आंखों से दृष्टिहीन कहकर IIT ने दाखिला रोका, अब IIM में ही पढ़ाएंगे, जानें कौन हैं Tarun Kumar Vashisth?

आंखों-से-दृष्टिहीन-कहकर-IIT-ने-दाखिला-रोका-अब-IIM-में-ही-पढ़ाएंगे-जानें-कौन-हैं-Tarun-Kumar-Vashisth?

तरुण कुमार वशिष्ठ IIM बोधगया में सहायक प्रोफेसर!

Tarun Kumar Vashisth Success Story: आज जानते हैं तरुण कुमार वशिष्ठ के बारे में, जो दोनों आंखों से दृष्टिहीन (Blind) हैं, लेकिन उन्होने यह शारीरिक कमी को सपनों की उड़ान के रास्ते में रुकावट नही बनने दिया। स्वार्थी समाज से दुत्कारे जाने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने सपनों को अपनी लगन से पूरा किया और परिवार का नाम रोशन भी किया। अब देश का भविष्य बनाने की ओर आंगे बढ़ रहें हैं।

Blind IIM Professor Tarun Kumar Vashisth Success Story: दोनों आंखों से देख नहीं सकते, फिर भी अपने सपनो के लिए लडते रहे और हार नही मानी। IIT में दाखिला देने से मना कर दिया गया था, फिर भी डटे रहे। IIM से पढ़े, PHD करके डॉक्टरेट की और अब उनके परिश्रम का नतीजा देखिए अब IIM में ही नौकरी भी मिल गई है।

खुद जन्म से दृष्टिबाधित हैं, फिर भी IIT स्टूडेंट्स को पढ़ाएंगे। यह सभी के लिए प्रेरक कहानी है उत्तराखंड के तरुण वशिष्ठ की, जिन्होंने अपने मजबूत इरादो की बदौलत बड़ी उपलब्धि हासिल की है। वे IIM अहमदाबाद के पहले स्टूडेंट हैं, जिन्होंने दृष्टिबाधित होने के बावजूद PHD की और अब IIM बोधगया में पढ़ाएंगे।

संस्थान ने दाखिला देने से किया इनकार!

तरुण वशिष्ठ बताते हैं कि उन्होंने BSC की है। इसके बाद उन्होंने IIT रुड़की का एंट्रेस एग्जाम पास कर लिया, मगर संस्थान के प्रबंधन ने यह कहते हुए दाखिला देने से मना कर दिया कि तुम देख नहीं सकते, पढ़ाई करने में समस्या आ सकती है, लेकिन उन्होंने निराश होकर हिम्मत नहीं छोड़ी।

2018 में जनरल कैटैगरी से IIM अहमदाबाद में PHD करने के लिए दाखिला लिया। दिव्यांग कोटे से दाखिला लेने वाले संस्थान के पहले स्टूडेंट बने, लेकिन मैं संस्थान का आभारी हूं कि वहां के डायरेक्टर और स्टाफ ने मुझे सहयोग किया। मैं आराम से पढ़ पाऊं, इसके लिए कुछ बदलाव संस्थान और सिस्टम में भी किए।

मुझे कभी अहसास नहीं होने दिया कि मैं दिव्यांग हूं!

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, तरुण ने दर्शनशास्त्र से PHD की है। उनकी थीसिस का टॉपिक भी कॉर्पोरेट भारत में दृष्टिबाधित कर्मचारियों के अनुभवों पर आधारित था। अब वे IIM बोधगया में सहायक प्रोफेसर के रूप में अपॉइंट होंगे। तरुण कहते हैं कि उन्हें परिवार से भी काफी सहयोग मिला हैं।

उन्होंने(फैमिली ) मुझे कभी अहसास नहीं होने दिया कि मैं दिव्यांग हूं, इसलिए कुछ कर नहीं पाऊंगा। मैं और बच्चों की तरह नॉर्मल स्कूल में पढ़ा। गणित जैस विषय चुना, जिसे आज के बच्चे लेने से कतराते हैं। अब विजुअली इम्पेयर्ड कैंडिडेट ‘नॉन-डिसएबल्ड’ इंस्टीट्यूशन में पढ़ाने का मौका मिला है तो खुश हूं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ