The Tragic Delhi Hospital Accident Happened On Saturday: दिल्ली के जीटीबी नगर अस्पताल की मोर्चरी के बाहर कई लोग मायुष और सिसकते हुए लोग बैठे हुए है. आज सुबह से ही आग ऊगलते हुए चढ़ते सूरज की गर्मी को झेलना असहनीय हो रहा है. बीच-बीच में अचानक दर्द से रोने की आवाज़ आपको अंदर से झकझोर सकती है.
मोर्चरी के बगल में टीन शेड है, जिसकी छांव गरमी में राहत देने के लिए काफ़ी नहीं है. अपने बच्चों को खो चुकें परिवारो के लोगो के लिए कोई व्यवस्था नही है.
Six Children Died On Saturday: एक दुखी पिता राजकुमार बिल्कुल ख़ामोश बैठे हैं, मानो ज़िन्दगी ने सबकुछ छीन लिया और विनोद के लिए आंसुओं को थामना मुश्किल है.
ये उन नवजात शिशु के पिता हैं, जिन्होंने शनिवार रात दिल्ली के विवेक विहार इलाक़े के एक अस्पताल में लगी आग में जान गंवा दी.
बीते शनिवार रात क़रीब साढ़े 11 बजे दिल्ली के विवेक विहार स्थित बेबी केयर न्यूबोर्न हॉस्पिटल में अचानक आग ने कहर मचा दिया. जब तक फ़ायर स्टेशन से गाड़िया यहां पहुंचतीं, आग अपनी सीमाए लांघ बेकाबू हो गई.
फ़ायर ब्रिगेड ने अस्पताल में भर्ती कुल 12 पैदा हुए नवजातों को निकाला और दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया. सुबह होते-होते इनमें से 6 नवजातों ने दम तोड़ दिया. सोमवार को इन बच्चों के शव पोस्मॉर्टम के बाद परिजनों को सौंपे गए.
अपने बेटे के जन्म का लंबा इंतज़ार किया..! अपने बेटे को खो चुके एक शख़्स की आपबीती
विनोद ने अपने बेटे के जन्म का बहुत इंतज़ार किया था. इससे पहले उनके एक बच्चे की मौत भी हो चुकी थी. और अब दुसरा बेटा खोना उनके लिए असहनीय था,
अब मोर्चरी के बाहर वो बेटे का मृत शव लेने का इंतज़ार कर रहे हैं. विनोद के आंसू रोरो कर सूख चुके हैं, गला रो-रोकर भारी हो गया है.
हर पंद्रह बीस मिनट में वो अचानक बेचैन होते हैं, शेड से उठकर मोर्चरी के दरवाज़े की तरफ़ जाते हैं और फिर वापस आकर शेड में बैठ जाते हैं.
ये सिलसिला सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक चलता है, जब तक बच्चे का शव उन्हें सौंप नहीं दिया जाता.
विनोद की बच्चे की मौत से बेखबर पत्नी बच्चे के जन्म के बाद अस्पताल में भर्ती हैं, बेटे की मौत की जानकारी उनके स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें अभी नहीं दी गई है.
विनोद ने अपनी मां को भी यह दर्दनाक घटना नहीं बताया है कि उनका पोता, इस दुनिया को देखने से पहले ही अलविदा हो चुका है. उन्हें डर है कि पोते की मौत की ख़बर उनकी दिल की मरीज़ मां बर्दाश्त कर पाएंगी या नहीं. विनोद अंदर से टूट रहा है,
शनिवार सुबह पांच बजे विनोद के बेटे ने दिल्ली के झिलमिल इलाक़े के लोकप्रिय नर्सिंग अस्पताल में जन्म लिया था. सांस लेने में दिक़्क़त होने की वजह से उसे बेबी केयर न्यूबोर्न हॉस्पिटल रेफ़र कर दिया गया था.
शनिवार की सुबह विनोद के लिए ज़िंदग़ी की सबसे बड़ी ख़ुशी लेकर आई थी, लेकिन रविवार होते-होते यही उनकी ज़िंदग़ी के सबसे बड़े दुखो में बदल गई.
विनोद अपने परिवार से बात करने से डरे हुए हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वो ये जानकारी अपनी पत्नी को कैसे देंगे, अपनी मां को कैसे बताएंगे कि जो ख़ुशख़बरी उन्होंने सुबह सुनाई है वो अब एक न सह सकने वाले दुख में बदल गई है.
विनोद बताते हैं, “शनिवार सुबह ही मेरा बेटा पैदा हुआ, सांस लेने में दिक़्क़त होने के बाद उसे बड़े अस्पताल में भर्ती कराया. दो बजे मैं अपने बेटे से मिला था, उसकी हालत ठीक थी, रात नौ बजे मैंने फिर से उसे देखा था. मुझे बताया गया था कि कल (रविवार) मैं उसे अपने घर ले जा सकता हूँ.”
बेटे की सेहत में सुधार का आश्वासन मिलने के बाद विनोद अस्पताल से घर चले गए थे, उन्हें दूसरे अस्पताल में भर्ती अपनी पत्नी की देखभाल भी करनी थी.
शनिवार रात को हुई आगजनी की घटना की जानकारी उन्हें अगले सुबह क़रीब साढ़े नौ बजे अस्पताल के एक कर्मचारी की तरफ़ से आए फ़ोन कॉल से हुई.
विनोद बताते हैं, “अस्पताल के स्टाफ़ ने कॉल करके बताया कि रात यहां ब्लास्ट हो गया है, आप आकर पता कर लो.” अब तक विनोद को ये नहीं बताया गया था कि उनके बच्चे की मौत हो गई है. विनोद जैसे थे वैसे अस्पताल की तरफ़ भागे.
विनोद कहते हैं, “अस्पताल पूरी तरह आग से जल चुका था, वहां कोई था ही नहीं, वहां से विवेक विहार थाने भेजा, थाने गया तो कर्मचारियों ने कहा जीटीबी अस्पताल जाओ.”
विनोद के लिए अपने आग में झुलसे हुए बच्चे को पहचानना मुश्किल था. ऊपर से वो अपने बेटे को जी भरकर देख भी नहीं पाए थे.
रविवार को वो अपने बेटे को पहचान नहीं सके. विनोद ने शव की पहचान के लिए डीएनए टेस्ट की मांग भी की थी.
वो कहते हैं, “शव इस हालत में नहीं थे कि उन्हें पहचाना जा सके.”
हालांकि, सोमवार को शाम पांच बजे के क़रीब जो शव उन्हें सौंपा गया वो उन्होंने स्वीकार कर लिया.
जब मोर्चरी के बाहर उन्हें शव मिला तो वो अपने बेटे को गोद में उठा तक नहीं सके, उनके भाई ने शव को थामा.
उनका भाई नवजात के शव को दोनों हाथों में लिए जब गाड़ी की तरफ़ चलने लगता है तो विनोद काफ़ी पीछे रह जाते हैं, मानों वो अपने क़दमों को उठा ही ना पा रहे हैं.
विनोद जैसी ही है एक और पिता राजकुमार की कहानी!
अस्पताल में लगी आग ने कई परिवारों को ज़िंदग़ी भर ना भूलने वाला असहनीय दुख दिया है. राजकुमार की कहानी भी ऐसी ही है.
उनकी बेटी रूही ने 17 दिनों पहले उत्तरप्रदेश के ग़ाज़ियाबाद के एक अस्पताल में जन्म लिया था. उसे भी तबीयत ख़राब होने के लिए बेबी केयर न्यूबोर्न हॉस्पिटल में रेफ़र किया गया था.
राजकुमार भी बार-बार मोर्चरी के गेट पर जाकर बेटी के शव के बारे में पता करते हैं. बाक़ी वक़्त वो बिलकुल ख़ामोश बैठे रहते हैं.
दुखी पिता राजकुमार कहते हैं, “अस्पताल में आग लगने के बारे में हमें कोई ख़बर नहीं दी गई थी. हमने अस्पताल में फ़ोन किया तो किसी ने उठाया ही नहीं. मैंने अस्पताल में पैसे जमा नहीं किए थे, मुझे लग रहा था कि मैंने पैसे जमा नहीं किए हैं शायद इस वजह से अस्पताल वाले मेरा फ़ोन नहीं उठा रहे हैं. किसी तरह पैसों का इंतज़ाम करके मैं सुबह आठ बजे अस्पताल पहुंचा, देखा तो वहां आग लगी थी. वहां मौजूद पुलिस ने हमें थाने जाने के लिए कहा.”
राजकुमार को थाने से उस अस्पताल में भेज दिया गया जहां बचाए गए जन्मे बच्चों के मृत शरीर थे.
वो भागकर पूर्वी दिल्ली के अस्पताल में पहुंचे, जहां बचाए गए बच्चों को रखा गया था. लेकिन उनकी जन्मी नवजात बेटी यहां मौजूद नहीं थी.
रविवार को तेज गर्मी के हालत में पूरा दिन वो अपनी बेटी की तलाश में दिल में दर्द लिए भटकते रहे. सोमवार सुबह वो जीटीबी अस्पताल की मोर्चरी के बाहर पहुंचे. यहां दोपहर तक उन्होंने अपनी बेटी के शव के बारे में जानकारी का इंतज़ार किया.
पोस्टमॉर्टम होने के बाद शाम पांच बजे उन्हें अपनी बेटी का शव मिला.
राजकुमार की पत्नी अस्पताल में भर्ती हैं और उन्हें अपनी बेटी की मौत के बारे में अभी जानकारी नही दी है.
राजकुमार के लिए ख़ुद को अंदर से समझाना आसान नहीं हैं. वो अब अपनी बेटी की मौत के बदले न्याय चाहते हैं.
राजकुमार कहते हैं, “लेकिन सिर्फ़ मेरे अकेले के चाहने से कुछ नहीं होगा. मारे गए बाक़ी सभी बच्चों के परिजनों को भी साथ आना होगा.”
राजकुमार कहते हैं, “मरने वाले सभी बच्चे एकजुट होंगे तभी कुछ हो सकेगा नहीं तो हमारे बच्चों की मौत को हादसा समझकर भुला दिया जाएगा.”
कॉमर्शियल बिल्डिंग में छह बच्चों की मौत!
इस भय़ानक हादसे में मारे गए चार बच्चों के शव रविवार देर शाम तक परिजनों को लौटा दिए गए थे. दो नवजात बच्चों के शव सोमवार शाम परिजनों को सौंपे गए.
गुरु तेग बहादुर अस्पताल से क़रीब डेढ़ किलोमीटर दूर घटनास्थल पर शाम क़रीब साढ़े पांच बजे फ़ोरेंसिक टीम सबूत इकट्ठा कर रही थी. अस्पताल में आग कैसे लगी ये अभी स्पष्ट नहीं है, हालांकि दिल्ली फ़ायर सेवा के अधिकारियों ने एक बयान में कहा है कि आग शॉर्ट सर्किट से लगी हो सकती है.
अस्पताल एक रिहायशी इलाक़े की कॉमर्शियल बिल्डिंग में है. जिस इमारत में अस्पताल है, उसी में एक बैंक भी है. अस्पताल का पिछला हिस्सा रिहायशी कॉलोनी में है.
दिल्ली पुलिस इस घटना की जांच कर रही है और अस्पताल के मालिक और अस्पताल का संचालन कर रहे डॉक्टर को गिरफ़्तार कर लिया गया है.
घटना के बाद शाहदरा के डीसीपी सुरेंद्र चौधरी ने जानकारी दी कि, ‘ये अस्पताल 120 गज में बना हैं. इसमें 12 बच्चे भर्ती थे, जिनमें से एक बच्चे की मौत किसी कारण से आग लगने से पहले ही हो गई थी. आग लगने की घटना में 6 बच्चों की मौत हुई है.’
पुलिस ने शुरुआत में दुर्घटना का मुक़दमा दर्ज किया गया था लेकिन जांच के बाद और धाराएं जोड़ी गई हैं.
डीसीपी के मुताबिक़, “अस्पताल की एनओसी 31 मार्च को ही ख़त्म हो गई थी, अस्पताल को सिर्फ़ पांच बेड लगाने की अनुमति थी, लेकिन 11 बेड लगाए गए थे, फ़ायर सिस्टम भी नहीं था, कई और नियमों का उल्लंघन भी पता चला है. आईपीसी 304 और 308 एफ़आईआर में जोड़ी गई हैं.”
पुलिस जांच में सामने आया है कि अस्पताल में एमबीबीएस डॉक्टरों की जगह बीएएमएस (आयुर्वेदिक) डॉक्टर नियुक्त किए गए थे.
आग लगने की घटना के बाद अस्पताल की कई खामियां सामने आई हैं. सवाल उठ रहा है कि बिना नियमों का पालन किए, ये अस्पताल कैसे चल रहे हैं?
आग लगने की घटना के बाद अस्पताल से जुड़े सभी लोग मौक़े से फ़रार हो गए थे.
गिरफ़्तार डॉक्टर नवीन खींची के तीन और ऐसे ही अस्पताल चल रहे हैं. 2021 में भी अस्पताल के संचालन से जुड़ा मुक़दमा नवीन खींची पर दर्ज किया गया था. पुलिस के अनुसार, इस मुक़दमे में उन पर आरोप तय नहीं हुए थे.
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