छत्रसाल बुंदेला चंपतराय बुंदेला के चौथे पुत्र चंपत राय ने बुंदेलखंड में मुगलों के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया था।
चंपतरायबुंदेला सरदार, वीरसिंह का मित्र और विद्रोह के समय जुझारसिंह का सहायक था। जुझारसिंह अपने पुत्र विक्रमाजीत सिंह के साथ ये जंगलों में छिपे रहे। सन् १६४४ ईo में देवगढ़ के गोंड़ों ने इन दोनों को मार डाला। की मृत्यु के पश्चात् उसके एक पुत्र पृथ्वीराज की सहायता करता रहा। 1639 ई. में जब ओड़छा और झाँसी के बीच बुंदेला सेनाएँ हार गई और पृथ्वीराज ग्वालियर के किले में कैंद कर लिया त्रया चंपतराय राजकुमार दारा की सेवा में चला गया। बाद में अन्य बुंदेला सरदारों से ईर्षा के कारण वह औरंगजेब की सेना में सम्मिलित हुआ। सन् 1661 में चंपतराय ने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह किया किंतु बड़ी कठोरता से उसका दमन कर दिया गया।
पिताके दोस्त राजा जयसिंह के सेनामें भरती होना !
छत्रसाल बुंदेलाअपने भाई के साथ पिता के दोस्त राजा जयसिंह के पास पहुंचकर सेना में भरती होकर आधुनिक सैन्य प्रशिक्षण लेना प्रारंभ कर दिया।
राजपूत राजा जयसिंह तो दिल्ली सल्तनत के लिए कार्य कर रहे थे अतः औरंगजेब ने जब उन्हें दक्षिण विजय का कार्य सौंपा तो मिर्जाराजा ने छत्रसाल को दिलेरखान को सौंपा था।देवगढ़ के गोंड राजाओं के खिलाफ लड़ते हुए, उनके पास भूत या भविष्य की शक्तियां इस हद तक नहीं थीं कि छत्रसाल के बिना, देवगढ़ मुगलों पर कभी विजय प्राप्त नहीं की जा सकती थी।
छत्रसाल को इसी युद्ध में अपनी बहादुरी दिखाने का पहला अवसर मिला । सन १६६५ में बीजापुर युद्ध में असाधारण वीरता छत्रसाल ने दिखायी और देवगढ़ (छिंदवाड़ा) के गोंड राजा को पराजित करने में तो छत्रसाल ने जी-जान लगा दिया। गोंड राजा कोकशाह की मृत्यु 1640 ईसवी में हुई और उसके बाद उनके बेटे केशरीशाह सत्तासीन हुए
सन 1648 ईसवी में मुग़ल बादशाह शाहनवाज़ खान द्वारा देवगढ़ (छिंदवाड़ा) आक्रमण किया गया फिर औरंगज़ेब के समय 1658 ईसवी में मुग़ल सेनापति मिर्ज़ा खान ने आक्रमण किया। इस तरह 1660 ईसवी तक गोंड राजा केशरीशाह मुग़लों से समझौता करके किसी तरह शासन पर बने रहे और मुग़लों को भारी लगान चुकाते रहे (रसेल, 1908)।इस सीमा तक कि यदि उनका घोड़ा, जिसे बाद में ‘भलेभाई’ के नाम से विभूषित किया गया उनकी रक्षा न करता तो छत्रसाल शायद जीवित न बचते पर इतने पर भी जब विजयश्री का सेहरा उनके सिर पर न बांध मुगल भाई-भतीजेवाद में बंट गया तो छत्रसाल का स्वाभिमान आहत हुआ और उन्होंने मुगलों की बदनीयती समझ दिल्ली सल्तनत की सेना छोड़ दी।
इन दिनों राष्ट्रीयता के आकाश पर शिवाजी छत्रपति का सितारा चमचमा रहा था। छत्रसाल दुखी तो थे ही, उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज से मिलना ही इन परिस्थितियों में उचित समझा और सन 1668 में दोनों राष्ट्रवीरों की जब भेंट हुई तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने छत्रसाल बुन्देला को उनके उद्देश्यों, गुणों और परिस्थितियों का आभास कराते हुए स्वतंत्र राज्य स्थापना की मंत्रणा दी।
🙏बुंदेले राज्य की स्थापना🙏
मध्यकाल में किलकिला नदी की दूसरी तरफ पनरा नाम का नगर था जो गोंड राजाओं की राजधानी थी वर्तमान में पन्ना जिले की पवई तहसील से कुछ दूरी पर करही ग्राम है । पवई एवं करही को संयुक्त रूप से पवई - करही कहते है । यह गोंडों के 52 गढ़ों में शामिल था । इसे गोंड राजा हृदयशाह ने शाहगढ़ धमोनी गढ़ हटा गढ़ मदियादो गढ़ी ओरछा के शासक को दे दिया था । इसी स्थान से सागर के पेशवा बाजीराव , छत्रसाल की सहायता के लिए इसी मार्ग से होकर बुन्देलखंड गये थे ।। जनश्रुति है, कि स्वामी प्राणनाथ ने मध्य काल के महान योद्धा राजा छत्रसाल को पन्ना की हीरे की खानों के बारे में बताया था। इससे छत्रसाल के राज्य की आर्थिक स्थिति सुधरी थी।पन्ना को अपनी राजधानी बनाने के लिए स्वामी जी ने राजा छत्रसाल को प्रेरित किया था और उनके राज्याभिषेक की व्यवस्था भी की थी। उन्होंने ही बुन्देलखण्ड राज्य की स्थापना की थी। इसी अवधि में छत्रसाल ने, उसे अपनी राजधानी बनाया। ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया संवत १७४४ की गोधूलि बेला में स्वामी प्राणनाथ ने विधिवत छत्रसाल का पन्ना में राज्यभिषेक किया। विजय यात्रा के दूसरे सोपान में छत्रसाल ने अपनी रणपताका लहराते हुए सागर, दमोह, एरछ, जलापुर, मोदेहा, भुस्करा, महोबा, राठ, पनवाड़ी, अजनेर, कालपी और विदिशा का किला जीत डाला। आतंक के मारे अनेक मुगल फौजदार स्वयं ही छत्रसाल को चैथ देने लगे।
बघेलखंड, मालवा, राजस्थान और पंजाब तक छत्रसाल ने युद्ध जीते। परिणामतः यमुना, चंबल, नर्मदा और टोंस मे क्षेत्र में बुंदेला राज्य स्थापित हो गया। सन १७०७ में औरंगजेब का निधन हो गया। उसके पुत्र आजम ने बराबरी से व्यवहार कर सूबेदारी देनी चाही पर छत्रसाल ने संप्रभु राज्य के आगे यह अस्वीकार कर दी।
Source - Weikipedia
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