History of ST category(Criminal Tribes ACT 1871) : गोंडवाना रियासत के विषय से हटकर थोडा जनजातियो के ST category का इतिहास जानना भी ज़रूरी है, ताकि अंग्रेजो के चापलूस लोग ST Category के नाम पर आपको शुद्र कहकर नीचा न दिखा सके और उस आरक्षण विरोधी को मुहतोड़ जवाव दे सके..
गोंडवाना रियासत के विषय से हटकर थोडा जनजातियो के ST category का इतिहास जानना भी ज़रूरी है, ताकि अंग्रेजो के चापलूस लोग ST Category के नाम पर आपको शुद्र कहकर नीचा न दिखा सके और उस आरक्षण विरोधी को मुहतोड़ जवाव दे सके
ST का cut off इसलिए कम होता है कि गोंड और मीणा समाज ही इस रिजर्वेशन का सबसे ज्यादा फायदा लेते है अन्य को इसमें कोई रूची नही, जबकि goverment exam में OBC(42%), SC(20%), GENERAL(30%) में ST(8.6%) देश की जनता भाग लेती है, आदिवाशियों को वैसे ही बदनाम किया जाता है, बुद्धि के मामले में इनको ये मालूम होना चाहिये के गोंड की 258 रियासतो के राज़परिवार अभी भी मौजूद है, और मीणाओ का इतिहास तो बहुत प्राचीन है, मीणा और गोंड समाज आज गरीब इसलिये है कि सबसे ज्यादा मुगलो पिन्डारियों, और अंग्रेजो से इन्ही समाज ने सबसे ज्यादा बलिदान दिये ज़िसके कारण अंग्रेजो का एक st act था, ज़िसको अंग्रेज क्रीमिनल act कहते थे, इस act के अंतर्गत जब कोई भी गोंड या मीणा पैदा होता था तब ही अपराधी घोषित हो जाते थे बच्चे… अंग्रेजों का यह वो कानून था जिसने 160 जनजातियों को हाशिए पर धकेला और जातियों को इस act में रखा 1950 के बाद वही st act रिजर्वेशन का आधार बना ज़िसमें अनपढ और असभ्य जंगल में रहने वाली जातियो को रखा..
जब पैदा होते ही अपराधी घोषित हो जाते थे बच्चे… अंग्रेजों का वो कानून, जिसने 160 जनजातियों को हाशिए पर धकेला..
भारत में अंग्रेजों के काल को अंधकार युग के रूप में देखा जाता है क्योंकि यही वो समय था जब यहाँ के किसानों और लघु व्यवसायियों की कमर तोड़ डाली गई। अंग्रेजों ने आदिवासियों और जनजातियों को ही अपराधी घोषित कर दिया। इसके लिए अंग्रेजों द्वारा ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम (Criminal Tribes Act, 1871)’ लाया गया। भारत में जितने भी संसाधन थे, जिनके इस्तेमाल से यहाँ के ग्रामीण फलते-फूलते थे, उन सब पर अंग्रेजों का कब्ज़ा हो गया। इसी क्रम में आज हम बात करेंगे अंग्रेजों के इसी ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम (Criminal Tribes Act, 1871)’ की, जिसे कई क़ानूनों को मिला कर बनाया गया था। इसके तहत भारत की कई जनजातियों को ‘आदतन अपराधी’ घोषित कर दिया गया। इनमें से 160 संजातीय भारतीय समुदायों के लोगों के खिलाफ एक प्रकार का गैर-जमानती वॉरंट जारी कर दिया गया। उन्हें हर सप्ताह थाने में बुलाया जाने लगा। वो अपनी मर्जी से हिल-डुल भी नहीं सकते थे, उनकी गतिविधियों पर कुछ इस तरह से अतिक्रमण हुआ।
कैसे बना ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम (Criminal Tribes Act, 1871)’?
दरअसल, अंग्रेजों ने ये सब पंजाब और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों से शुरू किया, जहाँ सबसे पहले कुछ जनजातियों को अपराधी घोषित कर दिया गया। 19वीं शताब्दी के मध्य से ही घुमंतू या विमुक्त जनजातियों को प्रतिबंधित करने का सिलसिला चल निकला था। पुलिस ने इनकी गतिविधियों को सीमित कर रखा था और ब्रिटिश प्रशासन का कहना था कि इससे ‘काफी अच्छे परिणाम’ निकल कर सामने आ रहे हैं। हालाँकि, अंग्रेजों के द्वारा ये तब शुरू हुईं जब 1860 के दशक में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस-प्रशासन की इन हरकतों को अवैध घोषित कर दिया। इसके बाद इन प्रांतों की सरकारें तत्कालीन भारत सरकार (ब्रिटिश सरकार) के पास पहुँचीं और उन्हें ऐसे क़ानून बनाने को कहा, जिससे न सिर्फ इन घुमंतू व विमुक्त जनजातियों की गतिविधियों पर लगाम लगे, बल्कि इसका उल्लंघन करना भी दंडनीय अपराध माना जाए।
‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’: क्या था इस अत्याचारी क़ानून में?
यहाँ तक कि इस क़ानून में ज़मींदारों तक को नहीं बख्शा गया था। उन पर जिम्मेदारी डाल दी गई कि वो ‘क्रिमिनल ट्राइब्स’ के लोगों को चिह्नित कर उनका रजिस्ट्रेशन करवाएँ और उन्हें ढूँढ कर भी निकालें। फिर बाद में इसे मद्रास प्रान्त में लागू करने की ओर सरकार बढ़ी, जहाँ घुमंतू जनजातियों के पक्ष में प्रान्त के अधिकारियों के होने के बावजूद उनकी एक न सुनी गई। 1876 में इसे बंगाल में लागू किया गया और उसके बाद इन जनजातियों को एक ‘आपराधिक गैंग’ ही घोषित कर दिया गया। असल में ब्रिटिश सरकार की दमनकारी आर्थिक नीतियों ने इन जनजातियों के व्यापर को भी ठप्प कर दिया था। उनकी नमक वाली नीति से भी इन पर खासा दुष्प्रभाव पड़ा था। 1911 में इस क़ानून को पुलिस कमीशन की रिपोर्ट के बाद और सख्त कर दिया गया, जिसमें सिफारिश की गई थी कि पुलिस को इन जनजातियों के खिलाफ सख्ती के लिए और शक्तियाँ दी जाएँ। प्रांतीय सरकारों को भी ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ के तहत किसी भी जनजाति को ‘अपराधी’ घोषित करने की शक्ति दे दी गई। इस क़ानून को लागू करने से पहले जिस ब्रिटिश अधिकारी टीवी स्टीफेंस ने पैरवी की थी, उसका तर्क भी काफी अजीब था। उसका कहना था कि भारत में एक जाति के लोग सदियों से एक ही प्रकार के कारोबार करते आ रहे हैं, जैसे बुनाई, शिल्पकारी और लोहार वाले काम। उसका कहना था कि इसी तरह से कुछ जनजातियाँ ज़रूर ऐसी हैं, जिनके लोग अपराध को ही अपना प्रोफेशन मानते हैं क्योंकि उनके बाप-दादा भी यही करते आ रहे थे। अंग्रेजों का मानना था कि ये जनजाति समूहों के लोग भी सदियों से अपराध ही करते आ रहे हैं और आगे भी इनके वंशज गैर-क़ानूनी कार्य ही करते रहेंगे। इससे हुआ ये कि इन समुदायों में बच्चे का जन्म होते ही वो ‘जन्मजात अपराधी’ हो जाता था, बिना कुछ किए ही। लेकिन, 20वीं शताब्दी आते-आते अंग्रेजों ने सारी हदें पार कर दी। बच्चों को उनके परिवार और माता-पिता से दूर कर के कहीं और बसाया जाने लगा। इस बसावट को ‘सुधार’ का नाम दिया गया। आज जब चीन के शिनजियांग में उइगर परिवार के बच्चों को उनके परिवार और क्षेत्र से शुरू में ही दूर कर दिया जाता है, ऐसे में हम सोच सकते हैं कि उस वक़्त अंग्रेज कैसे यह करते रहे होंगे। आगे कभी कोई विद्रोह ही न हो, इसके लिए इन लोगों के फिंगरप्रिंट्स तक ले लिए गए। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसे सिविल लिबर्टी का हनन करार दिया था। ये था अंग्रेजों का अत्याचारी ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम (Criminal Tribes Act, 1871)’।
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