धोखाधड़ी में बैंक कर्मचारियों की भूमिका, व्यापारी के खाते से निकाले 51.88 लाख, 2 साल बाद मिला न्याय, अब बैंक को देने होंगे 74.25 लाख;

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एक व्यापारी का खाता हैक कर 51.88 लाख रुपये निकाल लिए। यह केस राज्य उपभोक्ता आयोग में पहुंचा। आयोग का आदेश है कि अब बैंक को 74.25 लाख रुपये देने होंगे। इस धोखाधड़ी में बैंक कर्मचारियों की भूमिका से भी इन्कार नहीं किया है।

उत्तरप्रदेश के शहर लखनऊ के व्यापारी सोमनाथ चटर्जी के बैंक खाते से 51.88 लाख रुपये धोखेबाजी से निकाल लिए गए थे। सरकारी बैंक ऑफ बड़ौदा ने इसे खाताधारक की लापरवाही बताकर यह रूपये देने से साफ साफ इन्कार कर दिया। कारोबारी ने राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील कर दी। 

बेंक और उपभोक्ता दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद राज्य उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अशोक कुमार ने आदेश दिया कि बैंक ऑफ बड़ौदा सोमनाथ को 51.88 लाख रुपये 10 फीसदी सालाना ब्याज के साथ वापस करेगा। मानसिक कष्ट के रूप में 10 लाख रुपये और वाद व्यय के रूप में 25 हजार रुपये भी बैंक को देने के आदेश दिए। 

इस तरह धोखाधड़ी के शिकार खाताधारक को करीब 74.25 लाख रुपये मिलेंगे। आयोग ने जानकारी देते हुए कहा कि इस धोखाधड़ी में बैंक कर्मचारियों की भूमिका संदिग्ध पायी गयी है। हो सकता है कि उन्होंने ही खाता हैक कर लिया हो। लखनऊ में आशियाना निवासी सोमनाथ चटर्जी मुद्रा मार्केटिंग के प्रोपराइटर हैं। 

बैंक ऑफ बड़ौदा की नरही शाखा में उनका बचत खाता, चालू खाता और 50 लाख रुपये का ओवरड्राफ्ट खाता है। ओवरड्राफ्ट खाते के एवज में उन्होंने बैंक में 60 लाख रुपये की एफडी कराई है। ओवरड्राफ्ट खाते से लेनदेन केवल ओटीपी के जरिये ही किया जा सकता है।

25 मार्च 2021 की रात उनका मोबाइल फोन बंद था। अगले दिन सुबह उन्हें पता चला कि उनके एक खाते से 1.89 लाख और ओवरड्राफ्ट खाते से 49.99 लाख रुपये निकल गए हैं। इतनी बड़ी रकम निकासी से पहले न तो उनके फोन पर ओटीपी आया, न ही पुष्टि के लिए एसएमएस आया, न ही कोई कॉल आई और न ही ईमेल किया गया। 

उन्होंने तत्काल बैंक में सूचना भी दी। साइबर फ्रॉड सेल में एफआईआर दर्ज भी कराई। बैंक ने ऊल्टाजांच के बाद ठीकरा सोमनाथ चटर्जी पर ही यह कहते हुए फोड़ दिया कि ओटीपी और मैसेज किए गए थे इसलिए फ्रॉड के लिए बैंक जिम्मेदार नहीं है। 

सोमनाथ ने बैंकिंग लोकपाल में भी शिकायत दर्ज कराई लेकिन उनको राहत नहीं मिली। राज्य उपभोक्ता आयोग ने इस मामले पर कोई फैसला सुनाने से पहले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की गाइडलाइंस का अध्ययन किया। इसमें पाया गया कि साइबर फ्रॉड के मामले में ग्राहक से ज्यादा बैंकों की जिम्मेदारी है। 

जिन मामलों में न ग्राहक की लापरवाही पाई जाती है और न ही बैंक की, लेकिन बैंकिंग सिस्टम में कमी पाई जाती है तो ग्राहक को नुकसान की भरपाई होनी चाहिए। बैंकों को अपना सिस्टम फूलप्रूफ बनाना चाहिए।

आयोग ने दलीलें सुनने के बाद कहा कि इस मामले में बैंक की सेवाओं में कमी पाई है। आयोग ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बैंक के कर्मचारियों ने धोखेबाज के साथ मिलकर शिकायतकर्ता के पंजीकृत मोबाइल नंबर के साथ-साथ शिकायतकर्ता के खाते को कुछ मिनटों के लिए हैक कर लिया होगा। 

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