गुजरात दंगा: कितनों को न्याय मिला और कितनो को उम्मीद..

Gujarat riots: How many got justice and how many have hope..

40 साल के इदरिश वोरा ने आणंद ज़िले के ओड गाँव में अपनी पैतृक सपंत्ति को छोड़ दिया है. उनके सामने ही उनकी दादी, माँ और एक क़रीबी दोस्त की भीड़ ने हत्या कर दी थी. उस भीड़ में उनके स्कूली दोस्त और पड़ोसी भी शामिल थे.
वोरा गुजरात दंगों के उन पीड़ितों में हैं, जिन्हें लगता है कि उनके साथ न्याय नहीं हुआ है. वे आणंद ज़िले के छोटे से गाँव समर्था में रह रहे हैं. उनसे जब हमने पूछा कि आपने अपनी पैतृक संपत्ति को क्यों छोड़ दिया तो इदरिश ने बताया कि वह वापस नहीं जाना चाहते हैं.
वह कहते हैं, "मैंने जो देखा है, वो किसी को कभी नहीं देखना पड़े. ऐसा किसी के साथ ना हो."
वह कहते हैं कि उनके परिवार वालों की हत्या के मामले में 80 अभियुक्त थे लेकिन उनमें से कोई जेल में नहीं है. इदरिश के मुताबिक़ हर किसी को अदालत से ज़मानत मिल चुकी है.
नरोदा पाटिया मामले के मुख्य गवाह सलीम शेख़ ने बीजेपी की पूर्व विधायक माया कोडनानी के ख़िलाफ़ गवाही दी थी. सलीम शेख़ कहते हैं कि वे पिछले 20 सालों से न्याय पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
ट्रायल कोर्ट में नरोदा पाटिया केस में कोडनानी को मुख्य साज़िशकर्ता माना था लेकिन कोडनानी को ज़मानत मिल चुकी है. सलीम शेख़ पूछते हैं कि बताइए कि इतने सालों के संघर्ष का क्या हासिल हुआ?
ज़किया जाफ़री की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अंतिम फ़ैसला सुनाया है. फ़ैसले के बाद गुजरात पुलिस ने कार्रवाई करते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस अधिकारी ने संजीव भट्ट के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करते हुए इन तीनों को गिरफ़्तार कर लिया है.
तीनों पर राज्य सरकार को बदनाम करने की साज़िश रचने का आरोप लगाया गया है. गुजरात सरकार के इस क़दम की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना भी हो रही है.
यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि सुप्रीम कोर्ट ने ज़किया जाफ़री की शिकायत के आधार पर एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था.
ज़किया जाफ़री कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसान जाफ़री की पत्नी हैं. 2002 के दंगों में गुलबर्गा सोसाइटी नरसंहार में अहसान जाफ़री सहित 69 लोग मारे गए थे. ज़किया जाफ़री ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 63 लोगों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी का गठन किया था. यह आपको जानना ज़रूरी है कि किन मुख्य कारणो से गुजरात में दंगे भाडके किन लोगो ने ये सबसे पहले शुरुआत की सबसे पहले जानते है गोदरा कांड से जहाँ से ये दंगे फैले. 

1. गोधरा कांड

दंगो की शुरूआत होती है, 27 फरवरी 2002 को गुजरात राज्य में एक गोधरा नामक शहर में एक कारसेवकों से भरी रेलगाड़ी थी ज़िसमें 90% हिन्दू धर्म से थे. ज़िसमें मुस्लिम समुदाय द्वारा आग लगाने से 90 यात्री मारे और यह मौत उनके लिए बहुत दर्द भरी थी. इस घटना का आरोप मुख्य रूप से मुस्लमानों पर लगाया गया जिसके परिणामस्वरूप गुजरात में 2002 के दंगे हुए। 

Gujarat riots: How many got justice and how many have hope..

केंद्रीय भारतीय सरकार द्वारा नियुक्त एक जाँच आयोग का ख्याल था कि आग दुर्घटना थी लेकिन आगे चलकर यह आयोग ने असंवैधानिक घोषित किया गया था. 28 फरवरी 2002 तक, 71 लोग आगजनी, दंगा और लूटपाट के आरोप में गिरफ्तार किये गये थे। हमले के लिए कथित आयोजकों में से एक को पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार किया गया। पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव, सोरीन रॉय ने कहा कि बंदी मुस्लिम कट्टरपंथी समूह हरकत-उल जेहाद-ए-इस्लामी, जिसने कथित तौर पर बांग्लादेश मे प्रवेश करने के लिए सहायता की। 17 मार्च 2002, मुख्य संदिग्ध हाजी बिलाल जो एक स्थानीय नगर पार्षद और एक कांग्रेस कार्यकर्ता था, जिसे एक आतंकवादी विरोधी दस्ते द्वारा कब्जे मे कर लिया गया था। एफआईआर ने आरोप लगाया कि एक 1540- हिंसक मुस्लिम भीड़ ने 27 फरवरी को हमला किया था जब साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन ने गोधरा स्टेशन छोड़ दिया। गोधरा नगर पालिका के अध्यक्ष और कांग्रेस अल्पसंख्यक सयोजक मोहम्मद हुसैन कलोटा को मार्च में गिरफ्तार किया गया। अन्य लोगों को गिरफ्तार हुए पार्षद अब्दुल रज़ाक और अब्दुल जामेश शामिल थे। बिलाल गिरोह नेता लतीफ के साथ संबंध होने के आरोप लगाया गया था. और पाकिस्तान में कई बार दौरा किया है की सूचना मिली थी। आरोप-पत्र प्रथम श्रेणी रेलवे मजिस्ट्रेट पी जोशी से पहले एसआईटी द्वारा दायर की जो 500 से अधिक पृष्ठों की है, जिसमें कहा गया है कि 89 लोगों जो साबरमती एक्सप्रेस के एस -6 कोच में मारे गए थे जिनको चारों ओर से 1540 अज्ञात लोगों के एक भीड़ ने गोधरा रेलवे स्टेशन के निकट हमला किया। 78 लोगों पर आगजनी का आरोप लगाया ओर 65 लोगों पर पथराव करने का आरोप लगाया। आरोप-पत्र में यह भी कहा है कि एक भीड़ ने पुलिस पर हमला किया, फायर ब्रिगेड को रोका है, और एक दूसरी बार के लिए ट्रेन पर धावा बोल दिया। 11 अन्य लोगों को इस भीड़ का हिस्सा होने का आरोप लगाया गया। प्रारंभ में, 107 लोगों का आरोप लगाया गया, जिनमें से पाँच की मृत्यु हो गई, जबकि मामला अभी भी अदालत में लंबित था। आठ अन्य किशोरों, को एक अलग अदालत मे सुनवाई की गई थी। 253 गवाहों सुनवाई के दौरान और वृत्तचित्र सबूतों के साथ 1500 अधिक सामग्री को न्यायालय में प्रस्तुत किए गए जाँच की गई। 24 जुलाई 2015 को गोधरा मामले मुख्य आरोपी हुसैन सुलेमान मोहम्मद को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले से गोधरा अपराध शाखा ने गिरफ्तार किया। 18 मई 2016 को, एक पहले लापता 'घटना के षड्यंत्रकारी', फारूक भाना, गुजरात आतंकवादी विरोधी दस्ते (एटीएस) द्वारा मुंबई से गिरफ्तार किया गया। 30 जनवरी 2018, याकूब पटालीया को शहर में बी डिवीजन पुलिस की एक टीम द्वारा गोधरा से गिरफ्तार किया गया था। लेकिन भारत सरकार द्वारा नियुक्त की गई अन्य जाँच कमीशनों ने घटना की असल पर निश्चित रूप से कोई रोशनी नहीं डाल सकी।

2. गुलबर्ग दंगा 

28 फ़रवरी 2002 को चमनपुरा की गुलबर्ग सोसाइटी में रहने वाले 69 लोगों की भीड़ ने हत्या कर दी थी. जिन लोगों की हत्या हुई उनमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री भी शामिल थे. सोसाइटी में 19 बंगले और 10 अपार्टमेंट हैं.

गुलबर्ग दंगा (gulbarg danga)

स्थानीय पुलिस ने मेघानीनगर थाने में शिकायत दर्ज कराने के बाद 46 लोगों को गिरफ़्तार किया है. एसआईटी की जांच शुरू होने के बाद इस मामले में 28 अन्य को गिरफ़्तार किया गया और कुल 12 आरोप पत्र दायर किए गए. कुल अभियुक्तों में से 24 को दोषी ठहराया गया, 39 को बरी कर दिया गया.
उच्च न्यायालय में 17 अपीलें दायर की गई थीं और ये सभी अपीलें वर्तमान में उच्च न्यायालय में लंबित हैं.
गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार में अपने रिश्तेदारों को खोने वाली 64 वर्षीय सायरा बानू ने कहा कि जिन लोगों को पुलिस ने गिरफ़्तार किया, उनकी पहचान किए जाने के बाद भी सभी को ज़मानत मिल गई, जैसे कुछ हुआ ही नहीं.
सायरा बानू के मुताबिक़ तीस्ता सीतलवाड़ और आरबी श्रीकुमार जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की मदद से अभियुक्तों की गिरफ़्तारी संभव हो पाई.
गुलबर्ग सोसाइटी दंगों में अपने बेटे को खोने वाले दारा मोदी कहते हैं, "हमें अभी तक न्याय नहीं मिला है. सभी अभियुक्त इस समय जेल से बाहर हैं. एसआईटी ने काम किया है, लेकिन सभी अभियुक्त ऊपरी अदालतों में जाकर रिहा हो जाते हैं. हमें लगता है कि हमारी लड़ाई बेकार गई है."

3. सरदारपुरा दंगा 

सरदारपुरा उत्तरी गुजरात के पाटन ज़िले का एक छोटा सा गाँव है. पाटन ज़िले के सरदारपुरा गाँव में तीन अलग-अलग मुस्लिम बस्तियां थीं. इन तीनों बस्तियों पर एक मार्च 2002 की रात को भीड़ ने हमला किया था.
भीड़ के डर से 33 लोगों ने एक घर में शरण ली. भीड़ ने इस घर का पता लगाकर उस घर में बिजली के नंगे तार से बिजली प्रवाहित कर दिया, जिसमें 29 लोगों की मौक़े पर ही मौत हो गई थी.
भीड़ ने गाँव के सारे रास्ते बंद कर दिए ताकि मुस्लिम समुदाय के लोगों को जान बचाने का मौक़ा नहीं मिले.

सरदारपुरा दंगा (sardarpura danga ) 2002

सुप्रीम कोर्ट द्वारा एसआईटी गठित करने से पहले स्थानीय पुलिस ने मामले में 54 लोगों को गिरफ़्तार किया था और उनके ख़िलाफ़ चार्ज़शीट भी दाख़िल की गई थी. एसआईटी ने जब जांच अपने हाथ में ली तो तीन और चार्ज़शीट दाख़िल हुई और 22 लोगों को गिरफ़्तार किया गया.
अदालत में उन 76 लोगों में से 31 को दोषी ठहराया गया, जबकि एक नाबालिग सहित 43 को बरी कर दिया गया. 76 अभिुक्तों में से दो की मौत सुनवाई के दौरान हो गई थी. दोषियों ने गुजरात उच्च न्यायालय में चार अपीलें दायर कीं और इन सभी का जनवरी 2012 में निपटारा कर दिया गया था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में तीन अपीलें दाख़िल की जा चुकी हैं और सभी अपीलें लंबित हैं.
द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार, दो प्रमुख व्यक्ति, सरपंच कचराभाई पटेल और पूर्व सरपंच कनुभाई पटेल, नरसंहार में शामिल थे और ये दोनों ही कथित रूप से भाजपा से जुड़े हुए थे.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2003 में अन्य दंगा मामलों के साथ मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी थी और मामला 2008 में एसआईटी को सौंप दिया गया था. मामले का फ़ैसला नवंबर, 2011 में हुआ था. मामले में 31 अभियुक्तों को दोषी ठहराया गया था, जिनमें से 30 पाटीदार समुदाय के थे.

4. दीपदा दरवाज़ा

28 फ़रवरी 2002 को मेहसाणा के विसनगर के दीपदा दरवाज़ा इलाक़े में मुस्लिम समुदाय के 11 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. उसी दिन मामला दर्ज किया गया था.
इस मामले में स्थानीय पुलिस ने 79 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था और सभी को ज़मानत दे दी गई थी. जब एसआईटी ने जांच शुरू की तो छह और लोगों को गिरफ़्तार किया गया और कुल पाँच आरोप पत्र दायर किए गए.
निचली अदालत ने मामले में 22 अभियुक्तों को दोषी क़रार देते हुए सज़ा सुनाई थी. फ़िलहाल इस संबंध में गुजरात उच्च न्यायालय में कुल 13 अपीलें दायर की गई हैं और सभी अपीलें लंबित हैं.
इस मामले के 85 अभियुक्तों में जिन 61 लोगों को बरी किया गया उनमें विसनगर से भाजपा के पूर्व विधायक प्रह्लाद पटेल और नगर निगम के भाजपा अध्यक्ष दहयाभाई पटेल शामिल हैं.

5. नरोदा गांव का मामला

नरोदा पाटिया के निकट नरोदा गाँव में 11 मुसलमान मारे गए थे और पुलिस शिकायत में 49 लोगों को अभियुक्त बनाया गया.
एसआईटी ने जांच संभालने के बाद 37 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था, जिनमें सभी को ज़मानत मिल चुकी है. एसआईटी की ओर से छह और कुल मिलाकर नौ चार्ज़शीट दाख़िल होने के बाद भी 20 साल बाद इस मामले में सुनवाई शुरू नहीं हो पाई है.

नरोदा गांव दंगा (naroda graam danga) 2002

पीड़ितों की ओर से अदालत में पेश हुए वकील एम.एम. तिर्मिज़ी ने बीबीसी से कहा, "ऐसा कई बार देखने को मिला है. सुनवाई के बाद, जब इस मामले को सुनने का समय आता है, तो यह एक से अधिक बार हुआ है कि मैजिस्ट्रेट को बदल दिया गया है या पदोन्नत किया गया है. अब नए मैजिस्ट्रेट आए हैं और हमें उम्मीद है कि फिर से मामले को सुनने की प्रक्रिया शुरू होगी.

6. ओड गाँव

आणंद के ओड गांव में तीन अलग-अलग घटनाओं में 27 मुस्लिम मारे गए थे. हालांकि, केवल दो मामलों में ही शिकायतें दर्ज की गईं और इन दोनों मामलों की जाँच एसआईटी को सौंपी गई.
ओड गाँव में हिंसा का पहला मामला एक मार्च 2002 को दर्ज किया गया था. मामले की जानकारी के मुताबिक़ पिरावली भागोल इलाक़े में 23 लोगों को ज़िंदा जला दिया गया. शवों को इस कदर जलाया गया था कि मृतकों की भी शिनाख़्त नहीं हो पाई थी.
पुलिस केवल दो लोगों की पहचान कर सकी थी और बाक़ी को लापता के रूप में सूचीबद्ध किया गया था. खम्बोलज थाने में रफ़ीक़ मोहम्मद अब्दुल ख़लीफ़ा नाम के शख़्स ने मामला दर्ज कराया था.
पुलिस ने जांच के दौरान 51 लोगों को गिरफ़्तार किया और मामले में चार्ज़शीट भी दाख़िल की. एसआईटी 51 अभियुक्तों में से 23 को दोषी ठहराया गया और 23 को बरी कर दिया गया. सुनवाई के दौरान तीन अभियुक्तों की मौत हो गई.
इस मामले में गुजरात हाई कोर्ट में कुल छह अपीलें दाख़िल की गईं, जिसके बाद गुजरात हाई कोर्ट ने 23 दोषियों में से 19 की सज़ा को बरक़रार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 2020 में 15 लोगों को ज़मानत दी थी.

7. नरोदा पाटिया का मामला

28 फ़रवरी, 2002 को बजरंग दल से जुड़े लोगों के नेतृत्व में भीड़ ने नरोदा पाटिया इलाक़े को घेर लिया और बस्ती के कई घरों में आग लगा दी. इस नरसंहार में 97 लोग मारे गए थे.
एसआईटी के गठन से पहले स्थानीय पुलिस ने इस मामले में 46 लोगों को गिरफ़्तार किया था और चार चार्ज़शीट दाख़िल की थी. बाद में एसआईटी ने 24 अन्य को गिरफ़्तार किया और चार अन्य चार्ज़शीट दाख़िल किया.
मामले के कुल 70 अभियुक्तों में से सात की सुनवाई के दौरान मौत हो गई और दो अभी तक फ़रार हैं. इस मामले में 32 लोगों को दोषी ठहराया गया है और उनमें से दो की मौत हो चुकी है.
निचली अदालत ने अपने फ़ैसले में बीजेपी की मंत्री माया कोडनानी को दंगों का मास्टरमाइंड बताया था और उन्हें 28 साल जेल की सज़ा सुनाई थी. इस मामले में बजरंग दल के बाबू बजरंगी को भी दोषी ठहराया गया था.
माया कोडनानी सहित 32 लोगों को दोषी ठहराया गया था. मैजिस्ट्रेट ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि कोडनानी ने विधायक के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभायी. जब उन्हें गिरफ़्तार किया गया तो वह नरेंद्र मोदी की सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री थीं.
मामले में वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी एसआईटी के समक्ष माया कोडनानी के पक्ष में गवाही दी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्होंने पहले कोडनानी को विधानसभा में देखा था और बाद में सोला सिविल अस्पताल में.
दिलचस्प ये है कि कोडनानी ने 2002 के दंगों में नाम होने के बाद भी 2007 का चुनाव लड़ा था. एसआईटी के गठन होने के बाद 2009 में उनकी गिरफ़्तारी हुई थी.
इस मामले में उच्च न्यायालय में 12 अपीलें दाख़िल की गईं और इन सभी अपीलों का निपटारा 25-04-2018 को किया गया.
मामले के 32 दोषियों में से 18 को उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया था, जिसमें भाजपा मंत्री माया कोडनानी भी शामिल थीं जबकि 13 को दोषी माना गया. जिन लोगों को सज़ा हुई, उसमें बाबू बजरंगी भी शामिल हैं लेकिन उम्रक़ैद की सज़ा को कम करके 21 साल की सज़ा कर दी गई.
जिन 13 लोगों को सज़ा मिली, उनमें से चार लोगों को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एएम खानविल्कर ने ज़मानत दे दी थी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नरोदा पाटिया मामले के फ़ैसले पर बहस संभव है.
इस मामले में वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में 10 अपीलें लंबित हैं. इस मामले के मुख्य गवाह सलीम शेख़ ने बीबीसी को बताया कि उच्च न्यायालय में सभी अभियुक्त बरी हो गए. वह कहते हैं, "मैं आज भी नरोदा पाटिया में रहता हूं लेकिन उस दंगे ने जो खाई पैदा की है, उसे कोई अदालत नहीं भर पाएगी."

8. ब्रिटिश नागरिकों का मामला

28 फ़रवरी, 2002 को तीन ब्रितानी नागरिकों और उनके ड्राइवर की भीड़ ने हत्या कर दी थी. मामले की जानकारी के अनुसार इमरान दाऊद नाम का एक शख्स ब्रिटेन से आए अपने तीन रिश्तेदारों के साथ कार से गुज़र रहे थे.
भीड़ ने वाहन को रोका और एक ही स्थान पर दो लोगों को आग के हवाले कर दिया. दो लोग भाग गए लेकिन भीड़ ने उनका पीछा किया और उन्हें मार डाला. पुलिस की मदद से इमरान दाऊद ख़ुद को बचाने में कामयाब रहा.
पुलिस ने इस मामले में 6 लोगों को गिरफ़्तार किया था, हालांकि इन सभी को निचली अदालत में रिहा कर दिया गया था. इसके ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय में अपील लंबित है.
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने 2015 में अपने फ़ैसले में कहा कि उसके पास गिरफ़्तार अभियुक्तों को रिहा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि उनके ख़िलाफ़ अपराध साबित नहीं हो पाया. 182 पन्नों के आदेश में अदालत ने कहा था एसआईटी ने भी माना था कि गवाह अभियुक्तों की पहचान नहीं कर सके थे.
उल्लेखनीय है कि इस मामले में तीन अहम गवाह सुनवाई के दौरान अपने बयान से पलट गए थे.

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