कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न और बिहार में गरमाई राजनीति | जानिए कौन है कर्पूरी ठाकुर ?

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न और बिहार में गरमाई राजनीति | जानिए कौन है कर्पूरी ठाकुर ?

बिहार के दो बार मुख्यमंत्री राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर: बिहार की राजनीति में एक ट्रेंडसेटर - वह सब जो आपको जानना आवश्यक है

बिहार के दो बार मुख्यमंत्री और राज्य में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति कर्पूरी ठाकुर को उनके जन्म के अवसर पर मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न के लिए नामांकित किया गया है।  शताब्दी.

ठाकुर, जिनका 1988 में निधन हो गया, ने मुख्यमंत्री के रूप में दो कार्यकाल, पहले दिसंबर 1970 में सात महीने के लिए और बाद में 1977 में दो साल के लिए सेवा करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी समाजवादी नेता होने का गौरव प्राप्त किया।

24 जनवरी, 1924 को नाई समाज (नाई समाज) में जन्मे ठाकुर को बिहार में 1970 में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लागू करने के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। उनके जन्म के गांव, जो कि समस्तीपुर जिले में स्थित है, का बाद में नाम बदलकर कर्पूरी ग्राम कर दिया गया।  सम्मान।

1934 - छठी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की

1940 - मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की, सीएम कॉलेज, दरभंगा में दाखिला लिया

1946 - कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की सदस्यता ली

1947 - राम मनोहर लोहिया ने उन्हें अपने द्वारा गठित अखिल भारतीय हिंद-किसान पंचायत का राज्य सचिव बनाया

1948-52 - लोहिया ने उन्हें सोशलिस्ट पार्टी का बिहार सचिव बनाया

1952 (जून-अगस्त) - वियना में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी युवा सम्मेलन में भाग लेने के लिए लोहिया ने उन्हें विदेश दौरे पर भेजा, यूगोस्लाविया का दौरा किया, राष्ट्रपति मार्शल टीटो से मुलाकात की

1967 - आंतरिक प्रतिद्वंद्विता के कारण पहली गैर-कांग्रेसी सरकार, जिसे संयुक्त विधायक दल सरकार कहा जाता है, के मुख्यमंत्री नहीं बन सके।

1972 - ताजपुर से विधानसभा के लिए चुने गए

1977-समस्तीपुर से लोकसभा के लिए चुने गए

1980-समस्तीपुर से विधानसभा के लिए चुने गए

1985 - सोनबरसा से विधानसभा के लिए चुने गए, विपक्ष के नेता बने

'जननायक' कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न: भाजपा की बिहार में विपक्ष के 'मंडल' की धार को कुंद करने की कवायद

‘जननायक’ कर्पूरी ठाकुर को ‘भारत रत्न’ देने की घोषणा क्या हुई उनके गृह राज्य बिहार के राजनीतिक दलों में इसके श्रेय को लेकर रेस प्रारंभ हो गई है. राजनीतिक के जानकारो का इस पर विचार हैं कि अगले कुछ 2 य़ा 3 सप्ताह में प्रस्तावित लोकसभा चुनावों में कौन से राजनेतिक दल को इसका कितना लाभ मिलता हैं, यह अभी धुधला सा प्रतीत होता है.

राजनिती के प्रकांड पंडितो का कहना है कि अनुच्छेद 370, आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 प्रतिशत और लोकसभा एवं विधानसभाओं में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण, फिर अयोध्या में राम मंदिर ‘प्राण प्रतिष्ठा’ समारोह और अब भारत रत्न का पांशा फेंककर भारतीय जनता पार्टी( Bharatiya Janata Party) ने संकेत दे दिया है कि विपक्ष के ‘इंडिया’ गठबंधन('India' Alliance) की ओर से जाति आधारित गणना को एक राजनितिक फायदे का मुद्धा बनाए जाने(Making caste based enumeration an issue) की कोशिशों का मुकाबला करने के लिए यह उसके लिए मुख्य हथियार होंगे.

कर्पूरी ठाकुर के निजी सचिव रहे वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर(Senior journalist Surendra Kishore was personal secretary).ने पीटीआई को जानकारी देते हुए बताया कि वास्तविक जननायक इस सम्मान के हकदार थे और यह उन्हें बहुत पहले मिल जाना चाहिए था. उन्होंने आंगे अपनी बात को रखते हुए बताया कि, “फैसला तो देर से आया है, लेकिन दुरुस्त है.” बिहार की राजनीति के जानकार किशोर ने इस बात को माना हैं कि आने वाले दिनों में इसका बिहार के राजनीतिक परिदृश्य पर इसका असर दिखने वाला हैं। उन्होंने कहा, “असर… देखना होगा.”

राजनीतिक दलों के बीच इस फैसले का श्रेय लेने की दौड पर सुरेन्द्र ने कहा, “श्रेय तो बंट जाएगा. देने वाले मोदी जी (Prime Minister Narendra Modi) निकले तो उन्हें भी श्रेय मिलेगा. भाजपा के पक्ष में ‘कमंडल’ का तत्व हावी है(The element of ‘Kamandal’ dominates in favor of).” राष्ट्रपति भवन(Rastrapati Bhavan) ने मंगलवार को कर्पूरी ठाकुर की जन्म शताब्दी की  संध्या पर बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रहे और राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की राजनीति के सूत्रधार कहें जाने वाले इस नेता को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ (Highest civilian award ‘Bharat Ratna’) से सम्मानित किये जाने की घोषणा की थी.

कर्पूरी ठाकुर पहले गैर-कांग्रेसी समाजवादी नेता थे(Karpuri Thakur was the first non-Congress socialist leader.) जो दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे. उनका 17 फरवरी, 1988 को निधन हो गया था. प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को ‘एक्स’ पर एक पोस्ट के जरिए इस फैसले की जहां सराहना की थी तो वहीं कर्पूरी पर एक लेख लिखकर उन्होंने कहा कि उनकी सरकार कर्पूरी ठाकुर से प्रेरणा लेकर निरंतर काम कर रही है.

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बिहार राज्य के वर्तमान सीएम नीतीश कुमार और पूर्व सीएम लालू प्रसाद ने ठाकुर को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किए जाने की घोषणा की सराहना करते हुए इस फेसले का स्वागत तो किया है परंतु कर्पूरी जयंती पर बिहार में आयोजित एक रैली प्रोग्राम में नितिश कुमार ने पीएम मोदी पर राजनेतिक निशाना साधते हुए यह कहा कि वह कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का ‘पूरा श्रेय’ ले सकते हैं.
भाजपा की राजनीति को नजदीकी से समझने के एक विश्लेशक ने बताया हैं कि यह तय है कि भाजपा लोकसभा चुनाव में कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने को मुद्दा तो बनाएगी ही और इससे लाभ लेने का भरपुर दाव भी खेलेगी यह बात कोई भी राजनितिक जानकार भी यही बतायेगा और यह सही भी हैं. आंगे उन्होंने बोला कि पहले कश्मीर के अनुच्छेद 370 को निरस्त करना, आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण, फिर 33 प्रतिशत महिला आरक्षण और फिर राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद अब ‘भारत रत्न’ का यह पेंतरा, यह बिहार में उसके मुख्य चुनावी शतरंज के घोडे होंगे.

कर्पूरी ठाकुर की पहचान अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के बड़े नेता के रुप में जानी जाति है. बिहार में निकल चुकें वर्षो में जारी किए गए जाति आधारित गणना के आंकड़ों के हवाले से राज्य में इस वर्ग की आबादी लगभग 36 प्रतिशत है. राजनीतिक विश्लेषक एवं पटना के एन एन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक डी. एम. दिवाकर (DM Diwakar, political analyst and former director of NN Sinha Institute of Social Studies, Patna) ने पीटीआई को अपने विचार साँझा करते हुए बताया कि भाजपा ने पिछड़ों के वोट पर प्रभाव बनाने की कोशिश जरूर की है, लेकिन उसने इसमें बहुत देर कर दी हैं.

उन्होंने कहा, “बिहार में पिछड़ों की राजनीति के पुरोधा लालू प्रसाद और नीतीश कुमार हैं. भाजपा उनके वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश जरूर कर रही है, लेकिन उसने देर कर दी है. भाजपा सरकार को यह ज़ानने और समझने में 10 वर्ष लग गए. अब जबकि चुनाव करीब है तो उन्होंने लाभ लेने के लिए यह घोषणा की है.” उन्होंने कहा, “भाजपा ने तो बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण का विरोध किया(“BJP opposed the caste based survey in Bihar"). बिहार की वर्तमान सरकार ने न सिर्फ इसके आंकड़े जारी किए बल्कि आरक्षण की 65 प्रतिशत तक व्यवस्था की(The present government of Bihar not only released its figures but also made arrangements for reservation up to 65 percent). इसी आधार पर जब केंद्रीय स्तर (Central Lavel) पर जाति आधारित गणना (caste based calculation) की मांग की गई तो उसे आज तक स्वीकार नहीं किया गया.”

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग)(National Democratic Alliance (NDA)) में भाजपा के अलावा लोक जनशक्ति पार्टी(Lok Janshakti Party) के दोनों गुट, पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी(Former Chief Minister Jitan Ram Manjhi) के नेतृत्व वाला हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम)(Hindustani Awam Morcha (Hum)) और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा(Union Minister Upendra Kushwaha) की राष्ट्रीय लोक जनता दल (आरएलएसपी)( Rashtriya Lok Janata Dal (RLSP))शामिल हैं. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में राजग को 31 सीट पर जीत मिली थी. भाजपा ने इस चुनाव में अकेले दम 22 सीट जीती थी. छह सीट सहयोगी दल राम विलास पासवान की लोजपा को और कुशवाहा के आरएलएसपी को तीन सीट मिली थी. वहीं जनता दल (यूनाइटेड) को दो, कांग्रेस को दो, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को चार और राकांपा को एक सीट मिली थी.

हालांकि 2019 के चुनाव में नीतीश राजग में आ चुके थे. इस चुनाव में भाजपा को 17, जद (यू) को 16 और लोजपा को छह सीट हासिल हुई. वहीं राजद का खाता भी नहीं खुला. एक सीट कांग्रेस को मिली थी. वर्ष 2019 में मांझी और कुशवाहा की पार्टियां बिहार में राजग के नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा थीं.
जानकारों का कहना है बिहार की 40 लोकसभा सीट आगामी लोकसभा चुनाव में केंद्र की नई सरकार का समीकरण तय कर सकती हैं. इस बार राज्य की राजनीति में समीकरण पिछली बार से बदले हुए हैं, जद (यू), राजद, कांग्रेस, भाकपा-माले, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) मिलकर राजग का मुकाबला करेंगे. ये सभी दल विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया)(Indian National Developmental Inclusive Alliance’ (India)) का हिस्सा हैं.

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