Politics News: क्या बीजेपी ज्वाइन करेंगे स्वामी प्रसाद मौर्य? बेटी संघमित्रा बीजेपी से हैं सांसद, बेटी के राजनीतिक भविष्य की है मौर्या को चिंता

Politics News: क्या बीजेपी ज्वाइन करेंगे स्वामी प्रसाद मौर्य? बेटी संघमित्रा बीजेपी से हैं सांसद, बेटी के राजनीतिक भविष्य की है मौर्या को चिंता

4 बार पाला बदल चुके हैं स्वामी प्रसाद मौर्य, BJP से सपा में आए

समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश लोकसभा की 16 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषण पहले ही कर चुकी है। बदायूं से धर्मेंद्र यादव को टिकट देकर स्वामी प्रसाद मौर्या की बेटी संघमित्रा मौर्या की राजनीतिक नाव को भंवर में डाल दिया है। उनकी बेटी का राजनेतिक भविष्य दो नावो पर सवार हैं और वो कभी भी राजनीति की बहती हुई नदी में ड़ूब सकता हैं !

स्वामी प्रसाद मौर्य ने समजावादी पार्टी के पद से मंगलवार को स्तीफा दे कर राजनिती में दिलचष्पी रखने वालो को हेरान कर दिया है। राजनी‌तिक जानकारों की मानें तो उत्तर प्रदेश के बदायूं से अखिलेश यादव ने सपा से धमेंद्र यादव को टिकट दे दिया है। बदायूं से ही स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्या बीजेपी से सांसद हैं। यही वजह हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य सपा से कुछ दिनो से नाराज चल रहे थे। सूत्रों की माने तो स्वामी प्रसाद मौर्या अपनी बेटी संघमित्रा मौर्या के लिए सपा से टिकट मांग रहे थे, जो कि सपा ने उनकी इस मांग को नही माना। अखिलेश यादव ने अपने संघमित्रा मौर्या को टिकट न देकर अपने भाई धर्मेंद्र यादव को टिकट दे ‌दिए हैं। और मौर्या ने इसी नाराजी के तहत इस्तीफा दे दिया हैं, और यह भी माना जा रहा है ‌कि इस बार बीजेपी संघमित्रा को टिकट नहीं देगी। क्योंकि  संघमित्रा बीज़ेपी से सांसद होते हुए अपने पिता के लिए समाज़वादी पार्टी की तरफ से अपनी बीजेपी के खिलाफ ही प्रचार किया था.

स्वामी प्रसाद मौर्या की बेटी संघमित्रा मौर्य बीजेपी से हैं सांसद

संघमित्रा मौर्या 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से टिकट से पहली बार सांसद बनी थीं। इसमे स्वामी प्रसाद मौर्य ने बेटी को जिताने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी बीज़ेपी की तरफ से। 2022 के चुनाव में अचानक स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी छोड़कर सपा में चले गए। बीजेपी के खिलाफ कुशीनगर से चुनाव लड़े।

संघमित्रा ने अपने पिता का चुनाव में बीजेपी के खिलाफ किया था प्रचार

2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सांसद संघमित्रा मौर्या ने अपने पिता के लिए चुनाव प्रचार भी किया था। इस बात बीजेपी के स्‍थानीय नेताओं ने नाराजगी भी जताई थी। बीजेपी के स्‍थानीय नेताओं ने संघमित्रा को पार्टी से निकालने की बात तक करने लगे थे।

4 बार पाला बदल चुके हैं स्वामी प्रसाद मौर्य, BJP से सपा में आए!

पिछड़ी जाति से आने वाले स्वामी का जन्म 2 जनवरी 1954 को प्रतापगढ़ स्थित चकवड़ में हुआ था. स्वामी के सियासी सफर की बात करें तो वह बतौर विधायक पहली बार साल 1996 में विधानसभा पहुंचे. इससे पहले वह साल 1991 से सन् 95 तक जनता दल में रहे.

स्वामी ने साल 1980 के दशक से राजनीति शुरू की. वह प्रयागराज (तब इलाहाबाद में) युवा लोकदल के संयोजक थे. साल 1981 में वह युवा लोकदल उत्तर प्रदेश की कार्य समिति के सदस्य भी रहे. फिर साल 1982-1985 के दौरान युवा लोकदल प्रदेश महामंत्री, थे. इसी दौरान वह लोकदल की प्रदेश कार्यसमिति सदस्य भी थे. फिर साल 1986-89 तक वह लोकदल के प्रदेश महामंत्री रहे. इसके बाद सन् 1989-1991 तक लोकदल के मुख्य महासचिव रहे. इतना ही नहीं स्वामी साल 1991-1995 तक जनता दल के प्रदेश महासचिव भी रहे. 

1996 में आए सपा में 

इसके बाद साल 1996 में वह बसपा में आए फिर यहीं से उनके सियासत की असली कहानी शुरू हुई. बसपा में वह प्रदेश महामंत्री और उपाध्यक्ष की हैसियत से आए और फिर डालमऊ से विधायक चुने गए. 

साल 1997 में ही वह बसपा-बीजेपी गठबंधन की सरकार में मंत्री बने. इसके बाद साल 2001 में वह नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किए गए. फिर साल 2002 में वह पडरौना से विधायक चुने गए. इस दौरान साल 2002-2003 में बसपा सरकार में मंत्री बने. बसपा सरकार गिरने के बाद वह मायावती ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी. साल 2007 में जब बसपा ने यूपी में प्रचंड बहुमत हासिल किया तब स्वामी फिर मंत्री बने और साल 2012 तक पद पर बने रहे.

बनाई अपनी पार्टी और फिर बीजेपी में गए!

साल 2012 में बसपा चुनाव हार गई हालांकि स्वामी अपना चुनाव जीतकर नेता प्रतिपक्ष बने लेकन साल 2016 में उन्हें बसपा के साथ अपना दो दशक पुराना रिश्ता खत्म कर दिया. उन्होंने लोकतांत्रिक बहुजन मंच बनाया.

वहीं साल 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और फिर योगी सरकार में मंत्री बने. हालांकि जनवरी 2022 में उन्होंने बीजेपी और यूपी कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया.  साल 2022 के चुनाव के पहले वह अखिलेश यादव की अगुवाई वाली सपा में आ गए लेकिन अपना ही चुनाव हार गए. बाद में सपा ने उन्हें विधान परिषद भेजा.  

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