बिहार के पटना साहिब लोकसभा सीट पर बीजेपी के रविशंकर प्रसाद और कांग्रेस के अंशुल अविजीत के बीच सीधा मुक़ाबला है.
रविशंकर प्रसाद इस सीट से मौजूदा सांसद हैं जबकि अंशुल अविजीत कांग्रेस की वरिष्ठ नेता मीरा कुमार के बेटे हैं.
रविशंकर प्रसाद पर कई लोग आरोप लगाते हैं कि वो चुनाव जीतकर दिल्ली चले जाते हैं और दोबारा इलाक़े में नहीं आते हैं.
वहीं चुनाव के लिहाज से अंशुल अविजीत को राजनीति का नया खिलाड़ी माना जा रहा है.
पटना साहिबा लोकसभा सीट पर कायस्थ वोटरों का बड़ा असर है. इसलिए यहाँ से प्रमुख राजनीतिक दलों की ओर से कई बार कायस्थ उम्मीदवार को खड़ा किया गया है. रविशंकर प्रसाद भी कायस्थ ही हैं.
साल 2019 में इस सीट से कांग्रेस ने बीजेपी के बाग़ी नेता शत्रुघ्न सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाया था. शत्रुघ्न सिन्हा इस सीट से साल 2009 और साल 2014 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते थे. शत्रुघ्न सिन्हा भी कायस्थ ही हैं और इस बार वह पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट से टीएमसी के उम्मीदवार हैं.
इस बार के चुनाव में पहली बार नरेंद्र मोदी ने पटना में रोड शो किया है.
पटना साहिब लोकसभा सीट भले ही बीजेपी का गढ़ रहा हो लेकिन इस बार बीजेपी के लिए भी यहाँ कुछ चुनौतियाँ भी हैं.
बिहार में पिछले साल जारी किए गए जातीय जनगणना के आँकड़ों के मुताबिक़ राज्य में कायस्थों की आबादी 0.6% है. इस आबादी का एक बड़ा हिस्सा पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र में है.
साल 2014 के चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट से भोजपुरी कलाकार कुणाल सिंह को चुनाव मैदान में उतारा था जबकि एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ रही जेडीयू ने एक कायस्थ उम्मीदवार डॉक्टर गोपाल प्रसाद सिन्हा को बीजेपी के शत्रुघन सिन्हा के ख़िलाफ़ चुनाव मैदान में उतारा था.
साल 2009 में कांग्रेस ने इस सीट से टीवी एक्टर शेखर सुमण को उम्मीदवार बनाया था जो कि ख़ुद कायस्थ हैं. उस चुनाव में आरजेडी ने विजय कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया था. शेखर सुमण अब बीजेपी में शामिल हो गए हैं और शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी से बाहर हो चुके हैं.
अलग-अलग प्रयोगों के बाद भी हाल के कुछ वर्षों में इस सीट पर कोई भी पार्टी बीजेपी को मात देने में सफल नहीं रही है. माना जाता है कि इसलिए अब कांग्रेस ने यहाँ से एक नया दांव खेला है और अंशुल अविजीत को अपना उम्मीदवार बनाया है.
अंशुल अविजीत ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है. उनके नाना बाबू जगजीवन राम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे हैं. अंशुल की माँ मीरा कुमार दलित हैं और अंशुल के पिता कुशवाहा हैं.
इस तरह से माना जाता है कि कायस्थ वोटरों को तोड़ने की जगह कांग्रेस इस बार पिछड़े और दलित वोटरों पर ज़्यादा भरोसा कर रही है. अंशुल ने इन चुनावों के लिए पटना में बाबू जगजीवन राम के मकान को अपनी चुनावी रणनीति का केंद्र भी बनाया है.
अंशुल अविजित कहते हैं, “रविशंकर जी लोगों के बीच कभी आए ही नहीं. लोग उनसे नाराज़ हैं, उन्हें लोगों का सामना तो करना ही चाहिए. प्रधानमंत्री पर दबाव है, वो बड़े परेशान हैं, इसलिए उन्हें यहाँ बार-बार आकर रविशंकर जी की वकालत करनी पड़ रही है. उन्होंने ख़ुद बिहार को विशेष दर्ज़ा और सवा लाख़ करोड़ के पैकेज का वादा किया था, कोसी बाढ़ की समस्या के लिए प्रधानमंत्री ने क्या किया है, बताएँ.”
अंशुल अविजित कहते हैं, ''देश में बेरोज़गारी की समस्या हर वर्ग में है. कमर तोड़ महंगाई का असर हर किसी पर है. सब्ज़ी, दाल, आटा, सरसों तेल और मसालों के दाम आसमान को छू रहे हैं. केंद्र सरकार ने देश की आर्थिक स्थिति को बर्बाद कर दिया है, इससे सबको राहत मिलती चाहिए.''
रविशंकर प्रसाद के लिए चुनौतियाँ!
बिहार में विपक्ष लगातार इस कोशिश में है कि लोकसभा चुनावों में महंगाई, बेरोज़गारी; संविधान और आरक्षण पर कथित ख़तरे को चुनावी मुद्दा बनाया जाए. कई इलाक़ों में लोगों के बीच यह मुद्दा नज़र भी आता है. हालाँकि यह चुनावों पर कितना असर डालेगा, यह बता पाना आसान नहीं है.
शुक्रवार 24 मई को पटना साहिब लोकसभा सीट पर रविशंकर प्रसाद के चुनाव प्रचार के दौरान हम उनके पास पहुँचने की कोशिश कर रहे थे. शाहपुर-पिपरा होते हुए भेलवाड़ा गाँव की तरफ़ जाते हुए हमने एक दुकानदार से पूछा, “क्या रविशंकर जी चुनाव प्रचार के लिए इस तरफ़ आए हैं?”
दुकानदार ने नाराज़गी से जवाब दिया, “कौन हैं वो, पहले तो कभी नहीं आए इधर. हम नहीं जानते हैं उनको. कभी नहीं आते हैं, इलाक़े में. उनको किसी ने नहीं देखा है.”
आगे बढ़ते हुए हम भेलवाड़ा गाँव पहुँचे और वहाँ कड़ी धूप में बीजेपी के कई समर्थक और कार्यकर्ता झंडे और फूल माला लेकर रविशंकर प्रसाद का इंतज़ार कर रहे थे. थोड़ी देर में रविशंकर प्रसाद के चुनाव प्रचार का काफ़िला गाँव में पहुँचा.
इसी गाँव में हमारी मुलाक़ात रोशन कुमार नाम के एक युवा से हुई जो अपने साथियों के साथ मौजूद थे. वो फ़िलहाल नौकरी पाने की कोशिशि में लगे हैं.
रोशन कुमार कहते हैं, “रविशंकर प्रसाद जी पाँच साल से सांसद हैं. आज तक हमने उनका चेहरा नहीं देखा था. जब चुनाव आए हैं तो इलाक़े में आए हैं. हमारे गाँव में सांसद या विधायक का कोई काम नहीं दिखा है. इस बार चुनाव में मुद्दा महंगाई और बेरोज़गारी है.”
हमने रविशंकर प्रसाद से यही सवाल पूछा कि आप पर आरोप है कि आप चुनाव जीतने के बाद वापस इलाक़े में नहीं आए.
रविशंकर प्रसाद कहते हैं, “सबसे अधिक काम मैंने कराया है. जो आरोप लगा रहे हैं वो कौन हैं? मैंने शत्रुघ्न सिन्हा का नाम नहीं लिया और उनका नाम भी नहीं लूंगा. आज महंगाई सबसे नियंत्रित है और लाखों लोगों को सरकारी नौकरी मिली है.”
रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि जब सब कुछ हो रहा है और विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं तो कभी संविधान ख़तरे में है तो कभी रोज़गार की बात करते हैं. रविशंकर प्रसाद सवाल करते हैं कि कर्नाटक और हिमाचल में कांग्रेस ने कितना रोज़गार दिया है, जहाँ उसकी सरकार है.
किस जाति का दबदबा!
माना जाता है कि पटना साहिब लोकसभा सीट पर क़रीब 25 फ़ीसदी कायस्थ वोटर हैं. इसके अलावा भूमिहार, यादव और कुरमी वोटर भी इस सीट पर बड़ी तादाद में हैं.
इस सीट पर लोकसभा चुनावों के अंतिम चरण में एक जून को वोट डाले जाएंगे. इस बीच सभी उम्मीदवार चुनाव मैदान में पसीने बहा रहे हैं.
पटना साहिब सीट का एक बड़ा इलाक़ा पटना के शहरी क्षेत्र में आता है.
वोटरों की तादाद के लिहाज से बात करें तो साल 2019 के लोकसभा चुनावों में इस सीट पर 21 लाख़ से ज़्यादा वोटर थे. लेकिन उस चुनाव में महज़ 45 फ़ीसदी वोटिंग हुई थी.
फ़िलहाल बिहार की राजधानी पटना का मौसम काफ़ी गर्म बना हुआ है. धूप और गर्मी न केवल लोगों के लिए मुसीबत बनी हुई है बल्कि चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के लिए भी इस तेज़ धूप में प्रचार करना आसान नहीं दिखता है.
ऐसे में अगर गर्मी का यही असर एक जून को वोटिंग के दिन भी बना रहा तो इस बार भी पटना साहिब सीट के वोटिंग के आँकड़ों पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है.
पटना साहिब लोकसभा में 6 विधानसभा सीटें हैं. साल 2020 के बिहार के विधानसभा चुनावों में इनमें से दो सीटों, बख़्तियारपुर और फ़तुहा पर आरजेडी को जीत मिली थी. यहाँ की अन्य चार विधानसभा सीटों दीघा, बाँकीपुर, कुम्हरार और पटना साहिब पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी.
ये आँकड़े भले ही बीजेपी के साथ दिखते हों लेकिन स्थानीय स्तर पर लोगों के लिए कई ऐसे मुद्दे हैं जो चुनावों में रविशंकर प्रसाद के लिए चुनौती बन सकते हैं.
उलटफेर की संभावना कितनी!
पटना शहर का डाक बंग्ला चौराहा शहर की आर्थिक- राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र माना जाता है. वाणिज्य और व्यवसाय से लेकर धरने और प्रदर्शनों की वजह से यह चौराहा अक्सर सुर्खियों में होता है.
यहाँ मौजूद रंगीला बिहारी कहते हैं, “यहाँ सबसे बड़ा मुद्दा महंगाई का है. महंगाई एक से चार हो गई है. जब-जब बीजेपी की सरकार आई चाहे बिहार हो या कोई अन्य जगह महंगाई ने ग़रीब को बेहाल कर दिया और घर से बेघर कर दिया.”
इसी चौराहे पर एक कपड़े की दुकान में जाकर हमने इलाक़े के चुनावी माहौल के बारे में जानने की कोशिश की. दुकान में मौजूद मैनेजर से लेकर सेल्स के काम में लगे लोगों ने कहा कि रविशंकर प्रसाद चाहे इलाक़े में आएं या न आएं लेकिन यहाँ मोदी को वोट मिलेगा.
शहर के पटेल नगर के अरुण कुमार कहते हैं, “यहाँ मुद्दा विकास है, मुद्दा राष्ट्रवाद का है. हम एक रोटी कम खाएंगे लेकिन राष्ट्र हमारा ख़ुश रहेगा तो हम अपने आप ख़ुश रहेंगे.”
पटना के ग्रामीण इलाक़े से गुज़र रहे रविशंकर प्रसाद के चुनाव प्रचार को देखने के लिए घर के बाहर खड़ी सुनीता देवी कहती हैं, “मोदी जी ही इधर मुद्दा हैं. वो सबकुछ दे रहे हैं. पाँच आदमी का खाना नहीं चल रहा है एक घर में और वो पूरा देश चला रहे हैं. सब उन्हीं का है.”
भारत सरकार ग़रीबों को हर महीने मुफ़्त अनाज देती है और माना जा रहा है कि ऐसी योजनाओं से बीजेपी को एक बड़ा जन समर्थन मिला है. हालांकि इन सबके बीच बिहार में बेरोज़गारी और महंगाई भी बड़ा मुद्दा है.
पटना के ग्रामीण इलाक़े के प्रेम शंकर राम कहते हैं, “महीने में पाँच किलो अनाज में क्या होगा. इससे अच्छा रोज़गार दे देते और चावल के दाम ले लेते. बाल बच्चों का भविष्य क्या होगा, सरकार का इस पर कोई ध्यान नहीं है. उसे केवल रोड बनवाना है. रोड का हम क्या करेंगे?”
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