'इंडिया अलायंस' के लिए क्या ये 'करो या मरो' की स्थिति है? जाने पूरी खबर

तीन बड़े राज्यों- राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भाजपा के हाथों कांग्रेस की हार के चंद ही दिनों बाद विपक्षी इंडिया अलायंस की बेहद महत्वपूर्ण बैठक आज मंगलवार को दिल्ली में होने जा रही है. विपक्षी पार्टियों के इस संगठन की ये चौथी बैठक है. 

राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में जीत के साथ भाजपा की अब 28 में से 12 राज्यों में सरकारें हैं जबकि चार अन्य राज्यों में इसकी गठबंधन सरकारें हैं. कांग्रेस की तीन राज्यों में सरकारें हैं, जिसमें तेलंगाना में मिली ताज़ा जीत भी शामिल है 

इस बैठक के एक दिन पहले ही 78 विपक्षी सांसदों को संसद से निलंबित कर दिया गया, जिसके बाद ताज़ा सत्र में निलंबित किए सांसदों की संख्या 92 हो गई है. ये सांसद गृहमंत्री अमित शाह से संसद में सुरक्षा चूक मामले में बयान की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे. 

संसदीय चुनाव मात्र पांच महीने दूर हैं और साफ़ है कि सरकार और विपक्ष के बीच टकराव बढ़ रहा है.
कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने निलंबन को संसद और लोकतंत्र पर हमला बताया. 

भाजपा नेता पीयूष गोयल के मुताबिक निलंबित सांसदों के व्यवहार के चलते उन्हें निलंबित किया गया और वो नहीं चाहते थे कि संसद ठीक-ठाक चले. 

पीडीपी की महबूबा मुफ़्ती कहती हैं, "जिस तरह से हालात हैं, मुझे नहीं पता कि हमारा लोकतंत्र, हमारी धर्मनिरपेक्षता कितने समय तक सरकार के वार को सह पाएगी. अगर बीजेपी फिर जीतती है, तो फिर विपक्ष ही नहीं होगा, संविधान कहीं नहीं होगा, लोकतंत्र कहीं नहीं होगा."
भाजपा लगातार ऐसे आरोपों को खारिज करती रही है. लेकिन विपक्ष लगातार सरकार पर सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रहा है. पार्टियां आम आदमी पार्टी के नेताओं को जेल भेजने, महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता रद्द किए जाने जैसे कदमों का उदाहरण देती हैं.
भाजपा ने ऐसे आरोपों को खारिज किया है और कहा है कि सरकारी एजेंसियां भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कार्रवाई कर रही हैं.
विपक्षी इंडिया अलायंस की बैठक ऐसे वक्त पर हो रही है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, भाजपा उनके तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का विश्वास जता रही है और विपक्ष के सामने चुनौती है कि भाजपा को लगातार तीसरी बार संसदीय चुनाव जीतने से कैसे रोका जाए. 

पूर्व कांग्रेस राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय झा के मुताबिक विपक्ष के लिए ये "करो या मरो की स्थिति है."

वो कहते हैं, "अगर इंडिया अलायंस 2024 में चुनाव हारता है, तो ये सिर्फ़ कांग्रेस के लिए ही नहीं, विपक्ष में सबके लिए ही अस्तित्व का संकट है. हाल ही में जो वाकये हुए हैं, जिस तरह महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता रद्द की गई, विपक्ष को निशाना बनाया गया, कोशिश है कि ये दिखाया जाए कि विपक्ष देशहित में नहीं है. और नैरेटिव सरकार के नियंत्रण में है क्योंकि (टीवी) चैनल्स उनके साथ हैं."
राजनीतिक विश्लेषक और स्वराज इंडिया से जुड़े योगेंद्र यादव के मुताबिक, "विपक्ष की जो 2024 लड़ने की उम्मीद है, वो इस मीटिंग की सफलता पर निर्भर करती है. अगर ये मीटिंग कामयाब होती है तो इतने भर से 2024 का चुनाव जीता नहीं जाएगा, लेकिन उस उम्मीद को ज़िंदा रखने के लिए इस मीटिंग का कामयाब होना ज़रूरी है."
सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च के राहुल वर्मा के मुताबिक़, अगर विपक्ष अगला चुनाव हारता है तो वो बहुत कमज़ोर होगा और सरकार से जवाबदेही की और उसे चुनावी चुनौती देने की उसकी क्षमता कम होगी.
लेकिन ऐसे भी विपक्षी नेता हैं जो इस सोच से सहमत नहीं.
जनता दल युनाइटेड के अध्यक्ष लल्लन सिंह पूछते हैं, 

"विपक्ष कहां कमज़ोर है?" 

वो कहते हैं, "चुनाव के नतीजों का कोई असर नहीं होगा. अलग अलग राज्यों में जो चुनाव हुए, उसमें इंडिया अलायंस तो कहीं लड़ नहीं रही थी. वहां तो कांग्रेस पार्टी लड़ रही थी. उम्मीद की वजह है कि हम सब लोगों को लड़ना है 2024 का चुनाव एक साथ."
भाजपा ने इंडिया अलायंस को खारिज किया है. उसके मुताबिक, "इस देश की जनता ने ढेर सारे अलायंस देखे हैं जो राजनीतिक स्वार्थ के कारण, चुनाव के वक्त, विचारधारा की समानता के बगैर किए गए हैं."
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा कि ये अलायंस न्यूज़ चैनलों की स्क्रींस के अलावा देश में कहीं नज़र नहीं आता

कहां था इंडिया अलायंस?

इंडिया अलायंस बनने के पहले सवाल उठे थे कि कैसे इतनी अलग अलग सोच वाली पार्टियां साथ आ सकती हैं. लेकिन ये अलायंस बना और उम्मीद बंधी कि ये तेज़ी से आगे बढ़ेगा.
28 राजनीतिक दलों वाले इंडिया अलायंस की पहली बैठक जून में पटना में और दूसरी बैठक बेंगलुरु में हुई थी.
पिछली तीसरी बैठक तीन महीने पहले मुंबई में हुई थी और उसके बाद अब जाकर इस अलायंस की बैठक हो रही है.
तीसरी और चौथी बैठक के बीच में इतने लंबे समय के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार माना जा रहा है, हालांकि इस लेख के लिए हमारा कांग्रेस नेताओं से संपर्क नहीं हो पाया.
एक सोच है कि कांग्रेस को उम्मीद थी कि पांच राज्यों में विधानसभा में अच्छे प्रदर्शन के बाद अलायंस में उसकी स्थिति बेहतर होगी, और उस वजह से अलायंस में सीटों को लेकर तालमेल आदि को लेकर बातचीत रुक सी गई थी.
आम आदमी पार्टी नेता राघव चड्ढा ने एक निजी चैनल के एक कार्यक्रम में कहा, "चारों राज्यों में अगर बतौर इंडिया गठबंधन चुनाव लड़ा जाता तो हो सकता है कि स्थिति कुछ अलग होती."
समाजवादी पार्टी सांसद जावेद अली खान कहते हैं, "अगर (मध्य प्रदेश में) एसपी के साथ उनका अलायंस होता और कांग्रेस के नेताओं के साथ अखिलेश जी वहां मंच शेयर करते, वहां पांच दस संयुक्त रैली हो जाती तो निश्चित रूप से चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन भी या इंडिया अलायंस की भी स्थिति बहुत बेहतर होती."
मध्य प्रदेश में कांग्रेस का सपा को सीट बंटवारे पर नज़रअंदाज़ करना और कांग्रेस नेता कमलनाथ के 'अखिलेश वखिलेश' के बयान से अलायंस की काफ़ी किरकिरी हुई थी, हालांकि जावेद अली खान कहते हैं, "उस एपिसोड को तो अब भूलना ही बेहतर है. वो जो हो गया, हो गया. और जिन लोगों की वजह से हुआ, उनका भी हश्र सबके सामने है."
मीडिया में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक बयान भी छपा जिसमें उन्होंने इंडिया गठबंधन में धीमी गतिविधियों के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया था.
संजय झा कहते हैं, "कांग्रेस इसके लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार है. मुंबई में बैठक पहली सितंबर को हुई थी. सितंबर, अक्टूबर, नवंबर बर्बाद हुआ."
वक्त बीतने के बाद पांच राज्यों में हुए चुनाव के नतीजे सामने आए जिसे कांग्रेस के लिए झटका माना गया.
जावेद अली खान कहते हैं, "बीजेपी से लड़ाई करना या उसको हराना बहुत बड़ा काम है जो इंडिया अलायंस ने अपने सिर लिया है. अगर सभी दलों में सलीके के साथ एकता रही और इसमें बड़ा भाई और छोटे भाई के आधार पर निर्णय नहीं हुए तो हम भाजपा को हराने की स्थिति में होंगे."
लेकिन विपक्षी नेता तो ये बातें महीनों से कह रहे हैं.
पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती के मुताबिक हिमाचल और कर्नाटक के चुनावी नतीजों के बाद "कहीं न कहीं हम सब लोग लापरवाह थे कि लोग समझ गए हैं, और आने वाले दिन आसान होंगे."
लेकिन चुनावी नतीजों ने विपक्षी गठबंधन के लिए चुनौतियां बढ़ा दीं.
सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च के राहुल वर्मा के मुताबिक, "कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा और कर्नाटक की जीत के साथ जो ज़ोर बनाया था वो उसने खो दिया. तीन महत्वपूर्ण चुनाव में उसकी हार हुई. ये कुछ ऐसा है कि ड्राइंग बोर्ड पर शुरुआत से काम शुरू किया जाए."
विपक्षी जनता दल युनाइटेड पार्टी नेता लल्लन सिंह अभी उम्मीद से भरे हैं. वो पूछते हैं, "वक्त की बर्बादी क्या होती है? अभी वहुत वक्त है. आज भी 15-20 दिनों में अगर सीटों में सामंजस्य हो जाए तो क्या समस्या है?"
बैठक से उम्मीदें
विश्लेषक योगेंद्र यादव के मुताबिक 19 दिसंबर की बैठक की सफलता के तीन मापदंड हैं - पहला कि विपक्षी दलों के नेता इस बैठक में आएं ताकि ये संदेश जाए कि अलायंस बरकरार है.
दूसरा, सीट शेयरिंग का टाइम टेबल और तीसरा एक मिनिमम कॉमन एजेंडा, या उसका कोई ढांचा ताकि लोगों को पता चले इस अलायंस की क्या नीति है.
वो कहते हैं, "इंडिया कोएलिशन का असली महत्व नंबरों में नहीं है. इंडिया कोएलिशन का बनना एक मनोवैज्ञानिक प्रोत्साहन देता है. उसका बनना, जुड़ना, आगे बढ़ते हुए दिखना, ये अपने आप में नेताओं, कार्यकर्ताओं को विश्वास देगा."
इंडिया अलायंस सोशल मीडिया ग्रुप की सदस्य इल्तजा मुफ़्ती के मुताबिक जिस ग्रुप की वो सदस्य हैं वहां सदस्यों में लगातार बात हो रही है, और वो एक व्हाट्स ऐप ग्रुप पर साथी सदस्यों के संपर्क में रहती हैं.
वो कहती हैं, "हम टीएमसी, पीडीपी, शिवसेना जैसी पार्टियां साथ हैं. ऐसे में सबके साथ समन्वय आसान नहीं. कहीं न कहीं हमारे विचार परस्पर विरोधी हैं लेकिन हम इस बात पर सहमत हैं कि देश को बचाना है."
लेकिन ताज़ा विधानसभा के चुनाव ने एक बार फिर दिखाया है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील मज़बूत है, चाहे वो विधानसभा चुनाव ही क्यों न हों.
इन चुनाव में लाभार्थी वोट, महिला वोट, आदिवासी वोट आदि ने भी भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जाति सर्वे के कांग्रेसी कार्ड को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली.
विश्लेषक मिलन वैष्णव के मुताबिक ये ज़रूरी है कि अलायंस एक कॉमन प्लेटफॉर्म पर राज़ी हो. वैश्नव कहते हैं कि इंडिया ब्लॉक के पास नरेंद्र मोदी के मुकाबले कोई चेहरा न होना उसकी स्थिति कमज़ोर बनाता है. साथ ही वो सीटों पर अलायंस में सहमति न होने की ओर भी इशारा करते हैं.
उम्मीद है कि मंगलवार की बैठक में सीट शेयरिंग को लेकर कुछ ठोस बातें सामने आएंगी.
सीट शेयरिंग पर समाजवादी पार्टी के जावेद अली खान कहते हैं, "महाराष्ट्र, तमिलनाडु और बिहार में इंडिया पार्टियां पहले से ही गठबंधन में हैं. जहां नई सीट शेयरिंग होनी है वो है बंगाल, पंजाब, दिल्ली और यूपी. ये काम हमें चार राज्यों में पूरा करना है. यहां कांग्रेस की स्थिति ऐसी नहीं है जिसमें बहुत विवाद हो."
बंगाल में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है. यूपी में पार्टी के दो विधायक हैं, जबकि दिल्ली में एक भी नहीं.
2024 के नतीजे क्या तय हैं?
भाजपा नेता दावा कर रहे हैं कि नरेंद्र मोदी का तीसरा बार प्रधानमंत्री बनना तय है, लेकिन विश्लेषक योगेंद्र यादव के मुताबिक विपक्षी गठबंधन के लिए उम्मीदें खत्म नहीं हुई हैं.
उनका मानना है कि भाजपा अपने चुनावी चरम पर पहुंच चुकी है और ऐसी कोई जगह नहीं जहां वो सीटों में वृद्धि कर सके, और ऐसे राज्य हैं जहां उसकी सीटों की संख्या गिरेगी.
वो ज़ोर देते हैं कि विपक्ष देश के सामने न सिर्फ़ एकता का बल्कि उम्मीद का संदेश दे.
पीडीपी नेता महबूबा मुफ़्ती का भी मानना है कि विपक्षी नेता अपने मतभेदों को भुलाकर साथ आएं और लगतार काम में जुटे रहे हैं, लेकिन वो मीडिया में कथित पक्षपात और सरकार के एजेंसियों के विपक्षी नेताओं के खिलाफ़ इस्तेमाल की शिकायत भी करती हैं.
सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च के राहुल वर्मा मानते हैं कि मीडिया पक्षपात और सरकार के पास अथाह संसाधनों की शिकायत पूरी तरह गलत नहीं हैं.
वो कहते हैं, "आपको ये शिकायत करने के साथ साथ लोगों से बात कर उन्हें भी विश्वास में लेना होगा. आप लोगों से कैसे बात करें? ज़मीन पर जाकर. आप कितना ज़मीन पर जाते हैं? आप चाहते हैं कि मीडिया आपका काम करे. ठीक है कि मीडिया आपकी सोच को सुन नहीं रहा है. आपकी सोच क्या है? सभी सरकारों के पास ज़्यादा संसाधन होता है."
कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संजय झा को भी उम्मीद है कि विपक्ष के लिए अभी खेल खत्म नहीं हुआ है, और उसके लिए दो बातें महत्वपूर्ण हैं- पहला, जिन राज्यों में कांग्रेस और भाजपा की सीधी टक्कर है वहां कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा होता है, और दूसरा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी कैसा प्रदर्शन करती है.
जावेद अली खान याद दिलाते हैं, "मैंने तो इंडिया शाइनिंग और फील गुड का दौर भी देखा है. इंडिया इज़ इंदिरा और इंदिरा इज़ इंडिया का दौर भी हमने देखा है. जब बदलाव होता है तो हो ही जाता है."

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