हुआ था. अमेरिका ने दावा किया था कि भारत आ रहे टैंकर पर ईरान से हमला हुआ था.

लाल सागर में भी समुद्री जहाज़ों पर हमले बढ़े हैं. ये हमले हूती विद्रोहियों (Houthi Rebels) की ओर से किए जा रहे हैं.

हूती विद्रोहियों को ईरान का समर्थन हासिल है और ये विद्रोही अमेरिका-इसराइल(America-Israel) का विरोध करते हैं. हूती विद्रोहियों की ताज़ा आक्रामकता की वजह ग़ज़ा पर इसराइल के हमले को बताया जा रहा है.

जयशंकर ने कहा ने आंगे बोले कि, ''हमने भारत के आसपास के क्षेत्र में भी कुछ हमले देखे हैं. यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए बड़ी चिंता का विषय है(This is a matter of great concern for the international community). ज़ाहिर है कि इससे भारत के हितों को भी खतरा पैदा हो रहा है. इस तरह के हालात से किसी को फ़ायदा नहीं होगा.''

जयशंकर का इशारा उन हूती विद्रोहियों की तरफ़ था, जिन्हें ईरान का समर्थन हासिल है. इसराइल-हमास युद्ध में ईरान फ़लस्तीनियों का समर्थन करता रहा है (Iran has been supporting Palestinians in the Israel-Hamas war).

जयशंकर ने अपने बयान में फ़लस्तीन का ज़िक्र करते हुए आंगे कहा कि, ''मैं ये बात दोहराता हूं कि फ़लस्तीन के मुद्दे पर भारत दो राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन लंबे वक़्त से करता रहा है, जहां फ़लस्तीनी लोग एक आज़ाद और सुरक्षित सरहदों वाले देश में खुलकर रह सकें. मैं सभी पक्षों से उकसावे की कार्रवाई ना करने और बातचीत, डिप्लोमेसी के रास्ते पर आगे बढ़ने की ज़रूरत पर ज़ोर देता हूं.''

इब्राहिम रईसी ने जो कहा, वो इतना अहम क्यों है?


भारत, ईरान और रूस ने 2000 के दशक की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर (International North-South Corridor) बनाने पर सहमति जताई थी. इससे भारत, ईरान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच व्यापार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है.  ईरान के तटीय शहर चाबहार में बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच साल 2003 में सहमति बनी थी. साल 2016 में इस समझौते को मंज़ूरी मिली और भारत इस समय यहां एक कार्गो टर्मिनल विकसित कर रहा है.  यह बंदरगाह इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यानी आईएनएसटीसी के लिए काफ़ी अहमियत रखता है(The port is of great importance for the International North-South Transport Corridor (INSTC)). इस कॉरिडोर के तहत भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का 7,200 किलोमीटर लंबा नेटवर्क तैयार होना है.  इस रूट से भारत की यूरोप तक पहुंच आसान हो जाती, साथ ही ईरान और रूस को भी फ़ायदा होता.  इस परियोजना के लिए ईरान का चाबहार बंदरगाह बहुत अहम है.  मगर इस पूरी परियोजना के भविष्य पर उस समय सवाल उठने लगे थे, जब बीते साल दिल्ली में हुए जी-20 सम्मेलन में एक नया ट्रेड रूट बनाने पर सहमति बनी थी.  इस नए ट्रेड रूट को इंडिया-यूरोप-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर यानी आईएमईईईसी नाम दिया गया. इसमें भारत संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जॉर्डन, इसराइल और ग्रीस शामिल हैं. इस कॉरिडोर पर सहमति बनाने में अमेरिका की अहम भूमिका थी.  ऐसा माना जा रहा था कि इस कॉरिडोर के बनने के बाद ईरान में चाबहार पोर्ट की बहुत अहमियत नहीं रह जाएगी. इसे ईरान की उपेक्षा के तौर पर भी देखा गया.  बहुत से विश्लेषक इस पहल को चीन की ‘बेल्ट एंड रोड परियोजना’ से मुक़ाबले और ईरान को अलग-थलग करने की कोशिश के रूप में भी देख रहे हैं.  ऐसा भी माना जा रहा था कि भारत की दिलचस्पी ईरान के चाबहार बंदरगाह और आईएनएसटीसी की बजाय इस नए व्यापारिक रास्ते में ज़्यादा हो सकती है.  जानकार ये भी बताते हैं कि ईरान की चिंताएं बढ़ने का कारण यह भी हो सकता है कि भारत के लिए एक साथ चाबहार, आईएनएसटीसी और आईएमईसी में निवेश करना आसान नहीं होगा.

2023 में जब पीएम नरेंद्र मोदी(PM Narendra Modi) और ईरानी राष्ट्रपति रईसी (Iranian President Raisi) की बात हुई थी, तब भी चाबहार का मुद्दा उठा था.

भारत, ईरान और रूस ने 2000 के दशक की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर (International North-South Corridor) बनाने पर सहमति जताई थी. इससे भारत, ईरान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच व्यापार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है.

ईरान के तटीय शहर चाबहार में बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच साल 2003 में सहमति बनी थी. साल 2016 में इस समझौते को मंज़ूरी मिली और भारत इस समय यहां एक कार्गो टर्मिनल विकसित कर रहा है.

यह बंदरगाह इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यानी आईएनएसटीसी के लिए काफ़ी अहमियत रखता है(The port is of great importance for the International North-South Transport Corridor (INSTC)). इस कॉरिडोर के तहत भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का 7,200 किलोमीटर लंबा नेटवर्क तैयार होना है.

इस रूट से भारत की यूरोप तक पहुंच आसान हो जाती, साथ ही ईरान और रूस को भी फ़ायदा होता.

इस परियोजना के लिए ईरान का चाबहार बंदरगाह बहुत अहम है.

मगर इस पूरी परियोजना के भविष्य पर उस समय सवाल उठने लगे थे, जब बीते साल दिल्ली में हुए जी-20 सम्मेलन में एक नया ट्रेड रूट बनाने पर सहमति बनी थी.

इस नए ट्रेड रूट को इंडिया-यूरोप-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर यानी आईएमईईईसी नाम दिया गया. इसमें भारत संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जॉर्डन, इसराइल और ग्रीस शामिल हैं. इस कॉरिडोर पर सहमति बनाने में अमेरिका की अहम भूमिका थी.

ऐसा माना जा रहा था कि इस कॉरिडोर के बनने के बाद ईरान में चाबहार पोर्ट की बहुत अहमियत नहीं रह जाएगी. इसे ईरान की उपेक्षा के तौर पर भी देखा गया.

बहुत से विश्लेषक इस पहल को चीन की ‘बेल्ट एंड रोड परियोजना’ से मुक़ाबले और ईरान को अलग-थलग करने की कोशिश के रूप में भी देख रहे हैं.

ऐसा भी माना जा रहा था कि भारत की दिलचस्पी ईरान के चाबहार बंदरगाह और आईएनएसटीसी की बजाय इस नए व्यापारिक रास्ते में ज़्यादा हो सकती है.

जानकार ये भी बताते हैं कि ईरान की चिंताएं बढ़ने का कारण यह भी हो सकता है कि भारत के लिए एक साथ चाबहार, आईएनएसटीसी और आईएमईसी में निवेश करना आसान नहीं होगा.

ऐसे में रईसी जयशंकर से अपनी इन्हीं चिंताओं को ज़ाहिर कर रहे थे.

ईरान और भारत के बीच वैचारिक मतभेद क्यों हैं?


चाबहार से हटके एक और धार्मिक वजह है जो ईरान और भारत को इससे वेचारिक और मानसिक तरीके से जोड़ता है. यह प्रमुख वजह है- दोनों देशों की सरकार का इस्लाम पर लिया गया स्टैंड.  और भारतीय केंद्र की मोदी सरकार पर मुसलमानों की अलग थलग उपेक्षा करने का आरोप भी लगता रहा है.  हालांकि आपको बता दें कि मोदी सरकार ऐसे दावों को ख़ारिज करती रही है.  और वहीं ईरान की मौलवी समर्थित सरकार ख़ुद को दुनिया के मुसलमानों के रक्षक (Protector Of Muslims) के तौर पर पेश करती रही है. वैसे साऊदी अरब भी यही दाबा करता हैं.  भारत में मुसलमानों की बड़ी आबादी निवास करती है. कश्मीर से लेकर मुसलमानों के साथ हुए व्यवहार को लेकर भारत सरकार को हमेशा घेरा जाता रहा है.  आपको बता दें कि जब दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय बातचीत( Bilateral Talks) होती है तो इसमें भारतीय मुसलमानों के साथ संबंधों पर ख़ास चर्चा भी नहीं होती है.  ईरान शिया इस्लामिक देश है(Iran is a Shia Islamic Country) और भारत में भी ईरान के बाद सबसे ज़्यादा शिया मुसलमान हैं.  देश आजाद होने के बाद यदि भारत का विभाजन न हुआ होता तो और पाकिस्तान नहीं बनता तो ईरान से भारत की सीमा भी लगती.

चाबहार से हटके एक और धार्मिक वजह है जो ईरान और भारत को इससे वेचारिक और मानसिक तरीके से जोड़ता है. यह प्रमुख वजह है- दोनों देशों की सरकार का इस्लाम पर लिया गया स्टैंड.

और भारतीय केंद्र की मोदी सरकार पर मुसलमानों की अलग थलग उपेक्षा करने का आरोप भी लगता रहा है.

हालांकि आपको बता दें कि मोदी सरकार ऐसे दावों को ख़ारिज करती रही है.

और वहीं ईरान की मौलवी समर्थित सरकार ख़ुद को दुनिया के मुसलमानों के रक्षक (Protector Of Muslims) के तौर पर पेश करती रही है. वैसे साऊदी अरब भी यही दाबा करता हैं.

भारत में मुसलमानों की बड़ी आबादी निवास करती है. कश्मीर से लेकर मुसलमानों के साथ हुए व्यवहार को लेकर भारत सरकार को हमेशा घेरा जाता रहा है.

आपको बता दें कि जब दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय बातचीत( Bilateral Talks) होती है तो इसमें भारतीय मुसलमानों के साथ संबंधों पर ख़ास चर्चा भी नहीं होती है.

ईरान शिया इस्लामिक देश है(Iran is a Shia Islamic Country) और भारत में भी ईरान के बाद सबसे ज़्यादा शिया मुसलमान हैं.

देश आजाद होने के बाद यदि भारत का विभाजन न हुआ होता तो और पाकिस्तान नहीं बनता तो ईरान से भारत की सीमा भी लगती.

ईरान के अधिकतर दुश्मन भारत के दोस्त?


अमेरिका और इसराइल दोनों से भारत के क़रीबी संबंध हैं(India has close relations with both America and Israel). वहीं ईरान के इन दोनों देशों से भारी दुश्मनी हैं, अमेरिका ने भारी भरकम सेंक्सन लगाये हुए हैं, जो के ईरान को आर्थिक तौर पर कमज़ोर बनाता हैं, वही ईज़राईल और ईरान ने तो बहुत से अफसर और लोग एक दुसरे से हुई जंग में खो दिये हैं,   जानकार बताते हैं कि ईरान और भारत के संबंधों में ये एक अलग फैक्टर है और इससे दोनों देशों के संबंधों पर भी असर हुआ है.  उदाहरण के लिए अमेरिका ने जब ईरानी तेल पर प्रतिबंध लगाया तो इससे चाबहार पोर्ट को विकसित किए जाने को लेकर भारत-ईरान सहयोग पर भी असर हुआ.  हालांकि एक तथ्य ये भी है कि अमेरिका ने जब ईरान पर प्रतिबंध लगाए तो उसमें चाबहार प्रोजेक्ट का ज़िक्र नहीं था. मगर 2018 में अमेरिका की ओर से आए आर्थिक दबाव के कारण भारतीय कंपनियां इस प्रोजेक्ट के प्रति अनिच्छुक ही रहीं.  इसके बाद से ईरान भारत की कोई ख़ास मौजूदगी के बिना ही इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है. साथ ही इस पोर्ट पर ईरान की ओर से चीनी कंपनियों को भी मौक़ा देने के ऑफर रखे गए.  कहा जाता है कि भारत पहले ही चाबहार प्रोजेक्ट को लेकर प्रतिबद्धता व्यक्त कर रहा है लेकिन इस प्रोजेक्ट में भारत की भूमिका कम ही रह सकती है.  ईरान भारत के संबंधों में इसराइल की भी भूमिका अहम रहती है.  जानकार कहते हैं कि इसराइल और भारत के संबंधों में जो गहराइयां देखने को मिल रही हैं, ईरान उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता.  बीते सालों में इसराइल और भारत के रिश्तों में नज़दीकियां आई हैं. भारत बड़ी संख्या यानी लगभग 42 फ़ीसदी हथियार इसराइल से लेता रहा है.  इसराइल का दोस्त बनकर भारत को अमेरिका में भी फ़ायदा मिलता है. अमेरिका और इसराइल मित्र देश हैं.  वहीं ईरान इसराइल के बढ़ते असर को लेकर चिंतित रहता है. इसराइल के दायरे को बढ़ाते अब्राह्म समझौते भी इसमें अहम योगदान है.  साल 2020 में अमेरिका की मध्यस्थता में संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने इसराइल के साथ ऐतिहासिक समझौता किया था जिसे 'अब्राहम समझौता' कहा जाता है.  इस समझौते के तहत यूएई और बहरीन ने इसराइल के साथ अपने रिश्तों को सामान्य किया था और राजनयिक रिश्तों को बहाल कर लिया था.  2017 में जब पीएम मोदी ने इसराइल का दौरा किया था, तब इसके जवाब में एक हफ़्ते में दो बार ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली ख़ामनेई ने कश्मीर का मुद्दा उठाया था.  ग़ज़ा के मुद्दे पर ईरान इसराइल के ख़िलाफ़ है. वहीं जब हमास ने सात अक्टूबर को इसराइल पर हमला किया तो इसे पीएम मोदी ने आतंकवादी हमला करार दिया था.  हालांकि नवंबर 2023 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में उस प्रस्ताव के समर्थन में वोट किया, जिसमें कब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइली बस्तियों की निंदा की गई थी.

अमेरिका और इसराइल दोनों से भारत के क़रीबी संबंध हैं(India has close relations with both America and Israel). वहीं ईरान के इन दोनों देशों से भारी दुश्मनी हैं, अमेरिका ने भारी भरकम सेंक्सन लगाये हुए हैं, जो के ईरान को आर्थिक तौर पर कमज़ोर बनाता हैं, वही ईज़राईल और ईरान ने तो बहुत से अफसर और लोग एक दुसरे से हुई जंग में खो दिये हैं, 

जानकार बताते हैं कि ईरान और भारत के संबंधों में ये एक अलग फैक्टर है और इससे दोनों देशों के संबंधों पर भी असर हुआ है.

उदाहरण के लिए अमेरिका ने जब ईरानी तेल पर प्रतिबंध लगाया तो इससे चाबहार पोर्ट को विकसित किए जाने को लेकर भारत-ईरान सहयोग पर भी असर हुआ.

हालांकि एक तथ्य ये भी है कि अमेरिका ने जब ईरान पर प्रतिबंध लगाए तो उसमें चाबहार प्रोजेक्ट का ज़िक्र नहीं था. मगर 2018 में अमेरिका की ओर से आए आर्थिक दबाव के कारण भारतीय कंपनियां इस प्रोजेक्ट के प्रति अनिच्छुक ही रहीं.

इसके बाद से ईरान भारत की कोई ख़ास मौजूदगी के बिना ही इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है. साथ ही इस पोर्ट पर ईरान की ओर से चीनी कंपनियों को भी मौक़ा देने के ऑफर रखे गए.

कहा जाता है कि भारत पहले ही चाबहार प्रोजेक्ट को लेकर प्रतिबद्धता व्यक्त कर रहा है लेकिन इस प्रोजेक्ट में भारत की भूमिका कम ही रह सकती है.

ईरान भारत के संबंधों में इसराइल की भी भूमिका अहम रहती है.

जानकार कहते हैं कि इसराइल और भारत के संबंधों में जो गहराइयां देखने को मिल रही हैं, ईरान उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता.

बीते सालों में इसराइल और भारत के रिश्तों में नज़दीकियां आई हैं. भारत बड़ी संख्या यानी लगभग 42 फ़ीसदी हथियार इसराइल से लेता रहा है.

इसराइल का दोस्त बनकर भारत को अमेरिका में भी फ़ायदा मिलता है. अमेरिका और इसराइल मित्र देश हैं.

वहीं ईरान इसराइल के बढ़ते असर को लेकर चिंतित रहता है. इसराइल के दायरे को बढ़ाते अब्राह्म समझौते भी इसमें अहम योगदान है.

साल 2020 में अमेरिका की मध्यस्थता में संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने इसराइल के साथ ऐतिहासिक समझौता किया था जिसे 'अब्राहम समझौता' कहा जाता है.

इस समझौते के तहत यूएई और बहरीन ने इसराइल के साथ अपने रिश्तों को सामान्य किया था और राजनयिक रिश्तों को बहाल कर लिया था.

2017 में जब पीएम मोदी ने इसराइल का दौरा किया था, तब इसके जवाब में एक हफ़्ते में दो बार ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली ख़ामनेई ने कश्मीर का मुद्दा उठाया था.

ग़ज़ा के मुद्दे पर ईरान इसराइल के ख़िलाफ़ है. वहीं जब हमास ने सात अक्टूबर को इसराइल पर हमला किया तो इसे पीएम मोदी ने आतंकवादी हमला करार दिया था.

हालांकि नवंबर 2023 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में उस प्रस्ताव के समर्थन में वोट किया, जिसमें कब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइली बस्तियों की निंदा की गई थी.

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