पटना के गांधी मैदान में रविवार को ‘महागठबंधन’ की रैली में भीड़ देखने लायक थी.
इसके ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बिहार के दौरे पर थे. उन्होंने औरंगाबाद और बेगूसराय में सभा की थी.
ऐसे में महागठबंधन की रैली और पीएम मोदी की सभा को एनडीए और विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा था.
बिहार की 40 लोकसभा सीटों में 39 पर फ़िलहाल एनडीए का क़ब्ज़ा है. एनडीए के लिए चुनौती है कि वह 2019 की जीत को जारी रखे जबकि विपक्ष के लिए चुनौती है कि वह बीजेपी को रोके.
विपक्षी गठबंधन ने गांधी मैदान की रैली को ‘जन विश्वास महारैली का नाम’ दिया था. गांधी मैदान में कहीं ढोल-नगाड़े बज रहे थे तो कहीं नाच और गाना चल रहा था. कुछ लोग पेड़ों पर लटक रहे थे तो कुछ टावर और खंभों पर चढ़कर विपक्षी नेताओं को देखने की कोशिश कर रहे थे.
बड़ी संख्या में मैदान के बाहर से भी लोग विपक्ष की रैली को देख रहे थे.
भीड़ को काबू में करने के लिए पुलिस की टीम पहुँची!
यहाँ एक तरफ़ की भीड़ को काबू में करने के लिए पुलिस की टीम पहुँच रही थी तो दूसरी तरफ़ की भीड़ बैरिकेड को लांघकर उस मंच के पास पहुँचने की कोशिश कर रही थी, जहाँ विपक्ष के सारे नेता मौजूद थे.
गांधी मैदान में बूंदाबांदी भी शुरू हुई लेकिन भीड़ का उत्साह कम नहीं हुआ.
राजनीतिक मामलों के जानकार और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस के पूर्व प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कुमार कहते हैं, “मोदी और विपक्ष की रैली को देखकर लगता है कि लोकसभा चुनाव अभी काफ़ी खुला हुआ है और पलड़ा किसी एक तरफ़ झुका हुआ नज़र नहीं आता है. दोनों के समर्थक फ़िलहाल काफ़ी उत्साहित नज़र आ रहे हैं.”
गांधी मैदान कई बड़ी सियासी रैलियों का गवाह रहा है. विपक्षी दलों ने दावा किया था कि रविवार को पटना के गांधी मैदान में एक और ऐतिहासिक रैली होगी
भीड़ में ज़्यादातर लोग राष्ट्रीय जनता दल और वाम दलों के समर्थक नज़र आ रहे थे.
कम से कम उनके हाथ में मौजूद झंडे, बैनर और पोस्टर यही बता रहे थे.
इस रैली में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे, राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सीपीआईएम के सीताराम येचुरी समेत विपक्ष के कई बड़े नेता शामिल हुए.
तेजस्वी ने अपने भाषण में जब लालू प्रसाद यादव को सामाजिक न्याय से जोड़ना शुरू किया तो भीड़ का शोर भी बढ़ने लगा.
तेजस्वी ने कहा, “दस साल से आपने (मोदी सरकार) क्या किया. लालू जी ने लोगों को मानसिक ग़ुलामी से निकाला. अब कोई चप्पल उतरवा देगा? अब कोई कुएं का पानी नहीं पीने देगा? अब लोग दस-दस कुएं बनवा लेंगे और ज़रूरत पड़ी तो दूसरों को पिला देंगे.”
नीतीश कुमार रहे निशाने पर
गांधी मैदान में लालू प्रसाद यादव लंबे समय के बाद अपने पुराने रंग में नज़र आ रहे थे. भीड़ की तालियां बटोरने में लालू भी काफ़ी आगे दिखे.
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर परिवारवाद और हिन्दू धर्म को लेकर भी निशाना साधा.
यही नहीं आमतौर पर धर्म और पौराणिक कथाओं को राजनीतिक मंच से दूर रखने वाले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी भी ऐसी कथाओं का हवाला देने लगे.
उन्होंने आरोप लगाया, “अमृत मंथन के बाद अमृत का कलश पहले देवताओं को नहीं मिला था. आज भी अमृत का कलश ग़लत हाथों में चला गया है. हमें मोदी सरकार को हटाना है. मोदी हटाओ, देश बचाओ.”
लोकसभा चुनावों के पहले पटना में विपक्ष की इस रैली में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी विपक्षी नेताओं के निशाने पर रहे.
हालांकि तेजस्वी यादव ने इस मौक़े पर भी तीखा हमला नहीं बोला लेकिन लालू ने नीतीश पर जमकर निशाना साधा.
इस मौक़े पर लालू नीतीश कुमार के बारे में कहा, "नीतीश कुमार जब पहली बार यहाँ से निकले तो हमने कहा कि ये पलटू राम हैं, लेकिन दोबारा हमसे और तेजस्वी से ग़लती हो गई. नीतीश कुमार पर एक से एक गाना फ़ोन में बनता है, उनको शर्म नहीं आती है क्या?”
कांग्रेस ने भी नीतीश कुमार के पाला बदलने पर उन पर जमकर हमला बोला है.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने क्या आरोप लगाया?
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया, “नीतीश कुमार शरण में चले गए हैं. तेजस्वी के चाचा (यानी नीतीश कुमार) मामू की चाय पीने चले गए. अब वो वापस आएंगे तो उन्हें वापस नहीं लेना है.”
शनिवार को औरंगाबाद में मोदी की सभा में नीतीश ने भी कहा था कि वो शुरू से बीजेपी के साथ हैं और बीच में गायब हो गए थे, लेकिन अब कहीं नहीं जाएंगे.
नीतीश की इस बात पर प्रधानमंत्रा मोदी भी हँस रहे थे और वहाँ मौजूद लोग भी.
गांधी मैदान में विपक्षी दलों के समर्थक राम प्रकाश महतो कहते हैं, “नीतीश जी उलट-पलट करते रहते हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री के मंच से कहा कि ‘हम कुछ दिनों के लिए ग़ायब हो गए थे’. यह उनको शोभा नहीं देता है. बिहार के मुख्यमंत्री होकर आप कहाँ ग़ायब हो गए थे. इस बार वो बिहार के राजनीतिक मानचित्र से ग़ायब होने वाले हैं.”
‘विपक्ष के पास मुद्दों की कमी’
गांधी मैदान में समर्थकों की भारी भीड़ के सामने विपक्षी नेताओं के पास एक मौक़ा ज़रूर था कि वो केंद्र सरकार को राजनीतिक मुद्दों पर घेर सकते थे. लेकिन इस मामले में विपक्षी नेताओं के पास मुद्दों की कमी दिख रही थी.
विपक्ष ने रोज़गार के उसी मुद्दे को उठाने की सबसे ज़्यादा कोशिश की, जिसे तेजस्वी यादव ने अपना मुद्दा बनाया था.
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा, “देश में जब भी बदलाव आता है तो तूफ़ान बिहार से शुरू होता है. बिहार से ही बदलाव का तूफ़ान पूरे देश में जाता है. आज देश में 40 साल में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी है. छोटे व्यापारियों के काम बंद हो गए.”
राहुल गांधी की इस बात पर गांधी मैदान में जमकर तालियाँ बजीं. दरअसल विपक्षी दलों की कोशिश बिहार में रोज़गार को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाना है. इस मुद्दे पर युवाओं की बड़ी संख्या भी गांधी मैदान में मौजूद दिखी.
बिहार के औरंगाबाद के रहने वाले ओम प्रकाश यादव पटना में रहकर पढ़ाई करते हैं.
ओम प्रकाश का कहना है, “हम नौकरी के लिए पढ़ रहे हैं. हमें नौकरी चाहिए. यहाँ जब महागठबंधन की सरकार थी तो नौकरी देना शुरू किया था. हम उम्मीद करते हैं कि वो लोकसभा में भी ज़्यादा सीट जीतें और राज्य में भी फिर से सरकार में आएं और युवाओं को नौकरी दें.”
बिहार के नवादा से विपक्ष की रैली के लिए पटना आए कौशल राय कहते हैं, “बिहार में सबसे बड़ा मुद्दा बेरोज़गारी है. यह आज के युवाओं को डिप्रेशन में डाल रहा है. हम लोग पढ़ लिखकर बेरोज़गार हैं. तेजस्वी यादव ने एक उम्मीद जगाई है. इस बार लड़ाई बहुत बड़ी है.”
बिहार के लिए रोज़गार और महंगाई एक बड़ा मुद्दा है. औरंगाबाद में भी नरेंद्र मोदी की सभा में कई लोग इस मुद्दे को काफ़ी अहम मान रहे थे.
लेकिन पुष्पेंद्र कुमार मानते हैं कि विपक्ष केवल इसी मुद्दे पर केंद्र सरकार को चुनौती नहीं दे सकता.
उनका कहना है, “मोदी लोगों को लोकलुभावन भविष्य दिखा रहे हैं. विपक्ष मोदी को निशाने पर ले रहा है यह सही है, लेकिन उनके पास और क्या विकल्प है इसका कोई रोड मैप भी होना चाहिए. पटना में रोज़ागार के अलावा भी बातें होने थीं, जिसकी कमी दिखी है.”
किसके पास कितनी ताक़त!
पटना में रविवार को हुई महागठबंधन की रैली विपक्षी एकता की पहली बड़ी रैली भी है. यह पहला मौक़ा भी है जब कई विपक्षी दल एकसाथ केंद्र की मोदी सरकार के ख़िलाफ़ एकजुट हुए हैं.
पटना में विपक्षी नेताओं ने नौकरी के अलावा जातिगत गणना पर भी बात की है.
विपक्ष ने हर साल दो करोड़ नौकरी, किसानों की आय दोगुनी, सभी ग़रीबों को पक्के मकान जैसे मुद्दों पर भी बात की, लेकिन इन सबके विकल्प में उनकी योजना क्या होगी, इस पर ज़्यादा कुछ नहीं कहा गया.
पुष्पेंद्र कुमार का मानना है कि विपक्ष के पास बीजेपी के मुक़ाबले संसाधनों की कमी है और बहुत कम समय में तैयारी करने बाद भी पटना में लोगों की भारी भीड़ जुटाई गई, इस लिहाज़ से विपक्ष की रैली काफ़ी सफल दिखती है.
उनका कहना है, “केंद्र सरकार के दस साल हो चुके हैं और बहुत से लोगों का मोहभंग भी हुआ है लेकिन वोटरों को अपनी तरफ खींचने के लिए विपक्ष को कुछ ठोस बातें करनी होंगी.”
मसलन देश में अगर बेरोज़गारी अपने रिकॉर्ड स्तर पर है तो लोगों को रोज़गार देने के लिए विपक्षी दलों के पास क्या योजना है, इसकी ज़्यादा चर्चा नहीं की गई.
पश्चिमी चंपारण से विपक्ष की रैली के लिए पटना पहुँची जोहरा खातून आरोप लगाती हैं, “हम ग़रीब लोग हैं. पाँच किलो राशन मिलता है वो भी दो-तीन महीने में. पूरे दिन मेहनत करते हैं तो 100 रुपये मिलते हैं. इससे पेट नहीं भरता है.”
ज़ाहिर है बिहार की ही बात करें तो ग़रीबी और महंगाई से निपटने के लिए विपक्षी दलों के पास क्या योजना है, बिहार के हर साल बड़ी संख्या में रोज़गार के पलायन को रोकने के लिए क्या किया जाना चाहिए कोई खाका पेश नहीं किया गया.
हालाँकि यह साल 2024 के चुनावों के लिए वादों और दावों की शुरुआत ही है.
बिहार की ही बात करें तो यहाँ की सियासत में अभी कई नए रंग भी देखने को मिल सकते हैं. ख़ासकर लोकसभा सीटों की साझेदारी के मुद्दे पर.
इस साझेदारी के बाद कौन कहाँ से चुनाव लड़ेगा, किसके टिकट कटेंगे और कौन नाराज़ होगा, ऐसे कई सवाल होंगे जो 'एनडीए' और ‘इंडिया’ के चुनावी गणित को भी प्रभावित कर सकते हैं.
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