Malcha Mehal Most Haunted Place: दिल्ली की राजकुमारी ने हीरों को निगलने के बाद कर ली आत्महत्या, डरावना स्थान जहां भूत के डर से कोई नहीं जाता

स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि बेगम विलायत महल की आत्मा, जो तीन दशक पहले कथित तौर पर कुचले हुए हीरों को निगलने के बाद आत्महत्या कर ली थी, अभी भी खंडहरों में रहती है, जो इस जगह को 'प्रेतवाधित सैर' की श्रृंखला की पहली यात्रा के लिए आदर्श बनाती है।  दिल्ली पर्यटन विभाग शनिवार शाम को अपनी बहुप्रतीक्षित 'हॉन्टेड वॉक' शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार है, और पहला गंतव्य मालचा महल है।  14वीं शताब्दी में फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा निर्मित तुगलक-युग का शिकार लॉज, मुख्य सड़क से 1.5 किमी दूर, चाणक्यपुरी में एक जंगल के अंदर स्थित है। इसका नाम माल्चा मार्ग के नाम पर रखा गया है, जिसमें राजनयिकों, व्यापारियों और लेखकों सहित शहर के अभिजात वर्ग के लोग रहते हैं।

स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि बेगम विलायत महल की आत्मा, जो तीन दशक पहले कथित तौर पर कुचले हुए हीरों को निगलने के बाद आत्महत्या कर ली थी, अभी भी खंडहरों में रहती है, जो इस जगह को 'प्रेतवाधित सैर' की श्रृंखला की पहली यात्रा के लिए आदर्श बनाती है।

दिल्ली पर्यटन विभाग शनिवार शाम को अपनी बहुप्रतीक्षित 'हॉन्टेड वॉक' शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार है, और पहला गंतव्य मालचा महल है।

14वीं शताब्दी में फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा निर्मित तुगलक-युग का शिकार लॉज, मुख्य सड़क से 1.5 किमी दूर, चाणक्यपुरी में एक जंगल के अंदर स्थित है। इसका नाम माल्चा मार्ग के नाम पर रखा गया है, जिसमें राजनयिकों, व्यापारियों और लेखकों सहित शहर के अभिजात वर्ग के लोग रहते हैं।

महल सदियों से वीरान पड़ा हुआ था, इससे पहले कि यह एक रहस्यमय परिवार के घर के रूप में काम करने के लिए सुर्खियों में आया, जो अवध के नवाब के वंशज होने का दावा करता था, जिसके अंतिम सदस्य, 'प्रिंस' अली रज़ा की 2017 में मृत्यु हो गई थी। रज़ा, जिसे साइरस के नाम से जाना जाता है  2 सितंबर, 2017 को महल के अंदर मृत पाया गया था, उसने अत्यंत गरीबी में जीवन व्यतीत किया था, किसी भी भौतिक सुख-सुविधा से रहित था, जिसे एक सामान्य व्यक्ति के साथ भी जोड़ा जा सकता है, राजपरिवार की तो बात ही छोड़ दें।  स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि परिवार की कुलमाता, बेगम विलायत महल की आत्मा - जो तीन दशक पहले कथित तौर पर कुचले हुए हीरों को निगलने के बाद आत्महत्या कर ली थी - अभी भी खंडहरों में रहती है, जिससे यह जगह श्रृंखला की पहली यात्रा के लिए एकदम उपयुक्त है। 'प्रेतवाधित सैर' की।  मई, 1985 में बेगम अपने दो बच्चों (रज़ा और उनकी बहन सकीना) के साथ लगभग एक दर्जन कुत्तों के साथ महल में चली गई थीं। उनके आने से पहले, संरचना को बिस्तादारी खंडहर के रूप में जाना जाता था।  70 के दशक में सरकार से मान्यता की मांग करते हुए, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्रथम श्रेणी प्रतीक्षालय में डेरा डालने के बाद बेगम को महल आवंटित किया गया था। उनके प्रवास की पूरी अवधि रहस्य में डूबी रही क्योंकि परिवार ने किसी भी बाहरी हस्तक्षेप की सराहना नहीं की।  2019 में, दिल्ली सरकार को महल को पुनर्स्थापित करने के लिए इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) से एक प्रस्ताव मिला था।

14वीं शताब्दी का शिकार लॉज फिरोज शाह तुगलक द्वारा बनाया गया था। (एक्सप्रेस फ़ाइल फोटो ताशी तोबग्याल द्वारा)

महल सदियों से वीरान पड़ा हुआ था, इससे पहले कि यह एक रहस्यमय परिवार के घर के रूप में काम करने के लिए सुर्खियों में आया, जो अवध के नवाब के वंशज होने का दावा करता था, जिसके अंतिम सदस्य, 'प्रिंस' अली रज़ा की 2017 में मृत्यु हो गई थी। रज़ा, जिसे साइरस के नाम से जाना जाता है  2 सितंबर, 2017 को महल के अंदर मृत पाया गया था, उसने अत्यंत गरीबी में जीवन व्यतीत किया था, किसी भी भौतिक सुख-सुविधा से रहित था, जिसे एक सामान्य व्यक्ति के साथ भी जोड़ा जा सकता है, राजपरिवार की तो बात ही छोड़ दें।

स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि परिवार की कुलमाता, बेगम विलायत महल की आत्मा - जो तीन दशक पहले कथित तौर पर कुचले हुए हीरों को निगलने के बाद आत्महत्या कर ली थी - अभी भी खंडहरों में रहती है, जिससे यह जगह श्रृंखला की पहली यात्रा के लिए एकदम उपयुक्त है। 'प्रेतवाधित सैर' की।

मई, 1985 में बेगम अपने दो बच्चों (रज़ा और उनकी बहन सकीना) के साथ लगभग एक दर्जन कुत्तों के साथ महल में चली गई थीं। उनके आने से पहले, संरचना को बिस्तादारी खंडहर के रूप में जाना जाता था।

70 के दशक में सरकार से मान्यता की मांग करते हुए, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्रथम श्रेणी प्रतीक्षालय में डेरा डालने के बाद बेगम को महल आवंटित किया गया था। उनके प्रवास की पूरी अवधि रहस्य में डूबी रही क्योंकि परिवार ने किसी भी बाहरी हस्तक्षेप की सराहना नहीं की।

2019 में, दिल्ली सरकार को महल को पुनर्स्थापित करने के लिए इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) से एक प्रस्ताव मिला था।

क्या हैं पूरी कहानी जानें 

दिल्ली में रायसीना हिल्स के पास ही चाणक्यपुरी एरिया में मालचा महल है. 1985 में भारत सरकार ने बेगम विलायत महल को इसका मालिकाना हक दे दिया. इस टूटते हुए खंडहर हो रहे चमगादड़ों से भरे महल के लिए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर 9 साल तक धरना दिया था. वो वहीं रहती थीं. जब रेलवे के अफसर उनको हटाने आते, तो उनके 11 डोबरमैन कुत्ते उन पर झपट पड़ते. पीछे से वो धमकी देतीं कि अगर कोई भी आगे आया, तो सांप का जहर पीकर वो जान दे देंगी. उनका कहना था कि वो अवध के नवाब वाजिद अली शाह के खानदान की हैं. राजकुमारी हैं और इस नाते वाजिद अली शाह का ये महल उनका ही हुआ. उस महल में छिपकलियां घूमती थीं, कमर तक घास उगी थी, दरवाजे नहीं थे.

दिल्ली में रायसीना हिल्स के पास ही चाणक्यपुरी एरिया में मालचा महल है. 1985 में भारत सरकार ने बेगम विलायत महल को इसका मालिकाना हक दे दिया. इस टूटते हुए खंडहर हो रहे चमगादड़ों से भरे महल के लिए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर 9 साल तक धरना दिया था. वो वहीं रहती थीं. जब रेलवे के अफसर उनको हटाने आते, तो उनके 11 डोबरमैन कुत्ते उन पर झपट पड़ते. पीछे से वो धमकी देतीं कि अगर कोई भी आगे आया, तो सांप का जहर पीकर वो जान दे देंगी. उनका कहना था कि वो अवध के नवाब वाजिद अली शाह के खानदान की हैं. राजकुमारी हैं और इस नाते वाजिद अली शाह का ये महल उनका ही हुआ. उस महल में छिपकलियां घूमती थीं, कमर तक घास उगी थी, दरवाजे नहीं थे.

10 सितंबर 1993 को बेगम विलायत महल ने 62 साल की उम्र में आत्महत्या कर ली.

महल तो मिला पर बेगम बच्चों को छोड़ गईं, तब तक जमाना बदल चुका था  अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह को 1856 में अंग्रेजों ने सत्ता से बेदखल कर दिया था. उनको कलकत्ता जेल में डाल दिया गया, जहां उन्होंने अपने जीवन के आखिरी 26 साल गुजारे. जब 1947 में इंडिया को आजादी मिली तब तक वाजिद अली शाह का खानदान इधर-उधर बिखर चुका था. पर कई लोग क्लेम कर रहे थे कि वो नवाब के खानदान के हैं. प्रधानमंत्री नेहरू ने नवाब के खानदान को कश्मीर में एक घर दे दिया.

रेलवे स्टेशन पर बेगम का परिवार 

महल तो मिला पर बेगम बच्चों को छोड़ गईं, तब तक जमाना बदल चुका था

अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह को 1856 में अंग्रेजों ने सत्ता से बेदखल कर दिया था. उनको कलकत्ता जेल में डाल दिया गया, जहां उन्होंने अपने जीवन के आखिरी 26 साल गुजारे. जब 1947 में इंडिया को आजादी मिली तब तक वाजिद अली शाह का खानदान इधर-उधर बिखर चुका था. पर कई लोग क्लेम कर रहे थे कि वो नवाब के खानदान के हैं. प्रधानमंत्री नेहरू ने नवाब के खानदान को कश्मीर में एक घर दे दिया.

पर 1971 में वो घर जल गया. तो राजकुमारी अपने बेटे और बेटी के साथ लखनऊ आ गईं. उस वक्त इंदिरा गांधी की सरकार थी. उस सरकार ने तो राजाओं के भत्ते भी खत्म कर दिए थे. तो उनके पुराने महलों को कैसे दे दिया जाता. इसी वजह से बेगम ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अपना राज्य बना लिया था. बेगम के बेटे रियाज ने कहा था कि हम लोग रिक्वेस्ट नहीं करते हैं, मांग करते हैं. तो इंदिरा गांधी के प्रॉमिस के बाद मालचा महल उनको दे दिया गया. फिरोजशाह तुगलक ने इस महल को 13वीं शताब्दी में बनवाया था. जब नवाब शिकार करने आते तो इसी महल में रुकते थे.

सोसाइटी मैगजीन में बेगम के धरने के बारे में निकला था

पर 1971 में वो घर जल गया. तो राजकुमारी अपने बेटे और बेटी के साथ लखनऊ आ गईं. उस वक्त इंदिरा गांधी की सरकार थी. उस सरकार ने तो राजाओं के भत्ते भी खत्म कर दिए थे. तो उनके पुराने महलों को कैसे दे दिया जाता. इसी वजह से बेगम ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अपना राज्य बना लिया था. बेगम के बेटे रियाज ने कहा था कि हम लोग रिक्वेस्ट नहीं करते हैं, मांग करते हैं. तो इंदिरा गांधी के प्रॉमिस के बाद मालचा महल उनको दे दिया गया. फिरोजशाह तुगलक ने इस महल को 13वीं शताब्दी में बनवाया था. जब नवाब शिकार करने आते तो इसी महल में रुकते थे.

इस घर में ना बिजली थी, ना पानी की सप्लाई. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के एक अफसर धर्मवीर शर्मा इस महल का निरीक्षण करने गए थे. एक सांप सीलिंग से उनकी बांह पर गिर गया. धर्मवीर ने उस वक्त कहा था कि अब मैं उस महल में कभी नहीं जा सकता. पता नहीं, बेगम कैसे रहती हैं वहां पर. सिर्फ छिपकलियां, सांप और चमगादड़ रहते हैं वहां पर. ये घर भुतहा लगने लगा था. पर कुछ लोगों को ये भी लगता कि इसमें खजाना छिपा हुआ है. जैसा कि हिंदुस्तान में हर महल को ले के लगता है. 24 जून 1994 को कुछ उत्साही लोग इस घर में उसी खजाने की तलाश में घुस गए. दोनों भाई-बहन डर गए. उन्हें डर हो गया कि कहीं ये लोग उनकी मां की कब्र ना खोद दें खजाने के चक्कर में.

इस घर में ना बिजली थी, ना पानी की सप्लाई. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के एक अफसर धर्मवीर शर्मा इस महल का निरीक्षण करने गए थे. एक सांप सीलिंग से उनकी बांह पर गिर गया. धर्मवीर ने उस वक्त कहा था कि अब मैं उस महल में कभी नहीं जा सकता. पता नहीं, बेगम कैसे रहती हैं वहां पर. सिर्फ छिपकलियां, सांप और चमगादड़ रहते हैं वहां पर. ये घर भुतहा लगने लगा था. पर कुछ लोगों को ये भी लगता कि इसमें खजाना छिपा हुआ है. जैसा कि हिंदुस्तान में हर महल को ले के लगता है. 24 जून 1994 को कुछ उत्साही लोग इस घर में उसी खजाने की तलाश में घुस गए. दोनों भाई-बहन डर गए. उन्हें डर हो गया कि कहीं ये लोग उनकी मां की कब्र ना खोद दें खजाने के चक्कर में. 

महल का गेट जिस पर लिखा है कि लोगों का आना मना है, गोली मार दी जाएगी

भाई-बहन ने खुद ही कब्र खोद दी और मां की बॉडी जला दी. ताकि मां की बॉडी और कब्र को कोई नुकसान ना पहुंचे. राख को एक बर्तन में रख दिया. इस घटना के बाद दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने उनको रिवॉल्वर मुहैया कराई. एक वक्त था कि उन लोगों के पास 28 कुत्ते थे पर आस-पास के लोग उन कुत्तों को जहर देते रहते. बाद में कई मर गए. लोगों ने उनके महल से चांदी और सोने के सामान भी चुरा लिए थे.  पर धीरे-धीरे इस महल के भुतहा होने की बात फैलने लगी. लोग कहने लगे कि एक-दो पत्रकार भी कहानी की तलाश में इस महल में घुसे पर वापस नहीं लौटे. भाई-बहन का बाहरी दुनिया से कोई वास्ता नहीं था. वो बस खाने-पीने का सामान लेने घर से बाहर निकलते थे. मुंह पर कपड़ा बांध के. महल के सोने-चांदी से उनका काम चलता रहा. पत्रकार, अफसर समेत नेताओं ने उनसे कई वादे किए थे. पर सबने बाद में बात बदल दी थी. कई लोगों ने उनके झूठे बयान पेश कर दिए, जिसकी वजह से उनकी छवि खराब हुई.

भाई-बहन ने खुद ही कब्र खोद दी और मां की बॉडी जला दी. ताकि मां की बॉडी और कब्र को कोई नुकसान ना पहुंचे. राख को एक बर्तन में रख दिया. इस घटना के बाद दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने उनको रिवॉल्वर मुहैया कराई. एक वक्त था कि उन लोगों के पास 28 कुत्ते थे पर आस-पास के लोग उन कुत्तों को जहर देते रहते. बाद में कई मर गए. लोगों ने उनके महल से चांदी और सोने के सामान भी चुरा लिए थे.

पर धीरे-धीरे इस महल के भुतहा होने की बात फैलने लगी. लोग कहने लगे कि एक-दो पत्रकार भी कहानी की तलाश में इस महल में घुसे पर वापस नहीं लौटे. भाई-बहन का बाहरी दुनिया से कोई वास्ता नहीं था. वो बस खाने-पीने का सामान लेने घर से बाहर निकलते थे. मुंह पर कपड़ा बांध के. महल के सोने-चांदी से उनका काम चलता रहा. पत्रकार, अफसर समेत नेताओं ने उनसे कई वादे किए थे. पर सबने बाद में बात बदल दी थी. कई लोगों ने उनके झूठे बयान पेश कर दिए, जिसकी वजह से उनकी छवि खराब हुई.

दोनों भाई-बहन बहुत अच्छे से पढ़े हुए हैं. सकीना ने तो मां के ऊपर एक किताब भी लिखी है. किताब का नाम है ‘प्रिंसेस विलायत महल : अनसीन प्रेजंस’. पर ये किताब नीदरलैंड्स, फ्रांस और ब्रिटेन की लाइब्रेरियों में मौजूद है, इंडिया में नहीं. इन लोगों के पास एक पुरानी तोप भी है. कई लोग इसे खरीदना भी चाहते हैं, पर इन लोगों ने इसे बेचने से इनकार कर दिया है.  1998 में न्यूयॉर्क टाइम्स को इंटरव्यू देते हुए सकीना ने कहा था कि मुझे समझ आ गया है कि ये दुनिया कुछ नहीं है. ये क्रूर प्रकृति हमारी बर्बादी में खुश होती है. इसलिए मुझे किसी चीज की इच्छा नहीं होती. मुझे कुछ नहीं चाहिए. हम जिंदा लाशों के खानदान बन गए हैं.  भाई-बहन अपनी मां को कभी मां नहीं कहते थे. 'हर हाइनेस' कहते थे. अपनी मां से इस कदर जुड़े थे कि रिपोर्टरों से भी सिर्फ उनकी ही बात करते कि वो इस थाली में खाती थीं, उनको ये अच्छा लगता था.  यूएसए टुडे को दिए इंटरव्यू में सकीना ने कहा था कि हम अंधेरे में छोड़ दिए गए हैं. नक्षत्रों ने हमको घेर लिया है. पर अखबार की नजर में सकीना तब भी राजकुमारी जैसा ही सोच रही थीं. गरीबी का उनकी सोच पर असर नहीं था. सकीना ने कहा था कि बर्बाद तो हो गए हैं, पर हमारा गर्व नहीं खत्म हुआ है. रियाज ने कहा कि ये कभी खत्म नहीं होगा, हालांकि बर्बादी आपके सामने है.  सकीना ने ये भी कहा कि साधारण लोग साधारण चीजों के लिए तैयार हो जाते हैं. साधारण होना अपराध ही नहीं, गुनाह है. अखबार ने लिखा कि इसी खंडहर में भाई-बहन का राज है. दोनों संघर्ष कर रहे हैं, पर काम करने के बारे में सोचते भी नहीं. रियाज ने तो कहा कि हम आम लोगों से मिलना पसंद नहीं करते.  मां के जूते, जिनको पहनकर वो डांस करती थीं, टेबल पर रखे हुए हैं. ऊपर दीवार पर उनकी तस्वीर लगी हुई है. सकीना ने कहा - हम लोग किसी से कुछ कहने नहीं जाएंगे. लोगों को पता है कि हम किस हाल में हैं.  बीबीसी के रिपोर्टर एलेक्स निनियन को राजकुमार ने इंटरव्यू दिया था, जिसमें कहा था कि उनको विश्वास है कि वो अपनी बहन से पहले मरेंगे और राजकुमारी परंपरा का पालन करते हुए आत्महत्या करेंगी. रिपोर्टर ने पूछा कि अगर राजकुमारी पहले मर गईं तो वो क्या करेंगे तो इसका कोई जवाब नहीं दिया.

दोनों भाई-बहन बहुत अच्छे से पढ़े हुए हैं. सकीना ने तो मां के ऊपर एक किताब भी लिखी है. किताब का नाम है ‘प्रिंसेस विलायत महल : अनसीन प्रेजंस’. पर ये किताब नीदरलैंड्स, फ्रांस और ब्रिटेन की लाइब्रेरियों में मौजूद है, इंडिया में नहीं. इन लोगों के पास एक पुरानी तोप भी है. कई लोग इसे खरीदना भी चाहते हैं, पर इन लोगों ने इसे बेचने से इनकार कर दिया है.

1998 में न्यूयॉर्क टाइम्स को इंटरव्यू देते हुए सकीना ने कहा था कि मुझे समझ आ गया है कि ये दुनिया कुछ नहीं है. ये क्रूर प्रकृति हमारी बर्बादी में खुश होती है. इसलिए मुझे किसी चीज की इच्छा नहीं होती. मुझे कुछ नहीं चाहिए. हम जिंदा लाशों के खानदान बन गए हैं.

भाई-बहन अपनी मां को कभी मां नहीं कहते थे. 'हर हाइनेस' कहते थे. अपनी मां से इस कदर जुड़े थे कि रिपोर्टरों से भी सिर्फ उनकी ही बात करते कि वो इस थाली में खाती थीं, उनको ये अच्छा लगता था.

यूएसए टुडे को दिए इंटरव्यू में सकीना ने कहा था कि हम अंधेरे में छोड़ दिए गए हैं. नक्षत्रों ने हमको घेर लिया है. पर अखबार की नजर में सकीना तब भी राजकुमारी जैसा ही सोच रही थीं. गरीबी का उनकी सोच पर असर नहीं था. सकीना ने कहा था कि बर्बाद तो हो गए हैं, पर हमारा गर्व नहीं खत्म हुआ है. रियाज ने कहा कि ये कभी खत्म नहीं होगा, हालांकि बर्बादी आपके सामने है.

सकीना ने ये भी कहा कि साधारण लोग साधारण चीजों के लिए तैयार हो जाते हैं. साधारण होना अपराध ही नहीं, गुनाह है. अखबार ने लिखा कि इसी खंडहर में भाई-बहन का राज है. दोनों संघर्ष कर रहे हैं, पर काम करने के बारे में सोचते भी नहीं. रियाज ने तो कहा कि हम आम लोगों से मिलना पसंद नहीं करते.

मां के जूते, जिनको पहनकर वो डांस करती थीं, टेबल पर रखे हुए हैं. ऊपर दीवार पर उनकी तस्वीर लगी हुई है. सकीना ने कहा - हम लोग किसी से कुछ कहने नहीं जाएंगे. लोगों को पता है कि हम किस हाल में हैं.

बीबीसी के रिपोर्टर एलेक्स निनियन को राजकुमार ने इंटरव्यू दिया था, जिसमें कहा था कि उनको विश्वास है कि वो अपनी बहन से पहले मरेंगे और राजकुमारी परंपरा का पालन करते हुए आत्महत्या करेंगी. रिपोर्टर ने पूछा कि अगर राजकुमारी पहले मर गईं तो वो क्या करेंगे तो इसका कोई जवाब नहीं दिया.

एलेक्स से सकीना ने कहा था कि मुझे एक लोडेड रिवॉल्वर दे दो, तभी इंटरव्यू दूंगी.

सकीना ने एलेक्स से कहा था: 'हम जिंदा लाशों का खानदान बन गए हैं. मेरी तो यही इच्छा है कि मुझे 'हर हाइनेस' के पैरों के नीचे दफना दिया जाए. हमारे लिए सब कुछ धुंधला है. हमारे कुत्ते ही हमारे नजदीकी हैं. इंसानों का धोखा उन तक नहीं पहुंचा है.' एलेक्स को बताते हुए उन्होंने कहा था कि वो पर्शिया के राजा, मैसिडोनिया और मिस्र के फराओ के वंशज हैं. मुगल काल में उनके पूर्वज इंडिया आए और अवध में अपना राज बसाया. जब अंग्रेजों ने राज ले लिया तो ये लोग उसी सिस्टम में रहने लगे. ब्रिटिश पार्लियामेंट के इतिहास में जो सबसे बड़ी स्पीच बर्क और शेरिडन ने दी थी वो अवध की बेगम के अधिकारों को लेकर ही थी. पर राज चला ही गया. अंग्रेजों ने सांप की तरह हिंदुस्तान के राजकुमारों का खून चूस लिया. उन्होंने राज ले लिया और सारे वादे तोड़ दिये.

एलेक्स ने बाद में कहा था कि राजकुमारी को रिवॉल्वर नहीं दिया गया था इसलिए कैमरे पर ये इंटरव्यू नहीं हो पाया. पर ये भी कहा कि राजकुमारी ने रिवॉल्वर इसलिए मंगाया कि कैमरे पर ही अपनी जान दे दें ताकि दुनिया तक इस खानदान की बात पहुंचे.

राजकुमार के पास सिर्फ एक साइकिल है. वो उसी पर आते-जाते हैं. वही बाहर निकलते हैं. भारत के नवाबी खानदान की विरासत है ये, जो वक्त की मार नहीं झेल सकी.

देंखे मालचा महल की तस्वीरें

स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि बेगम विलायत महल की आत्मा, जो तीन दशक पहले कथित तौर पर कुचले हुए हीरों को निगलने के बाद आत्महत्या कर ली थी, अभी भी खंडहरों में रहती है, जो इस जगह को 'प्रेतवाधित सैर' की श्रृंखला की पहली यात्रा के लिए आदर्श बनाती है।  दिल्ली पर्यटन विभाग शनिवार शाम को अपनी बहुप्रतीक्षित 'हॉन्टेड वॉक' शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार है, और पहला गंतव्य मालचा महल है।  14वीं शताब्दी में फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा निर्मित तुगलक-युग का शिकार लॉज, मुख्य सड़क से 1.5 किमी दूर, चाणक्यपुरी में एक जंगल के अंदर स्थित है। इसका नाम माल्चा मार्ग के नाम पर रखा गया है, जिसमें राजनयिकों, व्यापारियों और लेखकों सहित शहर के अभिजात वर्ग के लोग रहते हैं।

स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि बेगम विलायत महल की आत्मा, जो तीन दशक पहले कथित तौर पर कुचले हुए हीरों को निगलने के बाद आत्महत्या कर ली थी, अभी भी खंडहरों में रहती है, जो इस जगह को 'प्रेतवाधित सैर' की श्रृंखला की पहली यात्रा के लिए आदर्श बनाती है।  दिल्ली पर्यटन विभाग शनिवार शाम को अपनी बहुप्रतीक्षित 'हॉन्टेड वॉक' शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार है, और पहला गंतव्य मालचा महल है।  14वीं शताब्दी में फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा निर्मित तुगलक-युग का शिकार लॉज, मुख्य सड़क से 1.5 किमी दूर, चाणक्यपुरी में एक जंगल के अंदर स्थित है। इसका नाम माल्चा मार्ग के नाम पर रखा गया है, जिसमें राजनयिकों, व्यापारियों और लेखकों सहित शहर के अभिजात वर्ग के लोग रहते हैं।

स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि बेगम विलायत महल की आत्मा, जो तीन दशक पहले कथित तौर पर कुचले हुए हीरों को निगलने के बाद आत्महत्या कर ली थी, अभी भी खंडहरों में रहती है, जो इस जगह को 'प्रेतवाधित सैर' की श्रृंखला की पहली यात्रा के लिए आदर्श बनाती है।  दिल्ली पर्यटन विभाग शनिवार शाम को अपनी बहुप्रतीक्षित 'हॉन्टेड वॉक' शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार है, और पहला गंतव्य मालचा महल है।  14वीं शताब्दी में फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा निर्मित तुगलक-युग का शिकार लॉज, मुख्य सड़क से 1.5 किमी दूर, चाणक्यपुरी में एक जंगल के अंदर स्थित है। इसका नाम माल्चा मार्ग के नाम पर रखा गया है, जिसमें राजनयिकों, व्यापारियों और लेखकों सहित शहर के अभिजात वर्ग के लोग रहते हैं।

स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि बेगम विलायत महल की आत्मा, जो तीन दशक पहले कथित तौर पर कुचले हुए हीरों को निगलने के बाद आत्महत्या कर ली थी, अभी भी खंडहरों में रहती है, जो इस जगह को 'प्रेतवाधित सैर' की श्रृंखला की पहली यात्रा के लिए आदर्श बनाती है।  दिल्ली पर्यटन विभाग शनिवार शाम को अपनी बहुप्रतीक्षित 'हॉन्टेड वॉक' शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार है, और पहला गंतव्य मालचा महल है।  14वीं शताब्दी में फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा निर्मित तुगलक-युग का शिकार लॉज, मुख्य सड़क से 1.5 किमी दूर, चाणक्यपुरी में एक जंगल के अंदर स्थित है। इसका नाम माल्चा मार्ग के नाम पर रखा गया है, जिसमें राजनयिकों, व्यापारियों और लेखकों सहित शहर के अभिजात वर्ग के लोग रहते हैं।

स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि बेगम विलायत महल की आत्मा, जो तीन दशक पहले कथित तौर पर कुचले हुए हीरों को निगलने के बाद आत्महत्या कर ली थी, अभी भी खंडहरों में रहती है, जो इस जगह को 'प्रेतवाधित सैर' की श्रृंखला की पहली यात्रा के लिए आदर्श बनाती है।  दिल्ली पर्यटन विभाग शनिवार शाम को अपनी बहुप्रतीक्षित 'हॉन्टेड वॉक' शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार है, और पहला गंतव्य मालचा महल है।  14वीं शताब्दी में फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा निर्मित तुगलक-युग का शिकार लॉज, मुख्य सड़क से 1.5 किमी दूर, चाणक्यपुरी में एक जंगल के अंदर स्थित है। इसका नाम माल्चा मार्ग के नाम पर रखा गया है, जिसमें राजनयिकों, व्यापारियों और लेखकों सहित शहर के अभिजात वर्ग के लोग रहते हैं।

स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि बेगम विलायत महल की आत्मा, जो तीन दशक पहले कथित तौर पर कुचले हुए हीरों को निगलने के बाद आत्महत्या कर ली थी, अभी भी खंडहरों में रहती है, जो इस जगह को 'प्रेतवाधित सैर' की श्रृंखला की पहली यात्रा के लिए आदर्श बनाती है।  दिल्ली पर्यटन विभाग शनिवार शाम को अपनी बहुप्रतीक्षित 'हॉन्टेड वॉक' शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार है, और पहला गंतव्य मालचा महल है।  14वीं शताब्दी में फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा निर्मित तुगलक-युग का शिकार लॉज, मुख्य सड़क से 1.5 किमी दूर, चाणक्यपुरी में एक जंगल के अंदर स्थित है। इसका नाम माल्चा मार्ग के नाम पर रखा गया है, जिसमें राजनयिकों, व्यापारियों और लेखकों सहित शहर के अभिजात वर्ग के लोग रहते हैं।

स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि बेगम विलायत महल की आत्मा, जो तीन दशक पहले कथित तौर पर कुचले हुए हीरों को निगलने के बाद आत्महत्या कर ली थी, अभी भी खंडहरों में रहती है, जो इस जगह को 'प्रेतवाधित सैर' की श्रृंखला की पहली यात्रा के लिए आदर्श बनाती है।  दिल्ली पर्यटन विभाग शनिवार शाम को अपनी बहुप्रतीक्षित 'हॉन्टेड वॉक' शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार है, और पहला गंतव्य मालचा महल है।  14वीं शताब्दी में फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा निर्मित तुगलक-युग का शिकार लॉज, मुख्य सड़क से 1.5 किमी दूर, चाणक्यपुरी में एक जंगल के अंदर स्थित है। इसका नाम माल्चा मार्ग के नाम पर रखा गया है, जिसमें राजनयिकों, व्यापारियों और लेखकों सहित शहर के अभिजात वर्ग के लोग रहते हैं।

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