Balaghat history: गोंड राजकुमारी हल्सा के दादा मलूकुमा ने 12 वीं शताब्दी में बनाया भगवान शिव का प्राचीन कोटेश्वर महादेव मंदिर..

Lanjhigarh Fort History Of Madhyapradesh: ऐतिहासिक काल में ई.पूर्व 275 से 235 के दरमियान भारत में सम्राट अशोक का राज्य था जिसके अधीन मध्य के गोंड राजा महाराजाओं के अठारह गणराज्य थे जिनमें लांजीगढ़ भी सम्मिलित था।उस वक्त लांजीगढ़ का राजा केशबा गोंड था। गढ़ वीरों की गाथा के अनुसार ई. पूर्व 230 से 357 ई. तक लांजीगढ़ एक स्वतंत्र राज्य था। ऐसा भी कहा जाता है कि गढ़ कटंगा के पोलवंशीय गोंड राजाओं का मूल पुरुष राजा यदुराय भी गढ़ा कटंगा के राजा बनने के पूर्व लांजीगढ़ के गोंड राजा धन्ना सिंह तेकाम का सेवक था जो बाद में रतनपुर के कल्लोल राजा का सेनापति बना और तत्पश्चात ई. 358 में गढ़ा कटंगा राज्य का राजा बना। सन् 1223 ई. में राजा कटेसूर मालूकोमा तेकाम की राजकुमारी हसला ने गोंड समाज की अस्मिता और अपने पिता के मान सम्मान की रक्षा करने के लिए अपना बलिदान दिया,जिसकी ऐतिहासिक गाथा आज भी गोंड समाज के लोगों में प्रचलित है।उस वक़्त लांजीगढ़ गढ़ा राज्य घोषित किया और बालाघाट,गोंदिया,बैंहर,धमधागढ़,खैरागढ़ रतनपुर क्षेत्र को अपनी अधिसत्ता में लिया था। उसी तरह सन् 1818 ई. में लांजीगढ़ की तिलका रानी ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई कर स्वराज्य के लिए शहीद हो गई।इस तरह लांजीगढ़ गोंडो के सामाजिक धार्मिक और ऐतिहासिक पहलुओं से संबंधित अनेक स्मृतियों से आलोकित है।लांजीगढ़ का वर्तमान किला गढ़ा महाप्रतापि राजा संग्राम शाह के बावन गढ़ों से भी बहुत प्राचीन है। वर्तमान में जिस किले के अवशेष हैं उसे राजकुमारी हसला के दादा मालुकोमा ने 12वीं सदी में बनवाया था। लांजी का वर्तमान किला ग्रेट किंग संग्राम शाह के 52 गढ़ों से बहुत प्राचीन है। वर्तमान में किले में महल बना हुआ है, राजकुमारी हल्सा के दादा मलूकुमा 12 वीं शताब्दी में बनाया गया था। किले का निर्माण कुल 7 एकड़ भूमि में किया गया है। किले का मुख्य द्वार केंद्र की ओर उन्मुख है जो कछुए और सांप के चिन्ह का प्रतीक है। किले का गढ़ चतुरूसोनियन है, जिसकी ऊँचाई लगभग 20 फीट है, चार कोनों पर चार बुर्जों का निर्माण किया गया था, जिनमें से दो बुर्ज अभी भी सुरक्षित हैं। परकोटा की दीवारों की चौड़ाई 8 फीट है, जो कि एक बुर्ज से दूसरे बुर्ज तक का मार्ग भी है। परकोटा के चारों तरफ एक गहरी खाई है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इस खाई में पानी भर रहता था, जिसमें बड़े मगरमच्छ मछली पाले गए थे, मगरमच्छ तैरते थे और किले में आने वाले दुश्मनों को बाहर निकाल देते थे। इस प्रकार, लांजी का किला सुरक्षा की दृष्टि से एक उत्कृष्ट महल था। किले की परकोटा और बुर्ज की बनावट चांदगढ़ के किले के समान है, परकोटा और बुर्ज़ पर पीपल एव बरगद के विशालकाय पेड़ उग आये है जिनकी आयु ३०० वर्ष पुराणी है। किले के मुख्य द्वार में प्रवेश करने के बाद, बाईं ओर निर्माण कार्य के अवशेष दिखाई देते हैं जहां महल स्थित था। इसके सामने पश्चिम दिशा में एक स्नान है जिसमें अब मिट्टी से ढंका हुआ है। दादा कोटेश्वर धाम बालाघाट जिले का का प्रमुख धार्मिक दर्शनीय स्थान है।  बालाघाट से 65 किलोमीटर दूर लांजी में भगवान शिव को समर्पित प्राचीन कोटेश्वर महादेव मंदिर है, कोटेश्वर मंदिर ना सिर्फ बालाघाट अपितु आस-पास के जिलों में भी प्रसिद्ध है। सर्वाधिक प्रचलित मत के अनुसार पत्थरों से निर्मित मंदिर को 11 वीं से 12 वीं सदी के बीच गोड मालुकुमा ने बनाया था। मंदिर के गर्भ गृह में प्राचीन एवं सिद्ध शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की दीवारों पर चारो तरफ बहुत ही सुन्दर नक्कासी की गई है और मन्दिर के बाहर दीवार पर पत्थरों को तराश कर बहुत सी मूर्तियाँ बनाई गई हैं जो देखने में खजुराहो के मंदिरोंके समान हैं, कोटेश्वर महादेव मंदिर में बैसे तो साल भर भक्तों की भीड़ रहती है परन्तु श्रावण मास में दूर-दूर से भक्त यहाँ जल चढाने आते है और अपनी मनोकामनायें मांगते है।  कहते हैं कि यहाँ भक्तों द्वारा मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है।  श्रावण के महीने में भक्त कांवड़ यात्रा निकालते हैं और मंडला से लाया हुआ माँ नर्मदा का जल शिवलिंग पर चढाते हैं, कुछ भक्त बैनगंगा नदी और आस-पास के नदियों का जल भी चढाते हैं।

Lanjhigarh Fort History Of Madhyapradesh: ऐतिहासिक काल में ई.पूर्व 275 से 235 के दरमियान भारत में सम्राट अशोक का राज्य था जिसके अधीन मध्य के गोंड राजा महाराजाओं के अठारह गणराज्य थे जिनमें लांजीगढ़ भी सम्मिलित था।उस वक्त लांजीगढ़ का राजा केशबा गोंड था। गढ़ वीरों की गाथा के अनुसार ई. पूर्व 230 से 357 ई. तक लांजीगढ़ एक स्वतंत्र राज्य था। ऐसा भी कहा जाता है कि गढ़ कटंगा के पोलवंशीय गोंड राजाओं का मूल पुरुष राजा यदुराय भी गढ़ा कटंगा के राजा बनने के पूर्व लांजीगढ़ के गोंड राजा धन्ना सिंह तेकाम का सेवक था जो बाद में रतनपुर के कल्लोल राजा का सेनापति बना और तत्पश्चात ई. 358 में गढ़ा कटंगा राज्य का राजा बना। सन् 1223 ई. में राजा कटेसूर मालूकोमा तेकाम की राजकुमारी हसला ने गोंड समाज की अस्मिता और अपने पिता के मान सम्मान की रक्षा करने के लिए अपना बलिदान दिया,जिसकी ऐतिहासिक गाथा आज भी गोंड समाज के लोगों में प्रचलित है।उस वक़्त लांजीगढ़ गढ़ा राज्य घोषित किया और बालाघाट,गोंदिया,बैंहर,धमधागढ़,खैरागढ़ रतनपुर क्षेत्र को अपनी अधिसत्ता में लिया था। उसी तरह सन् 1818 ई. में लांजीगढ़ की तिलका रानी ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई कर स्वराज्य के लिए शहीद हो गई।इस तरह लांजीगढ़ गोंडो के सामाजिक धार्मिक और ऐतिहासिक पहलुओं से संबंधित अनेक स्मृतियों से आलोकित है।लांजीगढ़ का वर्तमान किला गढ़ा महाप्रतापि राजा संग्राम शाह के बावन गढ़ों से भी बहुत प्राचीन है। वर्तमान में जिस किले के अवशेष हैं उसे राजकुमारी हसला के दादा मालुकोमा ने 12वीं सदी में बनवाया था।

लांजी का वर्तमान किला ग्रेट किंग संग्राम शाह के 52 गढ़ों से बहुत प्राचीन है। वर्तमान में किले में महल बना हुआ है, राजकुमारी हल्सा के दादा मलूकुमा 12 वीं शताब्दी में बनाया गया था। किले का निर्माण कुल 7 एकड़ भूमि में किया गया है। किले का मुख्य द्वार केंद्र की ओर उन्मुख है जो कछुए और सांप के चिन्ह का प्रतीक है। किले का गढ़ चतुरूसोनियन है, जिसकी ऊँचाई लगभग 20 फीट है, चार कोनों पर चार बुर्जों का निर्माण किया गया था, जिनमें से दो बुर्ज अभी भी सुरक्षित हैं। परकोटा की दीवारों की चौड़ाई 8 फीट है, जो कि एक बुर्ज से दूसरे बुर्ज तक का मार्ग भी है।
परकोटा के चारों तरफ एक गहरी खाई है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इस खाई में पानी भर रहता था, जिसमें बड़े मगरमच्छ मछली पाले गए थे, मगरमच्छ तैरते थे और किले में आने वाले दुश्मनों को बाहर निकाल देते थे। इस प्रकार, लांजी का किला सुरक्षा की दृष्टि से एक उत्कृष्ट महल था।
किले की परकोटा और बुर्ज की बनावट चांदगढ़ के किले के समान है, परकोटा और बुर्ज़ पर पीपल एव बरगद के विशालकाय पेड़ उग आये है जिनकी आयु ३०० वर्ष पुराणी है। किले के मुख्य द्वार में प्रवेश करने के बाद, बाईं ओर निर्माण कार्य के अवशेष दिखाई देते हैं जहां महल स्थित था। इसके सामने पश्चिम दिशा में एक स्नान है जिसमें अब मिट्टी से ढंका हुआ है।
दादा कोटेश्वर धाम बालाघाट जिले का का प्रमुख धार्मिक दर्शनीय स्थान है।  बालाघाट से 65 किलोमीटर दूर लांजी में भगवान शिव को समर्पित प्राचीन कोटेश्वर महादेव मंदिर है, कोटेश्वर मंदिर ना सिर्फ बालाघाट अपितु आस-पास के जिलों में भी प्रसिद्ध है। सर्वाधिक प्रचलित मत के अनुसार पत्थरों से निर्मित मंदिर को 11 वीं से 12 वीं सदी के बीच गोड मालुकुमा ने बनाया था। मंदिर के गर्भ गृह में प्राचीन एवं सिद्ध शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की दीवारों पर चारो तरफ बहुत ही सुन्दर नक्कासी की गई है और मन्दिर के बाहर दीवार पर पत्थरों को तराश कर बहुत सी मूर्तियाँ बनाई गई हैं जो देखने में खजुराहो के मंदिरोंके समान हैं, कोटेश्वर महादेव मंदिर में बैसे तो साल भर भक्तों की भीड़ रहती है परन्तु श्रावण मास में दूर-दूर से भक्त यहाँ जल चढाने आते है और अपनी मनोकामनायें मांगते है।  कहते हैं कि यहाँ भक्तों द्वारा मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है।  श्रावण के महीने में भक्त कांवड़ यात्रा निकालते हैं और मंडला से लाया हुआ माँ नर्मदा का जल शिवलिंग पर चढाते हैं, कुछ भक्त बैनगंगा नदी और आस-पास के नदियों का जल भी चढाते हैं।

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