महान शिव भक्त कोंड्या उर्फ करण साह (1402 AD to 1442 AD)
दो भाइयों की मृत्यु पर, कोंड्या साह उर्फ करण साह चंद्रपुर के प्रमुख बने। वह हिंदू धर्म के एक महान समर्थक और विशेष रूप से शिव के भक्त थे। पड़ोसी राजाओं के उत्पीड़न के कारण कोंड्या साह के शासनकाल के दौरान अन्य समुदायों के साथ बड़ी संख्या में तेलुगु ब्राह्मण चंद्रपुर चले गए। हालाँकि, यह ज्ञात नहीं है कि पड़ोसी राजा कौन थे।
कोंड्या साह ने उदारतापूर्वक तेलुगु ब्राह्मणों को लगान-मुक्त भूमि और गाँव दिए और उन्हें वर्षासन या वार्षिक पेंशन प्रदान की। चंद्रपुर क्षेत्र में बड़ी संख्या में तेलंगियों की उपस्थिति आज भी संभवत: इसी काल की है। और यह ब्राह्मण चन्द्रपुर में विकासशील और समपन्न समाज के रुप सवर्ण से पहचानी जाती है, खैर 1950 के बाद अम्बेडकर और कांग्रेस ने ये वर्ण आर्थिक व्यवस्था के आधार पर बनायें मगर अब यह वर्ण शुद्र वैश्य और क्षत्रिय(SC,ST,OBC,General) में कुछ छोटी मानसिकता वाले लोगो की वजह से पहचाने जाने लगे, उन मूर्ख समाजवादियों को इतिहास पढ़ लेना चाहिए के जो आज सवर्ण वर्ग को अलग दिशा में ले जा रहे है, चन्द्रपुर में उनके पूर्वज गोंडो के अधीन और गोंडो की दया पर जीवन य़ापन करते थे. खैर छोडो महान शासक कर्ण शाह के बारे में जानते है..करण शाह शिव के भक्त के रूप में, कोंड्या ने अच्छी संख्या में शिव मंदिरों का निर्माण किया, पुराने लोगों की मरम्मत की और गुफाओं और मंदिरों को ढकने वाली वनस्पति की जंगली वृद्धि को साफ किया। कहा जाता है कि आधुनिक चंद्रपुर के पठानपुरा वार्ड में मंदिरों में से एक कोंड्या द्वारा निर्मित किया गया था। जिसमें एक हाथी पर एक शिवलिंग विराजमान है। यह शिवलिंग का एक दुर्लभ उदाहरण है।
कोंड्या ने महाकाव्य रामायण और महाभारत को ध्यान से सुना, और उनके गायन की व्यवस्था की..
जब चन्द्रपुर के आसपास के राजयो में लूटेरो और दुराचारियों के ज़रिये मंदिर को तोडा जा रहा था रामायण, महाभारत की लीपियो को जलाया जा रहा था, और इन ग्रंथो को पढ़ने य़ा सुनने पर लोगो को मार दिया जाता था, तब कर्ण शाह ने अपने राज्य में इन ग्रंथो को पढ़ने और सुनने वालो के लिए अलग कानून व्यवस्था बनायी ताकि भक्त किसी भी परेशानी के इश्वर की प्राथना कर सके, और आस पास के राजा जब डरे हुए थे आतंकियो से तब करण शाह ने विशाल मंदिर बनबाना प्रारंभ किया और बहुत से मंदिरो का जीर्नोधार कराय़ा..
करण शाह ने रूह कापने वाले कनून 'आंख के बदले आंख और दांत के बदले दांत' के कानून के संचालन की इस प्रथा को छोड़ दिया..
इस समय तक पहले के गोंड शासकों ने व्यक्तिगत विषयों के विवादों में हस्तक्षेप नहीं किया। उन तक पहुंचने वाली शिकायतों के मामले में, उन्होंने 'आंख के बदले आंख और दांत के बदले दांत' के कच्चे रूह कापने वाले कानून के संचालन की अनुमति दी किंतु कोंड्या साह ऊर्फ करण शाह ने इस प्रथा को छोड़ दिया। उन्होंने अपनी न्याय व्यवस्था को नर्म करते हुए दोनों पक्षों, वादी और प्रतिवादी को तलब किया। अपने न्यायालय में, उन्हें ध्यान से सुना और फिर फैसला सुनाया। झूठ बोलने वाले अभियुक्त को राज्य से निर्वासित कर दिया जाता था, लेकिन यदि वह अपना अपराध स्वीकार करता है तो उसे फटकार लगाई जाती थी और रिहा कर दिया जाता था।दूसरी बार भी आरोपी को यही रियायत दी गई। हालाँकि, अगर उसने तीसरी बार अपराध दोहराया तो उसे राज्य से निष्कासित कर दिया गया।
इस राजा के शासनकाल के दौरान चंद्रपुर शहर की दीवारें उनकी अनुमानित ऊंचाई से आधी हो गईं..
कर्ण शाह का किसी के साथ युद्ध का उल्लेख नही इनके शाशन की वंसावली 1402 से 1442 से ही स्पष्ट है के इनका 40 वर्ष का शासन अति उत्तम रहा इतने वर्ष का शासन 1400 AD मुस्लिम अक्रांताओ का युग था..और इस काल में अन्य भारतीय राजा ने 10 वर्ष भी शासन नही कर पाये जब इनका शासन काल 40 वर्ष होना इनकी वीरता और दहशत को साफ साफ बतलाता है, इतिहासकारो ने अपने उल्लेख में बताया है कि गोंड राजे इतने भयानक होते थे कि आसपास के अक्रांता इनके राज्य की तरफ देखने से डरते थे, इसका एक कारण कंकाली माँ को दुश्मनो के सर की वली देना था..
बाबाजी बल्लाल साह...
कोंड्या की मृत्यु के बाद बाबाजी बल्लाल साह गद्दी पर बैठे। इस सुखप्रिय राजा ने सब कुछ अपने मंत्रियों को सौंप दिया.. आंगे बाबाजी बल्लाल शाह जी को जानेगे ज़िनके इतिहास के साथ हद से ज्यादा छेडछाड की है.. जो कि समझ से बाहर है.
History Source- Chandrapur Gazzetter
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